The one my heart desires - 27 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 27

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दिल ने जिसे चाहा - 27

Dr. Kunal तो उस दिन Mayur sir को ये बता कर चले गए थे कि—

“शादी में एक बहुत ख़ास इंसान आने वाला है…”

और बस, इतना कहना ही काफी था Mayur sir के लिए बेचैन हो जाने के लिए।
बाहर से वो सामान्य दिखने की कोशिश करते रहे, पर अंदर… मन में जैसे तूफ़ान चल पड़ा था।
कौन है वो ख़ास?
क्यों आ रहा है?
क्यों Kunal इतना रहस्यमयी बन रहा है?

शादी में अभी कुछ दिन थे, पर उनके लिए वो दिन भी सदियाँ लगने लगे।

उधर, Rushali…

वो भी अलग सी बेचैनी महसूस कर रही थी।
दिल चाहता था कि Mayur sir से मिले…
पर हिम्मत?
वो तो जैसे पाँच सालों में कहीं छुप गई थी।

सगाई के दिन जब वो घर पहुँची, तो उसने अपनी माँ से कहा—

Rushali:
“माँ… पता है? प्रिशा की शादी अगले महीने ही है।
और आज मुझे Dr. Kunal sir मिले थे।”

माँ:
“अच्छा? वो Mayur के दोस्त?”

Rushali:
“हाँ माँ… बात हुई उनसे।”

माँ ने उत्सुकता से कहा—

“अच्छा लड़का है वो, बहुत बातें करता होगा?”

Rushali हल्की सी मुस्कुराई।
पर उसने ये नहीं बताया कि Kunal ने उसे ये भी बताया कि—

Mayur sir ने आज तक शादी नहीं की।

क्योंकि उसे डर था…
अगर यह बात सच ना हुई तो?
अगर Kunal ने मज़ाक में कहा हो तो?
अगर Mayur Sir ने उसे कभी याद ही ना किया हो तो?

वो कोई उम्मीद पनपने नहीं देना चाहती थी…
क्योंकि उम्मीदें जितना उठाती हैं, उतना ही गिरा भी देती हैं।

पर…
जिस दिन से उसने यह जाना कि Mayur Sir अभी भी अकेले हैं…
उसकी आँखों की वही पुरानी चमक लौटने लगी थी।
वो पहले की तरह उदास, खोई-खोई नहीं रही।

दिल ने शायद फिर से धड़कना शुरू किया था।

इधर Mayur Sir…

उनके दिल में एक ही सवाल घूम रहा था—

“क्या Rushali होगी…?
क्या वही वापस आएगी…?
क्या वही है वह ... Kunal जिस ‘ख़ास’ की बात कर रहा है…?”

दिल उम्मीद देता…
दिमाग रोकता…
पर बेचैनी दोनों ने ही बढ़ा दी थी।

और फिर… शादी का पहला बड़ा फंक्शन आया—
मेहँदी।

मेहँदी का दिन…

Rushali ने इतने सालों बाद अपने हाथों में मेहँदी लगवाई थी।
जब गाढ़ी मेहँदी का रंग उसके हाथों पर उभरने लगा, प्रिशा ने मज़ाक करते हुए कहा—

Prisha:
“अरे वाह Rushali! तेरे हाथों पर मेहँदी बहुत खूबसूरत लग रही है।
अब तू भी शादी कर ले, DM madam!”

और वह ज़ोर से हँस पड़ी।

Rushali बस मुस्कुराकर रह गई।
जैसे दिल में बहुत कुछ हो, पर शब्दों में न बदल पाए।

मेहँदी का फंक्शन हँसी-खुशी में बीत गया।
शाम को जाते जाते प्रिशा ने कहा—

Prisha:
“Rushali! कल हल्दी है… और तुम लेटलतीफ मत बनना।
सुबह जल्दी आना!”

