The Risky Love - 27 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 27

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The Risky Love - 27

आदमखोर जानवर 

अब आगे..........

विवेक तुरंत अपनी जेब से फोन निकालकर उसकी फ़्लैश लाइट आॅन करके देखता है तो उसके पैर मिट्टी के गार में धंसने लगे थे और खुद पेड़ की बड़ी बड़ी शाखाओं में जकड़ा हुआ था , , एक तो मौसम का बिगड़ना और खुद का अचानक इस तरह किसी पेड़ की शाखाओं में जकड़ जाना उसके लिए मुश्किल खड़ी हो गई थी.....
धीरे धीरे बारिश रुक चुकी थी लेकिन आसमान में अभी भी काले बादल छाए हुए थे , , विवेक खंजर की मदद से उन शाखाओं को काटने की कोशिश कर रहा था , लेकिन जैसे ही एक शाखा उससे दूर होती तुरंत दूसरी उसे जकड़ लेती , , विवेक परेशान सा खुद को उससे निकालने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी एक भयानक हंसी की आवाज गूंजती है... जिससे सारी पक्षी डर के कारण उस जगह को छोड़कर चले जाते हैं......
विवेक परेशान सा इधर उधर देख रहा था , , लेकिन उसके सामने केवल सन्नाटे के अलावा कुछ नहीं था ,....
इधर आदित्य मंदिर के गलियारे में परेशान सा इधर उधर घूम रहा था , ...
" रात हो चुकी है , पता नहीं ये विवेक कब लौटेगा...?...मेरी अदि पता नहीं कैसी होगी ....?...." आदित्य परेशान सा खुद से बातें कर ही रहा था , तभी चेताक्क्षी उसके सामने आती हुई कहती हैं ....." हमें पता था आदित्य तुम जरूर परेशान हो रहे होंगे , इसलिए हम भी बाहर आ गए ....."
" तुम तो मां के पास बैठी थी...."
" काकी बाबा से कुछ बातें कर रही थी इसलिए और तुम्हारा दोस्त , तखत पर बैठे बैठे हो गया...."
आदित्य चिंता जताते हुए कहता है....." वो भी थक गया होगा , , उसने काफी हेल्प की है हमारी....."
" हां , आदित्य.....चलो थोड़ा बाहर घूम आते हैं , तुम्हें भी अच्छा लगेगा , और हम भी गांव के हालात के बारे में जान पाएंगे...."
आदित्य हैरानी से पूछता है...." हालात तो दिख रहे हैं न चेताक्क्षी सब बहुत डरे सहमे हुए हैं , फिर क्या जानना चाहती हो....."
" तुम नहीं समझोगे आदित्य , बस ये समझ लो हमारा सामना केवल नरपिशाच से ही नही है बल्कि उससे बड़े खतरे से भी है , इसलिए हमने रक्त रंजत खंजर मंगवाया है....अब चलो हमारे साथ...."
आदित्य चेताक्क्षी के हाथ की मुट्ठी को देखते हुए कहता है...." और तुम्हारे हाथ में क्या है...?..."
" इसका पता भी तुम्हें चल जाएगा....अब चलो...." 
आदित्य चेताक्क्षी के साथ गांव के हालातों को देखने के लिए चला जाता है ,, 
उधर विवेक काफी मुश्किल में फंस चुका था , , अपने आप को बचाने की कोशिश करते करते वो काफी तक चुका था , , तभी एक बार फिर से भयानक हंसी के साथ आवाज गूंजती है......" बेकार कोशिश है मानव , , तू मेरे जाल‌ में फंस चुका है...."
विवेक गुस्से में इधर उधर देखते हुए कहता है....." कौन हो तुम सामने आओ , इस तरह मेरा रास्ता क्यूं रोक रहे हो....?..." 
