कर्नल का कोर्ट मार्शल
-देवेन्द्र कुमार
कर्नल एम.पी. सिंह, पी.वी.एस.एम को फौज से रिटायर हुए लगभग 10/12 वर्ष हो चुके थे| रिटायर होने के बाद उन्होंने दिल्ली में द्वारका सेक्टर 7 की ‘आर्मी नेवी एयरफ़ोर्स कॉपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में एक तीन बेडरूम का फ्लैट खरीद लिया था, वे इस हाउसिंग सोसाइटी के मेम्बर बहुत पहले, सर्विस करते समय ही, बन गए थे| सोसाइटी बहुत बड़ी और अच्छी थी| वहां रहने वाले अधिकांश सदस्य कुछ कुछ कर्नल जैसी ही पृष्ठभूमि के थे, अर्थात आर्मी, नेवी या एयर फ़ोर्स से रिटायर हुए ऑफिसर्स, हालाकि कुछ सिविलियन भी धीरे धीरे आते जा रहे थे, पर दबदबा वहां फौजियों का ही चल रहा था|
सोसाइटी की मैनेजिंग कमेटी के अध्यक्ष एयर फ़ोर्स के रिटायर्ड वाईस मार्शल, उपाध्यक्ष एक ब्रिगेडियर थे| एमपी सिंह भी कमेटी के एक माननीय सदस्य थे, वे इस कार्य में बहुत उत्साह से लगे रहते थे| उनकी पत्नी सुमन को उनका यह मैनेजमेंट का कार्य ज्यादा पसंद नहीं था न ही वे अन्य फौजियों की पत्नियों की तरह हाई-फाई किट्टी पार्टी, ताश पार्टी आदि में ज्यादा शामिल होती थी| इसके विपरीत अगर सोसाइटी में भजन कीर्तन हो रहें हों, या बर्थडे, विवाह की वार्षिकी आदि हो उसमें ज़रूर शामिल होती रहती थी| उसके मित्रों की संख्या कम थी पर उनमें आपस में बोंड अच्छा था, मित्रता प्रगाढ़ थी, पर ज़रूरत से ज्यादा साथ में घूमना फिरना, फिल्म देखना भी पसंद नहीं था, वह अपने घर, अपने पति अपने बच्चों और बच्चों के बच्चों में ज्यादा प्रसन्न रहती थी| अपने भाई, बहन के परिवारों के साथ भी पूरा संपर्क रखती थी| वे सभी दिल्ली से बाहर रहते थे, अतः उनके पास जाना, उन्हें बुलाना तथा अपने सब रिश्तेदारों में आना जाना, तीज त्योहारों या परिवार के सुख दुःख में शामिल होना उसे ज्यादा पसंद था| सोसाइटी में दोनों को काफी पसंद किया जाता था, उनकी जोड़ी के बहुत लोग प्रशंसक थे, क्योंकि देखने में वे खूब ज़मते थे ‘मेड फॉर इच अदर’ थे| रोजाना सुबह को साथ साथ नियमित घूमना उनकी दिनचर्या का भाग था| दोनों में इतने लम्बे समय आर्मी में रहने के बावजूद अन्य फौजियों की तरह फूं-फां न आई थी न ही बहुतों की तरह अपनी खान पान की आदतें बिगाड़ी थी|
हां, उन्होंने फौजियों के गुण जैसे स्पष्टता, निर्भीकता, नियमित जीवन, जेब के मुताबिक खर्च करना आदि अपनाने में कोई कोताही नहीं बरती थी| एमपी सिंह ने काफी मेहनत कर आर्मी हेड क्वार्टर की स्वीकृति से सोसाइटी में आर्मी की कैंटीन मंज़ूर करवा दी थी जो सभी के लिये एक बहुत बड़ा कल्याणकारी व सुविधाजनक कदम सिद्ध हो रहा था| कर्नल साहेब सत्तर वर्ष के होने वाले थे उनके दोनों पुत्र खूब पढ़ चुके थे, बड़ा मनुज दुबई में काम कर रहा था और छोटा अनुज यूo केo में| मनुज का एक बेटा भी था अतः वे दादा-दादी बन चुके थे| इस प्रकार सब कुछ ठीक ही नहीं बहुत ठीक चल रहा था| अभी छोटे अनुज की शादी अभी बाकी थी|
समय कुछ इतना सीधा सादा हमेशा कहाँ रह पाता है? कुछ अजीब न घटित होता तो यह कहानी कहां बनती? अभी तक जो दिखता था वह बाहर का सीन था पर अब अन्दर की बात कुछ थोडा अलग से भी थी| एमपी सिंह ने सर्विस के दौरान था, उसने अपनी आदतें व व्यवहार अच्छा बनाये रखा था, बिगाडा नहीं था| वह टीटोलर बना रहा था, वह अभी तक न सिगरेट पीता था, न शराब, न पान न सुपारी, न किसी गलत संगत में भी पड़ा था| पढने में हमेशा अच्छा रहा था, खेलकूद में भी उसकी रूचि हमेशा से थी, अतः आर्मी में आईएमए की परीक्षा देकर उसे आसानी से कमीशन मिल गया था| सर्विस भी खूब मेहनत और ईमानदारी से की थी, उसी के कारण उसे रिटायरमेंट से एक वर्ष पहले परम विशिष्ट सेवा मेडल अर्थात पीवीएसएम से सम्मानित किया हुआ था| वह तो प्रमोशन पाकर और हायर रैंक पर जाता पर सियाचिन ग्लेशियर पर पोस्टिंग के दौरान वह बेहद ठण्ड में ऐसा बीमार पड़ा था कि मुश्किल से उस की जान बची थी, पर मेडिकल केटेगरी हो कर आगे के प्रमोशन का रास्ता बंद हो गया था|