Rushali:
“ठीक है… आ जाऊँगी।”

अगला दिन – Haldi

आज Rushali कुछ अलग ही खूबसूरत लग रही थी।
सूरज की किरणें जैसे उसके चेहरे पर उतर आई थीं।

सुंदर पीला सूट,
सफेद ताज़े फूलों की ज्वेलरी,
खुले बालों में हल्की सी हवा…

उसके घर से निकलते वक्त जैसे माँ भी देखती रह गईं—

माँ (मुस्कुराकर):
“आज मेरी बेटी बहुत सुंदर लग रही है।”

जब रुशाली प्रिशा के घर पहुंची तो पूरा घर गेंदे और गुलाब की पंखुड़ियों और खुशियों से खिल उठा था।


लड़के वाले भी आ चुके थे।

उधर, Dr. Kunal ने Mayur sir को आज बड़े प्यार से तैयार करवाया—

Kunal:
“यार Mayur… आज तू बहुत अच्छा लग रहा है।”

Mayur (हल्की मुस्कान):
“अच्छा?
कहीं इस ‘ख़ास’ से मिलने की तैयारी तो नहीं करवाई तूने?”

Kunal आँख दबाकर बोला—

“बस आता ही होगा वो ख़ास… थोड़ा इंतज़ार कर।”

Mayur Sir का दिल और तेज़ धड़कने लगा।
क्या… Rushali होगी?

हल्दी शुरू होनी थी, पर सामान दिख ही नहीं रहा था। प्रिशा की माँ बोलीं—

“Rushali बेटा, ज़रा प्रिशा के कमरे से हल्दी की थाल ले आओ।
वहीं रखी है।”

Rushali:
“जी aunty, अभी लाई।”

वो अंदर की तरफ बढ़ गई।

उधर…
एक छोटा बच्चा दौड़ते-दौड़ते Mayur sir से टकरा गया और उनके कुर्ते पर ज्यूस गिर गया।

Mayur:
“अरे! ये क्या…”

Dr. Kunal:
“चल,  में तेरे साथ washroom तक चलता हैं।”

Mayur Sir:
“तू रुक, Vivaan आने वाला है।
मैं अकेला ही पीछे के दरवाज़े से अंदर जाकर साफ़ करके आता हूँ।”

Kunal ने सिर हिलाया और Mayur पीछे के रास्ते अंदर चले गए…

Rushali हल्दी की थाल लेकर वापस लौट रही थी।

चलते-चलते उसकी पायल अचानक ढीली हो गई। उसने थाल को साइड में टेबल पर रखा और
वो नीचे बैठ कर उसे ठीक करने लगी।

उसी समय…
Mayur sir पीछे वाले रास्ते से hall की ओर आ रहे थे।

धीमी हवा…
हल्दी की महक…
और दो कदम जो एक-दूसरे की ओर बढ़ रहे थे…

Rushali पायल ठीक करके उठी—
और सीधे
Mayur sir से
टकरा गई।

उसकी कलाई Mayur के सीने से टकराई।
और दोनों एक पल के लिए बिल्कुल स्थिर रह गए।

समय रुक गया।
साँसें थम गईं।
आँखें फैल गईं।
दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

पाँच साल बाद…
उनकी पहली छुअन थी ये।

दोनों ने धीरे-धीरे सिर उठाकर एक-दूसरे को देखा…

बस इतना ही…
एक झटका…
एक खामोशी…
एक टकराव…

पर टकराव ही तो कहानी की सबसे गहरी शुरुआत होती है।

पाँच सालों का इंतज़ार…
पाँच सालों का दर्द…
पाँच सालों का अधूरापन…

आज इस एक टकराने में जैसे पूरा समा गया हो।

अब आगे क्या होगा…?
क्या कहेंगे दोनों?
कैसी होगी ये मुलाकात?
क्या शब्द बोल पाएँगे?
या सिर्फ आँखें ही सब कह देंगी?

जाने के लिए पढ़िए — दिल ने जिसे चाहा का अगला भाग.....

जहाँ…

 पाँच साल का इंतज़ार आखिर पूरा होगा।
दो दिलों की धड़कनें फिर एक सुर में मिलेंगी।
और कहानी एक नई दिशा में बढ़ेगी…