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वो सब मदन जानता था। कि बहुत कुछ सहना भी जिंदगी है, सहने मे जो सब्र मिलता है, सकून मिलता है.. वो शायद कभी न मिल सके। जो वक़्त के हिसाब से नहीं चलता, वो करारी हार खा जाता है....
" साहब, सेबो की पुताई मे बस एक हफ्ता रह गया है...." माली काका ने कहा!!!
" हां खूब, ट्रक लोड कराते वक़्त याद रखना, काका, पर्ची की गलती आगे की तरा मत करना। " माली काका ने " जी साहब " कह दिया था।
फिरोज को टेलीग्राम आ गया था.... घर बुला लिया था, उसके पापा ने माँ की हालत का जिक्र करके। ये कया, मदन मेहरा एक दारू की बोतल से सुबह ही दो पेग बना के पी गया था। फिरोज आ कर आश्चर्य से करीब बैठ गया था। " कया सोचते हो फिरोज, लो एक पेग, ज़ा काफ़ी पीनी है तो काका को कह दो। " मदन ने मुस्करा कर कहा।
" नहीं, जाने का ऑडर आ गया है। " मदन को कहा उसने।
" अरे किधर... अभी दो हफ्ते हुए है, कुछ देखना बाकी है, तो आज किधर चले। " मदन ने तसली से जवाब दिया।
"---नहीं दोस्त, बाबू जी ने बुलावा भेजा है। " मदन ने कहा... " ओह गांव को ज़ा रहे है कल आप " मदन ने कहा।
" जाना तो पड़ेगा, माँ अचानक ढ़ीलीं हो गयी है।
" ओह.... लो एक पेग सुबह का पियो... फिर जाने की सोचते है... " मदन ने कहा।
फिर माली काका को बुलावा भेजा.... माली काका तो नहीं उसकी पत्नी आ गयी... " जी साहब " उसकी पत्नी शोभा थी, माली नहीं था, " जाओ इसके साथ और कपड़े आदि पैक करा कर, चुने वाला पान भी खिला देना..... " वो मुस्करा पड़ी...
वो उसको अंदर ले गयी... आपने रूम मे," शोभा ये कया कर रही हो.... " जलते अँगारे सामने ले आई।
फिरोज कुछ न कर सका, बस पंद्रहा मिनट बाद... फिरोज का सारा बोझ उतर चूका था.... हलका हो चूका था ... ख़ुशी के मुताबिक उसने 150 रुपए उसे ख़ुशी के दिए। "साहब कब आओगे फिर...." शोभा ने पूछा...।
"पता नहीं... अन जल है... आदमी के नसीब के खाने पे मोहर उसकी है... " फिरोज ने जैसे उसे गयान दिया हो।
" आप भी बिलकुल साहब के माफिक खर्च करता... "
शोभा ने एक दम से कहा। पैसे अगिया मे फसा लिए।
" चलो अब जल्दी.... सलवते निकाल दू.... नहीं तो ज़िन्दगी टेड़ी हो जाएगी... " वो बैग पकड़ कर दोनों बाहर थे।" रखो जीप मे " मदन के साथ वो टोकरी सेब की जीप मे रख कर, स्टेशन मे छोड़ने चल पड़ा था। पीने के कारण जीप दूसरे गेर मे जाते ही रुक जाती थी... " मेरी मानो, मदन यार तू यही पे छोड़ दे... अब ये डलान के टोये मे जीप का टायर घुस गया है। " मदन साथ उतर कर बोला,---' तू शायद सही कह रहा है, मैं एक महीने के बाद आउगा... तू जाएगा कैसे....? "
मदन यूँ ही बड़बडाता हुआ वाहां बैठ कर टोये की जांच जैसे करने लगा।
एक कार खाली स्वारी छोड़ शायद आ कर रुकी... " हेलो मदन की ग्रेट। " हैरानी से सिर ऊपर उठा।" कर्नल साहब" मदन ने ख़ुशी मे कहा। " कया हुआ, मेरे बंदे इसे ले आएंगे... चलो बैठो, कार मे... मेरे डाक बगले मे चले... "उसने एक मुस्कराहट साथ गले लगा लिया... " बिछड़े जैसे सालो के अब मिले। " उसके पैर धरती को टच नहीं कर रहे थे, मदन खुशी मे कह रहा। ---" ये फिरोज मेरा दोस्त कर्नल साहब ---" मदन ने ख़ुशी मे कहा। 🙏🏻🙏🏻 इसकी अगर कोई नकल हो, तो मैं जिम्मेवार हू।++
(चलदा )--------------------------- नीरज शर्मा
---------------शाहकोट, जलधर।