रिटायरमेंट तक साहेब और बीवी में सब कुछ ठीक होते हुए भी कभी कभाक बस थोडी खटपट हो जाती थी जो दांपत्य जीवन में आम है| कुछ तो पुरुष और महिलाओं के नैसर्गिक प्रकृति के कारण जो भगवान ने ही बनाई हुई है, जो किसी के हाथ में नहीं है, दूसरे कर्नल की श्रीमती सुमन के अपने अलग तरह के स्वभाव के कारण, जिससे वे कर्नल से छोटी छोटी बातों के कारण अब बहुत ज़ल्दी नाराज़ होने लगी थी| मूड ख़राब जल्दी होता पर उनका मूड ठीक होना कुछ समय लेता था| इसमें शक नहीं था वे कर्नल को बहुत अधिक चाहती थी इसलिये वे बेहद पजेसिव हो गयी थी और उन पर अधिकारपूर्ण अंकुश रखती थी, विशेषरूप से जब उन्हें लगता या वे देखती कि किसी अन्य महिला से श्रीमान हंस कर बात कर रहे होते थे, या कोई महिला उनके ज्यादा नजदीक आ जाये| यह बात सच भी थी कि कर्नल की पर्सनलिटी तथा स्वभाव ऐसा था कि महिलायें उनकी तरफ जल्दी आकृष्ट होती थी| यही कई बार कलह का बड़ा कारण बनता था, पर सत्तर होने तक यह कारण भी अब लगभग समाप्त हो गया था| सुमन को कभी पूरा विश्वास नहीं दिला सका पर कर्नल ने उसे कभी भी ‘चीट’ नहीं किया था| हां, थोडी हंसी मजाक महिलाओं करने से वह अपने आप को नहीं रोक पाता था| वह यह जानती भी थी पर फिर भी बीच बीच वह उसे तनाती रहती थी| उसका मानना था कि मर्दों को अगर गरम तवे पर भी बैठा दो वे फिर भी सच पर खरे नहीं निकलते, मौका मिलते ही हरकत करे बिना बाज़ नहीं आते| इस फार्मुले के एक से एक अकाट्य प्रमाण, तर्क व उदहारण ऐसे समय पेश करती, बस चुपचाप बैठ कर सुनते रहो, अपने आप को मन न ही मन कोसते रहो कि उसके अकाट्य तर्कों का उत्तर क्यों अभी तक नहीं बना| चुपचाप मुंडी हिला कर ‘कबूल’ करो और हार स्वीकार कर लेना ही बेहतर विकल्प रहता था| स्वीकार कर भी पीछा कहां छूटता था| भविष्य से कभी न कुछ ऐसा न हो उसका ‘बांड’ भरना पड़ता था| तब जाकर पीछा छूटने की नौबत आती थी|
कर्नल एमपी सिंह का नाम मनिंदर प्रताप सिंह था| जब ये साहब आर्मी में थे तब तक उन दोनों की झडपें समय की कमी के कारण कम होती थी, दूसरे कर्नल का बाहर का रोबदोब घर में भी थोडा चलता था| रिटायर होने के बाद कर्नल का प्रभाव कम होता चला गया और पत्नी सुमन का प्रभाव निरंतर बढ़ता गया, सत्तर के नज़दीक आते आते पाला बिल्कुल पलट चुका था| दोनों बेटे भी अपनी मम्मी के पाले में नज़र आते थे, हमेशा उसका पक्ष लेते, एक तरफ तीन राय एक तरफ बस एक ही| अतः घर संसार पर सुमन का एक छत्र राज हो चुका था, उसी की फुल कमांड थी| कर्नल तो ‘घर का जोगी जोगडा बाहर गांव के सिद्ध’ को चरितार्थ करते हुए ‘जोगडा’ बन गए थे, बाहर उनकी सोसाइटी के मैनेजमेंट में भले ही उनकी पूछ हो घर में तो नहीं थी| घर में तो बटालियन के टू आई सी की तरह ‘लेम्ब’ या मेमने बनते जा रहे थे, बटालियन में इसी नाम से भी टू आई सी जाना जाता है|
दोनों बेटे अच्छे स्कूलों में पढ़े थे, मेधावी थे दोनों ही बारी बारी से आईआईटी में दाखिला पा सके थे,ई बड़े बेटे मनुज ने आईआईटी खड़कपुर से तथा छोटे अनुज ने आईआईटी कानपुर से पढाई की थी| इस सब का श्रेय भी सुमन लेती थी, उन दिनों कर्नल साहेब को तो आर्मी से कहां फुर्सत थी| सप्रेटेड फेमिली क्वार्टर में दिल्ली रह कर उसने बच्चों को पढाया लिखाया था| इसमें कोई शक भी नहीं की फौजियों की बीवियां को काफी कुर्बानी करनी पड़ती है,कर्नल साहेब कभी नागालैंड, कभी मणिपुर में होते कभी लेह लद्दाख में| सन 1987 में तो जब वे कैप्टेन थे इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स में श्रीलंका में भी काफी दिन रहे थे| तब सुमन ने अकेले ही तो घर परिवार की कमान संभाली हुई थी| लास्ट पोस्टिंग सियाचिन ग्लेशियर के बाद तो उनके रिटायर होकर घर वापसी ही हो गयी थी| बेहद ख़राब सेहत में भी खूब मेहनत और इलाज़ के बाद ही तो वे ठीक हालत में आये थे| इस समय सुमन ने उनकी देखभाल में बड़ी मेहनत की थी]
