मैं बैताल जाती का राजा हूँ...
अमोघनाथ जी मुस्कुराते हुए कहते हैं....." लेकिन अब भी हमारे पास एक उपाय है....."
" वो क्या है बाबा..?..."
अब आगे.............
अमोघनाथ उन्हें बताते हैं....." आदिराज जी ने जो खंजर अपनी और अदिति की ऊर्जा से बनाया था वहीं, क्योंकि बेताल को अदिति के अलावा कोई नहीं मार सकता , , ये बात तुम जानती हो चेताक्क्षी , वनदेवी के अलावा उसे कोई नहीं मार सकता इसलिए उस खंजर से ही अदिति उस बेताल को खत्म कर सकती हैं......"
विवेक टेंशन भरी आवाज में कहता है....." लेकिन अभी तो अदिति बेहोश हो , , उसे कबतक होश आएगा ये भी नहीं पता....."
विवेक की बात सबके लिए सोचने वाली थी , क्योंकि अदिति बहुत ज्यादा ही कमजोर हो चुकी थी जिसका जल्दी होश में आना संभव नहीं था......
चेताक्क्षी जल्दी से अदिति के पास जाकर उसकी नब्ज देखने लगती है , , उसके गले और पर बने घाव को देखकर कहती हैं......." बाबा उस गामाक्ष ने अदिति को बहुत गहरा आघात पहुंचाया है , इसके दिल की धड़कन बहुत धीमी हो चुकी है.... इसका जल्दी होश में आना संभव नहीं है....."
अमोघनाथ जी चेताक्क्षी की बात पर सहमति जताते हुए कहते हैं...." बिल्कुल चेताक्क्षी शायद इसे होश में आने में तीन से चार दिन लग जाएंगे...."
देविका जी परेशान हो जाती है....." अमोघनाथ जी , फिर आदित्य को कौन बचाएगा....?..."
चेताक्क्षी उन्हें समझाते हुए कहती हैं....."काकी , आदित्य को हम बचाएंगे , बेताल से हम सामना करेंगे...."
अमोघनाथ उसे समझाते हुए कहते हैं...." नहीं चेताक्क्षी तुम चाहो कर भी उसका सामना नहीं कर पाओगी...उसकी शक्तियां बहुत है....."
चेताक्क्षी परेशानी भरी आवाज में कहती हैं...." फिर क्या करें बाबा....?.... हमें आदित्य को वहां से बचाना होगा , और अदिति की होश में आने की अभी संभावना नहीं है...."
तभी आवाज गूंजती है....." अमोघनाथ ...वनदेवी को मेरे हवाले कर दो , , नहीं तो ये लड़का मारा जाएगा...."
उसकी आवाज सुनकर सब ही घबरा जाते हैं...... विवेक गुस्से में कहता है...." तुम्हें अदिति कभी नहीं मिलेगी , , तुम गामाक्ष की तरह मारे जाओगे....."
विवेक की बात सुनकर वो हंसते हुए कहता है...." तुम मुझे कैसे मारोगे , , उस खंजर से...उसकी शक्ति खत्म हो चुकी है , , कल शाम तक वनदेवी को मुझे सौंप दो। , नहीं तो इस लड़के की लाश को उठाने के लिए तैयार रहना...."
इतना कहकर वो वहां से चला जाता है.... विवेक जोश भरे शब्दों में कहता है....." मैं अदिति को उसे हरगिज नहीं ले जाने दूंगा , , भाई को बचाने के लिए कुछ और सोचना पड़ेगा...."
चेताक्क्षी विवेक से कहती हैं....." तुम सही कह रहे हो विवेक हमें जरूर कोई और उपाय सोचना होगा...वो भी जल्द से जल्द...."
" ठीक कहा चेताक्क्षी... विवेक अभी तुम अदिति को अंदर कमरे में ले आओ , मैं वहीं पर उसका उपाय की औषधि तैयार करूंगा....."
