एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-38
अपने रूम में पहुँचकर परम ने सबसे पहले जूूते खोले। दिनभर जूते मोजों में बंधे पैर गरमी और पसीने से भीग गये थे। शाम के पाँच बजे थे। जोरों की भूख लग रही थी। परम ने अलमारी से अपने कपड़े लिये और वॉशरूम में शॉवर के नीचे जाकर खड़ा हो गया। सिर पर ठंडे पानी की फुहार पड़ते ही दिमाग थोड़ा ठिकाने हुआ
ऐसे एनकाउंटरों के बाद परम का मन हमेशा बहुत विचलित हो जाता था। किसी की जान लेना...
जानता था कि यह उसका फर्ज है। वह कोई पाप नहीं कर रहा है। कुछ भी वह अपने स्वार्थ के लिए नहीं कर रहा है। देशवासियों और देश की सुरक्षा की खातिर कर रहा है। अपनी ड्यूटी पूरी कर रहा है। यह उसका कर्तव्य है।
लेकिन फिर भी परम का भावुक मन विचलित हो जाता था। देर तक ठंडा पानी सिर पर पढऩे के बाद जाकर उसके शरीर की थोड़ी थकान दूर हुई।
लोअर और टी-शर्ट पहनकर परम बाहर आया। जोर की भूख लग रही थी लेकिन जानता था मेस में भी खाना खत्म हो गया होगा। साथ लाया हुआ भी सब खत्म हो गया था। परम ने फोन निकाला और तनु को फोन लगाया। तीन-चार मिनिट ही उससे बात की थी कि अरुण, शमशेर, अनिल व्हिस्की की बोतल लेकर आ गये। साथ में कुछ स्नैक्स भी थे। परम ने तनु से कहा कि वह रात में बात करेगा और फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
दो पेग व्हिस्की पीने और थोड़ा स्नैक्स खाकर परम का जी ठिकाने हुआ। तभी अर्जुन भी आया। परम उसे देखकर आभार सहित मुस्कुराया। भटिंडा से अर्जुन को खास तौर पर यहाँ भेजा गया था। उसका दिमाग गजब का स्थिर था और निशाना आज तक कभी चूका नहीं था। अर्जुन के हाथ जैसे अपने आप ही बन्दूक साधकर गोली चला लेते थे। उसमें गजब की फुर्ति थी।
लोगों का दिमाग सिर में होता है। लेकिन अर्जुन को तो लगता है कि एक अतिरिक्त दिमाग हाथों में भी दिया था भगवान ने। यहाँ आने से पहले ही अर्जुन की कहानियाँ यहाँ पहुँच गयी थी। सुनकर सब दांतों तले उंगली दबा लेते थे। लेकिन खुद अर्जुन बहुत कम ही बातें करता था। वह सबके साथ उठता-बैठता, काम करता, खाता-पीता लेकिन चुपचाप बैठकर सबकी सुनता रहता कभी कुछ कहता नहीं था। आज भी अर्जुन सबकी बातें सुनते हुए धीमे-धीमें मुस्कुराता बैठा था।
आज के केस को लेकर छिड़ी बातें चलते-चलते पुराने केसेस पर आ गयीं। परम के पहले से जो लोग यहाँ पर पोस्टेड थे वे लोग उस समय हुई घटनाएँ याद करने लगे। विक्रम व्हिस्की का घूँट भरकर बोला- ''आपके आने के कुछ दिन पहले की बात है सर। तब मेरी यहाँ नयी-नयी पोस्टिंग हुई थी। तब यहाँ मेजर नकुल मानसिंह थेे। मैंने आज तक उनके जैसा जांबाज और कद्दावर जवान नहीं देखा अपनी पूरी नौकरी में। नकुल सर ने यहाँ पोस्टिंग होते ही धूम मचा दी थी और मिलिटेंट्स को लोहे के चने चबवा दिये थे। केस चाहे उनके पास आया हो चाहे नहीं लेकिन नकुल सर हर एनकाउंटर में आगे रहते थे। वो पोस्टेड तो पुंछ सेक्टर में थे लेकिन सेक्टर की परवाह न करके हर जगह अपना फर्ज पूरा करते।
