O Mere Humsafar - 28 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 28

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ओ मेरे हमसफर - 28

(प्रिया, जो रियल एस्टेट में असफल हो रही थी, कुणाल की चालों में उलझ जाती है। कुणाल ट्रेनर बनकर लौटता है और कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों से उसे बाँध लेता है। दोनों के बीच नफ़रत और आकर्षण का टकराव बढ़ता है। एक मीटिंग में अचानक घोषणा होती है कि कंपनी के नए ओनर कुणाल और प्रिया हैं। सबके सामने प्रिया कुणाल की मंगेतर होने की बात स्वीकार कर लेती है। वह अचानक ताक़तवर और चालाक रूप में सामने आती है। तमन्ना से अपमानजनक ढंग से पेश आती है और कुणाल को चौंका देती है। अब स्थिति उलट गई है—जहाँ पहले प्रिया कुणाल के जाल में थी, अब वही उसे मात देने लगी है। अब आगे)

शर्त वाला प्यार 

 कुणाल गुस्से में ऑफिस से बाहर निकल गया।

प्रिया केबिन से बाहर आई तो उसकी नज़र तमन्ना से मिली। दोनों हल्के-से मुस्कुराईं।

लेकिन जैसे ही उसने चारों ओर देखा— सबकी निगाहें उसी पर थीं।

प्रिया ने नज़रें झुका लीं और तेज़ क़दमों से आगे बढ़ी।

अचानक एक 45 साल की महिला ने रास्ता रोक लिया।

"प्रिया मैडम! एक मिनट रुकिए।"

प्रिया ने देखा— सामने जुनेजा और मिसेज ढिल्लों खड़े थे, अजीब और तिरस्कार भरी निगाहों से।

प्रिया ने चेहरा दूसरी ओर घुमाते हुए कहा—"प्लीज़… अभी नहीं।" लेकिन जुनेजा रास्ते में फैल गया।

"इतनी जल्दी में क्यों हो? ज़रा ये तो बताओ… ऐसा क्या किया कि तुम अचानक कंपनी की मालकिन बन गई?"

प्रिया ने ठंडे स्वर में कहा—"सुना नहीं आपने? मैं कुणाल की मंगेतर हूँ।" यह सुनकर आस-पास हल्की हँसी गूँज उठी।

विनोद तुरंत आगे आया और प्रिया को अपने पीछे कर लिया। "जो भी सवाल करने हैं, कुणाल सर से कीजिए।"

वह प्रिया को ले जाने ही वाला था कि मिसेज ढिल्लों ने ज़हरीली मुस्कान के साथ ताना कसा— "वाह! कमाल है… पैरों में दिक़्क़त होते हुए भी मर्दों को अपने जाल में फँसा लेती हो?" यह सुनते ही प्रिया का चेहरा पत्थर-सा जम गया।

विनोद ने उसे खींचना चाहा, लेकिन प्रिया ने एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ाया।

मिसेज ढिल्लों की आवाज़ और तेज़ हो गई—"बताओ तो ज़रा, कुणाल जैसे अमीर और हैंडसम आदमी को अपने प्यार के… या फिर अपने छल के जाल में कैसे फँसाया?" इससे पहले माहौल और बिगड़ता, तमन्ना बीच में आ गई।

"Enough! आप जैसी औरतें ही दूसरी औरतों पर ऐसे घटिया इल्ज़ाम लगाती हैं। जानती भी हैं आप, प्रिया कौन है?" जुनेजा हँस पड़ा।

"तो फिर… प्रिया डोगरा ही जवाब दे। चलो प्रिया, सबको बताओ… असल खेल क्या है? कैसे जीता तुमने कुणाल राठौड़ जैसा आदमी?"