वो भयानक आवाज धीरे धीरे  सामने तालाब से एक विकराल  आदमखोर जानवर का रूप ले लेती है ....उसे देखकर विवेक की आंखें खुली की खुली रह गई , उसका भयानक रूप किसी को भी मारने के लिए काफी था , , लेकिन विवेक अपने डर को कंट्रोल करता हुआ कहता है...." कौन हो तुम मुझे यहां क्यूं बांध दिया...?..."
वो भयानक जानवर उसे ललचाई नज़रों से देखते हुए कहता है....." बहुत समय बाद किसी मनुष्य का मांस खाने को मिलेगा, , तुम्हारी खुशबू मुझे आहार बनाने के लिए मजबूर कर रही है.....आज तुम्हें खाकर मैं अपना पेट भरूंगा...."
विवेक उसकी उसकी बातें सुनकर कहता है......" देखो मेरा यहां से जाना बहुत जरूरी है , , इसलिए मुझे छोड़ दो और किसी जानवर को खाकर अपना पेट भरो...."
वो जानवर चिढ़ते हुए कहता है...." तूझे छोड़ दूं , , भला कोई भी अपने भोजन से दोस्ती कैसे कर सकता है...."
इतना कहकर वो जानवर उन पेड़ों की शाखाओं को हटने के लिए कहता है  , और खुद जल्दी से विवेक के पास जाकर उसके गले को पकड़ता है..... उसकी पकड़ इतनी कठोर थी की विवेक उससे बचने के लिए झटपटा ने लगा....
इधर चेताक्क्षी आदित्य के साथ गांव के पगडंडी वाले रास्ते से होकर गुजरते हुए कहती हैं....." आदित्य तुम्हें याद है हम यहां अक्सर खेला करते थे...."
आदित्य अपने आस पास की जगह को देखते हुए कहता है...." हां मुझे याद है , , और ये भी पता है मेरी अदि यहां मिट्टी में खेलती रहती थी , मेरे डांटने पर तुरंत मेरे सामने आकर कहती  , भैय्या मैं इस मिट्टी को देख रही थी , मुझे ऐसा लगता है जैसे ये मुझसे बात करती है , ..." अदिति की बातों को सोचकर आदित्य के आंखों में नमी आ जाती है जिसे देखकर चेताक्क्षी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती हैं....." सच में अदिति बहुत किस्मतवाली है , उसे तुम्हारे जैसि भाई मिला और अपनी जान जोखिम में डालने प्यार उसे मिला है..."
आदित्य उसकी बात का जबाव देते हुए कहता है.... " नहीं चेताक्क्षी तुम्हें अभी पूरी बात नहीं पता , , किस्मतवाले तो हम हैं , अदि ने मेरी और विवेक की जान बचाने के लिए खुद उसकी कैद में चली गई ....तो तुम ही सोचो...."
चेताक्क्षी उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती बस केवल मुस्कुराते हुए आगे चलने लगती है.... कुछ ही दूर चलने पर अचानक चेताक्क्षी रूकती है , , 
आदित्य उसके अचानक रुकने की वजह पूछता है....." क्या हुआ चेताक्क्षी ...?... यहां क्यूं रुक गई...?...."
चेताक्क्षी उसे शांत कराते हुए कहती हैं....." श..श.. आदित्य कोई है जो हमारे पीछे है , शायद जो हम सोच रहे हैं अगर वही है तो हमारा आना सफल रहा...."
आदित्य उसके अजीबोगरीब बातों को सुनकर सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए कहता है...." कौन है चेताक्क्षी...?..."
" आदित्य , , तुम शांत रहकर उस पेड़ के पीछे चले जाओ बिना पीछे देखे , जबतक मैं उसे न रोक लूं , तबतक तुम मेरे पास मत आना...."
आदित्य को चेताक्क्षी की बातें समझ नहीं आ रही थी फिर भी उसके बताए अनुसार वो उस पेड़ के पीछे जाकर छिप जाता है..... आदित्य के जाने के बाद चेताक्क्षी मुड़कर कहती हैं....." मुझे पता था तुम जरूर आओगे...."
 
................. To be continued............