(राजदरबार में आद्या ने मानव होने का सच उजागर किया, और उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है। पर तभी उसका भाई अतुल्य प्रकट होता है और उसे बचा लेता है। विराट को शक होता है कि आद्या वास्तव में नागकन्या नहीं है। अतुल्य, उसकी सुरक्षा के लिए, एक झूठी कथा गढ़ देता है कि आद्या बचपन में एक साधु के शाप से अपनी नागशक्तियाँ खो बैठी थी, इसलिए वह खुद को इंसान मानती है। विराट की संदेह और आकर्षण की जटिल भावनाएँ अब जन्म लेती हैं। आद्या जब नाग वस्त्रों में विराट के सामने आती है, उसकी मासूमियत और डर विराट को भीतर तक हिला देता है। अब आगे
विराट की चाहत
दरवाज़े पर धीमे कदमों से अतुल्य भीतर आया। सामने विराट, अब तक की सबसे गंभीर मुद्रा में खड़ा था।
"मैं अपनी बहन को लेकर वनधरा लौटना चाहता हूं। आपकी आज्ञा चाहिए," अतुल्य ने धैर्य के साथ कहा।
विराट ने आद्या की ओर देखा। वह डर के मारे हिरणी की तरह पर्दे के पीछे छिप गई।
"आज महल में पूजा है। उसके बाद तुम चले जाओ," विराट ने मुस्कुराते हुए कहा—ऐसा मुस्कान, जो जानता हो कुछ ऐसा, जो अभी सामने वाला समझ न पाए।
विराट पलटा और बाहर चला गया।
जैसे ही वह गया, आद्या अपने भय और बेचैनी को दबाते हुए अतुल्य के पास दौड़ी। "भैया… मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा…"
अतुल्य ने उसकी आँखों में देखा—वही बचपन का डर, जब तूफ़ान आता था। "मुझे भी…" अतुल्य ने कहा। "पूजा खत्म होते ही हम निकल जाएंगे।"
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थोड़ी देर बाद, नाग सेविका आई।
दरवाज़ा धीरे से खुला और हाथ में चमकता शाही नागकन्या वस्त्र लिए एक सेविका भीतर आई।
"प्रणाम। आज की पूजा में आपको यही पहनना है।"
वस्त्र काले और नीले रंग में बुनाई गया था, चाँदी के नाग और नीली धारियों के साथ—जैसे अदृश्य शक्ति की पहचान हो।
आद्या की आँखें चमक उठीं। वह खिलखिलाकर बोली "बहुत सुंदर है… लेकिन भैया के लिए?"
सेविका मुस्कुराई—"पूजा तो आपके लिए रखी गई है, नागकन्या। पर चाहो तो आपके भाई के लिए भी प्रबंध हो सकता है।"
अतुल्य हक्का-बक्का रह गया। "पूजा… किसके लिए?"
"आद्या जी की सुप्त नाग शक्तियों को जागृत करने हेतु…" सेविका ने सिर झुकाकर कहा और बाहर निकल गई।
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भविष्य का दरवाजा खुल गया—एक पल के लिए सब थम गया।
अतुल्य का चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ों साँपों ने उसे एक साथ डसा हो।
आद्या वहीं खड़ी गिर पड़ी—बेहोश।
"आद्या!" अतुल्य दौड़ा और उसे थाम लिया। उसके माथे पर हाथ रखते ही आद्या का शरीर गरम हो गया—जैसे भीतर कोई ऊर्जा जाग रही हो।
"नहीं… यह नहीं होना चाहिए था…" अतुल्य ने थरथराते स्वर में कहा।
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विराट अपने कक्ष में बैठा व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहा था। नाग मंत्री ने प्रणाम किया और पूछा—"यदि बुरा न लगे, तो एक बात पूछ सकता हूं?"
विराट ने हाँ में सिर हिलाया।
"वनधरा की एक नागकन्या, जिसने अपनी शक्तियाँ खो दीं, उसके लिए इतना प्रयास क्यों?"
