Anjaani Kahani - 3 in Hindi Love Stories by surya Bandaru books and stories PDF | अनजानी कहानी - 3

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अनजानी कहानी - 3

विशाल और भव्य फर्नीचर से सजी हुई एक आलीशान हवेली की तरह दिखने वाले घर में, कौशल्या जी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में रखे सोफ़े पर बैठीं।

"राधिका, कॉफी ले आओ," उन्होंने कहा।

रसोई में काम कर रही नौकरानी बोली,
"अभी लाती हूँ, अम्मा जी।"

कौशल्या जी अपने सामने रखे पेपर को पढ़ने लगीं। कुछ देर बाद आवाज़ आई,
"अम्मा जी, कॉफी।"

कौशल्या जी उसकी ओर मुड़ीं, कप लिया और पूछा,
"तू आ गई बेटा, तेरी माँ नहीं आई क्या?"

वो लड़की, ज्योति — नौकरानी राधिका की बेटी — बोली,
"माँ को गाँव से फ़ोन आया था, कुछ अर्जेंट था… वो शाम तक लौट आएंगी।"

कॉफी की चुस्की लेते हुए कौशल्या जी बोलीं,
"ठीक है, तू जाकर नागराजू से कह, सफाई वाले लोग आज आ रहे हैं या नहीं, एक बार फोन करके पूछ ले।"

"ठीक है अम्मा जी," कहकर ज्योति चली गई।

कौशल्या फिर से पेपर पढ़ने में मग्न हो गईं।

कुछ देर बाद, अर्जुन अपने कमरे से नीचे उतरते हुए आया और हॉल में आकर चुपचाप उनके पास बैठ गया। कौशल्या जी ने हल्का सा उसकी ओर देखा — वो कुछ बुझा-बुझा और खोया-खोया लग रहा था।

फिर भी पेपर पढ़ते हुए उन्होंने पूछा,
"क्या बेटा, कॉफी पिएगा?"

अर्जुन ने उनके हाथ से पेपर ले लिया और उसे पास में रखकर, उनके गोद में सिर रखकर एक ओर मुड़कर लेट गया।

कौशल्या ने प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा,
"क्या हुआ बेटा?"

अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। वो चुप था। कौशल्या भी खामोश रहीं, बस स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरती रहीं।

कुछ पल बाद अर्जुन ने धीमे स्वर में पूछा,
"माँ… क्या मेरी वजह से आप सब बहुत दुखी हो?"

कौशल्या जी कुछ क्षण चुप रहीं, फिर बोलीं,
"ऐसा क्यों बोल रहा है अचानक? किसी ने कुछ कहा क्या?"

अर्जुन फिर से चुप। उसके चेहरे से लग रहा था कि वो कुछ कहना चाहता है, लेकिन कह नहीं पा रहा।

कुछ देर की ख़ामोशी के बाद, अर्जुन ने धीरे से कहा,
"मुझे प्रिया से शादी नहीं करनी माँ…"

ये सुनकर कौशल्या की आंखें कुछ क्षण के लिए बंद हो गईं। फिर उन्हें खोला और बिना कोई दबाव डाले, अर्जुन के बालों पर हाथ फेरते हुए बोलीं,
"ठीक है बेटा, मैं बाबूजी से बात करूंगी।"

यह सुनते ही अर्जुन अचानक गिल्ट में भर गया, गुस्से में उठ बैठा और बोला:
"क्यों माँ? मैं कुछ भी करूं तो आप ‘ठीक है’ क्यों कहती हैं? आपको पता है मैं ग़लत कर रहा हूँ, फिर भी कुछ क्यों नहीं बोलतीं? बाबूजी भी हमेशा मेरी बातों को ‘तेरी मर्ज़ी’ कहकर छोड़ देते हैं। आप दोनों का कुछ न कहना मुझे और ज़्यादा तकलीफ़ देता है!"

वो रुआंसा होकर कौशल्या को कसकर गले लगा लेता है।

कौशल्या चुपचाप उसे गले लगाकर सांतवना देती हैं।

कुछ क्षण बाद, उन्होंने नरम आवाज़ में पूछा —
"बेटा, एक बात पूछूँ?"

"तुझे प्रिया से शादी नहीं करनी इसलिए कि तू उससे प्यार नहीं करता?
या इसलिए कि तू नहीं चाहता कि वो तेरी वजह से तकलीफ़ में पड़े?"

अर्जुन चुप रहा। कोई जवाब नहीं।

कौशल्या समझ गईं।

"प्रिया तुझसे कितना प्यार करती है, ये मैंने इन दो सालों में देखा है।
दो साल पहले, जब उसे पता चला कि तुम अनु से प्यार करते हो,
तो वो डर गई… कि अगर तुझे मेरी मोहब्बत का पता चला, तो तू कहीं और ज़्यादा टूट न जाए… इसलिए वो खुद पीछे हट गई।"

अर्जुन गहरी नज़र से सामने की दीवार की ओर देखता रहा, अपराधबोध से भरा।

"तुझे तो बताना चाहिए था मैं… कि वो मुझसे प्यार करती है," उसने कहा।

कौशल्या बोलीं,
"बताती तो क्या करता? अनु को छोड़कर प्रिया से शादी करता क्या?"

इस सवाल का कोई जवाब अर्जुन के पास नहीं था।

"मैंने प्रिया को बचपन से देखा है, लेकिन इन दो सालों में उसके प्यार की गहराई देखी है।
वो चाहे कहीं भी हो, अगर तू दुखी है… तो वो भी सुखी नहीं रह सकती।"

कुछ देर चुप्पी रही।

"तू जिसे प्यार करता है उसने तुझे छोड़ दिया… और जो तुझसे प्यार करती है,
वो तेरे दर्द में खुद जल रही है।"

कौशल्या की ये बातें सुनते ही अर्जुन की आँखों में आँसू भर आए। वो चुपचाप आँखें बंद कर लेट गया।

"प्रेम दर्द देता है बेटा…
और समय ही उस दर्द का इलाज होता है।
अगर हर कोई प्यार में असफल होने के बाद शादी से इंकार कर दे, तो इस दुनिया में आधे लोग कभी शादी ही न करें।"

"तू कहता है मैंने तुझसे कुछ करने को नहीं कहा…
तो अब कह रही हूँ बेटा, क्या करेगा?"

"क्या तू प्रिया से शादी करेगा?"

कौशल्या के इन शब्दों से अर्जुन को पहली बार एहसास हुआ कि वो फैसला अब टल नहीं सकता।

कुछ देर चुपचाप सामने दीवार को देखता रहा, फिर गहरी साँस लेकर उठ खड़ा हुआ।

हल्की सी मुस्कान के साथ बोला —
"ठीक है माँ, मैं प्रिया से शादी करूँगा।"

कौशल्या खुशी से चमक उठीं —
"सच?"

"सच," अर्जुन ने हौले से सिर हिलाया।

कौशल्या ने उसे गले से लगा लिया,
"अब मुझे बहुत सुकून मिला बेटा…"

उसी वक्त ज्योति आई और बोली,
"अम्मा जी, sir बुला रहे हैं।"

कौशल्या जल्दी से उठीं, अर्जुन का हाथ खींचते हुए बोलीं:
"चल बेटा, तू जा के फ्रेश हो जा… मैं बाबूजी को बताती हूँ।
शादी तय है… उसी मुहूर्त में।"

कहते हुए वो खुशी से चली गईं।

अर्जुन ने उसे जाते हुए देखा, मुस्कुराया… और चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ गया।

To be continued...