O Mere Humsafar - 4 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 4

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ओ मेरे हमसफर - 4

(प्रिया कुणाल को भूल नहीं पा रही थी। घर पर रिया दीदी के आगमन से हल्का माहौल बनता है, लेकिन रिया की गंभीरता और प्रिया की शरारत के बीच टकराव चलता रहता है। एक न्यूज कार्यक्रम में प्रिया फिर से कुणाल को देखती है। अगले दिन मंदिर में एक चेन स्नैचर प्रिया पर हमला करता है, लेकिन कुणाल समय पर आकर उसकी जान बचाता है और उसे फर्स्ट एड देता है। प्रिया उसके प्रति आकर्षित होती है, लेकिन कुणाल भावहीन रहकर चला जाता है। प्रिया धीरे-धीरे उसकी ओर खिंचती जा रही है, जबकि कुणाल अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। अब आगे)

कार में बैठा कुणाल राठौड़, अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए बैठा था।

“बॉस! आप गुस्से में लग रहे हैं। सब ठीक है न?” — आगे बैठे मिस्टर सक्सेना ने नज़रें मिलाकर पूछा।

कुणाल ने बिना लैपटॉप से नजर हटाए बड़बड़ाया — “इस दुनिया में बेवकूफों की कमी नहीं है।”

सक्सेना हल्का मुस्कराया — “उस लड़की की बात कर रहे हैं?”

कुणाल ने पहली बार सिर उठाकर उसे घूरा — “नहीं, तुम्हारी।”

सक्सेना की हंसी गायब हो गई। तभी कुणाल ने स्क्रीन उसकी ओर मोड़ी — “ये क्या है? ठक्कर कंपनी की मीटिंग का रिमाइंडर? तुमने इसे कैंसिल नहीं किया?”

सक्सेना घबराया — “सर, आपने ही कहा था—”

“कहा था, पर तुमने सोचा तुम्हारा दिमाग मेरे से बेहतर है?” कुणाल की आवाज़ फट पड़ी।

“सर, ठक्कर कंपनी के साथ डील कैंसिल करने का मतलब है 250 करोड़ का नुकसान।”

कुणाल का गुस्सा और भड़क गया। सक्सेना ने चुपचाप फोन उठाया और आदेश दिया, “ठक्कर कंपनी से हमारी कोई मीटिंग नहीं होगी।”

फिर एक झटके में लैपटॉप बंद कर दिया और फोन में गाने सुनने लगा। पूरा रास्ता चुपचाप बीत गया।

राठौड़ मेंशन पहुंचते ही कुणाल सीढ़ियाँ चढ़ने ही वाला था कि उससे एक लड़की टकरा गई — भानु।

“हाय कुणाल! How are you?”

कुणाल ने उसकी ओर देखा — “आंखें नहीं हैं या दिमाग में फिटिंग ढीली है?”

भानु हँसी — “आज तुम कुछ भी कहो, बुरा नहीं मानूंगी।”

कुणाल ने ठंडे स्वर में कहा — “बुरा मानो या नहीं, मुझे फर्क नहीं पड़ता। बस मुझसे दूर रहो।”

भानु मन ही मन बुदबुदाई — “बस आदित्य की शादी हो जाए, फिर मैं तुम्हारी..." और वह खुद ही शरमा गई।

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डोगरा हाउस

प्रिया मैगज़ीन पढ़ रही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी। रिया ने उसे इशारा किया कि वह बैठे रहे और खुद दरवाज़ा खोला।

सामने खड़ी थीं — बिन्नी आंटी, हमेशा की तरह रंग-बिरंगे कपड़े और गहनों में लिपटी।

“नमस्ते बिन्नी आंटी! कैसी हैं आप?” रिया ने उन्हें अंदर बैठाया और चाय-पानी लाकर दिया।

फिर वह ऊपर जाकर कुमुद को बुलाने गई।

कुमुद कुछ सोच में डूबी थी। जैसे ही रिया ने बिन्नी का नाम लिया, कुमुद भड़क गई —

“उस औरत की इतनी हिम्मत? कह दो चले जाएं, अब इस घर में कदम न रखें।”

रिया ने शांति से कहा — “चाची, नाराज़गी दूर करने का रास्ता बात से खुलता है। क्या पता वो आज कोई अच्छा रिश्ता लेकर आई हो?”

कुमुद थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली — “तुम दोनों मेरी जान हो, तुम्हें किसी और की वजह से दुखी नहीं देख सकती।”

रिया मुस्कराई — “तो फिर चलिए, नीचे चलें और मुस्कराकर उनका स्वागत करें।”

कुमुद नीचे आई और औपचारिकता के साथ बोली — “कैसी हो बिन्नी? बोलो, कैसे आना हुआ?”

बिन्नी ने हाथ जोड़ लिए — “माफ कर दो ठकुराइन, मैंने सोचा था कि प्रिया की अच्छाई देखकर लोग उसकी कमी भूल जाएंगे। लेकिन फिर भी वे लोग...”

“इसलिए मुझे अपना लेंगे?” — आवाज़ पीछे से आई।

प्रिया नमकीन की प्लेट लेकर आई और बीच में बोली।

बिन्नी कुछ कहने लगीं, मगर प्रिया ने उनका हाथ थाम लिया —

“अगर वो लोग मना कर गए, तो इसका मतलब ये नहीं कि वे बुरे हैं।”

बिन्नी की आंखें भर आईं — “देखना, तुम्हारे लिए ऐसा लड़का लाऊंगी जो तुम्हें सिर आंखों पर बिठाएगा।”

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1. क्या कुणाल का गुस्सैल रवैया प्रिया के आने से बदल पाएगा?

2. क्या भानु सचमुच कुणाल से प्यार करती है, या उसके इरादों में कुछ और छिपा है?

3. क्या प्रिया को भी अब अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना होगा, या किसी अनचाहे रिश्ते की रजामंदी बनानी पड़ेगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र".