"शायद वह हमें अच्छी लगने लगी है। इस पूजा के बाद वह अपनी नाग शक्तियाँ वापस पाएगी… और हम उसे नागधरा की रानी बनाएंगे," विराट की आंखों में चमक थी।
"अगर शक्तियाँ नहीं लौटीं तो क्या आपका निर्णय वही रहेगा?" मंत्री ने सवाल किया। विराट के पास इसका कोई जवाब नहीं था।
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पूजा की तैयारियाँ हो चुकी थीं। केसर, चंदन, धूप और नागकुश की सुगंध से महल रहस्यमय ऊर्जा से भर गया।
विराट नीले रेशमी वस्त्रों में नागासन पर बैठा, चेहरे पर संतुष्टि और अधिकार की चमक।
वृद्ध नागगुरु ने शंख बजाया और आदेश दिया—"जाओ, नागकन्या को ले आओ। शुभ मुहूर्त निकट है।"
तीन नागसेविकाएं अतिथि कक्ष की ओर बढ़ीं—लेकिन तभी एक सेविका हांफते हुए आई।
"नागराज पुत्र! नागकन्या… वहाँ नहीं है। वह भाग गई!"
सभी सन्न—विराट के चेहरे पर लावा भड़कने लगा।
"दरवाज़े बंद कर दो! हर द्वार, हर सुरंग पर प्रहरी खड़ा कर दो। वह दूर न जा पाए…"
नागगुरु ने धीमे स्वर में कहा—"जो नागशक्ति सोई है, उसका भाग जाना आसान नहीं। इस पूजा का अर्थ बदल चुका है।"
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सीमा पर, अतुल्य आद्या का हाथ कसकर थामे था।
"बस कुछ ही दूर… बस…"
तभी शंख की गर्जना और चारों ओर से नाग सैनिक। विराट स्वयं सामने।
आद्या का चेहरा सफेद। अतुल्य लड़ने को बढ़ा, पर नाग सैनिकों ने उसे पकड़ लिया।
"तुम भाग क्यों रही हो?" विराट की आँखें आद्या पर गड़ी।
आद्या ने झटके से हाथ छुड़ाया और विराट के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारा।
"अगली बार हाथ लगाने की हिम्मत मत करना! नाग शक्ति नहीं चाहिए। समझे। मैं जैसी हूँ, वैसे ही ठीक हूँ। हम वनधरा लौटना चाहते हैं। और हमें रोकने का तुम्हें कोई हक नहीं।"
तभी उसके हाथ पर नागचिह्न चमका—जैसे अग्निलेख उभर आया हो। अतुल्य ने भी देखा।
एक नाग सैनिक ने कहा—"पूजा का मुहूर्त समाप्त।"
विराट हँसा—खतरनाक और थरथरा देने वाली हँसी।
""तुम्हें क्या लगता है, मैं नहीं जानता?"
"अगर नाग शक्ति तुम्हें नाग धरा में मिलेगी तो तुम नाग धरा से कभी बाहर नहीं जा सकोगी— और यही तो मैं चाहता हूँ।"
अतुल्य स्तब्ध—"और तुम… क्यों चाहते हो कि आद्या नाग धरा से बाहर न जाएं?"
विराट चुप रहा। पर खामोशी गूँज रही थी। आद्या की आँखें जवाब मांग रही थीं।
विराट ने मुस्कुराया—"इतनी जल्दी क्या है? हर उत्तर का समय होता है।"
एक कदम बढ़ा—"बताओ, तुम कहाँ जाना चाहती हो?"
आद्या की आँखों में हल्का सम्मोहन—"जहाँ तुम ले जाओ…"
अतुल्य चीखा—"रुको!"
नाग सैनिक उसे जबरन उठाकर वनधरा सीमा पर फेंक देते हैं।
विराट ने आद्या को अपनी बाँहों में उठा लिया और चुपचाप नागधरा लौट गया—जैसे कोई विजेता, जिसे अपने पुरस्कार से प्रेम हो गया हो।
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1. आद्या सच में मानव है—यह जानकर विराट उसका रक्षक बनेगा या शत्रु?
2. विराट का आद्या के प्रति आकर्षण सिर्फ प्रेम है, या उसमें नागधरा और शक्ति का खेल भी छुपा है?
3. आद्या की मासूमियत विराट की कठोरता को तोड़ पाएगी, या राजसिंहासन की साज़िशें उनके भाग्य को तय करेंगी?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क".