(विशाल डिस्को में एक लड़की को बचाता है और एहसास करता है कि उसने गलती से छाया के बजाय किसी और को प्रपोज कर दिया था। आग्रह और टीना उसकी सलाह देते हैं कि सच सामने लाए। विशाल छाया से मिलने खन्ना रेस्टोरेंट जाता है, लेकिन छाया का मन उलझा हुआ है। वह उसे बताती है कि उसने उसे पसंद किया, लेकिन जरूरी नहीं कि वह भी प्यार करे। विशाल छाया की बातों से गुस्सा और पछतावा महसूस करता है, फिर अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए “सॉरी” कहता है। अब आगे)
इजहार और इंक्वायरी
विशाल का गुस्सा इतना स्पष्ट था कि छाया खुद को संभालते हुए चुपचाप बैठ गई। उसने सोचा, अगर अब वह और भड़क गया, तो सबके सामने फिर से अपमानित कर देगा। इसलिए उसने खुद को शांत रखा और हल्की मुस्कान के साथ बोली, “बोलो, क्या कहना है?”
विशाल कुछ पल के लिए चुप रहा, जैसे शब्दों को ढूंढ रहा हो। फिर उसकी आवाज़ गहरी और थोड़ी खिंची हुई निकली, “क्या सच में तुम्हें लगता है कि मेरी उस लड़की के साथ जोड़ी अच्छी लगती है?”
छाया ने हिम्मत जुटाकर सिर हिलाया, लेकिन उसकी आंखों में हल्की बेचैनी झलक रही थी। विशाल ने अचानक मुस्कान दी और बोला, “चलो… जो मैं नहीं कह पाया, वो तुम खुद समझ गई।”
छाया को यह सुनकर अजीब सा एहसास हुआ। उसी समय वेटर आया और छाया की ओर इशारा किया। उसने अपना पसंदीदा खाना ऑर्डर किया, और विशाल ने भी हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मेरे लिए भी वही ले आओ।”
खाना धीरे-धीरे आया, और छाया शांति से खाते हुए बीच-बीच में विशाल की ओर देख मुस्कुराती रही। विशाल की नजरें लगातार उसी पर टिक गई थीं, उसकी हर हँसी और हर हल्की प्रतिक्रिया पर ध्यान दे रहा था। खाना खत्म होने के बाद बिल भी छाया के आइडिया से साझा किया गया। विशाल समझ चुका था कि इस लड़की को कुछ भी कहो, वह अपनी मर्जी से ही फैसला करेगी।
जब छाया जाने लगी, विशाल ने एक बार फिर कहा, “मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूं।”
छाया ने झट से मना किया, “नहीं, मैं बस से चली जाऊंगी।”
विशाल ने हंसते हुए सिर हिलाया और कहा, “ठीक है।”
छाया ने अपना सामान उठाया, मुस्कुराई और बाय बोलते हुए रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई।
छाया के जाने के बाद, विशाल ने अपने बगल में रखे गुलदस्ते की ओर देखा और खुद पर हँस पड़ा। शायद छाया से अपने मन की बात कहना उसके लिए इतना आसान नहीं होगा।
वह पार्किंग की ओर गया, कार स्टार्ट की और धीरे-धीरे वहां से निकल गया, दिल में हल्की बेचैनी और हल्की उम्मीद दोनों लिए।
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इंस्पेक्टर ठाकुर कंप्यूटर स्क्रीन पर झुके हुए कुछ जानकारी खंगाल रहा था। स्क्रीन की हल्की रोशनी में उसका चेहरा गंभीर और ध्यान में डूबा हुआ दिख रहा था। तभी हवलदार कमरे में दाखिल हुआ और सल्यूट किया।
“बक्सीर का कुछ पता चला, सर?” इंस्पेक्टर ने बिना उठाए ही पूछा, उसकी आवाज़ ठंडी और कट्टर थी।
हवलदार घबराया, शब्दों को टटोलते हुए बोला, “सर… बक्सीर का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला, लेकिन…”
इंस्पेक्टर ने अपनी तीखी नजरें हवलदार पर डाली और कहा, “जो बोलना है जल्दी बोलो, सुलेमान।”
सुलेमान ने गहरी साँस ली और हकलाते हुए कहा, “सर… बक्सीर ड्रग माफिया है। और वह… बहुत खतरनाक है। रघु ही बक्सीर तक पहुँचने का इकलौता रास्ता है। जेल में बंद होने और इतनी पिटाई झेलने के बावजूद उसने एक शब्द तक नहीं कहा।”
इंस्पेक्टर ठाकुर चुप रहा। उसके दिमाग में बक्सीर तक पहुँचने का हर रास्ता घूम रहा था। यह काम सिर्फ़ उसके लिए नहीं, बल्कि पूरे इलाके की सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी था।
तभी टेबल पर रखा फोन बज उठा। इंस्पेक्टर ने उठाया और गहरी आवाज़ में कहा, “हेलो, इंस्पेक्टर ठाकुर बोल रहा हूँ।”
फोन की दूसरी ओर से आवाज़ आई। इंस्पेक्टर ने तुरंत पूछा, “रघु के बारे में क्या पता चला?”
कुछ देर खामोशी के बाद उसने फिर पूछा, “खबर पक्की है न?”
फोन रखकर इंस्पेक्टर ठाकुर फिर कंप्यूटर पर झुके, स्क्रीन पर बहती जानकारियों में खो गए। आंखों में गंभीरता, दिमाग़ में रणनीति, और दिल में हल्की बेचैनी – बक्सीर तक पहुँचने का समय कम था, और हर सेकंड कीमती।
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सिंघानिया हाउस में विशाल अपनी सोच में डूबा था। वह खुद पर भरोसा नहीं कर पा रहा था कि छाया से अपनी बात नहीं कह पाया। गुस्सा उसके अंदर उबल रहा था, और छाया की मासूम, फिर भी स्पष्ट बातें उसके दिमाग़ में बार-बार गूंज रही थीं।
तभी फोन बजा। उसने झट से देखा—आग्रह का कॉल। उसकी उम्मीद थी कि शायद छाया उसे कॉल करे, लेकिन स्क्रीन पर कोई नाम नहीं। उसने फोन साइलेंट किया और किनारे रख दिया।
थोड़ी देर तक वह वहीं बैठा रहा, बेचैन और चुप। फिर टीवी ऑन किया, जहां उसकी मां, माहेश्वरी सिंघानिया का नाम सामने आया। लेकिन विशाल ने इग्नोर करते हुए चैनल बदल दिया और बास्केटबॉल का खेल देखने लगा। स्क्रीन पर चल रही खेल की हलचल भी उसके मन के तूफान को शांत नहीं कर पा रही थी।
उसके चेहरे पर हल्की कड़ी मुस्कान थी, लेकिन आंखों में बेचैनी साफ झलक रही थी—छाया की यादें और उसका मन का उलझाव हर पल उसके साथ थे।
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1. क्या विशाल और छाया का अधूरा इज़हार उनके रिश्ते को गहराई देगा या हमेशा के लिए दूरियों की दीवार खड़ी कर देगा?
2. क्या इंस्पेक्टर ठाकुर बक्सीर के शिकंजे को तोड़ पाएगा, या खुद उस खतरनाक खेल का हिस्सा बन जाएगा?
3. वह अनजान लड़की—क्या सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक है, या विशाल की ज़िंदगी में आने वाली नई मुसीबत की दस्तक?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की".