Chhaya Pyaar ki - 5 in Hindi Women Focused by NEELOMA books and stories PDF | छाया प्यार की - 5

The Author
Featured Books
Categories
Share

छाया प्यार की - 5

(छाया को एहसास होता है कि वह प्यार में अंधी होकर अपने परिवार की तकलीफों को नजरअंदाज कर रही थी। नित्या के साथ शहर जाने के बाद वह खुद को बदलने का फैसला करती है। अब वह पढ़ाई को प्राथमिकता देती है और विशाल की कड़वी बातों को पीछे छोड़ देती है। कॉलेज में वह विनय से पढ़ाई में मदद मांगती है और उसका आत्मविश्वास लौटने लगता है। काशी जैसी सच्ची दोस्त के साथ वह नए सिरे से मेहनत शुरू करती है।) अब आगे

नम्रता और जतिन भी नित्या की टूटी शादी से आहत थे। घर की बेटी की शादी टूट जाना, समाज में अब भी कम दर्द की बात नहीं मानी जाती। लेकिन दोनों ही नित्या को अपने बेटे-बेटी से कम नहीं समझते थे। केशव भी उदास था, उसका ध्यान काम में नहीं लग रहा था। सबके मन में नित्या की चिंता घर कर गई थी। नित्या चाहकर भी प्रमोद के साथ बिताए पलों को भुला नहीं पा रही थी।

शाम के पाँच बजे थे। नम्रता घर के कामों में व्यस्त थी, नित्या चुपचाप उनका हाथ बँटा रही थी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। नित्या ने दरवाज़ा खोला। जतिन घर आए थे। नम्रता को किचन में देखकर वह मुस्कराए और उधर चले गए। थोड़ी देर में नित्या चाय लेकर आई। उसने चाची से आग्रह किया —

"चाय आप भी पियें, मैं किचन संभाल लूँगी।"

नित्या की यह समझदारी और स्नेह देखकर दोनों के चेहरे पर सुकून की मुस्कान आ गई।

जतिन नम्रता से बातें कर रहे थे, पर उनकी निगाहें नित्या पर ही थीं।

"सोच रहा हूँ," जतिन बोले, "इतनी सुंदर, समझदार और संस्कारी लड़की... फिर भी इसकी शादी नहीं हो पाई।"

नम्रता ने थोड़े तीखे स्वर में कहा —

"और अगर हो जाती तो क्या होता? अच्छा ही हुआ कि नहीं हुई।"

जतिन सहमति में सिर हिलाकर बोले — "छाया अभी तक आई नहीं..."

"बताना चाहिए था," नम्रता झट से बोली, "फोन आया था — लेट आएगी।"

इतने में केशव आ गया। मां-पिताजी को देखकर मुस्कराया —

"मां, मुझे भी चाय चाहिए," कहकर वह कपड़े बदलने चला गया।

छाया अब तक नहीं आई थी। चिंता स्वाभाविक थी। नम्रता ने फोन लगाया, लेकिन छाया ने नहीं उठाया।

"क्या छाया रोज़ इसी समय लौटती है?" — नित्या के सवाल ने चिंता और गहरा दी।

दरवाज़े की ओर बढ़ ही रहे थे कि सामने छाया खड़ी थी।

"समय देखा है?" केशव ने डांटते हुए पूछा।

पहली बार छाया ने शांत स्वर में कहा —

"भैया, कालेज में ग्रुप स्टडी कर रही थी। काशी भी साथ थी। परीक्षाएं पास हैं... तैयारी नहीं हो पाई है।"

केशव को यकीन नहीं हुआ — उसकी बहन पढ़ाई में मेहनत कर रही थी!

"फोन क्यों नहीं उठाया?" — मां ने पूछा।

"बैटरी खत्म हो गई थी," छाया ने फोन दिखाते हुए कहा।

जतिन ने कहा —

"बेटा, चिंता होती है, फोन हमेशा साथ रखना चाहिए।"

सच तो यह था कि छाया बस से आती थी, और भीड़ में फोन चोरी का डर रहता था। अब उसे हर छोटी चीज़ की कीमत समझ में आने लगी थी।

छाया फ्रेश होकर बाहर आई। सबने मिलकर खाना खाया। सभी ने खाने की तारीफ की। जब नित्या किचन की ओर बढ़ी तो छाया ने उसे रोक लिया —

"खाना आपने बनाया, बाकी काम मैं कर लूंगी। आप आराम कीजिए।"

सब चौंक गए — छाया, जो पहले काम से कतराती थी, आज खुद पहल कर रही थी।

"तू भी आराम कर," नम्रता ने कहा, "अभी-अभी तो आई है। किचन मैं संभाल लूंगी।"

छाया मुस्कराई और अपने कमरे में जाकर पढ़ाई में लग गई।

नित्या अपनी छोटी बहन को किताबों में डूबा देख मुस्कराई और गहरी नींद में खो गई।

कुछ देर बाद छाया भी दीदी के बगल में सो गई।

---

केशव ने जैसे ही मेल चेक किया, चेहरे पर रौशनी फैल गई — सुबह वह सबको एक खुशखबरी देने वाला था।

उधर काशी की हालत भी थकी हुई थी। ग्रुप स्टडी, फिर लंबा सफर — उसकी ऊर्जा चुक गई थी। वह खाना खाकर सीधा सो गई।

---

अगली सुबह

बाथरूम जाते हुए केशव की नजर छाया के फोन पर पड़ी — उसमें पीडीएफ नोट्स की लंबी लिस्ट थी —

"पढ़कर आना" जैसे मैसेज देखकर उसे यकीन हो गया कि उसकी बहन बदल चुकी है।

उसके चेहरे पर गर्व की मुस्कान आ गई।

उसी वक्त नित्या सामने आ रही थी।

"दीदी!" — केशव ने कहा —

"आपका प्रगति कॉलेज में एडमिशन हो गया है।"

नित्या के चेहरे पर चमक तो आई, लेकिन साथ ही बोली —

"वहाँ तो फीस बहुत होगी..."

जतिन ने भरोसे से कहा —

"तू बस पढ़ाई कर, फीस की चिंता मत कर।"

छाया भी उठ चुकी थी।

"आपको भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं," केशव ने जोड़ा,

"कॉलेज की स्कॉलरशिप स्कीम के अनुसार बीए में जितने प्रतिशत, उतनी फीस में छूट मिलती है... और मेरी नित्या दीदी ने तो 97% लाए हैं!"

सबके चेहरे पर रौनक आ गई।

छाया ने मन ही मन ठान लिया — वह भी BA में अच्छे अंक लाएगी।

"आज ही चलो, एडमिशन करवा लेते हैं," नम्रता ने उत्साह से कहा।

नित्या ने मां-पिताजी को जब ये खबर सुनाई, तो गौरी की आंखों से खुशी के आँसू बह निकले।

---

यह सिर्फ नित्या का एडमिशन नहीं था, यह पूरे परिवार के लिए आशा, बदलाव और भविष्य की नई शुरुआत थी।

1. क्या छाया का यह आत्म-संशोधन स्थायी है, या परिस्थितियाँ उसे फिर से भटका सकती हैं?

2. क्या नित्या अपने टूटे विश्वास को पीछे छोड़, एक नए भविष्य की ओर बढ़ पाएगी?

3. जब बेटियाँ घर की उम्मीद बन जाएँ, तो क्या समाज उन्हें पहले जैसा कमज़ोर समझ पाएगा?

जानने के लिए पढ़िए "छाया प्यार की''