Vibhagiye janch urf mare gaye gulfam in Hindi Fiction Stories by Devendra Kumar books and stories PDF | विभागीय जाँच उर्फ़ मारे गए गुलफाम

Featured Books
Categories
Share

विभागीय जाँच उर्फ़ मारे गए गुलफाम

बात पुरानी है पर काफी वर्ष के बाद भी शेखर सिंह को ऐसे याद आती है जैसे बस कल की ही हो| शेखर सिंह रिटायर्ड अधीक्षक अभियंता या सुपरिन्टेन्डेइंग इंजिनियर थे| उन्होंने दिल्ली के सफ़दर जंग डेवलपमेंट एरिया के उषा निकेतन में एक चार बेड रूम का फ्लैट बुक किया था और किश्तों में उसका भुगतान करते रहे थे तथा रिटायरमेंट से दो साल पूर्व उन्हें मिल भी गया था उन्होंने वह अच्छे किराए पर चढ़ा रखा था| काफी आराम से उनकी जिन्दगी की गाडी चल रही थी| एक बेटा और एक बेटी थे दोनों की शादी हो चुकी थी| बेटा राहुल यूएसए के कैलीफोर्निया में आईटी इंजीनियर है उसकी पत्नी भी आई टी इंजीनियर है, बहू दक्षिण भारत की है और शादी से पहले भी दोनों आई.आई.टी. बैंगलोर में सहपाठी थे| एक दूसरे को जानते थे इसलिये दोनों परिवार से शादी की थी| बेटे राहुल के दो छोटे बच्चे थे, हर साल सपरिवार चक्कर लगा जाते थे| बड़ी बेटी और दामाद डॉक्टर थे और दोनों ही गुडगाँव के मेदान्ता-द मेडिसिटी अस्पताल में कार्यरत हैं|

दोनों पतिपत्नी गाजियाबाद नगर में अपने बनाये दिल्ली वाले मकान के किराए पेंशन में आराम से अपनी रिटायर्ड जिंदगी गुज़ार रहे थे| अपने मकान में एक छोटा सर्वेंट क्वार्टर बना लिया था जिसमे एक नौकर और उसकी पत्नी रहते हैं| दो मंजिल के मकान में उपरी मंजिल में एक किरायेदार रहता है| पेंशन और किराये से इतनी आमदनी है कि उनका खर्चा खूब मजे से निकाल कर आराम से थोडा बच भी जाता है| किसी पर निर्भर नहीं थे परिवार में सब कुछ खूब ठीक चल रहा था|

एक दिन सवेरे वे चाय सुडकते हिंदी के नवभारत टाइम्स अखबार चाट रहे थे, उसके तीसरे पेज पर एक छोटी खबर बहुत बड़ी लगी और जब अन्दर का नाम पढ़ा तो उन्हें दुःख के स्थान पर बड़ी प्रसन्नता हो रही थी| खबर थी कि उनके पुराने सहयोगी पंचानन डे के ऊपर सीबीआई के छापे में कोई डेढ़ करोड़ नगदी, सोने के भारी मात्र में जवाहरात और बेनामी प्रॉपर्टी के कागजात| इस पंचानन डे ने उसके साथ बड़ा धोखा किया था बड़ी पीड़ा पहुंचाई थी| यह दुखती रग अखबार ने फिर से शेखर को फिर याद दिला दी और पुराना ज़ख्म फिर से हरा कर गयी|

कई बार जिस घटना को हम भूलना चाहते हैं वह अक्सर बार बार याद आ ही आ जाती रहती है| शेखर सिंह ने अखबार में पूरे प्रसंग को फिर दूसरी बार पूरे ध्यान से पढ़ा| यह उन्ही के विभाग के उनके पुराने सहयोगी पंचानन डे के आय से अधिक सम्पति रहने का मामला था| सीबीआई ने अपने रेड में पांच करोड़ छप्पन लाख के नगद नोट छह बेनामी घर, दुकान, प्लाट, लगभग दो करोड़ के फिक्स्ड डिपाजिट उसकी पत्नी के नाम, लगभग 5 करोड़ से अधिक के म्यूच्यूअल फण्ड और शेयर| ज्यादातर सम्पति सेवा निवृति के अंतिम पांच साल में खरीदी गई थी, उसमें भी पिछले वर्ष उसके रिटायर होने से एक साल पहले बहुत ही अधिक| सीबीआई को उनके पास से बहुत से और भी संदिग्ध डॉक्यूमेंट मिले उनकी जांच पड़ताल हो रही थी| एक टीवी चैनल ने इस खबर को बहुत अधिक नमक मिर्च लगा कर दिखाया| संवाददाता दाता अपने किसी विश्वस्त सूत्र ने संवाददाता को यह संदेह प्रगट किया कि उसके ऑफिस के ही किसी नाखुश स्टाफ ने ही पंचानन डे के बारे में सीबीआई को बताया था व कुछ बड़े खरीद की फोटोकॉपी दी थी वर्ना उन्हें क्या पड़ी थी इस सब की| अगले कुछ दिन तक खबर चलती रही और शेखर सिंह पढ़ते रहे और अपने पत्नी को भी बताते रहे| उन्हें अपने पुराने दिन सिनेमा की रील की तरह याद आ रहे थे| एक टीवी चैनल इसमें कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखा रहा था,अपनी तरफ से नमक मिर्च लगा कर पेश कर रहा था| इसने दिखाया कैसे गिरफ्तारी के समय काला चश्मा लगाये अपनी कोहनी से मुंह छिपाने की कोशिश करते वह पुलिस के साथ चल रहा था|  

