Itihaas ke Panno se - 13 in Hindi Anything by S Sinha books and stories PDF | इतिहास के पन्नों से - 13

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इतिहास के पन्नों से - 13

 

                                                     इतिहास के पन्नों से   13 


भाग 13 


 वैसे तो इतिहास अनंत है ‘  इतिहास के पन्नों से ‘    लेख में इतिहास की कुछ घटनाओं के बारे में पहले प्रकाशित भागों में  उल्लेख है, अब आगे पढ़ें ब्रिटिश इंडिया और तत्कालीन  रियासतें   

 
ब्रिटिश इंडिया की तत्कालीन रियासतें


जैसा कि ज्यादातर लोग जानते हैं अंग्रेजों के आने के पहले भारत में मुगलों का शासन था  . 1600  ई में अकबर के शासनकाल में ही पहली बार अंग्रेज व्यापार करने के लिए भारत आये थे  . क्वीन एलिज़ाबेथ प्रथम के आर्डर से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी . 1608 ई में जहांगीर के शासन काल में पहला ब्रिटिश जहाज “ हेक्टर “  कप्तान हॉकिंग  के  नेतृत्व में सूरत की बंदरगाह पर आया था .   1616  ई में जहांगीर ने उन्हें सूरत में पहली बार एक  स्थायी फैक्ट्री लगाने की मंजूरी दी थी  . 


उस समय शासन की सुविधा के लिए मुगल काल में 15 प्रांत थे जिन्हें सुबाह ( सूबा ) कहा जाता था  , जैसे  - अजमेर , अवध , इलाहाबाद , आगरा , अहमदनगर , अजमेर,  बंगाल , बिहार , दिल्ली ,मालवा , मुल्तान , काबुल और लाहौर  .प्रत्येक  सुबाह का शासक एक सूबेदार होता था  . सुबाह  छोटे छोटे सरकार और सरकार परगना में बांटे गए थे  .  


हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी ने शुरू में दक्षिण एशिया में व्यापार  की दृष्टि  से अपना काम शुरू किया था  पर धीरे धीरे उसकी राजनीतिक आकांक्षा बढ़ती गयी  . मुगल साम्राज्य के पतन ने आग में घी का काम किया और उसका राजनैतिक प्रभाव बढ़ता गया और ईस्ट इंडिया कंपनी एक प्रबल राजनैतिक  शक्ति बन बैठा   . 18 वीं सदी से 19 वीं सदी के मध्य तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के एजेंट की तरह पूरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था  . 1886 ई में उसने निकटवर्ती देश बर्मा ( अब म्यांमार ) के बड़े हिस्से को भी भारत में सम्मिलित कर लिया था हालांकि 1937 ई में बर्मा एक अलग ब्रिटिश उपनिवेश हुआ  . 


ब्रिटिश इंडिया में प्रत्यक्ष शासित क्षेत्र  इस प्रकार थे - 


प्रेसीडेंसी -  बंगाल ( ओडिशा ,  अविभाजित बंगाल और अविभाजित बिहार  ) , बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसी  . इसके अतिरिक्त बलूचिस्तान  एजेंसी , दिल्ली एजेंसी और पूर्वी प्रांतों की एजेंसी 


संयुक्त प्रांत या यूनाइटेड प्रोविंस - तत्कालीन अविभाजित उत्तर प्रदेश ( आज का उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ) 


मध्य प्रांत या सेंट्रल प्रोविंस - इसमें आज का मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र शामिल थे 


पंजाब प्रांत ( जो शुरू में बंगाल प्रेसीडेंसी का भाग था ) 


कुछ लघु प्रांत इस प्रकार थे - अजमेर - मेवाड़ ( राजस्थान ) , उत्तर पश्चिम सीमान्त ( खैबर पख्तूनिस्तान ) , अंडमान निकोबार द्वीप समूह , कूर्ग ( कर्णाटक वेस्टर्न घाट ) 


ब्रिटिश इंडिया के साथ अन्य छोटी रियासतें भी शामिल थीं   . इन रियासतों पर स्थानीय शासक  का शासन होता था पर उन्हें ब्रिटिश हुकूमत स्वीकार करना अनिवार्य  था  . इसके  बदले में उन्हें कुछ छूट और आंतरिक स्वायत्तता मिलती थी  . तत्कालीन भारतीय उपनिवेश के लगभग 40 % भूभाग और 23 % जनसंख्या पर इन रियासतों का नियंत्रण था  . औपचारिक रूप से मान्य 565 रियासतें थीं  . इनके अतिरिक्त अनेक छोटे छोटे जागीर भी थे  . 