एक साल रिटायरमेंट में होने तक ही बीवी के तानों तथा खाली होने की बोरियत, व उसके एहसानों की लिस्ट सुन सुन कर वे परेशान हो चुके थे| कर्नल एमपी सिंह ने ऐसे समय में यह मुनासिब समझा था कि इससे अच्छा तो कुछ काम कर लें ताकि घर में हिमाकत कम झेलनी पड़े| उसके एक बॉस कहा करते थे जो उपयोगी नहीं होता उसे फेंक दिया जाता है! उनके एक पुराने सिविलियन मित्र की एक फैक्ट्री थी, अच्छा बड़ा काम था, वह कभी कभी उनके साथ गोल्फ खेलने आते थे, उन्होंने उसके सामने ज़िक्र किया कि ‘घर पर बोर होता रहता हूं कुछ उसके लायक काम मिलेगा तो अच्छा रहेगा’| उनके मित्र तो सुन कर खुश हो गए थे, उन्हें तो ऐसे अनुभवी व्यक्ति की बहुत आवश्यकता थी, जिसे मैन-मैनेजमेंट का अनुभव हो, जिस पर पूरा विश्वास किया जा सकता हो| कर्नल साहेब तो खूब अनुभवी थे ही सो उन्होंने अपनी सेकंड इनिंग में उनके पास काम शुरू कर दिया था, अब दोबारा से घर में अच्छी खासी आमदनी बढ़ी थी इससे घर में कद्र भी बढ़ी गयी थी| एक्स्ट्रा आमदनी से सुमन काफी खुश थी साथ साथ यह शिकायत करती ‘घर में अकेली बोर होती हूं’| अतः बीच बीच में कर्नल साहेब उसके साथ फिल्म देखने जाते, रेस्टोरेंट में ले जाते थे तभी बात बनती और घर में पूर्ण शांति रहती, सुमन को जेवेलरी का बड़ा शौंक था पर पहले दोनों बेटों की पढाई और पेंशन के बाद कहां गुंजाईश थी?सो मन मसोस कर रह जाया करती थी, अपने मन की बात बताती भी नहीं थी| अब एक्स्ट्रा आमदनी होने से उसने अपना पहला डायमंड सेट करोल बाग़ जाकर खरीदा था और बेहद प्रसन्न हुई थी| उसके पास सोना तो ठीक ठाक पहले से ही था, पर डायमंड की केवल एक अगूंठी भर थी, अब आकर बरसों बाद यह इच्छा पूरी हो पाई थी डायमंड सेट पाकर|
बटालियन सी ओ बनने से पहले सुमन-पति एमपी सिंह की हालत फौज में कुछ ऐसी थी, काम तो ज्यादा नहीं था कोई समय भी नहीं था, सुबह पीटी से लगा कर रात के मेस में डिनर नाईट समय तक व्यस्त ही व्यस्त, वेतन खूब मिलता पर बचत नहीं होती थी, जब तक खुद सीओ नहीं बना खूब सीओ के जूते पड़ते रहते थे, पर इज्जत भी कम नहीं होती थी बाहर निकलते ही जब सलूट मिलते तब जाकर आत्म-सम्मान वापिस आता| यही रिवाज आर्मी का लगभग सब पर लागू है| बहुत से सीओ जूनियर अफसरों को खींच कर रखने और अपने ऑफिस में बुला कर छोटी मोटी बात पर ही डांटना अपना जन्मदिन अधिकार मानते थे, उसकी बटालियन का सी ओ तो डांटने को भी ‘रियल रॉयल बम्बू’ का नाम देकर रक्खा था| उसका मानना था ‘उनको व्यस्त रखो वर्ना वे तुम्हे व्यस्त रखेंगे|’
कर्नल एमपी सिंह खुद भी लगभग 4 साल बटालियन के सीओ रहे, उन्होंने जहाँ तक हो सका इस तरह डांटने झाड़ने से दूरी बनाई थी| उनका मानना था जो बर्ताव उन्हें अपने सीओज का उसे अच्छा नहीं लगा था अपना टर्न आने पर वैसा खुद करना भी गलत होना चाहिए|
इसके विपरीत सीओ गिरी का भरपूर रस मैडम सुमन ने खुश होकर सहज से अपना लिया था| खास तौर पर जब जूनियर अफसरों की बीवियां उसको ‘मस्का’ लगाती थी तब उसे बहुत अच्छा लगता पर इससे अधिक कुछ नहीं| वह भी जूनियर अफसरों के परिवारों से स्नेह रखती और उनके दुःख दर्द का ध्यान रखती रही थी| एक जूनियर अफसर की पत्नी को जब पहला बच्चा हुआ उसके पास मदद के लिये उसकी कोई माँ या सास या घर का सदस्य नहीं था, बेचारी कम उम्र की लड़की कमज़ोर थी व पहले प्रसव के लिये बहुत डरी हुई थी, तब सुमन मेडम ने पूरी रात अस्पताल में उसके साथ रही, डिलीवरी के समय मौजूद रह कर माँ जैसा ध्यान रखा था तथा हर दिन जाकर उसका हौसला बंधाया था| ये सब बातें रिटायरमेंट के बाद बस स्मृतियां बन गयी थी| यह सच है जब सीओ को बटालियन का माईं-बाप माना जाता है तो ऐसे समय में यह ड्यूटी भी बनती है, जिम्मेदारी भी बनती है|
