👩👦 एक साधारण औरत, असाधारण सपने
गांव की गलियों में हर सुबह मंदिर की घंटी 🔔 और परिंदों की चहचहाहट 🕊️ गूंजती थी।
उसी गांव के एक छोटे से कच्चे घर 🏚️ में रहती थी आशा, एक साधारण सी औरत लेकिन सपनों में बेहद बड़ी 🌈।
पति का देहांत तब हो गया था जब उसका बेटा निरंजन मुश्किल से पांच साल का था 👦💔।
उस दिन से आशा ने ठान लिया –
“मैं मां भी बनूंगी और पिता भी। चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, मेरा बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा।” ✊❤️
आशा दिन-रात मेहनत करती 🌞🌙।
खेतों में काम करती 🚜, घर-घर जाकर सिलाई करती 🧵, और बीमार होने पर भी रुकती नहीं 💪।
निरंजन को पढ़ाई से लगाव था 📚।
आशा मिट्टी के चूल्हे पर रोटी सेंकते 🍲 कहती –
“बेटा, पढ़ाई से ही किस्मत बदलती है। मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तुझे आगे बढ़ते देखना है।”
“यही मेरा आख़िरी सपना है।” 💖
⏳ वक़्त बीता…
निरंजन पढ़ाई में आगे बढ़ता गया और कॉलेज में दाख़िला मिला 🎓।
मां ने गहने बेच दिए 💍, घर का सामान भी गिरवी रख दिया 🏠 लेकिन बेटे की पढ़ाई नहीं रुकने दी 🙏।
निरंजन को नौकरी मिल गई 🏢।
पहली तनख़्वाह मिली तो उसने फोन पर कहा –
“मां, अब तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं। अब मेरी कमाई से सब होगा।” 💵
आशा हंस दी 😊 –
“अरे पगले, मां को काम से कौन रोक सकता है? ये हाथ तो तेरे लिए ही चलते हैं।” 🤲
लेकिन उसके दिल में तसल्ली थी कि बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो गया है ❤️।
🌃 शहर की चमक-दमक ने सब बदल दिया…
नए दोस्त, नई दुनिया, नया जीवन… और मां के फोन कॉल्स छोटे होते गए 📞💧
“हां मां, मीटिंग में हूं।”
“बाद में बात करता हूं।”
🌌 आशा हर रात खिड़की से आसमान देखती और सोचती –
“क्या मेरा बेटा भी यही आसमान देख रहा होगा?” 💫
गांव वाले ताने मारते –
“देखो, बेटा बड़ा आदमी बन गया, अब मां को ही भूल गया।” 😒
लेकिन आशा हमेशा कहती –
“नहीं, मेरा बेटा मुझे भूल ही नहीं सकता… बस व्यस्त है।” 🤗
💙 एक दिन आशा ने ठान लिया –
वह बेटा से मिलने खुद जाएगी।
पुरानी अलमारी से नीली साड़ी निकाली 👗, पैरों में टूटी चप्पलें थीं 👡 लेकिन मन में जोश था 🔥।
वह शहर पहुंची 🚆, बेटे का ऑफिस खोजा 🏢।
चौकीदार ने पूछा –
“कौन हैं आप?”
आशा मुस्कुराई 😊 –
“मैं निरंजन की मां हूं।” 🌼
फोन लगाया गया…
अंदर से जवाब आया –
“मीटिंग में हूं, बाद में मिलूंगा।”
और बस… इतना ही।
आशा बाहर बेंच पर घंटों बैठी इंतजार करती रही 🪑⏳
सूरज डूब गया 🌇
पर निरंजन नहीं आया…
थकी-हारी, टूटा हुआ दिल 💔 लेकर वो स्टेशन लौटी और गांव लौट आई।
⏳ महीने बीते…
एक दिन निरंजन को फोन आया 📞
“तुम्हारी मां नहीं रहीं…”
वो भागा दौड़ा गांव पहुंचा 🚗💨
घर सूना था… लेकिन एक कोने में एक पुराना डिब्बा रखा था 📦
उसमें – कपड़े, तस्वीरें 📸 और
एक चिट्ठी… मां की आख़िरी चिट्ठी 💌
उसमें लिखा था –
💝 “बेटा निरंजन,
अगर कभी मेरा चेहरा याद न रहे तो आईने में अपनी आंखें देख लेना।
उनमें मेरा ही अक्स मिलेगा।
मैंने जीवनभर तुम्हारे लिए सपने देखे,
लेकिन एक सपना अधूरा रह गया –
तुम्हें गले लगाकर यह कहना कि तुम्हें देखकर मुझे गर्व है।
अगर यह चिट्ठी पढ़ रहे हो,
तो समझ लेना मैं अब तुम्हारे पास नहीं हूं…
लेकिन मेरी दुआएं हमेशा रहेंगी।
मां कभी जाती नहीं, बस रूप बदल लेती है।” 🌙
निरंजन फूट-फूटकर रो पड़ा 😭
दिल तड़प उठा… लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी 🌧️
उस दिन के बाद निरंजन बदल गया 🔄
हर महीने गांव आता 🚗
मंदिर की घंटी बजाता 🔔
मां की तस्वीर के सामने बैठकर कहता –
“मां, अबकी बार देर नहीं करूंगा।” 😢
वो चिट्ठी उसने हमेशा अपने पास रखी 💌
बड़ी मीटिंग्स में, शहर की भीड़ में, अकेलेपन में…
वो उसे पढ़ता और महसूस करता –
“मां अभी भी मेरे साथ है।” 👼
🌟 अंतिम संदेश
मां का प्यार कभी शोर नहीं करता…
वो खामोशी में भी ज़िंदगी सिखा जाता है 🤍
निरंजन हर काम से पहले मां का नाम लेता और कहता –
“मां, मैं जहां भी हूं… तुम्हारी दुआओं के बिना कुछ नहीं हूं।” 🙏💞
Story writer : -
...... Vikram kori