देवी रिद्धि और सिद्धि ये दोनों जुड़वा देवियां भगवान गणेश की पत्नियां मानी जाती हैं। रिद्धि और सिद्धि का विवाह गणेश जी से हुआ, जिसके कारण गणेश जी को रिद्धि सिद्धि और विद्या बुद्धि का दाता कहा जाता है।
रिद्धि का अर्थ- समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और सुख। यह देवी लक्ष्मी का भी प्रतीक है, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। रिद्धि का संबंध भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि से है।
सिद्धि का अर्थ-सफलता, उपलब्धि और सिद्धि प्राप्त करना। यह देवी सरस्वती का प्रतीक है, जो ज्ञान और बुद्धि की देवी हैं। सिद्धि का संबंध आत्मिक और मानसिक विकास से है।
देवी रिद्धि सिद्धि और गणेश जी के मिलन से शुभ और लाभ का जन्म हुआ। गणेश जी के यह दोनों पुत्र व्यापारियों के लिए अति पवित्र देवता है। कोई भी कारोबारी हिसाब-किताब खाता पर इनका नाम लिखना अधिक पवित्र माना जाता है। किसी कारोबार यह किसी घर की प्रतिष्ठा पर शुभ और लाभ इन दिनों की पूजा के बिना पूजा खत्म नहीं होता।
महाप्रभु गणेश जी के साथ रिद्धि के रूप में लक्ष्मी जी सिद्धि के रूप में माता सरस्वती जी को चित्र पर दर्शाया जाता है। जिसके पास धन है वह विद्या और बुद्धि से परिपूर्ण लोगों का जमावड़ा अपने पास रखता है। जिससे उसकी उन्नति और अधिक होता है। जिसके पास विद्या और बुद्धि है वह धनी इंसान को ढूंढता है जिससे उसकी उन्नति और उसके परिवार के उन्नति हो सके। रिद्धि सिद्धि दोनों एक साथ आने पर उन्नति का दरवाजा खुलता है। रिद्धि बैंक कारखाना और छोटी-मोटी कारोबार इत्यादि के रूप में विराजमान रहती है और सिद्धि उनमें काम करने वाले के रूप में विराजमान रहती है।
रिद्धि-सिद्धि इंसान के पास ना हो तो वह रंक की तरह जीवन व्यतीत करता है।
रिद्धि और सिद्धि धन, समृद्धि और मानसिक शांति की देवीयां है।इनकी उपस्थिति से ना केवल भौतिक सुख मिलता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।गणेश जी के साथ इनका संबंध यह दर्शाता है कि ज्ञान और समृद्धि का एक साथ होना आवश्यक है।
कथा के अनुसार, भगवान गणेश का विवाह तय करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती ने विचार किया।गणेश जी की अनोखी आकृति के कारण कोई भी कन्या उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हो रही थी।इस समस्या का समाधान करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने रिद्धि और सिद्धि को उत्पन्न किया।
इन दोनों देवियों का जन्म ब्रह्मा जी की मानस शक्तियों से हुआ, जिसके कारण इनको ब्रह्मा जी के मानस पुत्री कहा जाता है।
इनकी उपासना से सभी प्रकार की इच्छाएं पूरी होती हैं। जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
रिद्धि के रूप में भारतीयों के घरों पर नारियल कलश का चिन्ह और सिद्धि के रूप में स्वास्तिक चिन्ह घर पर लगा हुआ देखा जा सकता है।
देवी रिद्धि और सिद्धि ना केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि का प्रतीक है।इनकी उपासना से ना केवल भौतिक सुख मिलता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।इस प्रकार, रिद्धि और सिद्धि का महत्व हमारे जीवन में अत्यधिक है और यह सभी इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
इनकी साधना घर पर करना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन से यह साधना आरंभ करना चाहिए। अगर ऐसा संभव ना हो तो किसी शुभ दिन से यह साधना आरंभ कर देना चाहिए। पूजा कक्ष को साफ सुथरा करने के बाद स्नान से निवृत्त होकर एक कलश की स्थापना करें उसके बाद उसमें पानी और आम पत्ते रखकर उसके ऊपर नारियल रखें। नारियल में स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। इसके बाद सामान्य पूजा करके इनकी मंत्र पाठ आरंभ कर देना चाहिए।
मंत्र-:ॐ श्रीं श्री क्लीं रिद्धि-सिद्ध नमः। कार्य सफलं कुरु कुरु स्वाहा।।
इस मंत्र को किसी भी पूर्णिमा का दिन से जाप रुद्राक्ष माला से करनी चाहिए। तीन दिन के अंदर १०००० संख्या में जाप पूरा होना चाहिए। जब यह संख्या पूरा हो जाता है तब साधक और उसके परिवार के ऊपर रिद्धि-सिद्धि देवी की कृपा होती है। उसके बाद उस परिवार में कर्ज का भार उतर जाता है। गरीबी धीरे-धीरे उस परिवार से दूर होती जाती हैं। यह परिवार जिस कार्य के लिए हाथ डालता है वह सफल होता है। इसके बाद भी प्रति दिन एक माला इस मंत्र को जाप करना चाहिए।