वहां मंडप के पास काफी देर से हर कोई राजबीर के आनेका वैट कर रहा था। इस बीच कई बार बिक्रम जि अमन को कॉल लगा चूके थे। पर अमन डर के मारे कॉल रिसीव ही नहीं कर रहा था। फीर पंडित जी परेशान होते हुए बोले ...."दूल्हे को बुलाएं बिक्रम जी.... महुरत निकल राहा हे.. कहाँ हे दुल्हा।"
"यहां हूं में "... एक रोब दार और भारी आवाज आनेसे सब उस ओर देख ने लगे। पंडित जी मंत्र पढ़ते हुए राजवीर को मंडप में आने को इशारा कर ने लगे। तभी संध्या जी की नजर राजबीर के हाथो पे लगी चोट पर पड़ी।
पिछले कुछ घंटोमे... जब तक मंडप तक आता राजबीर ५ बॉटल शराब के खत्म कर चुका था। और उसके लड़ खडा ते कदम से ये साफ़ पता चल रहा था।
फिर भी उसका कॉन्फिडेंस और खुद पर काबू इतना था के उसके दिमाग में क्या उथल पुथल चल रहा हो किसकी मजाल थी के एक सब्ध भी कोई उसके चेहरे से पढ़ पाए। सिबाये संध्या जी के ।
राजबीर मंडप में जा ही रहा था के संध्या जी ने अमन को इशारे से उसके हाथो के चोट के तरफ इसारा किया।
अमन बात समझ ते हुए राजबीर के रोक ते हुए कहा...
"यार .. पता हे बड़े गेहरे रिश्ते बना ने जा रहा हे भावी के साथ। लेकिन भावी की मांग तुझे सिंदूर से भर ना हे... खून से नहिं।"
बोलते हुए... अमन राजबीर के खून से लतपत रुमाल को निकाल ते हुए.... अपना रुमाल उसकी चोट पर लपेट ने लगा।
राजबीर अमन के हाथों को साइड कर ते हुए एक नजर खुद के चोट और एक नजर संध्या जी के तरफ देख ते हुए बोला...."
बोल देना उन्हे.... ये मेरे खून नहीं हैं.... सालों पहले उनके जिस्म से बहे खून के छीटें हैं ....जो उनके बेटे के ऊपर गिरे थे ... बस ये उसीकेे छाप हैं"।
फिर अपने एक हाथ से दूसरे हाथ को सहलाते हुए बेहद नफरत भरे अंदाज़ से संध्या जी को देख ते हुए बोला.... अब दर्द नहीं होता. ... बस.... चुभन होती हे।"
बोल ते हुए वो मंडप में जाकर सीधे अग्नि कुंड के सामने बैठ गया। और बस एक टक अग्नि कुंड में जल रही अग्नि को देख ने लगा।
उस वक्त उसके आंखों को देख कुछ एसा लग रहा था जेसे.... आग अग्नि कुंड में नहीं उसके आंखो में जल रही हो।
जेसे जेसे पंडित जी के उच्चारित मंत्र उसके कानों में बज रहे थे.... वैसे वैसे बिक्रम जी के साथ किए गए मैरिज डील के एक एक सरतें उसके कानों में गूंज रहे थे।
"दुलहन आगयी"....
मंडप के एक कोने से आई किसीको ये आवाज और पायल के छम छम सोर ने राजबीर के कानो में जेसे दस्तक दिए... बाकी सभी सोच को विराम देते हुए राजवीर की नज़रे उसी आवाज के तरफ भटक गए।
दुलहन के लाल लिबाज़ में लिपटी हुई.... कान्हा जी के बांसुरी के धुन जेसे... मन को मोह लेने वाली... पायल और चूड़ियों की आवाज लिए..... आसमान में लाखों जगमगाते सितारों जेसे अपने लाल घुघट में लाखों सितारे जगमगाए..... अपने चेहेरेको पूरी तरह ढकी हुई....
