राधिका के साथ सामान उठाकर बाहर निकलते ही टीवी पर खबर चल रही थी –
“कॉरपोरेटर के बेटे और उसके दोस्तों को पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ लिया। कॉलेज में ये लोग ड्रग्स बेचते थे। मिली जानकारी पर एक टीम बनाई गई और इन्हें पकड़ा गया। अब इन्हें नार्कोटिक्स विभाग को सौंपा जा रहा है, वही आगे की कार्रवाई करेंगे।”
एसीपी ने मीडिया वालों से इतना कहकर बिना किसी सवाल का जवाब दिए वहाँ से निकल गया।
खबर सुनकर ज्योति गुस्से से स्क्रीन देख रही थी। तभी प्रिया आई और ज्योति के कंधे पर हाथ रखकर सिर से इशारा किया – “चल।”
दोनों सामान लेकर बाहर आ गईं। अर्जुन और अशोक भी पीछे-पीछे निकले।
सारा सामान कार की डिक्की में रखा गया।
अशोक ड्राइविंग सीट पर बैठने ही वाला था कि अर्जुन बोला – “मैं चला लूँगा।”
अशोक ने चाबी अर्जुन को थमा दी और उसके बगल में बैठ गया।
“ध्यान से जाना, पहुँचते ही फोन करना,” कौसल्या ने कहा।
प्रिया ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया – “ठीक है माजी।”
कार स्टार्ट होकर दूर निकल गई।
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काकीनाडा – पवन का घर:
धोती-कुर्ता पहने, मुँह में बीड़ी दबाए कामवाली गंगा का पति बोंगाराम आंगन में बैठा था। तभी कार का हॉर्न सुनाई दिया। हड़बड़ाकर बीड़ी फेंककर गेट खोलने दौड़ा।
कार अंदर आकर रुकी।
“आप लोग अंदर जाइए, सामान हम निकाल लेंगे,” अशोक ने कहा।
प्रिया और ज्योति भीतर चले गए।
अशोक ने डिक्की खोली। अर्जुन बैग निकाल ही रहा था कि बोन्गरम ने बैग उसके हाथ से ले लिया –
“मैं ले जाता हूँ साहब, आप अंदर जाइए।”
अशोक भी सूटकेस उठाने लगा –
“इतना सामान है, अकेले कैसे ले जाओगे? हम मदद कर देते हैं।”
बोन्गरम मुस्कुराते हुए बोला –
“नहीं साहब, मैं ले जाऊँगा।”
उसकी मुस्कान में एक अजीब डर देखकर अशोक को लगा शायद मदद माँगने में झिझक रहा है।
“कोई बात नहीं, मैं मदद करता हूँ,” कहकर सूटकेस उठाने ही वाला था कि अचानक बोन्गरम का चेहरा गुस्से से भर गया।
उसने सूटकेस जमीन पर पटक दिया और कहा –
“आप ही ले जाइए साहब, हम क्यों हैं यहाँ? अगर हमारा काम भी आप करेंगे तो हमें यहाँ रहने की ज़रूरत ही क्या है? सामान समेटकर चले जाएँगे।”
अशोक चौंक गया –
“अरे, मैंने क्या कहा? बस इतना कि सामान ज्यादा है इसलिए मदद कर दूँ, बस। इसमें इतना गुस्सा किस बात का?”
बोन्गरम तमतमाकर बोला –
“मैंने आपसे मदद माँगी थी क्या? हमारा काम हम खुद करेंगे, इसके लिए ही तो हमें रखा गया है।”
अशोक भड़कने ही वाला था कि गंगा दौड़ती हुई आई और बोली –
“माफ़ करना साहब, बचपन में इसके सिर पर चोट लगी थी। तब से कभी-कभी इसका दिमाग उल्टा-पुल्टा चलता है। आप आए तो मुझे कहने को बोला था, पर यह मानता ही नहीं।
और साहब, यह चाहता है कि अपना काम खुद करे, अगर कोई दूसरा कर दे तो इसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।”
अशोक हैरान होकर बोला –
“ऐसी बीमारी भी होती है क्या?”
फिर बोन्गरम की तरफ देखकर बोला –
“ठीक है, तुम ही ले जाओ सामान।”
अर्जुन के साथ अंदर जाते हुए उसने मन ही मन सोचा – “ये कैसी अजीब बीमारी है भई!”
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रात – अर्जुन का कमरा:
डिनर के बाद अर्जुन कमरे में किताब पढ़ रहा था।
प्रिया नाइट ड्रेस में अंदर आई। ब्रीफकेस से अपने कपड़े निकालकर अलमारी में सजाने लगी। अर्जुन उसे एक आँख से देख रहा था लेकिन दिखावा कर रहा था कि वह किताब में डूबा है।
सारे कपड़े रखने के बाद प्रिया बिस्तर पर बैठी और बोली –
“मुझे नींद आ रही है। मैं सो रही हूँ। तुम जब सोओ, लाइट ऑफ कर देना।”
यह कहकर वह अर्जुन से पीठ करके लेट गई।
अर्जुन घबराया हुआ था। हिम्मत जुटाकर धीरे से बोला –
“प्रिया…”
प्रिया ने सोचा – “क्या हुआ, अचानक चुप क्यों हो गया?”
वह उसकी ओर पलटी और बोली – “क्या है?”
अर्जुन हकलाते हुए बोला –
“क्या मैं पास वाले कमरे में सो जाऊँ? दोनों को असुविधा नहीं होगी।”
प्रिया कुछ पल गंभीर होकर उसे देखती रही।
अर्जुन वैसे ही डर के मारे पसीना-पसीना हो रहा था।
अचानक प्रिया उठी और बोली –
“कार की चाबी दो।”
अर्जुन और घबरा गया –
“क..क्यों?”
प्रिया सख्त स्वर में बोली –
“यह तुम्हारा घर है, और मेरे लिए तुम अलग कमरे में सोओगे? मेरी माँ का घर पास ही है, मैं हर रात वहीं चली जाऊँगी और सुबह आऊँगी।”
अर्जुन घबराकर उसके करीब आया और काँपते हुए बोला –
“त..तुम अपने घर क्यों जाओगी?”
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