उनके बड़े बेटे मनुज ने बैंगलोर में इंफोसिस कंपनी में जॉब शुरू कर दिया था तथा छोटा बेटा अनुज जॉब से पहले एमबीए करना चाहता था उसकी तैयारी कर रहा था| उन्ही दिनों एक अजीब घटना हुई| वे रविवार को आर्मी गोल्फ क्लब धौला कुआँ गोल्फ खेलने गए तब उनके एक पुराने आर्मी के मित्र कर्नल प्रताप सोलंकी उन्हें वहां मिले| बातों बातों में बहुत पुरानी बातें चली, इस मित्र की शादी के समय वह दिल्ली कैंट में अपने राजपुताना राइफल रेजिमेंटल सेंटर में पोस्टेड थे, दोनों ही तब यंग कैप्टेन थे| उस शादी में मनिंदर ज़रूरत से ज्यादा ही अन्दर तक लिप्त हो गये थे| सोलंकी की दुल्हन के परिवार वाले, जो दिल्ली आकर शादी कर रहे थे, शादी के इंतजाम के लिये काफी परेशान थे| मनिंदर इस परिवार को बहुत पहले से जानता था इसलिये उनकी मदद के लिये आगे आ गया था| इस परिवार में तीन सुन्दर बेटियां थी बड़ी की कैप्टेन से शादी हो रही थी दूसरी उससे भी सुन्दर थी और बड़ी चुलबुली थी| वह तब के कैप्टेन एमपी सिंह से इस दौरान बहुत घुलमिल गयी थी| एमपी सिंह ने भी अपनी पूरी ताकत लगा कर भागदौड़ कर शादी का इंतजाम किया था, अपने नाम फौजी बेंड भी बुक करा दिया था, उनको बहुत सा सामान आर्मी कैंटीन से खरीदवा दिया, आर्मी से पेमेंट पर गाड़ी लेकर परिवार को बाज़ार आदि के लिये सुविधा मुहय्या करवा दिया था और दुल्हन की इस चुलबुली बहन दीक्षा को अपने स्कूटर पर बैठा कर दूसरे शादी के इंतजाम किये| यह सब अनायास हुआ और पर साथ साथ न जाने कब वे एक दूसरे के बहुत करीब भी आ गये थे| जो सब को दिखलाई भी दे रहा था| एम पी सिंह को वह बहुत पसंद थी और वह उस पर पूरा फ़िदा था| पर बात ज्यादा आगे नहीं बढ सकी क्योंकि दीक्षा अगले कई साल के लिये विदेश जा रही थी| हां, वह उसे कहती रही कि एमपी सिंह की वह अभी केवल मित्र रहना चाहती थी, और रही भी| उसने यह भी बताया के वह कभी भी शादी नहीं करेगी, बस केवल मित्र रखेगी| बेचारे एमपी सिंह कसमसा कर रह गए उन दोनों का साल भर पत्र व्यवहार रहा फिर कम और बाद में बंद सा हो गया| यह एक लव स्टोरी ज़ल्दी शुरू हुई पर आगे नहीं बढ़ पाई, फिर भी एम पी सिंह का यह ‘फर्स्ट लव’ था जिसे वह कभी नहीं भूल पाया| मनिंदर प्रताप ने दीक्षा के पुराने पत्र उसने नहीं फाड़े थे उन्हें यूं ही रखे रखा था, या कहें की लापरवाही थी जो उसमे भरपूर मात्रा में है| वह स्वयं सबकी तरह शादी कर एक नार्मल लाइफ रखने के पक्ष में नहीं था, दीक्षा के फ्रांस जाने के बाद संपर्क रहने का न साधन था, न आवश्यकता रही थी, रास्ते जुदा हो गए थे|
एमपी सिंह के काफी रिश्ते आ रहे थे, उन दिनों वह नागालैंड में था| उसने अपने माता पिता से कह दिया था कि जहाँ भी वे निश्चित करेंगे वह शादी कर लेगा| लगभग दो साल बाद पुराने रीति रिवाज़ से शादी तय कर दी| एमपी सिंह की पत्नी बड़े परिवार से थी, जो उस समय की प्रचलित परम्पराओं से चल रहा था| वह हमेशा गर्ल स्कूल फिर गर्ल्स कॉलेज में पढ़ी थे तथा उसने हिंदी में एम.ए. किया हुआ था| सरल सीधे परिवार से शादी कर जब वह आर्मी जीवन में आई उसे बड़ा अटपटा लगा| वह तो कभी कोएजुकेशन नहीं पढ़ी थी अतः पहले उसे अजीब लगता था, पर धीर धीरे एडजस्ट होती गयी थी पर औरों से भी भी काफी अलग| उसे अपने पति समेत ऑफिसरों द्वारा की जाने वाली सीनियर अफसरों की जी हजूरी बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी, न ही वहां की अंग्रेजियत न ही ज्यादा सर,सर कहने की आदत |
एमपी सिंह ज्यादा चौकस और सावधान रहने वाला इंसान नहीं था दीक्षा के लिखे पत्र उस ने शादी के बाद जला तो दिए थे पर एक दो रह गया होगा| एक दिन किताबों को साफ़ करते हुए सुमन के हाथ एक ऐसा ही ‘लवलैटर’ पड़ गया था| उस दिन सुमन ने दिखा कर उसे ज़बाब तलब किया, सब कुछ बताने के बाद माफ़ी गलती तो हो गयी पर एमपी सिंह से विश्वास कम हो गया था, वैसे तो यह बहुत अधिक गंभीर बात नहीं थी पर सुमन के लिये एम.पी. सिंह का यह बहुत गंभीर अपराध था, विशेष रूप से इसे छिपाने के लिए| इस तरह शादी के आरम्भ में एक छोटी गांठ सी पड़ गयी थी, जिसे जाने में बहुत समय लगा|
