बिक्रम जी का मेहेक केलिए इतनी फिक्र देख राजबीर के अंदर का दर्द और गुस्सा बढ़ ने लग ता है..... उसके नफरत को जिसे और हवा मिल जाति है। उसी दर्द और गुस्से के साथ, कुछ सोच ते हुए राजवीर होटल से बाहर चला जाता है।
रात के दो बजे.....राठोड़ बिल्ला...
गुजरे सालों में शायद ही कभी राजवीर राठौड़ बिल्ला में रहा हो, फिर भी.... बिल्ला का सबसे खूबसूरत और अलिसम कमरा उसी का था।........ जिस अलिसन सजे हुए कमरे में उसकी दुल्हन उसका इंतजार कर रही थी।
रात के कुछ दो बजे राजवीर अपनी बडी सी गाड़ी को बिल्ला के अंदर दाखिल कर ता है। पार्किंग के पास गाड़ी रोक ते हुए चाबी को सिक्योरिटी के पास बडी बेपरवा अंदाज से फेंक लड़खड़ाते कदमों से विला के अंदर जानें लगा।।नशा और बेहोसी इसके आंखो में इतनी थी के, थोडी दुर जाते ही उसके कदम लड़खड़ा ने लगे। वो गिर ता उससे पहले सिक्योरिटी ने उसको हाथ पकड़ ना चाहा तो राजबीर की गहरी काली नजर उसपर पड़ ते हैं... उसके हाथ हवा में ही रह जाते हैं। और यो चुप चाप वहां से जानें लग ता हे।
लड़ खडा ते कदमों से राजवीर अपने कमरे के अंदर आता है। वो एक बार पूरे कमरे को अपने नजर घुमाते हुए देख ...वो अपने कदम बार के तरफ बढ़ा ते हुए एक बोतल निकाल पीने लग ता हे। पूरे कमरे में बस 🕯️ कैंडल की ही रोशनी थी। कानों में गूंज ते मदहोश कर ने वाली गाने के आवाज़ के साथ उसकी नजर खिडकी के पास खड़ी हुई मेहेक के ऊपर पड़ ती हे।एक नजर मेहेक पर डाल वो अपनी पूरी ड्रिंक खतम कर उसके ओर बढ़ते लगता है।.....
और एक एक कैंडल के लाइट को उसी लाल कपड़ा बंधे हातों से बुझाते हुए ... मेहेक के तरफ़ अपने कदम बढ़ाने लगता हे। शराब का नशा उस पर इतना हावी हो चूका था के लड़ खड़ा ते कदमों के साथ उसके आंखो के आगे सब कुछ दुधला सा दिख रहा था।खिडकी के पास घुंघट में खड़ी हुई मेहेक एक टक बस आसमान के तरफ़ ही देख रही थी। चांद तारों के साथ जेसे उसका कोई गेहेरा नाता हो।कमरे में धीमी होती रौशनी उसके दिल की धडकनों को बढ़ा ने लगती थीं। अचानक एक स्ट्रॉन्ग परफ्यूम और अल्काहल की मिलो जुली खुशबू के साथ किसकी सांसों की गर्मी उसे अपने एक दम करीब महसूस होने लगती हे।इस से पहले के वो पीछे पलट ती...दो मजबूत बाहें उसके कमर को जकड़ लेती है। राजवीर अपने चीन को मेहेक के कन्धों के पास रख, अपने होठों से उसके गर्दन को हल्के से छू ने लग ता हे। और बेहद सर्द और धीमे नसीली अंदाज में बोला......"हैप्पी वैडिंग नाइट.... Mrs राठोड़...... शादी के इस आखरी रस्म को निभाते हुए इस शादी को मुक्कमल बना ना हे।"इतना बोल वो ....अपने उगलियों से मेहेक के खुले कमर को सहलाने लग ता हे।
मेहेक के गर्दन से जाते हुए राजबीर के होंठ उसके कन्धे और पीठ को चूम ने लग ती हैं।....अपने दांतों से वो मेहेक के ब्लाउज की डोरियां खोल ने लग ता हे। और अपने गर्म होठों से उसके खुले पीठ को बेहद इंटेंस से किस कर ने लग ता हे।राजबीर के एक हाथ मेहेक के कमर को मजबूती से पकड़े हुए होती हैं .. तो दूसरे हाथ से वो उसके जिस्म से एक एक गहने को उतार ने लगा था।।...