दरअसल शेखर सिंह ने पंचानन डे से केवल 2 वर्ष पहले ही अपनी नौकरी ज्वाइन की थी, दोनों हे बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आये थे, पंचानन डे के पिता निमाई चंद्र डे कलकत्ता पुलिस में कांस्टेबल थे तथा लगभग सारी नौकरी में बस केवल एक पदऊपर हेड कांस्टेबल पद पहुँच कर रिटायर हुए थे| उनकी ड्यूटी रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ के इलाके में बरसों तक रही थी और उन्होंने पंचानन को शिक्षा के लिये आर के मिशन के स्कूल में दाखिल करा लिया था जहाँ उसे 12वी तक की शिक्षा अच्छी और सस्ती दोनों मिल गयी फिर उन्हें बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज शिबपुर हावड़ा में दाखिला मिल गया और फिर सिविल इंजीनियरिंग से बी.ई. की उपाधि प्राप्त कर ली| यह परिवार में बड़ा काम हुआ था, पंचानन डे के पिता निमाई चन्द्र डे की नेक कमाई का पुरस्कार ही तो था, जिन्होंने कमर पर सरकारी बेल्ट और घर में पेट पर कम कमाई की पेट पट्टी बांध कर यह बड़ा काम सम्पन्न कराया था| बी.ई. करते ही पंचानन ने अपने पिता द्वारा ढूंढ कर लाई एक पालीटेक्निक में डिप्लोमा क्लास पढ़ाने का काम किया| यह सुविधाजनक था, घर रह कर सब कुछ हो जाता था,पर वेतन कम था आगे जाने की भी सम्भावना भी बहुत कम थी इसलिए पंचानन डे को जैसे ही सीपीडब्लूडी में मौका मिला, पहली को छोड़ कर वहां ज्वाइन कर लिया था| इस तरह से पंचानन डे शेखर सिंह का एक जूनियर सहयोगी बन गया| शेखर सिंह ने उसे दिल्ली में पैर जमाने के लिये काफी मदद की थी तथा डे भी शेखर सिंह को पूरा आदर करता, सम्मान देता रहता था| दोनों की आदतों में भारी विरोधावास भी था उसके बावजूद डे उन्हें अपना ‘फ्रेंड, फिलोस्फर, गाइड’ कहता तथा मानता था बड़े भाई का सा सम्मान देता तथा जब घर पर आता उन के तथा उनकी पत्नी के पैर छूता तथा ‘बोदि’ कह कर बेहद शिष्टता से पेश आता|  

शेखर सिंह का परिवार भी साधारण था पर घर में उनके पिता की नौकरी के अलावा गाँव में उनकी अच्छी खेती की जमीन भी थी जिससे खाने पीने का सामान व बटाई के पैसे आते थे| वे हमेशा मेधावी छात्र रहे तथा उन्होंने मशहूर रूडकी यूनिवर्सिटी जो अब आईआईटी रूडकी कहलाने लगा है सिविल इंजीनियरिंग में बी.ई. की उपाधि ले कर पहले वर्ष ही में सीपीडब्लूडी में सहायक इंजिनियर का पद प्राप्त कर लिया था| मेहनती और ईमानदारी से कार्य करने वाले शेखर सिंह का अपने विभाग में अच्छा नाम था| पर उसमें एक कमी भी थी कि वह विभाग के एक बड़े वर्ग के प्रैक्टिकल नहीं था अर्थात कांट्रेक्टर या ठेकेदारों के कामों में या उनके माल में कोई कमी होने पर कुछ ‘ले दे कर’ बिल न पास करता न आगे पास होने के लिये भेजता था| दूसरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का निवासी होने के कारण उसकी भाषा में थोडा अक्खडपन ज़रूर था और साफगोई थी, लाग-लपेट बिलकुल नहीं| इस आदत से बहुत से अधिकारी उसे खूब पसंद करते थे पर बहुत से उसे ‘इनकन्वेनिएन्ट’ या असुविधाजनक भी मानते थे तथा दस्तूरी साहेब कहते थे| दूसरी तरफ अभी बाद में आये पंचानन डे अपनी विनम्रता तथा मुंह पर प्रशंसा कर अपने सीनियर को खुश करने का हर प्रयत्न करता रहता था| प्रशंसा तीन लोक में किसे अच्छी नहीं लगती| अतः पंचानन डे काम से नहीं चापलूसी के बल पर उपर के सीनियर अफसरों ज्यादा पसंद आने लगा था, ठेकेदारों को पसंद आने लगा था पर दूसरे कारणों से| 