यह पहला चैप्टर खत्म ही हुआ था कि शादी के लगभग तीन वर्ष बाद जब उनका बड़ा बेटा डेढ़ साल का था और वह मध्य प्रदेश के भोपाल मिलिट्री स्टेशन पर नया नया आया था, सुमन को अपने पीहर में एक महीने के लिये जाना पड़ा था, वह अकेला अफसर मेस में रह रहा था, वहां एक दूसरी यूनिट के अफसर की पत्नी मिसेज राव अपने दो छोटे बच्चों के साथ भी रह रही थी| एमपीसिंह बैडमिंटन का अच्छा खिलाडी था, तथा मिसेज राव भी अच्छा खेलती थी और वह नियमित रूप से खेलने कोर्ट में आती थी, अतः वे कई बार आपस में सिंगल व कई बार डबल्स खेलने लगे थे| सुमन को आने के बाद यह बड़ा नागगंवार लगा अपने पति को उससे दूर रहने की हिदायत दी| पर आते जाते मिसेज राव से मुलाकात हो जाती थी अतः जब दीक्षा आसपास न हो वह उससे बातचीत भी कर लेता था, दोनों को एक साथ देख लेने पर घर में अशांति हो जाती थी| यह एमपी या मनिंदर का दूसरा प्रसंग रिकॉर्ड में आ गया. इसमें दो राय नहीं थी कि एम पी को मिसेज राव काफी अच्छी लगती थी, शायद यही सुमन ने भांप लिया हो, उस की आँखों में दूरबीन थी कि नहीं पर निगाह बहुत पैनी थी इसमें बिलकुल शक नहीं था| महिलाओं के सिक्सथ सेंस भी पुरूषों से कहें तेज होती ही है| सुमन ने एक दिन उसे साफ़ साफ़ कह दिया कि उसे पता है कि मना करने के बावजूद वह अभी भी उस से चोरी चोरी बात करता रहता है जो उसे बर्दाश्त नहीं है|
कुछ दिनों बाद श्रीमती राव और उसके दोनों बच्चे उस स्टेशन से कहीं और चले गए थे तथा यह मामला रफादफा हो गया था| फिर कोई पच्चीस साल तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जिस से दाम्पत्य जीवन में गड़बड़ हुई हो| खूब मजे से जिंदगी चल गई थी, और चल रही थी| बच्चे छोटे से बड़े हो गए अच्छी डिग्री ले कर एक सेटेल हो गया था दूसरा होने वाला था| रिटायर हो कर राजधानी दिल्ली की द्वारका सब सिटी आ डेरा जमा लिया था|
अब तक जो हुआ यह तो छोटी छोटे आंधी थी, बड़े तूफ़ान का आगाज़ तो कर्नल सोलंकी से मिलने के बाद ही हुआ, जब एम पी और दीक्षा संपर्क में आ गए|
आपस में दोनों में पुरानी बातें हुई, दीक्षा को उसके बारे में काफी पता था पर एमपी को दीक्षा के बारे नहीं, उसकी शादी के बारे में बात चली तो दीक्षा के बारे पूछा तो उसने बताया कि वह जयपुर में सेटल है, दो बच्चों की माँ है एक बेटा एक बेटी| साथ में सोलंकी ने दीक्षा का मोबाइल नंबर भी एम पी को दे दिया| फिर कुछ सोच कर सोलंकी ने उसको फ़ोन ही मिला दिया और फ़ोन एम पी को दे दिया उधर से ‘हेलो’ की आवाज़ आई, एमपी चुप रहा, फिर शैतानी भरे अंदाज़ से आवाज़ आई, “जीजा जी, क्या मामला है, आज फिर जीजी से कुछ झमेला हो गया क्या?” एमपी ने शालीनता से कहा मैं सोलंकी नहीं उनका मित्र मनिंदर बोल रहा हूं|”
एक दम पहचानते हुए, अपने मजाकिए स्वर में कहा,“ कहिये महामहिम, किस देश से बोल रहे हैं?” उसे सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने वर्ष बाद भी आवाज को इतना जल्दी पहिचान लिया था|
“एक दम दिल्ली से सोलंकी के पास से” मनिंदर ने कहा, वह एमपी को हमेशा फर्स्ट नाम से पुकारती रही थी|
“आप कैसी हो? आपने कैसे एक दम पहचान लिया? और मैं कब से महा महिम बन गया हूं|”
“अपना नंबर भेजो और जीजू को फ़ोन दो|” उत्तर में थोडा गुस्सा था शायद सोलंकी के लिये होगा| उसे अपने जीजा की यह हरकत ठीक नहीं लगी थी|
मनिंदर ने वैसा ही किया सोलंकी को फ़ोन पकड़ा दिया और वे दोनों जीजा साली काफी बात करते रहे शायद अपने जीजा की हरकत ठीक न लगी हो और अपना रोष प्रगट किया हो| वह बात सुन नहीं पा रहा था क्योंकि सोलंकी अलग जगह ले जाकर बात कर रहा था|
बातचीत के बाद सोलंकी ने एम पी का नंबर उसे भेज दिया और उसे दीक्षा का नंबर उसे पहले दे ही दिया था| मुलाकात के बाद दोनों रिटायर्ड कर्नल अपने अपने स्थान चले गए| एम पी अपने वसंत कुञ्ज के फ्लैट में और सोलंकी धौला कुआँ के मेस के रूम में, वह देहरादून में सेटल हुआ था और यहां कुछ दिनों के लिये किसी काम से आया था| उसके दो बेटियां थी दोनों की शादी हो चुकी थी दोनों ही मुंबई में सेटल थी|
अगले दिन मनिंदर फ़ोन का इंतजार करता रहा पर नहीं आया, शाम को उसने एक मेसेज भेजा “क्या वह बात कर सकता है?”