उसकी चूड़ियां, उसके गले का हार, उसके कानों की बलि, उसके कमर बंध... हर गहने को उतार ते वक्त राजवीर कुछ इस कदर मेहेक को छू राहा था के मेहेक उसके बाहों में जेसे पिघल ने लग ती हे।। राजबीर के ये स्पर्श मेहेक को उसके बाहों में सिमट जानें में जेसे मजबुर ही कर रही थी।धीरे धीर राजबीर को हलकी से स्पर्श...इंटेंस और इंटेंस होती जा रही थी।मेहेक का उसके बाहों में इस कदर पिघल जाना राजबीर को जैसे बेकाबू कर रही थी।उसके कमर पर राजबीर की पकड़ हो या फीर राजबीर का उसे इंटेंस किस करना... कुछ भी मेहेक को दर्द नहीं दे रहे थे। बल्के उसके अन्दर एक अजीब सा ऐहसास जगा रहे थे।राजबीर के सासों की गर्मी से और उसके धडकनों के सोर से मेहेक उसके बाहों में जेसे पिघल ने ही लगी थी।
मेहेक की तेज सांसे और उसके बाहों में मेहेक का सिमटना भी राजबीर को मदहोश कर रहा था। और उसी एक पल मैं राजबीर ने अपने घायल रूह को मेहेक के अंदर समदिया।
सुबह का वक्त...
.सुबह कुछ ५ बजे राजबीर एक हाथ में अधि जली सिगरेट और दूसरे हाथ में ड्रिंक का ग्लास लिए अपने बाल्कनी में खड़ा बेसुध सा बाहर देख रहा था। उसकी आंखे लाल और चेहरे पर थकावट साफ झलक रहा था। वो सिगरेट का आखरी कस भर ते हुए बाकी अपने पैरों तले मसल ते हुए ,एक ही घूंट में अपनी पुरा ड्रिंक खत्म कर ता हे।एक नजर अपने हाथों के घड़ी की तरफ देख वो फ्रेश होने केलिए वासरूम के तरफ़ चला जता ही।
कुछ १५ मिनिट के बाद एक ब्लू जींस और ग्रे कॉलर की शर्ट पहनी वो बाहर निकल सीधे मिरर के तरफ चला जता ही। और अपने बाल सेट कर ने लग ता ही।मिरर से ही उसकी नजर बेड पे सोई मेहेक के तरफ जाति हे।काले घने खुले बाल उसके पूरे चेहरे पर बिखरे पड़े थे, सफेद मखमल के चादर बस उसके कमर से निचे ही लपेटे हुए थे।
राजबीर की नजर उसको खुली पीठ पर ठहर सी जाते हैं। पीठ पर जगह जगह उसके दिए हुए बीटिंग मार्क्स साफ दिख रहे थे।उसकी सारे कपड़े और गहने फर्श पर बिखरे पड़े हुए थे। राजबेर की नजर उससे हट ही नहीं रहि थी। अपने आप ही उसके कदम बेड के तरफ बढ़ जाते हैं।मेहेक के पास खड़ा हुआ वो उसे निहार ने लग ता हे। जेसे उन काले घने बालों के पीछे को चेहेरे को एक रूप देने की कोशिश कर ता हे।
एक पल को उसके हाथ खुद ब खुद उसके चेहरे के तरफ जानें लग ते हैं तो दूसरे ही पल वो खुद को रोक लेता हे।फिर मेहेक के ऊपर लिपटी हुई उसी चादर को अच्छी तरह से उसे ओढ़ा ते हुए ,... वहीं उसके साइड में बैठ जता है।एक पल को वैसे ही बेठे हुए,....मंडप से लेके कल रात तक का मेहेक के साथ उसके सफर राजवीर के आंखों के सामने रिवाइंड होने लगती हैं।