मेहेक मंडप के तरफ कदम बड़ा रही थी।
मेहेके धीमे कदमों से जाते हुए चुप चाप राजवीर के बगल में जाकर बैठ जाति हे।
उन कुछ पलों में ही .... मेहेके के उसके इतने करीब होने का ऐहसास, उसकी खुशबू,... राजबीर को अंदर से बैचेन कर रही थी। उसकी धड़कन बढ़ रहीं थीं उर एक अनजाना सुकून वो महसूस करने लगा था।
अपने दिल दिमाग को काबू में कर ते हुए; गुस्से से अपने आंखे बन्द कर अपने हाथों के मुट्ठियां बना लेता हे।.... हाथो में दबाब के बजेसे उसके चोट से खून निकल ते हुए वही मंडप के फर्श पर गिर ने लग ते हैं।
ये देख संध्या जी... जो मंडप के पास खडे थे, परेशान होते हुए मंडप के ऊपर पैर बढ़ा ही रहे थे... बस उससे पहले... मेहेक जो राजवीर के बगल में बैठ , खून की बूंदे देख रही थी ... राजवीर के उस चोट लगे हाथ को अपने हाथों से थाम लेती हे।
मेहेक के हाथों के उस एक स्पर्श से... कुछ पल केलिए राजवीर के दिल की धड़कन जेसे रुक ही जाति हे।
उस एक ही स्पर्श से उसे ऐसा मेहेसुस होता ही जेसे,.... उसके बरसों से नासूर बने घावों पर किसीने मलहम लागा दिया हो।
एक पल केलिए वो उस ऐहसास में खो जाता हे... और दूसरे ही पल में मेहेक के तरफ घूर ते हुए... अपने हाथ उसके हाथों से छुड़ाने लगता हे।
लेकिन ये क्या ... वो जितने ही गुस्से से मेहेक के हाथों से अपनो हाथो को छुड़ाने लग ता हे ... मेहेक उतने ही सिद्धत से उसके हाथों को कस लेती थी।
वैसे ही राजबीर के हाथों को पकड़े हुए... पूजा के थाल से हल्दी लेकर, उसके चोट पर लगाने लगती हे। और वहीं पर रखे हुए एक लाल कपड़े को उसके हाथों में लपेट देती ही।..... और एसा करते हुए राजवीर बस उसे एक टक देख रहा था।
संध्या जी, विजय जी,अमन,शक्ति, शालिनी... वहां पर खड़ा हर सक्स जो राजबीर को जानते थे .... ये देख 😲 shock के मारे बेहोश ही होने वाले थे।
बस एक सक्स ही था जो ....थोडी दुर एक चेयर पर बैठा हलका मुसकुराते हुए इस पल को अपने आंखों में बसा राहा था।
क्यों के बस उनको ही पता था के जिस मकसद से वो मेहेक को राजवीर के जिन्दगी में लाए हैं..... उसका आगाज हो चुका था।
बिक्रम जी मुसकुराते हुए संध्या जी के तरफ देख ते हैं.... जो के एक टक मेकेक के तरफ ही देख रही थीं।
और सुकून के साथ एक गहरी सांस लिए बोले...
"मुबारक हो संध्या बहु... आप के इंतजार का अब अंत होने वाला हे।"
वहां मंडप में..... मेहेक राजवीर के चोट पर लाल कपड़ा बांधे एक बार उसे सहलाने लगतिहे।
थोडी देर तो राजवीर उस स्पर्श को आंखे बंद किए सुकून मेहेसुस करता हे ,पर दूसरे ही पल अपने हाथों को उसके हाथों से झटक ते हुए... उसे घूर ने लगता हे।
राजबीर एक नज़र अपने हाथों में लगे लाल कपड़े के तरफ नजर डाल .... एक तिरछी नजर मेहैक के तरफ डाल तो हुए बोला.....
"बहत अच्छी नौटंकी कर लेती हो।"फिर थाल पे रखी हुई सिंदूर और मंगल सूत्र के तरफ देख एक तिरछी हसी हस्ते हुए बोला...
"लेकिन में भी देख ता हूं बीना पति के साथ के, बस एक चुटकी भर लाल गुलाल और एक काले मोतियों के धागे के साथ कितने दिन इस नौटंकी को निभाते हो।"
फिर संध्या जी के तरफ एक नजर डाल ....एक डेविल स्माइल मेहेक को देते हुए बोला....
"बहत सौक ही ना.... रोड से उठ कर करोड़ पति खानदान की बहु बन ने का...."
फिर मुसकुराते हुए थोड़ा मेहेक के कानो के पास आते हुए बोला....
"तो रहो Mrs राजवीर राठौड़ बनकर.... Mrs संध्या विजय राठौड़ के साथ... उस बड़े से बिल्ला में..... बीना पति के सुहागन बने। ... बस इस मंगलसूत्र और सिंदूर के साथ।"
पर मेहेक ...चेहरा घूंघट में ढकी हुई बीना किसी भाव बस सांत बैठी हुई राजवीर के बातें सुन रही थी। जेसे उसे राजबीर के बातों से कोई फर्क ना पड़ ता हो।
राजवीर कुछ और बोल ता ....पंडित जी सात फेरों केलिए खडे होनेको बोल दोनो के तरफ देख ....बोले.....
"साथ फेरों के हर बहनों को मेरे साथ मन ही मन दहरा ते हुए सात फेरे लीजिए।
ये बोल पंडीत जी सात फेरों के सात बचने के मतलब समझा ने लगे।
मेहेक और राजवीर अपने जगे से उठ.... फेरों केलिए खडे हो गए।
राजवीर के सात फेरों के सात वचन.......................