दूसरी तरफ से तुरंत फ़ोन आया दीक्षा भी जैसे पहले से इंतजार में हो वह बस हंसे जा रही थी| बाद जब संयत हुई तो बोली “सबसे पहले ‘आप आप’ मत करो में छोटी हूं|” फिर गंभीरता से मनिंदर को बताया कि वह हमेशा उसे याद करती रही कभी नहीं भूली, पता करती रही कि कब तुम्हारी शादी हुई, बच्चे हुई, पोस्टिंग का भी पता चलता रहा कब नागालैंड थे कब कश्मीर, विदेश में मिलिट्री अटेची हो कर चले गए थे, जब उसे पीवीएसएम मैडल मिला उसे ख़ुशी हुई थी, फिर चुप होकर बताया कि तक़रीबन तक़रीबन खुशी ख़ुशी उसका जीवन भी चल रहा है, उसको उसके जीजा सोलंकी और कई पुराने लोगों से ही मनिंदर के बारे में पता चलता रहता था| उसने बताया कि सच में वह शादी नहीं करना चाह्त्ते थी बहुत वर्ष तक की भी नहीं थी, पर आख़िरकार बाद में शादी गले पड़ ही तो गयी जिसे ढो रही हूँ|
इस तरह की बातें हुई| मनिंदर को बात करना अच्छा लगा बहुत सी पुरानी बातें याद आयी| पर यह भी ध्यान आया कि उसका पत्र किताब में पाकर सुमन ने उसका क्या हाल बनाया था? दोबारा उस चक्कर में इस बड़ी उम्र में पड़ना नहीं चाहता था| बड़ी दुविधा में रहा, मन कहता बात कर ले बुद्धि कहती नहीं| उसका फ़ोन कभी भी आ जाता था कभी ई-मेल आ जाती थी, मनिंदर कम से कम लिख कर ज़बाब दे देता था, वह पहले भी बेबाक रहती थी और अभी भी सीरियस नहीं थी, मनिंदर पहले भी कुछ संकोची था अब अपने घर के बॉस का भय भी रहता था कि उसे पता लगने पर क्या हो सकता था? उसने मनिंदर को कहा कि वह उससे मिलने जयपुर आ जाए पर मनिंदर ने कहा यह संभव नहीं है और उसके पति को अच्छा नहीं लगेगा| उसने बताया कि उसका पति बिज़नेस में है, अच्छा मालदार है, और उस से पांच साल छोटा और सात इंच लम्बा है, बहुत ओपन माइंडेड है, वह तो कभी भी शादी करना ही नहीं चाहती थी 33 साल की उम्र में बस सर पर पड़ गयी| शादी करनी होती तो उसको कभी मना नहीं करती, कभी नाराज़ नहीं करती, उसके माता पिता ने उस समय खूब समझाने की कोशिश भी की थी, यह भी कहा कि अभी तय कर लो एक डेढ़ साल जब फ्रांस से आओ तब शादी हो जायेगी| पर उसका तो कभी भी शादी में मन नहीं था न अब है| बस वह चाहती है कि उस के बेटी कि जल्दी शादी हो जाए और वह सन्यास ले ले और किसी आश्रम में रहे| शादी में कही भी मन नहीं था न अब है|
उसने अपनी बेटी के बारे में यह बताया कि उसे उसने कोडईकनाल के इंटरनेशनल स्कूल में पढाया है और आजकल वह ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन आयरलैंड में फाइनल सेमेस्टर कर रही है, आजकल सेमेस्टर ब्रेक में आई हुई है| उसने एक मेल में अपना व बेटी का फोटो भी शेयर किया| देखने में उसकी बेटी काफी सुन्दर और सुसंस्कृत लगी| बातों में उसने भी मनिंदर के परिवार के बारे पूछा उसने भी उनके बारे में बताया और जब यह जाना कि उसका छोटा बेटा भी इंग्लैंड में जाने वाला है और खूब अच्छा है| पहले एमबीए करना चाहता था अब लन्दन में बार्कलेज बैंक में अच्छा ऑफर मिल गया है वहां जा रहा है| दोनों के मन में आया होगा कि, पुरानी मित्रता शायद रिश्तेदारी में फलीभूत हो जाए तो कैसा रहेगा| पर सुमन की क्या प्रतिक्रिया होगी? यही मनिंदर को पता नहीं था, इस लिये वह धीरे धीरे चलना सोच रहा था, पर दीक्षा ने उसे ज़ल्दी करने की सोचा हो क्योंकि बेटी जल्दी लौटने वाली थी|
इन्ही दिनों एक दिन दीक्षा का फ़ोन आया कि वे इंडिया हेबिटेट सेंटर, लोधी रोड में आये हुए हैं अगर मनिंदर भी वहां आ जाये तो मिल लेंगे| एमपी सिंह फैक्ट्री ऑफिस में था, उसका मिलने का तो मन था पर भय था कि बात पता होने पर सुमन बड़ी अपसेट होगी, बेचारी इतनी ईमानदार व निष्कपट है, उसे अँधेरे में रखना पाप होगा, छिपाने में उसे भांपने में देर नहीं लगेगी, वैसे उसके बिना तो बात आगे बढ़ेगी ही नहीं| पर अपने मिलने के लोभ का संवरण नहीं कर सका तथा ड्राईवर के साथ पहुंच कर बताई हुई जगह मिले, पूरा परिवार था, दीक्षा देखने में काफी अलग लगी बस लगातार हंसे जा रही थी, उसका पति छह फिट तीन इंच का बेहद लम्बा, यह उसके सामने बिलकुल पिद्दी सी, पर बातचीत में उस पर पूरी तरह से हावी रहती थी|देखने से लगता कि बेमेल शादी हुई है उसका पति अपने बिजनस के सिलसिले में किसी अफसर से मिलने आया हुआ था, केवल दो तीन मिनट के बाद चला गया, उसकी बेटी अपनी माँ से लम्बी और खूब सुन्दर व सुशील लगी| मनिंदर ने उन दोनों से काफी देर लम्बी बात की| उसने अपने बेटे के बारे में बताया कि उसे बार्कलेज के लन्दन में सर्विस मिला हुआ है तथा उसन यहीं ज्वाइन भी दे दी है| शायद वह चाह रही थी कि वह इन्हें घर आने का निमंत्रण दे, पर कर्नल ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहता था पहले सुमन को बताना और तैयार करना था| बड़ी असमंजस की स्थिति थी, पर होता वही है जो राम रची राखा|