एक नजर वो अपने उसी लाल कपड़ा बंधे हाथ को देख ने लग ता है। और कुछ गहरी आवाज़ लिए बोला...."डोंट टेक इट पर्सनली... Mrs राठोड़। एवरी थिक इस फेयर इन लव एंड वार।"और फिर एक गेहेरी सांस लिए बोला ...."एंड दिस इज वार।"फिर उस लाल कपड़े को अपने दूसरे हाथों से सहला ते हुए बोल ता हे....."कुछ तो है तुम में Mrs राठोड़... जो मुझे एक पल तुम्हारे पास ठहर ने पे मजबुर कर रहा हे। पहेली बार मुझे किसी से डर लग रहा हे।... और मुझे अपने अंदर ये डर बिल्कुल पसन्द नहीं।"और तोड़ा ठेहर एक बेहद रूखे अंदाज से बोला..."हमारे इस स्टोरी का कोई हैप्पी एंडिंग नहीं हो सकता हे।.............. अगर कही और मिलते.... तुम कोई और होती...... ये रिश्ते कुछ और होते..... ये ऐहसास कुछ और होते......."ये बोल ते बोल ते वो अचानक खामोश हो गया...
वहीं बेड साइड टेबल से एक एनवेलॉप निकाल कर वो मेहेक के पास रख कर बोला...."तुम्हारे सो कॉल्ड हसबैंड के तरफ से वैडिंग गिफ्ट ... Mrs राठोड़.... तुम्हारे लिए डाइवोर्स पेपर्स ".......फिर थोड़ा रुक ते हुए बोला...."सॉरी.... बिक्रम राठौड़ से किए वादे के आगे मजबूर हूं...."पहले साइन नहीं कर सकता हुं... पर जब भी तुम्हे ये बिल्ला और ये राठोड सरनेम भारी लगने लगेंगे... तुम ये पेपर्स साइन कर भिजबा देना... आजाद करदूंग तुम्हे इस रिश्ते से........ उस ही पल।"....फिर एक तंज भरी हसीं हंस ते हुए बोला..." और अगर बीना पति के ... Mrs राजबीर राठौड़ बने हुए ज़िन्दगी भर...... अपने मदर इनलो के जेसे Mrs राठोड़ पार्ट २ बने हुए रिहेना हे.. .... तब भी यू आर मोस्ट वेलकम।"
इतना बोल ते हुए वो बंधे हुए लाल कपड़े को हाथों से खोल वहीं नीचे फेंक ते हुए वहां से जाने लग ता हे।जाते हुए नाही वो मेहेक के तरफ एक नजर देखता हे और नहिं उसके चेहरे पर कोई भाव होते हैं।राजवीर और मेहेक के बीच ये एक ऐसी अनोखी शादी थी ....जिसमे....पति अपने सारे रस्में निभा ने के बाबजूद अपने दुलहन का चेहरा तक नहीं देख ना चाहता था।जिसमे .... शादी निभाने से पहले ही टूट ने का फरमान जारी हो चूका था।जिसमे..... ये शादी ... जुड़ के भी ना जुड़ी हुई थी... और नाही टूटी थी।और जिस में..... नाही ... प्यार था नहि नफरत थी और नाही.....कोई और रिश्ता।
To be continued........
राजवीर के साथ इस अनोखे शादी के रिश्ते को क्या मेहेक निभा पाएगी ???या यहीं पर खतम होगा राजवीर और मेहेक का सफ़र!!