दिल्ली
राठौड़ विला......रात के २ बजे...
आज सालों के बाद रात के २ बजे भी राठौड़ विला कलरफुल लाइट्स से जगमगा रह था। रंग बिरंगी फूलों को खुशबू और खुबसूरती बिल्ला को कुछ अलग ही रूप दे राहा था।
जितनी खुबसूरती से पूरे बिल्ला की सजाबट थी, उस से भी ज्यादा खूबसूरत सजावट बिल्ला की एक खास कमरे की थी।
किसी ग्लास हाउस के तरह दिख ने वाली इस पूरे कमरे को रेड रोज़ और सेंटेड कैंडल्स से सजाया गया था। रोज़ पेटल्स कार्पेट के तरह पूरे कमरे में बिछाए गए थे।
बेड के ऊपर पड़ी गोल्डन कलर की मखमली बेडशीट के ऊपर रोज पीटल्स बिखरी पड़े थे। ग्लास दीवारों पर टंगे हुए व्हाइट कर्टन्स पर रेड रोज़ स्टेपल किएगए थे।
"बाहों के दरमियां .....दो प्यार मिल रहें हैं.....
जानें क्या बोले मन... डाले सुन के बदन...
धड़कन बनी जुबां....."""
बेहद हलके वॉल्यूम के साथ पूरे रूम में गूंज राहा ये गाना इस नशीली रात को और भी गहरे नसे में डूबो राहा था।
वहीं मेहेक लाल रंग का दुल्हन का जोड़ा पहने, कीमती गहनों से लदी हुई, घूंघट से अपना चेहरा ढके , उसी कमरे में राजवीर का वैट कर रहि थी।
कुछ वक्त पहले.....
दिल्ली के एक ७ ⭐ होटल को दुल्हन की तरह सजाया गया था। होटल के ओनर से लेकर छोटे स्टाफ्स तक हर कोई एक एक बारीकी पर ध्यान दे राहा था। अमन बिक्रम ज़ी के कहने पर अपने कमर पकड़े सुबह से शायद कुछ ५० बार मंडप की सजावट बदलबा चुका था।
विक्रम जी खुद ७२ साल के उमर में भी किसी २७ साल के लड़के को तरह दौड़ा भागी कर ते हुए सारे मेहमानों को आओभागत कर रहे थे। खुद उनके खान पान का ध्यान रखा रहे थे।
उनके एक लते बेटे विजय राठौड़ सारे मीडिया और रिपोर्टर्स को संभाल ने में लगे थे।
ये सारे ताम झाम ये सारी तैयारी आज राठौड़ ग्रुप ऑफ कंपनी के फाउंडर बिक्रम राज राठौड़ के बड़े पोते और उनका एक लौता वारिश राजवीर राठोड़ के शादी केलिए था।
राजवीर राठौड़ बिल्कुल अपने दादाजी विक्रम राठौड़ की ही परछाई था। उन्हों की तरह गुरुर, सौर्य,घमंड,अहंकार और हिम्मत उसमे कूट कूट के भरा हुआ था। ....... साथ कुछ और भी था जो उसे और भी बेइंतहां हार्ड हार्टड और बेपरवा बनाएहुए था।
अपने ही फैमिली के हर सक्स केलिए बेइंतहा नफरत और कुछ पुराने नासूर बन चूके दर्द को दिल में लिए, अपने दादाजी के साथ कियागया एक डील 🤝 के तहत राजवीर आज उस रिश्ते में बंध ने जा रहा था.... जिस रिश्ते से वो सबसे ज्यादा नफरत करता था। और वो था शादी का रिश्ता।
वहां जहां एक तरफ़ जोरों सोरों के साथ आज होनेवाली इस अजीब सी शादी की तयारी चल रही थी... जहां विक्रम जी के इलावा दुल्हन के बारेमे ना किसीको पता था और नाही दूल्हे को इस बात से कोई फर्क पड़ ता था। ... वहीं दूसरी तरफ होटल के एक कोने में चहरे पर ढेर सारे चिंता के लकीर लिऐ लगभग ४५ साल की एक औरत, गोरा और बेहद खूबसूरत चेहरा, गले में मंगलसुत्र, माथे पर बड़ी सी बिंदी, हाथों में खानदानी कंगन, और चहरे पर हलका शृंगार किए..... वहीं पर स्तपित कान्हा जी की मूर्ति को एक टक निहार रही थी। (ये थी श्रीमती संध्या विजय राठौड़, विक्रम राज राठौड़ जी की बहु और उनके बेटे विजय राठौड़ की पेहेली पत्नी। )