सुमन ने बिना दीक्षा का जिक्र किये, बगैर यह बताये कि वह मिल आया है, सिर्फ उसकी बेटी समिधा की पढाई के बारे में सुमन को बताया वह अच्छी जगह से पढ़ कर आयरलैंड में एम ऐ फाइनल ईयर में है, लैपटॉप पर फोटो दिखाया तो उसे बात ठीक लगी| सुमन अपने बेटे की शादी इच्छुक तो थी| धीरे धीरे मनिंदर ने सावधानी बरतते जैसे ही यह बताया की वह पुरानी जानकार दीक्षा की बेटी है, सुमन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया, बेहद उत्तेजित हो गयी, और पता नहीं कहाँ दबा ज्वालामुखी अचानक फट गया आग उगलने लगा| पूरी बात सही सही बताने पर कैसे बात शुरू हुई कैसे मुलाकात हुई, गुस्सा बढ़ता बढ़ता ही गया, मेल भी दिखानी पड़ी, चुपचाप मिलकर आना उसे बिलकुल भी बर्दास्त नहीं हो रहा था| इसमें उसे यह साजिस दिखाई दे रही थी कि दोनों मिल कर बच्चों के बहाने अपना चक्कर चला रहें हैं| दीक्षा के बारे में उसकी राय पहले से बहुत ख़राब थी अब तो और भी ज्यादा खराब लगी, उसे वह षड्यंत्रकारी लगी| गुस्से में आकर सुमन ने घर का सामान फेंका, पटका और कर्नल को अपने बेड रूम से बाहर निकाल कर अपना बेडरूम बंद कर लिया, कर्नल ने नेगेटिव प्रतिक्रिया की उम्मीद तो की थी पर इतना बड़ा तांडव होगा वह उसकी कल्पना के बाहर था| दरवाजा खोलने के लिये अनुनय विनय की, पर नहीं खुलना था नहीं खुला| उसे डर लगने लगा था कि कहीं कुछ न कर बैठे, बहुत देर तक दरवाजा नहीं खुला तो कर्नल ने कहा वह दरवाज़ा तोड़ रहा है फिर दरवाजे पर जोर से धक्के मारे तब जाकर दरवाजा खोल दिया गया, फिर से उसका क्रॉस एग्जामिनेशन शुरू हुआ, इतने जूते तो कभी उसके सीओ से भी उसे नहीं पड़े थे| अगर आर्मी में भी उसका कोर्ट मार्शल होता वह भी गजर के कोर्ट मार्शल से आसान होता| उस रात कर्नल एमपी सिंह का जो कोर्ट मार्शल चल रहा था उस में जितने भी आरोप लगे सर झुका कर, ‘प्लीड गिल्टी’ हुए और उसे लगता रहा कि वह अपराधी ही नहीं बहुत संगीन अपराधी है| उसे पहली सजा हुई की मोबाइल कांफिस्केट किया जाता है,
सुमन का पहला चार्ज था जिसमें सवाल भी साथ था
“उस नालायक औरत से तुमने फ़ोन पर किसलिये संपर्क साधा, क्या ज़रूरत पडी थी?”
उत्तर में बताया कि उसने नहीं बल्कि कर्नल सोलंकी ने मिला कर दिया था”|यह सफाई नहीं मानी गयी, जरूर उससे पूछा गया होगा, सब मर्द ऐसे ही होते हैं झूठ बोलने में माहिर होते हैं|
चलो एक बार मान भी लिया जाए कि एक बार बात की, पर इतनें दिनों से चुपचाप, गुपचुप क्यों चलता रहा है, साफ़ है दोनों अपना चक्कर चला रहे थे, यहाँ तक उन्हें दिल्ली बुलाकर मिल आये और उसे अभी तक हवा भी नहीं| दोबारा से फिर रोना धोना, सामान फैकना शुरू हो गया|बोलती रही अगर वह भी ऐसा करे तो उसे कैसा लगेगा? अपने और अपने घर वालों के लिये उसने क्या क्या किया, उसे याद है? अपने दोनों के बच्चों को किसने पाला ,किसने पढाया? सुख दुःख में किसने साथ दिया? कहाँ थी वह चुड़ैल जब वह बीमार हो कर मरणासन्न था? कर्नल के पास कोई दलील न थी, कोई वकील नहीं था, बस सर झुकाए सुनता जा रहा था तथा मन ही मन अपने को घोर अपराधी भी मान चुका था|
इस सब में रात के दो बज गए, जो जो बात मनिंदर को सुनने को मिली कि एहसान फरामोश है, विश्वास के काबिल नहीं है, पता नहीं कितने अपराध चुपचाप किये होंगे,पता नहीं कहाँ कहाँ के पुराने किस्से, उसके एहसानों का कच्चा चिटठा, सामने रख दिया, इतना खतरनाक वातावरण हो गया था कि उसकी सिट्टीबिट्टी गुम हो गयी थी| अगले दिन सवेरे उसने फ़ोन मिला कर पहले दीक्षा के पति को फ़ोन कर उसके बीवी की ‘हरकतों’ के बारे में एक साँस में बताया, फिर दीक्षा की ऐसी मौखिक धुनाई की, उसे दूसरों का घर तोड़ने वाली बताया, चरित्रहीन बताया, वह भी कम नहीं थी वह भी खूब चिल्लाई उल्टा सीधा बोला यह अन्ताक्षरी चलती रही, इधर मनिंदर और उधर दीक्षा का पति ने दोनों को रोकने की असफल कोशिश करते रहे| दोनों महिलायें बुरी तरह से लड़ रही थी कोई किसी से कम नहीं थी, गाँव के कहावत याद आ रही थी, ‘धोबन से क्या तेलन घाट, इसका मोगरा उस ली लाट’
