Trishulgadh - 12 in Hindi Fiction Stories by Gxpii books and stories PDF | त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 12

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 12

पिछली बार:
अनिरुद्ध ने अपनी अंदर की शक्ति को पहचान कर छाया के स्वामी को पराजित कर दिया।
लेकिन उसने समझ लिया कि अंधकार सिर्फ बाहर नहीं, हर मन में छिपा होता है।
अब असली लड़ाई उसके सामने है — खुद को और अपने वंश को बचाना।



नई शुरुआत

किले का वातावरण बदल चुका था।
जहाँ पहले काले धुएँ ने सब कुछ घेर रखा था, अब वहाँ नरम सुनहरी रोशनी फैली थी।
दीवारों पर बने जले निशान धीरे-धीरे मिटते गए।
जंगल में चिड़ियों की आवाजें फिर सुनाई देने लगीं।

अद्रिका ने मुस्कुराकर कहा,
"देख अनिरुद्ध… सब कुछ नया हो सकता है, अगर मन की रोशनी बुझने न पाए।
अब तेरा काम है — सिर्फ़ अपने लिए नहीं… पूरे वंश के लिए।"

अनिरुद्ध ने गंभीर स्वर में जवाब दिया,
"मैं वादा करता हूँ।
मैं इस रोशनी को हर दिल तक पहुँचाऊँगा।
अब डर और अंधकार मेरे वंश की पहचान नहीं रहेंगे।"



वृद्ध गुरु का आगमन

इतने में किले के अंदर से एक वृद्ध पुरुष प्रकट हुआ।
उसकी आँखें शांत थीं, पर उनमें गहराई थी।
वो बोले,
"अनिरुद्ध… मैंने दूर से तुम्हारी लड़ाई देखी।
तेरे भीतर की शक्ति जाग चुकी है।
लेकिन याद रख — रोशनी तभी स्थायी होती है जब करुणा और धैर्य उसके साथ हों।
क्या तुम तैयार हो इस जिम्मेदारी के लिए?"

अनिरुद्ध ने बिना झिझक कहा,
"हाँ… चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ… मैं हार नहीं मानूँगा।
मैं अपने लोगों को फिर से एकजुट करूँगा।"

वृद्ध मुस्कुराए,
"तो फिर चलो… समय आ गया है वंश की अगली यात्रा शुरू करने का।"



वंश की खोज

अद्रिका और अनिरुद्ध किले से बाहर निकले।
उन्होंने देखा कि आसपास की भूमि वर्षों से वीरान थी।
गाँव खाली पड़े थे, पेड़ सूख चुके थे, नदियाँ रुक चुकी थीं।

लेकिन अनिरुद्ध की आँखों में आशा थी।
"इन्हें फिर से जीवित करना होगा… हर घर में रोशनी जलानी होगी।"

अद्रिका ने कहा,
"हम अकेले नहीं हैं।
तेरे जैसे कई लोग हैं जो डर से घिरे हैं…
उन्हें चाहिए एक नेता, एक प्रेरणा।
तेरी कहानी उन्हें राह दिखाएगी।"



आत्मविश्वास का संदेश

अनिरुद्ध ने गाँव वालों को बुलाया।
पहले तो लोग डरे, संदेह में थे।
लेकिन जब उन्होंने उसके चेहरे पर डर की जगह विश्वास देखा…
तो धीरे-धीरे उनका दिल खुला।

वो बोले,
"हमने अंधकार देखा है…
हम थक गए हैं, पर क्या सच में कोई उम्मीद बची है?"

अनिरुद्ध ने जवाब दिया,
"उम्मीद बाहर से नहीं आती।
वो हमारे भीतर छिपी होती है।
जब तक हम खुद पर विश्वास नहीं करेंगे… कोई हमें नहीं बचा सकता।
लेकिन अगर हम अपने दिल की रोशनी जगाएँ…
तो हर अंधेरा हमें छू भी नहीं सकता।"

गाँव वाले उसकी बातों से प्रेरित हो उठे।
धीरे-धीरे बुझी आगें जलने लगीं।
सूखे खेतों में फिर हरियाली लौटने लगी।



नई राह

रात को अनिरुद्ध अकेला बैठा सोच रहा था।
"यह तो शुरुआत है…
अंधकार फिर लौटेगा…
लेकिन अगर मैं डरा… तो सब कुछ फिर से नष्ट हो जाएगा।
मुझे अपने वंश को सिर्फ़ लड़ाई नहीं… आशा भी देनी होगी।
शक्ति के साथ संवेदना भी ज़रूरी है।"

उसने अपने भीतर की आवाज़ सुनी —
"तू अकेला नहीं है… हर मन में रोशनी की चिंगारी है… बस उसे जगाना है।"

उसने आँखें बंद कर संकल्प लिया:
“मैं हर गाँव में रोशनी पहुँचाऊँगा।
मैं अपने वंश की कहानी बदल दूँगा।
अब अंधकार मेरा शत्रु नहीं… मेरे धैर्य की परीक्षा है।”


Episode 12 Ending Hook:

अनिरुद्ध ने अपनी शक्ति को पहचान कर वंश का नेतृत्व संभाल लिया।
लेकिन असली चुनौती अभी बाकी है —
क्या वो अपनी रोशनी को हर दिल में जगा पाएगा?
क्या अंधकार फिर लौटेगा… या रोशनी का नया युग शुरू होगा?

अगले भाग में दिखेगा —
कैसे अनिरुद्ध गाँव-गाँव जाकर लोगों के मन में आशा का दीप जलाता है…
और किस नई ताकत से उसका सामना होगा!