(विजय राठौड़ ने दो शादियां की थी। पहली पत्नी संध्या राठौड़ , जिनसे उन्हे एक बेटा राजवीर राठौड़ था ,और दूसरी पत्नी शालिनी राठौड़ जो के संध्या राठौड़ की ही छोटे बहन थी, उनसे एक और बेटा शक्ति राठौड़ और एक बेटी महिका राठौड़ थी। शक्ति राठौड़ राजवीर से ३साल छोटा और माहिका राजवीर से ५साल छोटी थी। विजय राठौड़ के बनाए हुए यही नाजायज रिश्ते ही राजवीर के पूरे बचपन को कुछ इस कदर दर्द और अंधेरों में ढकेल दिया था के राजवीर और पूरे राठोड़ खानदान के बीच कभी ना खत्म होनी वाली जंग को सुरुवत भी उसी वक्त से ही हो चुकी थी। और शायद उसी दर्द, बदले, और नफरत को दिल में लिए राजवीर इस शादी की नीव रखने जा राहा था। )
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"संध्या "....
किसके आवाज देने से सांध्य जी अपने सोच से बहार आई है। बिजय राठोड़ उनके तरफ खड़े हुए मुस्कुरा रही थे।
"क्या हुआ संध्या"?
विजय जी ने पुछा तो सांध्य जी ने एक बार उनके तरफ नजर डाल ते हुए, फीर से कान्हा जी के तरफ नजर घुमा दिया। ये देख विजय जी अपने दांत मिंज ते हुए बेहद रूखे अंदाज से बोले....
"आज तुम्हरे एक लते बेटे की शादी हे, कम से कम आज तो थोड़ा हस ता हुआ सकल बना दो, यहां पुरा मीडिया और गेट्स माजूद हैं क्या बोलूंगा उनसे जब वो तुम्हारो इस सढ़ी हुई सकल की वजह पूछेंगे ?"विजय जी ने पुछा तो....
संध्या जी अपने आंखे बन्द कर ते हुए थोड़ी गेहेरी सांस लेने लगे और विजय जी के तरफ कुछ नफरत और कुछ बेपरवा अंदाज से बोले......
"मेरा एक लता बेटा ये शादी क्यूं कर राहा हे, उसकी वजह अगर में आप को बता दूं तो आपको और आप की दूसरी पत्नी और उनके बच्चो के पैरों के निचे से जमीन निकल जाएगी। "
फीर थोड़ा रुक खुद को संभाल ते हुए बोली.....
"लेकिन मुझे चिंता आपकी नही हो रही है, बल्के.... ये सब करते हुए जिस दर्द और तकलीफ से मेरा बेटा गुजर राहा है..... उस से हो रहि हे। "
ये बोल ते हुए सांध्य जी वहां से चली गई और विजय जो उसे एक टक देख ते रहगाये।
वहां होटल के दूसरी तरफ जहां मंडप सजाया गाय था...
अमन मंडप के पास खड़ा हुआ अरेंजमेंट्स देख राहा था। (अमन राजबीर का एक लता दोस्त और उसका बिजनेस पार्टनर भी था। राजबीर के ज़िंदगी में बस अमन ही था जो उसे तोड़ा बहत समझ ता था और जिसके साथ राजबीर थोड़ा बहत बात कर लेता था। )
"अमन"...
बिक्रम जी ने आवाज़ दिया तो "जी दादा जी"बोल ते हुए अमन भाग ते हुए उनके सामने सावधान पोजिशन खड़ा हो गया।
उसकी पीठ थप थपाते हुए विक्रम जी सावलिया अंदाज से बोले....
"क्यूं बरखुरदार.... सब ठिक चल राहा हे ना ??"