कहते थे कि मेरे लिए पूरी धरती समान रूप से मेरी माँ है। मैं उसे सेक्टरों में बंटा हुआ नहीं मानता। माँ को जिस हिस्से में तकलीफ होगी ये बेटा वहीं दौड़ा जायेगा।"
परम गौर से सुन रहा था। नकुल मानसिंह का उसने भी बहुत नाम सुना था। जब यहाँ आया था तब उसके साथ के लोग उसकी बहुत चर्चा करते थे। फिर नकुल के साथ के लोगों की पोस्टिंग दूसरी जगहों पर होती गयी और नये लोग आते गये।
''बहुत बहादुर थे। उन्हें मौत से तिल भर भी डर नहीं लगता था। और उमर भी क्या सर, बस उन्तीस साल। लेकिन व्यक्तित्व ऐसा था कि उनसे बड़े अफसर भी उनके साथ आप-आप करके बातें करते थे।" विक्रम के चेहरे पर गर्व भरी चमक थी।
सब लोग दिलचस्पी से सुन रहे थे। विक्रम ने आगे कहना शुरू किया -
''नकुल सर को देखकर भगत सिंह जी की याद आ जाती थी। वो सच्चे अर्थो में क्रांतिकारी और भारतमाता के वीर सपूत थे। पुंछ के बाद उनकी पोस्टिंग जैसलमेर की आ गयी थी। उनकी अगली पोस्टिंग पर जाने में बस दस-पंद्रह दिन ही बचे थे कि हमें खबर मिली की कुपवाड़ा सेक्टर के अन्तर्गत एक इलाके की बाहरी सीमा में स्थित एक घर में संदिग्ध गतिविधियाँ चल रही है। खबर देने वाला नकुल सर का अत्यंत विश्वासपात्र था। खबर पुख्ता और शतप्रतिशत सत्य थी इसमें कोई शक नहीं था।
बस फिर क्या था आनन-फानन में तैयारी हो गयी। मुँह अंधेरे ही हम लोग निकल पड़े। उस दिन उस टारगेटेड मकान पर दोगुनी बैक सपोर्ट फोर्स का पहरा लगवा दिया था। सारी औपचारिकताएँ तेजी से पूरी करके हम आठ लोग उस मकान तक पहुँचे। मकान बहुत बड़ा और अत्यंत पुराना था। गाँव की हद से दूर पहाड़ की बहुत ऊंचाई पर चीड़ के घने पेड़ों के बीच एकदम सुनसान जगह पर बना हुआ, भर दोपहर में भी वहाँ मनहूस अंधेरा सा छाया हुआ था।
सबसे आगे नकुल सर थे उनके पीछे उन्हें कवर देता हुआ जयसिंग था। जयसिंग भी बहुत अच्छा निशानेबाज था। उसके पीछे रणवीर और राजदीप थे। बाकी हम सब मकान को घेरकर अपनी-अपनी पोजीशन पर तैनात खड़े थे। नकुल सर ने दरवाजा खोलने का आदेश दिया पर कोई जवाब नहीं। मालिक के कई दिनों से ही अते पते नहीं थे। हमने दरवाजा खोला तो वह आराम से खुल गया। अंदर कोई नहीं दिखा। नकुल सर ने एक ग्रेनेड अंदर फेंका। अपने समय से वह फट गया। लेकिन उसके बाद भी कोई हलचल नहीं हुई। दो पल के लिए तो हम लोगों को लगा कि शायद कहीं खबर गलत तो नहीं थी। लेकिन मकान बहुत बड़ा था। ग्रेनेड के स्पलेंडर्स ने आगे वाले कमरे के दरवाजों और सामान में छेद किये होंगे लेकिन पीछे वाले कमरों को कुछ नहीं हुआ होगा।
नकुल सर ओपन फायरिंग करते हुए घर में घुस गये। उन्हें कवर देता हुआ जयसिंग भी अंदर गया और उनके पीछे राजदीप और रणवीर।
