Priya house:
पूर्वी गोदावरी (काकीनाडा) ज़िले में वरिष्ठ कलेक्टर के पद पर कार्यरत प्रिया की माँ और अर्जुन की बुआ सुभद्रा देवी के घर में आज चारों ओर शादी की रौनक छाई हुई थी। पूरा घर आम के तोरणों, फूलों और रोशनी से सजा हुआ था। रिश्तेदारों का आना-जाना, बच्चों की हँसी, ढोल-नगाड़ों की आवाज़, और घर के हर कोने से आती खुशियों की गूंज...
पंडित जी जल्दी में घर के अंदर घुसे और तोरण लगाने वाले काम वालों को निर्देश देने लगे। फिर वो सुभद्रा देवी के पास जाकर बोले,
"मैडम, समय हो रहा है, दुल्हन तैयार है न?"
सुभद्रा देवी मुस्कुराते हुए बोलीं,
"मैं जाकर देखती हूँ पंडित जी, आप तब तक कॉफी पीजिए।"
(राजू, पंडित जी को कॉफी देना बेटा…)
वो ऊपर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए प्रिया के कमरे में पहुँचीं। दरवाज़ा खोला तो देखा कि प्रिया अभी भी सो रही थी, टेडी बियर को सीने से लगाकर।
सुभद्रा झल्लाते हुए खिड़की के पर्दे हटाते हुए बोलीं,
"प्रिया! दुल्हन बनने का वक़्त हो गया है… अब तो उठ जा।"
प्रिया कोई जवाब नहीं देती। सुभद्रा उसके पास आकर झिंझोड़ते हुए कहती हैं,
"इतना टाइम हो रहा है और तू अब भी सो रही है? क्या है ये आलस?"
प्रिया करवट बदलकर बेमन से बोली,
"उठती हूँ माँ, बस पाँच मिनट और…"
"मूहूर्त का समय निकला जा रहा है… जल्दी तैयार हो जा।"
सुभद्रा डांटते हुए कहती हैं।
प्रिया आँखें मलते हुए बैठती है, और थोड़ी चिढ़ते हुए कहती है,
"मैं तो तैयार हो ही जाऊँगी, माँ... पर पहले ये तो पता करो — तुम्हारा वो लाड़ला भांजा, जिससे मेरी शादी होने वाली है, वो आ रहा है भी या नहीं इस शादी में?"
सुभद्रा उसे गुस्से से देखती हैं।
प्रिया कड़वाहट भरी मुस्कान के साथ कहती है,
"तुम्हारी बेटी चाहे जितनी भी तकलीफ़ में रहे, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, पर उस अर्जुन को कोई कुछ कह दे तो तुम्हारा खून खौलने लगता है।"
सुभद्रा उसकी बातों को अनसुना कर, उसके पास बैठती हैं और उसका गाल सहलाते हुए प्यार से कहती हैं,
"प्रिया, तुम उसे प्यार करती हो, इसीलिए उससे शादी कर रही हो। मुझे तो ये रिश्ता पसंद नहीं था। लेकिन अब जब तुम दोनों शादी कर रहे हो, तो अगर भविष्य में तुम दोनों के बीच कोई झगड़ा हो, तो सबसे ज़्यादा दर्द मुझे ही होगा। क्योंकि तुम दोनों ही मेरे अपने हो।"
प्रिया माँ के गले लगकर कहती है,
"माँ, हम लोग खुश रहेंगे न?"
सुभद्रा उसका सिर सहलाते हुए कहती हैं,
"भविष्य कैसा होगा ये तो मैं नहीं जानती, लेकिन अगर तुम बिना किसी शर्त के प्यार करती रहोगी, तो एक दिन वो भी तुम्हें ज़रूर दिल से प्यार करेगा।"
इतना कहकर सुभद्रा ने उसे और परेशान न करते हुए कहा,
"अब ज़्यादा मत सोच, उठ और तैयार हो जा।"
प्रिया धीरे से मुस्कुराई,
"ठीक है माँ, मैं तैयार होकर आती हूँ।"
सुभद्रा ने उसके माथे पर प्यार से चुम्बन दिया और कमरे से बाहर निकल गई।
प्रिया उठकर अलमारी से साड़ी और तौलिया निकालकर वॉशरूम चली गई।
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विवाह का दिन
ठीक उसी इंद्रभवन विवाह मंडप में, जहाँ दो साल पहले अर्जुन की शादी रुक गई थी, आज उसी जगह एक भव्य समारोह चल रहा था।
विवाह स्थल रोशनी और सजावट से चमक रहा था। अर्जुन सफेद पारंपरिक वस्त्रों में मंडप में बैठा था, और पंडित के मंत्रों का ध्यानपूर्वक अनुसरण कर रहा था। उसकी माँ कौशल्या देवी उसके पास खड़ी होकर मुस्कुरा रही थीं।
बैंड-बाजे की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आसपास किसी की बातचीत सुनाई नहीं दे रही थी।
इस बीच, आनंदराव किसी को कुछ इशारा करते हुए मंच की ओर बढ़े और अशोक से कान में कुछ कहा। अशोक ने समझते हुए सिर हिलाया और तेज़ी से वहाँ से चला गया।
विवाह स्थल पर हर कोई अपनी-अपनी ड्यूटी में व्यस्त था।
तभी पंडित जी ने आवाज़ दी:
"दुल्हन को लेकर आइए!"
सुभद्रा देवी दौड़ती हुई सी प्रिया को लाने चली गईं।
...और फिर, वह क्षण आया…
विद्युत रोशनी में दमकती हुई प्रिया, महंगे गहनों और सुंदर विवाह वस्त्रों में सजी-धजी जब मंडप में प्रवेश करती है, तो ऐसा लगता है मानो कोई देवी धरती पर उतरी हो।
वह धीमे कदमों से चलती हुई अर्जुन के पास आकर बैठ जाती है।
अर्जुन और प्रिया दोनों मंत्रों का पालन करते हैं, लेकिन उनके चेहरों पर न कोई खुशी है, न कोई चमक।
पंडित जी ने अर्जुन को मंगलसूत्र दिया।
अर्जुन ने प्रिया की ओर देखा… एक पल के लिए रुका…
...सन्नाटा छा गया।
प्रिया ने आँखें बंद कर लीं — शायद डर, तनाव, या फिर उम्मीद में।
फिर अर्जुन ने मंगलसूत्र प्रिया की गर्दन में बाँध दिया।
चारों ओर से अक्षत और फूलों की वर्षा हुई, सभी ने राहत की साँस ली।
फेरों के बाद दोनों सबको प्रणाम कर रहे थे… लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
इन दोनों के रिश्ते की असली परीक्षा अब शुरू होगी।
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आगे क्या होगा...? जानने के लिए जुड़े रहिए।
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Surya Bandaru