1947 ई  में जब भारत स्वतंत्र हुआ  तब उसके दो टुकड़े हो गए थे  - एक भारत और दूसरा पाकिस्तान जिसमें पूर्वी बंगाल ( ईस्ट पाकिस्तान ) भी शामिल था  . 1971 के युद्ध के बाद ईस्ट पाकिस्तान एक अलग स्वतंत्र देश बांग्लादेश बन कर उभरा  . 


1947 में आज़ादी के समय देश में करीब 565 रियासतें थीं जो  सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन नहीं थीं  पर अप्रत्यक्ष रूप से उसके अधीन थीं  . अंग्रेज जब देश छोड़ कर जा रहे थे तब  इन रियासतों को तीन विकल्प दिए गए  - भारत में विलय  या पाकिस्तान में विलय  या स्वतंत्र रहने के लिए  . अधिकांश रियासतों  ने तुरंत भारत या पाकिस्तान में विलय का फैसला कर लिया था क्योंकि उनका  स्वतंत्र अस्तित्व  व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था  . 

शुरू में कुछ रियासतों ने स्वतंत्र रहने का निर्णय किया था -  जूनागढ़ , विलासपुर , भोपाल , त्रावणकोर , हैदराबाद , जोधपुर और जम्मू और कश्मीर  .  भोपाल , त्रावणकोर और जोधपुर ने आजादी दिवस के पहले भारत में विलय स्वीकार कर लिया था  . बाद में शेष  रियासतों का भी भारत में विलय हुआ  . हैदराबाद रियासत का भारत में  विलय भारतीय सेना के हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध ऑपरेशन पोलो युद्ध के बाद सितंबर 1948 में हुआ था  . 


भारत की स्वतन्त्रता के बाद, रियासतों के शासकों को  भारत में विलय करने के बदले  प्रिवी पर्स नामक भुगतान प्राप्त होता था, जो एक वार्षिक भत्ता था  .   भुगतान राशि  का निर्धारण राज्य की स्थिति और आय के आधार पर किया जाता था  .  हालांकि, 1960 के दशक में आर्थिक संकट के कारण यह  प्रिवी पर्स कम कर दिए गया था  .  बाद में  संविधान में 26 वें संशोधन द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा 1971  में इसे पूरी तरह समाप्त कर दिए गया था  .  . हालांकि कुछ व्यक्तिगत मामलों में प्रिवी पर्स आजीवन भी दिया गया था , जैसे महारानी सेतु लक्ष्मी बाई को  .  एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें 1985 तक आजीवन प्रिवी पर्स मिलता रहा था  . वे त्रावणकोर साम्राज्य की साम्राज्ञी थीं और मशहूर पेंटर राजा रवि वर्मा की पोती थीं  . 


रियासतों को भारत में विलय के बदले क्या मिला -  रियासत के शासकों और उनके वंशजों को भारत में विलय के मुआवजे के रूप में एक वार्षिक राशि दी जाती थी जिसे “ प्रिवी पर्स “ कहते थे  . यह वार्षिक राशि थी जो रियासत के आकार , उसकी कुल संपत्ति ,  राजस्व और ब्रिटिश शासनकाल में उनकी महत्ता ( जैसे वे तोपों की सलामी वाली रियासत थीं  या नहीं )  पर निर्भर थी  . यह राशि 5000 रुपये से ले कर कई लाख तक थी  . लगभग 102 रियासतों का प्रिवी पर्स एक लाख से दो लाख से बीच सालाना था जबकि 11 रियासतों की राशि दस लाख से भी ऊपर थी  .   प्रिवी पर्स की राशि आयकर से मुक्त होती थी  . संविधान में एक निश्चित समय तक प्रिवी पर्स देने का प्रावधान था  . प्रिवी पर्स के अतिरिक्त उन्हें कुछ निजी विशेषाधिकार भी प्राप्त  थे  . रियासत के शासक की मृत्यु पर यह राशि उसके उत्तराधिकारी को मिलती थी पर राशि की रकम कम हो जाती थी  . सबसे ज्यादा प्रिवी पर्स पाने वाली रियासत हैदराबाद थी , हैदराबाद के निजाम की वार्षिक राशि करीब 42. 8 लाख रुपये थी  . मैसूर को 26 लाख रुपये , बड़ौदा को 13. 64 लाख रुपये , जयपुर को 18 लाख रुपये और पटियाला को 17 लाख रुपये वार्षिक प्रिवी पर्स की राशि मिलती थी  . सबसे छोटी रियासत गुजरात की  ‘ वेजा  नो नेस ‘ थी जिसका प्रिवी पर्स 500 रुपये सालाना था  .

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क्रमशः