फिर सुमन ने ही अपनी बात सुना कर, एक दम से फोन काट दिया| वह बुरी तरह हांफ रही थी, गुस्से से तमतमा रही थी| अचानक उसकी तबीअत काफी ख़राब होना शुरू हो गयी थी, अपने पड़ोस के मित्र व बड़े अनुभवी डॉक्टर ब्रिगेडियर कौल को फ़ोन कर बुलाया कि सुमन की तबीअत अचानक बहुत ख़राब हो गयी है| डॉक्टर ने नब्ज़ देखी सब कुछ देखा, बी पी 185/1OO निकला, नब्ज़ भी 95 चल रही थी, वह अत्यंत उत्तेजित थी| ओठ फद्फदा रहे थे, उन्होंने उसे शांत करने के लिये एक गोली खिलाई, एक काम्पोज़ का इंजेक्शन लगाया, जिससे धीरे धीरे वह सो गयी, दो अढाई घंटे बाद उसे थोडा सा अधनींद में ही जूस पिलाया, सिरहाने बैठ कर कर्नल ने घंटों उसके सिर को दबाते रहे, वह बीच बीच में वह बडबडा रही थी| बड़ी अबोध लग रही थी| जब सुमन की आंख खुली उसने देख कर कर्नल के दोनों हाथों को अपने सर से हटा कर नरमी से पकड़ कर अपने गालों पर रखवा लिया, कुछ नहीं बोली| अचम्भे की बात थी वह अपने आप को बेहद कमजोर व असहाय महसूस कर रही थी| दिन का खाना बाज़ार से लाया, उसे हल्दी का दूध पिलाया, दो बार चाय बना का र प्लाय्यी
डाक्टर शाम को स्वयं आये, फिर देख कर बोले अब सब ठीक है, बीपी नार्मल से भी कम था नब्ज़ भी धीरे से चल रही थी|
घर से बाहर निकल कर डॉक्टर ने अपने मित्र कर्नल को बताया कि उनके विचार से सुमन को सीरियस पेनिक अटैक हुआ था, बड़ा सावधान रहने की ज़रूरत है| अभी कुछ दिन अवसाद की गोली खाती रहें फिर धीरे धीरे पहले कम करें फिर एक दिन छोड़ कर एक दिन फिर ही बंद करें, अगर यह अटैक बार बार होने लगा तो स्थिति बिगड़ जायेगी| डॉक्टर जाने के बाद कर्नल अपने घर वापिस आये, चाय बना कर लाये तथा दोनों ने शांति के साथ पी, जो घर में भूकंप का तूफ़ान आया था आकर चला गया था, पर जो तोड़ फोड़ कर गया था अब दोनों उसे संभालने में लगे थे| तूफ़ान के बाद की शांति थी, दोनों को पता था कि कमियों के बावजूद दोनों का एक दूसरे के बिना गुज़ारा नहीं था, यही तो दांपत्य जीवन की मधुरता व सुन्दरता है|
कर्नल एमपी सिंह सोच रहे थे कि पुरुष सिर्फ शारीरिक रूप से महिलाओं से ताकतवर हैं, तर्क देने में, भावनात्मक रूप से, तथा अन्य सब तरह से महिलायें पुरुषों से ज्यादा ताकतवर हैं, जब उनका कोर्ट मार्शल हो रहा था, उनको कुछ भी नहीं सूझ रहा था और सुमन उस पर पूरी तरह से भारी पड़ रही थी| इस युद्ध क्षेत्र में वह बुरी तरह से पराजित हुआ था पर अंत में उसे तसल्ली भी थी, जो हुआ अच्छा हुआ|
अगले दिन डॉक्टर ने भी कुछ ऐसे ही बात बताई| कर्नल ने जब उनसे पूछा कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि गलती उसकी मानी गयी थी, डांट भी उसे ही पर पड़ी, भला बुरा उसे कहा गया, वह भी बहुत डिप्रेस महसूस कर रहा था, पर पेनिक अटैक सुमन को हुआ? उसने सजा, अगर यह सजा ही थी तो कर्नल के बदले सुमन ने अपने अपने ऊपर क्यों ली?
डॉक्टर हंस कर बोले, सुना होगा ‘त्रिया चरितं पुरुषस्य भाग्यम, देवो ना जानाति कुतो मनुष्य:| भई कर्नल! स्त्री को आज तक कोई नहीं समझ पाया है न आगे समझ पायेगा|
मशहूर कोस्मोलोजिस्ट स्टीफन हॉकिंग , जिन्हें ब्रह्माण्ड के रहस्यों का विशद ज्ञान है, ने भी माना था कि स्त्री को वे कभी नहीं समझ पाए, यही बात घुमा फिरा कर महान वैज्ञानिक कोईआइंस्टीन ने भी महिलाओं के बारे में मानी थी।
इसी तरह की एक कहावत गाँव देहात में भी प्रचलित है, “त्रिया चरित जाने नहीं कोय, खसम मार के सत्ती होय”|
कोर्ट मार्शल के बाद कर्नल एम पी सिंह या मनिंदर को अब जाकर यह ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ था कि अपने घर के साक्षात् ब्रह्म को पहचानो, पत्नी को परमेश्वर मानो| उसे स्नेह, चाहिए, विश्वास चाहिए, वर्ना वह क्या जनरल क्या कर्नल सबको टाइगर से गीदड़ बना सकती है|