पिछली बार:
अनिरुद्ध ने दर्पण तोड़कर अद्रिका को मुक्त कर लिया।
उसने अपनी माँ और अपने वंश की सच्चाई की झलक पाई।
लेकिन अब उसके सामने उसका सबसे बड़ा शत्रु खड़ा है — उसका ही अंधकारमय रूप।
अंधकार का परिचय
सन्नाटा इतना गहरा था कि सिर्फ हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी।
अनिरुद्ध ने तलवार कसकर पकड़ी।
उसके सामने खड़ा उसका दूसरा रूप — वही शक्ल, वही आँखें, बस उनमें दया नहीं, क्रूरता थी।
वो मुस्कुराया, "तो तू ही वो है जिसे लोग वंशज कहते हैं? कितना हास्यास्पद है।
तेरा डर… तेरी कमजोरी… यही तेरा असली चेहरा है। और मैं उसी चेहरे का सच हूँ।"
अनिरुद्ध ने जवाब दिया, "नहीं। तू सिर्फ एक परछाईं है। मैं असली हूँ।
वो हँसा, "परछाईं हमेशा सच से बड़ी होती है। तू रोशनी है, पर मैं अंधकार हूँ। और याद रख,
जहाँ रोशनी होती है… वहाँ परछाईं भी जन्म लेती है। तू चाहे जो भी कर ले, मुझसे बच नहीं पाएगा।"
पहली टक्कर
बिना चेतावनी के, अंधकारमय अनिरुद्ध आगे बढ़ा।
उसकी तलवार लाल आग से जल रही थी।
जैसे ही उसने वार किया, ज़मीन चटक गई, और पेड़ राख में बदल गए।
अनिरुद्ध ने अपनी नीली-नारंगी आग से बनी तलवार उठाई और वार रोका।
धमाके से दोनों पीछे फेंक दिए गए।
अद्रिका ने चिल्लाकर कहा,
"अनिरुद्ध! याद रख — ये तुझसे शक्तिशाली नहीं है, बस तेरे डर से पोषित होता है।"
अनिरुद्ध ने दाँत भींचते हुए कहा,
"तो अब इसे मेरे डर से नहीं, मेरी हिम्मत से सामना करना होगा।
युद्ध का विस्तार
दोनों के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया।
हर वार पर चिंगारियाँ उड़तीं, धरती काँपती, और आसमान में काली-नीली लपटें टकरातीं।
अनिरुद्ध का हर कदम मुश्किल था — क्योंकि सामने वाला उसकी हर चाल जानता था।
जब अनिरुद्ध बाएँ वार करता, तो अंधकार पहले से तैयार होता।
जब वो छलाँग लगाता, उसका दूसरा रूप पहले ही हवा में होता।
"ये… मेरी हर सोच क्यों पढ़ पा रहा है?"
अनिरुद्ध के मन में सवाल उठा।
अंधकारमय रूप हँसा
"क्योंकि मैं तू ही हूँ, अनिरुद्ध। तेरे हर डर, तेरी हर चाल, तेरी हर कमजोरी को मैं पहले से जानता हूँ।
तू मुझे हरा ही नहीं सकता।"
टूटता हुआ साहस
युद्ध लंबा चला।
अनिरुद्ध थकने लगा। उसकी साँसें भारी हो गईं।
उसके हाथ कांप रहे थे।
अंधकार ने उसकी तलवार छीनकर उसे ज़मीन पर गिरा दिया।
वो उसके पास आया और गरजकर बोला,
"देख लिया? अंत में मैं ही विजेता हूँ।
तू हमेशा से डरपोक था… और हमेशा रहेगा।"
अनिरुद्ध ने आँखें बंद कर लीं।
उसके मन में बचपन की यादें दौड़ने लगीं — माँ की मुस्कान, उसकी पुकार, और अद्रिका की बातें।
"शक्ति बाहर नहीं, भीतर है… जिसे तुम मान लेते हो।"
शक्ति की जागृति
अनिरुद्ध ने गहरी साँस ली।
उसने धीरे-धीरे ज़मीन से उठकर आँखें खोलीं।
उसकी आँखों में अब डर नहीं था, बल्कि दृढ़ता थी।
"हाँ, तू सही कहता है… तू मेरा हिस्सा है।
पर तू मेरा मालिक नहीं।
मैं ही अपनी किस्मत का मालिक हूँ।"
उसने हथेलियाँ जोड़कर ध्यान केंद्रित किया।
उसके भीतर से ऊर्जा फूटने लगी — लाल और नीली लपटें मिलकर सुनहरी आग में बदल गईं।
वो आग उसकी पूरी देह में बहने लगी।
अंधकार पीछे हट गया।
"ये… ये कैसे संभव है?"
अनिरुद्ध की आवाज़ गूँजी,
"क्योंकि तू मेरे डर से पैदा हुआ था। और अब जब मैंने अपने डर को स्वीकार कर लिया है…
तो तेरे अस्तित्व की कोई जगह नहीं बची।"
अंतिम वार
अनिरुद्ध ने सुनहरी आग से बनी तलवार उठाई और पूरे ज़ोर से अंधकार पर वार किया।
लपटों ने उसके दूसरे रूप को घेर लिया।
वो तड़पते हुए चिल्लाया,
"नहीं! तू मुझे नहीं मिटा सकता! मैं… मैं ही तेरी असली पहचान हूँ!"
अनिरुद्ध ने दृढ़ता से कहा,
"नहीं। तू मेरी पहचान का हिस्सा था।
पर अब मैं अधूरा नहीं… पूरा हूँ।
और एक अंतिम वार के साथ, अंधकार राख में बदलकर हवा में बिखर गया।
शांति और रहस्य
जंगल में फिर से शांति छा गई।
अनिरुद्ध ज़मीन पर बैठ गया, थका हुआ लेकिन शांत।
अद्रिका उसके पास आई और बोली,
"तूने वो कर दिखाया जो बहुतों से असंभव था। तूने अपने भीतर के अंधकार को हराया।"
अनिरुद्ध ने पूछा,
"क्या ये अंत था?
अद्रिका की आँखें गंभीर हो गईं।
"नहीं। ये तो बस शुरुआत थी।
तेरे वंश का असली शत्रु अभी सामने नहीं आया है।
अंधकार तो बस उसका दूत था। असली युद्ध तो अभी बाकी है।
Ending Hook:
अनिरुद्ध ने अपने ही अंधकारमय रूप को हराकर खुद को स्वीकार किया और अपनी शक्ति को पूर्ण रूप से जाग्रत किया।
लेकिन अद्रिका ने सच उजागर किया —
अंधकार असली शत्रु नहीं था… असली शत्रु वो है, जो परछाइयों के पीछे से
सब कुछ नियंत्रित कर रहा है।
अब सवाल ये है —
वो असली शत्रु कौन है?
और क्या अनिरुद्ध सचमुच तैयार है उस युद्ध के लिए, जो पूरे वंश का भाग्य तय करेगा?