" जी अमोघनाथ जी...." विवेक अदिति को अंदर कमरे में ले जाता है.....
बाकी सब भी तहखाने वाले कमरे में पहुंचते हैं....अमोघनाथ जी कुछ पत्तों को पीसने लगते हैं , ,
विवेक काफी थक चुका था लेकिन फिर भी अदिति पास ही बैठे उसे बैचेनी भरी निगाहों से देख रहा था ,,
अमोघनाथ जी औषधि को पीसकर लाते हैं , जिसे देविका जी को देते हुए कहते हैं...." देविका , इसे अदिति के शरीर पर लगा दो इससे उसकी नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाएगी...."
देविका जी उनके हाथ से औषधि लेकर अदिति के पास जाकर, , उसके घावों पर औषधि लगा देती है , ,
तो वहीं चेताक्क्षी आदिराज की अलमारी से किताबों में कुछ उपाय ढूंढने लगती .....
औषधि लगाने के बाद देविका जी वहां से , सबके लिए कुछ खाने के लिए घर चली जाती हैं , .....
काफी देर हो जाने के बाद , अमोघनाथ जी इशान के साथ मंदिर के पीछे वाली जगह पर पहुंचते हैं , जहां पर लगे छोटे छोटे फूलों को हटाने लगे थे......
विवेक अदिति के पास बैठा उसके हाथ को अपने हाथ में लिए , अपनी बैचेनी को छुपाते हुए , उसके माथे पर हाथ फेरते हुए अपने आप से कहता है...." तुम्हें इस तरह भी देखना पड़ेगा , कभी सोचा नहीं था , अदिति मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूंगा , , तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता...."
विवेक उसके गालों पर हाथ रखते हुए कहकर उसके माथे पर किस करता है......तभी चेताक्क्षी विवेक को बुलाती है....
" विवेक , जरा यहां आना , वो ऊपर रखी हुई किताब को निकाल दो , शायद उसमें कुछ मिल जाए...."
विवेक चेताक्क्षी के पास चला जाता है , इधर अमोघनाथ जी उन छोटे छोटे सफेद और लाल रंग के फूलों को इकट्ठा करके वापस तहखाने वाले कमरे में पहुंच जाते हैं.....
उधर आदित्य को होश आता है , अपने आप को बंधे हुए देख कर चिल्लाते हुए कहता है....." कौन हो तुम...?... क्यूं लाए हो मुझे यहां..?.."
वो बेताल हंसते हुए कहता है...." तुझसे मुझे कोई काम नहीं है , मैं सिर्फ तेरी बहन को खत्म करना चाहता हूं , इसलिए तुझे यहां लाया हूं..."
" तुम गामाक्ष नहीं हो , कौन हो..?..."
बेताल हंसते हुए कहता है...." मैं इस बेताल जाति का राजा उबांक हूं.... मुझे गामाक्ष ने उस चमगादड़ में कैद कर दिया था लेकिन उसके मरने के बाद अब मैं आजाद हूं , , अब मुझे कोई नहीं मार सकता..."
" ग़लत कहा उबांक , कोई कितना भी बड़ा शैतान हो उसकी मौत एक न दिन जरूर आती है , और तेरी भी आएगी...."
उबांक जोर से हंसते हुए कहता है....." मुझे कोई नहीं मार सकता , वो खंजर की शक्ति खत्म हो चुकी है और उसके अलावा आदिराज ही था जो मुझे मार सकता था , दोनों ही मेरे रास्ते में नहीं है... इसलिए मुझे कोई नहीं मार सकता...."
इधर अमोघनाथ जी उन फूलों को पीसने लगे थे , , विवेक के किस करने के बाद अदिति के शरीर में हलचल होने लगी थी , , उसके हाथ में जैसे धीरे धीरे जान लौट रही थी.....
अदिति को धीरे धीरे होश आने लगा था लेकिन उसपर किसी का ध्यान नहीं था , सब बैचेनी से किसी न किसी काम में लगे हुए थे , ,
................to be continued..........