पंडित जी दोनोके तरफ देख ते हुए बोले..
पेहेला वचन...
पंडित जी बोले..."अगर पति कोई भी तीर्थ या धार्मिक जगे पर जाए तो पत्नी उसकी अर्धगिनी होनी के नाते साथ रहेगी।"
ये सुन राजवीर एक तिरछी मुसकान देते हुए बोला...
"ना में किसी पूजा में मान ता हूं ना किसी तीर्थ या पत्थर के किसी मूर्ति में... बस मान ता हूं तो मेरे अंदर के इस बदले और नफरत को..... में वादा करता हु .... आज से मेरे हर बदले और नफरत में तुम भी सामिल रहोगी।"
दूसरा वचन....
पंडित जी बोले.... "आप अपने माता पिता के तरह ही, अपने अर्धांगिनी के माता और पिता का भी सम्मान करेंगे।
राजवीर ने दहराया.........
"मुझ से जुड़े हर एक सक्स के साथ मेरा बस नफरत का रिश्ता ही..... खास कर मेरे मां... बाप के साथ...में वादा कर ता हूं .. तुमसे और तुमसे जुड़े हर एक सक्स के साथ में ये नफरत का रिश्ता सिद्धत से निभाउंगा।"
तीसरा बचन.....
पंडित जी बोले...."आप जीवन के हर अवस्थों में अपने पत्नी का पालन पोषण करेगें।"
राजबीर ने दहराय.....
"जीवन के हर मोड़ तो बहत दूर की बात हे... में वादा कर ता हूं... इस पल के बाद से ही ... नाही तुम से और नाही तुम्हारे किसी अच्छे या बुरे वक्त में मेरा तुमसे कोई भी वास्ता रहेगा।"
चथा वचन........
पंडित जी ने बोला......"आज से अपने पत्नी के हर दुख और सुख की जिम्मेदारी आप को रहेगी।"
राजबीर ने दहराया......
"सुख की तो पता नहीं..... लेकीन इस शादी के बाद राठौड़ खानदान के हर एक सक्स के साथ साथ तुम्हारे भी हर दुख की जिमेदार बस में ही बनूंगा।"
पांचवा बचन......
पंडित जी ने बोला...."आप के हर व्यापार, हर चीज पर आप के पत्नी का बराबर का अधिकार रहेगा।"
राजवीर एक तंज भरी हसी हस्ते हुए दहराया...
"बाकी सारे बचने को भूल तुम्हें और मुझे इस एक ही वचन को मान ना चाहिए... क्यों के तुम्हारे इस शादी कर ने की वजह भी तो यही है।.... वादा कर ता हूं... तुम्हें इस रिश्ते से कुछ और मिले ना मिले प्रॉपर्टी इतनी मिलेगी के.... खर्च कर ने केलिए .. एक जिन्दगी कम पड़ जाएगी।"
छठा बचान....
पंडित जी बोले......"नाही आप अपने पत्नी का कभी अपमान करेगें,.... नाही कभी जुआ खेलेंगे और नाही कभी कोई नशा करेंगे।"
राजबीर हस्ते हुए बोला.....
"जिस शादी की नीव हो एक बिज़नेस डील पे रखी गईं हो... उस शादी में इस वचन का क्या काम।..... और बाकी रहो नशे की बात.... तो...मेरे नसों में खून का कतरा कम और शराब की बूंदे ज्यादा बेहेती हैं। वादा कर ता हूं... नहिं तुम्हारे मान सम्मान से मुझे कोई फरक पड़े गा... और नाही अपमान से।"
सातवा वचन......
पंडित जी बोले...."अपने पत्नि के इलावा हर पराई स्त्री को... मां और बहन के समान मानेंगे। और पति पत्नि के बीच किसी तीसरे को नही लाएंगे।"
राजवीर ने दहराया......
"वादा हे मेरा के ....आज रात के बाद तुम्हारो हर दिन हर रात मेरे बीना ही गुजरेगी।। इस रिश्ते में कुछ हो ना हों... प्यार और बिस्वास तो बिल्कुल ही नहीं होगा।
पंडित जी के कहे गए सात फेरों के हर बचन के महत्व को मेहेक समझ ते हुए मन में दहरा रही थी और राजबीर के साथ फेरे ले रही थी।
और साथ ही साथ राजवीर जो सात फेरों के वचनों के आढ में अपने और उसके रिश्ते की सचाइ मेहेक को समझा रहा था उसे भी वो सुन और समझ रही थी।
To be continued
राजबीर की सच्चाई जान ने के बाद भी... क्या इस रिश्ते को दिल से निभा पाएगी मेहेक???... या वक्त लेने जा रहा है कोई और ही करबट।
या मेहेक के जिंदगी में आनेवाला है राजवीर के इलावा कोई और तूफान??