घर के अंदर बहुत सारा धुआं भरा हुआ था। मकान के खिड़की दरवाजे शायद बहुत दिनों से बंद थे। थोड़ी देर पहले ही ग्रेनेड फूटा था और नकुल सर भी ओपन फायरिंग करते हुए गये थे तो उसका भी धुआं भर ही जाता है। जयसिंग को अपने आगे का भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कि नकुल सर कहाँ है। बस फायरिंग की आवाज उनकी दिशा का आभास दे रही थी।
एक तो घने जंगल के कारण यूं ही रोशनी की कमी सी थी ऊपर से मकान के खिड़की दरवाजे बंद थे और धुआं भरा हुआ था तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था कि कौन कहाँ है।
तभी ऐसा लगा कि हमारी बंदूकों के साथ ही दूसरी बंदूकों से भी गोलियाँ चल रही है। राजदीप और रणवीर ने लात मारकर जितनी जल्दी हो सकता था सारी खिड़कियाँ खोल दी थी, धुआं छटने लगा था। जयसिंग ने देखा कि नकुल सर के कंधे से खून बह रहा है। सामने एक दाढ़ी वाला ओपन फायरिंग कर रहा था।
एक....
फिर दो...
फिर तीन...
चार, पाँच...
न जाने किन कमरों से निकल-निकलकर कुकुरमुत्तों की तरह से लोग जमा होने लगे। नकुल सर के कंधे से खून बहता देखकर जयसिंग का खून खौल उठा। वह और नकुल सर पहले भी दो-तीन बार साथ में पोस्टिंग पर रह चुके थे इसलिए दोनो को ही एक-दूसरे से बहुत लगाव था। दोनो और से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गयी।
फौज को जरा भी अंदाजा नहीं था कि कितने लोग हो सकते है। बाहर भी गोलीबारी की आवाज से अंदाजा हो गया था कि अंदर के हालात ठीक नहीं है। बाहर से बैक सपोर्ट टीम के लड़ाके तुरंत अंदर आकर मोर्चे पर डट गये।
पर इस अफरा-तफरी में मिलिटैंट्स को मारने के जुनून में किसी को भी पता नहीं चला कि नकुल सर और जयसिंग को कितनी गोलियाँ लग गयी थी। चार आतंकवादियों को खत्म करने के बाद जब दोनो भी जमीन पर गिर पड़े तब फौज का ध्यान गया।
फिर क्या था गुस्स से पगलाई फौज ने पूरे मकान को तहस-नहस कर डाला। तीन दाढ़ीवाले और निकले उन्हें भी राजदीप, रणवीर ने ढेर कर दिया।
उस दिन सात मिलिटेंट मारे गये सर लेकिन हमने अपने दो बहुत ही वीर और सच्चे अफसरों को गंवा दिया।
राजदीप ने बाद में बताया कि नकुल सर के कनपटी पर गोली लगने के बाद भी उनके हाथों ने जैसे अपनेआप ही बंदूक संभाली और अपने सामने वाले एक मिलिटेंट का खात्मा कर दिया।" विक्रम ने एक गहरी सांस ली।
परम के शरीर के रोंगटे खड़े हो गये।
''मैं पुर्नजन्म में विश्वास नहीं करता लेकिन नकुल सर को देखकर एक बारगी लगा था कि भगत सिंह ने इस धरती पर फिर से अवतार लिया है।" कहते हुए विक्रम हाथ का ग्लास नीचे रखकर खड़ा हो गया और उसने सेल्यूट किया जैसे कि नकुल उसके सामने खड़ा है। उसे देखकर परम और बाकी सब भी उठ खड़े हुए और सबने उस बहादुर सिपाही को सेल्यूट करके अपना आदर प्रकट किया।
परम को बहुत आश्चर्य हुआ कि अर्जुन उठ कर खड़ा नहीं हुआ। लेकिन हर समय मुस्कुराता हुआ उसका चेहरा स्तब्ध सा खाली-खाली सा लग रहा था।
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