उनकी दमदार आवाज ही काफी थी किसके पसीने निकलने केलिए..... फिर अमन तो था ही सॉफ्ट हार्टेड।
"Jii jjjj..jjii दादा जी"कांप ते होठों से मंडप के तरफ देख ते हुए अमन ने जवाब दिया तो .... विक्रम जी थोड़ा चीड़ ते हुए बोले...
"अरे में मंडप की नहीं आप के दोस्त की बात कर राहा हूं... जो इस मंडप में बैठ ने वाला हे। "मंडप के तरफ इसारा करती हुए विक्रम जी ने बोला।
फीर वो अमन के तरफ घूर ते हुए पूछे....
"मंडप तो रिडे हे..... दूल्हा रेडी तो हे ना??"
विक्रम जी इतना बोल ही थे के पंडित जी ने मंडप में बैठे बैठे ही आवाज दिया....
"यजमान...१५ मिनिट में सुभ महुरत सुरु हो जाएगा। दूल्हे को बुला दीजिए। "
दूल्हे का रूम....
जहां शादी की महुरत सुरु होने वाली थी ... वहीं होटल की ५th फ्लोर रूम नंबर १०४५ में राजबीर सोफे पर बैठा हुआ आराम से एक हाथ में लैपटॉप और दूसरी हाथ में ड्रिंक का ग्लास पकड़े किसी क्लाइंट के साथ कुछ वेडिंग वेन्यू, ज्वेलरी और वेडिंग गारमेंट्स की डिजाइन फाइनल करने में लगा हुआ था।
ड्रीम्ज्ज वेडिंग....
राजवीर का अपना ड्रीम्ज वेडिंग नाम का एक कंपनी था। जो के वेडिंग के लिए one Stop destination था। ड्रीज्ज वेडिंग बेहेतरीन वेडिंग प्लानिंग के साथ, वेडिंग जूलरी और वेडिंग गारमेंट्स भी डिज़ाइन करते थे। ड्रीम्ज्ज वैडिंग एक बेहतरीन वेडिंग प्लानिंग की one Stop destination के साथ साथ इंडिया का no १ भी था। ..... मोस्ट इंपोर्टेंटली ये राठोड़ ग्रुप में सामिल नेहि था....। ये राजबीर की खुद की मेहनत से खड़ी की गई कंपनी थी, जीस में अमन ४०पर्सेंट का पार्टनर था।
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राजवीर कैमल कॉलर के एक लीवर और एक ब्लैक tshirt पहने जिस कंफर्ट के साथ सोफे पर बैठे हुए क्लाइंट से डिस्कस करने में busy था... उसे देख बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग राहा था के इस सक्स का निचे २nd फ्लोर पर शादी केलिए मंडप सजाया गया है और बस १५ मिनिट के बाद शादी इसकी शादी होने वाली ही।
मंडप के पास...
पंडित जी ने दूल्हे को बुलाने केलिए कहा तो विक्रम जी पंडित जी के तरफ से नजर हटा कर अमन की तरफ सवलिया अंदाज से देख ने लगे तो अमन ने "जी दादा जी .... अभि बुलाता हूं "बोल ते हुए वहां से जानें लगा।
"बेटा अमन".... पिछे से विक्रम जी की दमदार आवाज सुन बीना पलटे ही अपने थूक गटक ते हुए अमन खुद से ही बड़बड़ाने लगा........."दादा ....बेटा बेटा...... और पोता..... यार यार....बोल बोल कर तुझे झटके दे दे कर हार्टाटैक करवा देंगे।
फीर थोड़ा मुसकुराते हुए पिछे मुड़ ते हुए"जी दादा जी.... आप ने बुलाया"बोल ते हुए बेहद बेचारगी से विक्रम जी के तरफ देख ने लगा।
End of chapter 1
कौन हे मेहेक जो राजबीर से शादी करनी वाली हे?
क्या वोह राजबीर के इस शादी की डील को जानती है??
विक्रम जी ने क्यूं चुना मेहेक को राजवीर केलिए??
और क्या हे राजवीर और विक्रम जी के बीच हुई वो शादी की डील???
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