देवी पाताल भैरवी, देवी दुर्गा के एक रूप के रूप में जानी जाती हैं। उन्हें तंत्र साधना में विशेष स्थान प्राप्त है और वे तंत्र विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। पाताल भैरवी का नाम सुनते ही मन में एक अद्भुत शक्ति और रहस्य का अनुभव होता है। वे न केवल शक्ति और भक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि वे अपने भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त करने वाली देवी भी हैं।
देवी पाताल भैरवी का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। उन्हें आमतौर पर एक काले या नीले रंग की देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनके चार हाथ होते हैं। उनके हाथों में त्रिशूल और अन्य दिव्य अस्त्र होते हैं। उनके माथे पर तीसरी आंख होती है, जो ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। गले पर नरमुंड की माला होती है।
शरीर पर रक्त चन्दन का लेप होता है।
देवी पाताल भैरवी का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक है। वे तंत्र साधना की देवी हैं और उनके प्रति भक्ति रखने वाले साधक को अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
देवी पाताल भैरवी की पूजा करने से साधक को धन संपदा, समृद्धि, और सभी प्रकार की रोग दोष से मुक्ति मिलती है। इसके साथ व्यक्ति के सभी प्रकार के ग्रह दोष खाडन होते हैं। उच्च पद प्राप्त होता है और सभी शत्रुओं का नाश होता है
पूजा की विधि:-
पूजा से पहले साधक को स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
पूजा स्थल को स्वच्छ और पवित्र बनाना चाहिए। वहाँ एक चौकी पर माता पाताल भैरवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
माता को लाल रंग के फूल, चावल, और मिठाई अर्पित करें।पूजा स्थल पर धूप और दीप जलाएँ।
पाताल भैरवी के मंत्र-:
ॐ ह्लीं क्लीं पाताल भैरवी सर्वदुष्टानांनाशय मनोवांछित सिद्धये संपत्ति दायनी स्वाहा।।
साधना विधि:-
देवी पाताल भैरवी की साधना विशेष रूप से नवरात्रि, अमावस्या, और पूर्णिमा के दिन की जाती है।
साधक को एकांत और पवित्र स्थान पर बैठकर ध्यान करना चाहिए।
मंत्र जाप: साधक को उपरोक्त मंत्र का जाप १०८ बार करना चाहिए।
ध्यान: ध्यान करते समय माता पाताल भैरवी के स्वरूप का ध्यान करें और उनसे शक्ति और ज्ञान की प्रार्थना करें।
तप: साधक को नियमित रूप से जप तप करना चाहिए।
***भैरवी और तंत्र साधना***
एक बार, एक साधक ने माता पाताल भैरवी की आराधना की और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उसे अद्भुत शक्तियाँ प्रदान कीं। साधक ने उन शक्तियों का उपयोग करके तीनों लोक जीत लिया था और स्वर्ग का अधिपति देव राज इद्र बन बैठा था। सत्ता प्राप्त होने के बाद हर किसी के मन में अहंकार आ ही जाता है। इसने भी वही भूल किया जो सभी तानाशाह करते हैं। लोगों पर अत्याचार करना। कोई देवता उसका सत्ता छीन ना ले इस भय से उन देवताओं को बंदी बनाना हत्या करवाना इसके कर्म बन गए थे। आम इंसनों को किस की पूजा करनी चाहिए और किस के ना करनी चाहिए वह तय करता था। आजादी नाम का उसके राज में कुछ नहीं था। अंत में वही होता है जो सभी तानाशाहों को होता है। सभी देवता एक साथ संगठित होकर त्रिदेवों के मदद से उसको स्वर्ग लोक से उखाड़ फेंकते हैं। उसके मुत्यू के बाद सभी तीनों लोक में सुख शांति फिर लोट आती हैं।
तांत्रिक सधना-: इस देवी का साधना करनेक लिए किसी शुभ मुहूर्त में किसी शुभ दिन या फिर मंगलवार शनिवार रात्रि को १०:०० बजे से यह साधना आरंभ कर देना चाहिए। लगभग ४१ दिन तक यह साधना करना है। शमशान में करने से अति उत्तम फल मिलता है। कुछ दिन के अंदर देवी के दर्शन प्राप्त हो सकते हैं। देवी दर्शन दे तो उसे कुछ भी वरदान प्राप्ति कर ले। साधना के समय देवी को भोग के रूप में मांस मदिरा अर्पण करें। रुद्राक्ष माला से मंत्र जाप करना है। मंत्र जाप प्रतिदिन १० माला होना चाहिए।