Trishulgadh - 13 in Hindi Fiction Stories by Gxpii books and stories PDF | त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 13

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 13

पिछली बार:
अनिरुद्ध ने अपने वंश की जिम्मेदारी संभाली और लोगों के दिलों में आशा जगानी शुरू की।
अब वो गाँव-गाँव जाकर बुझी हुई उम्मीद को फिर से जलाना चाहता है।
लेकिन असली चुनौती आने वाली है—एक ऐसी ताक़त जो उसकी दृढ़ता को परखेगी।



आशा की यात्रा

सूरज की पहली किरण जब पर्वतों पर बिखरी, अनिरुद्ध और अद्रिका अपने नए सफर पर निकल पड़े।
रास्ता कठिन था—टूटी पगडंडियाँ, झाड़ियों से ढके हुए मार्ग और वीरान गाँव।
हर जगह अंधकार के निशान मौजूद थे।

लेकिन जहाँ भी अनिरुद्ध जाता, लोग उसकी बातों से प्रेरित हो जाते।
वो बच्चों के सिर पर हाथ रखता और कहता:
“तुम्हारी आँखों में जो मासूमियत है, वही असली रोशनी है। इसे कभी मत बुझने देना।”

औरतें आँसू पोंछते हुए कहतीं,
“हमने सोचा था सब खत्म हो गया… पर शायद अब नया आरंभ होगा।”

धीरे-धीरे, उम्मीद की लौ फिर जगने लगी।



अग्नि गाँव की पुकार

यात्रा करते हुए दोनों एक ऐसे गाँव पहुँचे, जिसे लोग “अग्नि गाँव” कहते थे।
कहा जाता था कि यहाँ कभी ऐसी अग्नि जली थी जो बुझाई नहीं जा सकती थी।
अब वही अग्नि अभिशाप बन चुकी थी।
गाँववाले कहते—
“यह आग अंधकार का संकेत है… जो भी इसके पास जाता है, वो राख हो जाता है।”

अनिरुद्ध ने गंभीर स्वर में कहा,
“अगर ये आग सच में अंधकार की देन है, तो मुझे उसका सामना करना ही होगा।
हमेशा से डर कर भागना कोई हल नहीं।”

अद्रिका ने उसकी ओर देखा,
“लेकिन यह तुम्हारी परीक्षा होगी… यहाँ सिर्फ़ शक्ति नहीं, आत्मबल काम आएगा।”


ज्वालाओं का रहस्य

रात को जब वो गाँव के बीच पहुँचे, तो आसमान लाल हो उठा।
धधकती ज्वालाएँ जमीन से फूट रही थीं, मानो धरती के गर्भ में कोई राक्षसी ताक़त जाग रही हो।

अनिरुद्ध ने अपनी तलवार संभाली।
लेकिन तभी एक आवाज़ गूँजी—
“अनिरुद्ध! तू सोचता है तूने छाया को हराकर जीत हासिल कर ली?
ये आग तेरे दिल का ही अंधकार है।
अगर तू खुद को काबू नहीं कर पाया… तो यही आग तुझे निगल जाएगी।”

यह सुनकर अनिरुद्ध के कदम रुक गए।
उसके मन में डर आया—“क्या सच में ये आग मेरी कमजोरी है?”


अंदर की लड़ाई

अग्नि लपटों की तरह उसकी यादें सामने आने लगीं—
उसका असफल होना, बचपन की चोटें, पिता का डांटना, अकेलापन…
हर याद उसकी आत्मा को जलाने लगी।

वो घुटनों पर गिर पड़ा।
“क्या मैं सच में अपने डर से कभी मुक्त नहीं हो पाऊँगा?”

अद्रिका ने उसका हाथ पकड़ा और कहा:
“अनिरुद्ध, डर को मिटाना ज़रूरी नहीं…
उसे स्वीकारना सीखो।
तुम्हारी कमजोरी ही तुम्हें इंसान बनाती है।
अगर तुम अपनी आग को नियंत्रित कर लो… तो वही आग तुम्हारी ताक़त बन जाएगी।”

अनिरुद्ध ने आँखें बंद कीं और गहरी साँस ली।
उसने अपने डर को दबाने की जगह गले लगाया।
धीरे-धीरे, लपटें नरम होने लगीं।
भयंकर आग एक शांत लौ में बदल गई।



गाँव का उद्धार

गाँववाले हैरानी से देखने लगे—
जहाँ पहले कोई कदम नहीं रख सकता था, वहाँ अब अनिरुद्ध खड़ा था, और आग उसे जला नहीं रही थी।

उसने कहा:
“ये आग हमारा शत्रु नहीं…
ये तो हमारी अधूरी भावनाओं का रूप है।
अगर हम अपने डर और ग़ुस्से को समझें, तो यही शक्ति हमें बचा सकती है।”

गाँववाले भावुक होकर झुक गए।
“अनिरुद्ध, तुमने हमें दिखा दिया कि रोशनी डर मिटाकर नहीं, उसे अपनाकर जगती है।”



नई चेतावनी

लेकिन उसी रात, जब सब चैन से सो रहे थे, अद्रिका ने आकाश में एक काली छाया देखी।
वो बोली—
“अनिरुद्ध, ये आग की परीक्षा तो बस शुरुआत थी।
असली शत्रु अभी जागा भी नहीं है।
हमें जल्दी करना होगा, वरना ये जीत भी अधूरी रह जाएगी।”

अनिरुद्ध ने उसकी ओर देखा और दृढ़ स्वर में कहा:
“तो तैयार रहो, अद्रिका।
अब चाहे कैसी भी परीक्षा आए… मैं पीछे नहीं हटूँगा।”



Hook:

अनिरुद्ध ने अग्नि गाँव को बचा लिया और अपनी आग को नियंत्रित करना सीख लिया।
लेकिन अब एक और रहस्य सामने आ चुका है—
वो अंधकार जो अब तक परछाइयों में छिपा था, जल्द ही प्रकट होने वाला है।