"प्रिया ने नहीं… मैंने प्रिया को अपने प्यार के जाल में फंसाया है।" यह आवाज़ कुणाल की थी।

वह जुनेजा के बेहद करीब जाकर धीमे मगर तल्ख़ स्वर में बोला – "प्रिया का तो पता नहीं… लेकिन मैं लड़कियों को प्यार में फँसाना जानता हूँ। मैंने प्रिया पर डोरे डाले… मैंने उसे अपनी शख़्सियत, अपनी खूबसूरती और अपनी पोज़िशन के जाल में फँसाया।"

कुणाल एक पल रुका। उसकी आँखों में जलती हुई चुनौती थी। फिर होंठों को दबाते हुए बोला – "अगर चाहो तो विस्तार से बता दूँ… कैसे मैंने प्रिया को अपने वश में किया।"

सन्नाटा छा गया।

सभी एक साथ बोल पड़े – "साॅरी सर!… साॅरी प्रिया मैम!" वे तुरंत अपने-अपने टेबलों पर लौट गए।

कुणाल ने आख़िरी बार प्रिया को घूरा, जैसे कह रहा हो – अब बताओ… तुम्हारे पास कोई जवाब है? फिर वह अपने केबिन में चला गया।

प्रिया वहीं खड़ी रही। उसका सिर झुका हुआ था, पर आँखों के कोनों से आँसू छलकने को बेताब थे।

.....

प्रिया आगे बढ़ी तो तमन्ना ने हल्की सी मुस्कान के साथ आँखों से इशारा किया—“जाओ…”

लेकिन इस बार विनोद की नज़र में भी आदेश था। उसने भी हाथ से इशारा किया—अंदर जाओ!

प्रिया भारी क़दमों से कुणाल के केबिन की ओर बढ़ी।

उसने दरवाज़े पर नॉक करने को हाथ उठाया ही था कि अचानक दरवाज़ा खुला और कुणाल ने उसे भीतर खींच लिया।

प्रिया हड़बड़ा गई।

कुणाल की आँखों में धधकती हुई आग थी। "आज अगर हमारी शादी हो गई होती तो किसी की औक़ात नहीं थी हमारे रिश्ते पर उँगली उठाने की। पर तुमने… सिर्फ़ एक फ़ैसले ने… हमारे रिश्ते पर दाग़ लगा दिया। तुमने—"

प्रिया ने खुद को झटका और तीखे स्वर में बोली— "तुम्हें लगता है ये सब मेरी वजह से हुआ? अगर तुम इस कंपनी में नहीं आते तो ये तमाशा कभी नहीं होता।"

कुणाल का चेहरा और लाल हो गया। "मतलब… तुम्हें मुझे छोड़ने का ज़रा भी पछतावा नहीं? हमारा प्यार… हमारे वो लम्हे… तुम्हारे लिए सब बेमानी था?"

प्रिया के होंठों पर कड़वी मुस्कान थी। "प्यार? रिश्ता? कैसा रिश्ता? वो रिश्ता जो शर्तों पर टिका हो? रिया दी की शादी तुम्हारे भाई से करवाने की शर्त पर? और जब उनका रिश्ता टूटा… तो तुमने कह दिया—हमारी शादी भी नहीं हो सकती! यही था तुम्हारा प्यार?" उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े, मगर आवाज़ में अब भी लोहा था।

कुणाल ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ना चाहा— "प्रिया…"

लेकिन प्रिया ने झटके से उसका हाथ रोक लिया। "छूना मत मुझे… दुबारा कभी भी!" उसकी आवाज़ ज़हर की तरह कमरे में फैल गई।

अगले ही पल उसने दरवाज़ा धक्का देकर खोला और बाहर निकल गई।

पीछे सिर्फ़ कुणाल की भारी साँसें और उसकी तन्हाई रह गई।

कुणाल वहीं ठहर गया, शब्द गले में अटक गए।

बस उसके होंठों से टूटी हुई आवाज़ निकली—

"हमारा रिश्ता भले शर्तों में बंधा था…पर मेरे प्यार में… कोई शर्त नहीं, प्रिया… कोई शर्त नहीं।"

.....

1. क्या वाक़ई कुणाल का प्यार शर्तों से परे है… या ये भी उसकी कोई नई चाल है?

2. प्रिया के इस फैसले के बाद… क्या उसका खेल उल्टा पड़ जाएगा, या अब वही कुणाल को मात देगी?

3. नफ़रत और मोहब्बत के इस टकराव में—आख़िर जीत किसकी होगी… प्रिया की ठंडी आग या कुणाल की बेकाबू मोहब्बत?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र"