कोई दस वर्ष दोनों सहायक इंजिनियर रहे फिर बारी बारी आने पर दोनों एग्जीक्यूटिव इंजिनियर बन गए- पहले शेखर सिंह| इस पद वे बहुत से स्वतंत्र निर्णय ले सकते थे काफी खुद मुख्त्यार या स्वतंत्र थे| उनका काम बिलकुल साफ-सुथरा था| ठेकेदार लोग अपना कच्चा काम उनसे कुछ ले देकर या गिफ्ट लेकर नहीं करा सकते थे| उधर छुट भय्या पंचानन ने महकमें में कमाई के साधन सीख लिये थे| पर अकेले नहीं होते थे तथा ‘ऊपर’ भी सेवा करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी| ज्यादा प्रैक्टिकल थे, अगर ऊपर का बॉस सेवा चाहता था करते थे परन्तु अगर कोई बॉस कायदे क़ानून से काम करने वाला होता, तो फिर यह भी पूरी ईमानदारी का प्रदर्शन करते थे| अनुकूलन या अडाप्टाबिलिटी का नमूना अर्थात जैसा माहौल उसी के अनुसार बदल जाना ही सबसे अच्छी नीति है ही| अब जब वे एग्जीक्यूटिव बन गए तब तो उनके ऊपर दवाब भी बिलकुल कम हो गया था| नीचे का भी ध्यान ऊपर का भी ध्यान नीचे का भी ध्यान रखते और अपनी चापलूसी व बड़े साहब लोगों की ज़रुरत और विशेष मौकों का भी पूरा ख्याल रखते थे| दोनों शेखर सिंह व पंचानन डे अपनी अपनी कार्यप्रणाली में कामयाब ही थे| ऐसा नहीं था कि वे शेखर सिंह की इज्जत नहीं करते थे, उन्हें बड़े भाई का सम्मान अगर मन से नहीं तो दिखावे के तौर पर पूरा करते थे| नए साल पर जन्म दिन पर हमेशा सबसे पहले बधाई देने में आगे रहते थे| चाहे मन न मिलता हो, तौर तरीकों में अंतर हो फिर भी दोनों में मित्र भाव था|

दोनों सहकर्मियों के दो दो संतान थी, शेखर सिंह के एक बेटा और एक बेटी तथा पंचानन डे के दोनों पुत्रियाँ| दोनों ही के बच्चे पढने लिखने में अच्छे थे तथा सब की शिक्षा अच्छे स्कूलों में हुई थी| शेखर सिंह की शादी पच्चीस वर्ष की उम्र हुई थी उनके बच्चे भी जल्दी हो गए थे, जबकी पंचानन ने देर में शादी की और बच्चे भी थोडी देर से हुए थे| इसलिए इनके बच्चों की उम्र में काफी अंतर था| जब तक पंचानन डे की बड़ी बेटी ने 10वीं की परीक्षा पास की तब तक शेखर सिंह के बेटे ने आई आई टी बंगलोर से इंजीनियरिंग पूरी कर ली थी तथा वह अमेरिका जाने के लिये तैयारी कर रहा था| बेटी को लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली में दाखिला मिल चुका था| इस तरह फॅमिली फ्रंट पर शेखर सिंह काफी आगे रहे थे| उन दिनों पी चिंदम्बरम भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री थे, उनके मंत्रालय ने मेरिट-कम-सीनियरटी से प्रमोशन के लिये एक सर्कुलर निकाला| सिद्धांत तो अच्छा था, कि प्रमोशन में मेरिट या योग्यता को भी ध्यान में रखा जाए, पर इस महकमें के एक सिरफिरे सेक्शन अफसर ओ पी रस्तोगी ने आँख बंद कर डीपीसी के लिये अपने आप सिर्फ एक शब्द को पकड़ कर की पिछली पांच रिपोर्ट में वह तीन बार है या नहीं बना कर एक लिस्ट तैयार कर प्रस्तुत की| वह शब्द था ‘आउटस्टैंडिंग’या ‘असाधारण’| जैसे की मंत्रालयी बाबूओं को इंजीनियरिंग योग्यता, कार्य आदि से क्या ले देना उन्होंने तो आँख मूँद कर कागज़ का पेट भरना होता है सो लिस्ट उसी तरह से तैयार की गयी थी| शेखर सिंह व् उस की तरह के अन्य ज्यादा जिम्मेदारी का काम सँभालने वाले तो अपने कार्य से जाने जाते थे| उन्होंने इस पर गौर नहीं किया पर पंचानन को तो शक था कि उसे तो ज्यदा ज़िम्मेदारी की ड्यूटी न देकर साधारण समझा जाता है पर वे अपने सीनियर्स की सेवक करके अच्छी रिपोर्ट के लिये बेशर्मी से गिडगिडाते रहते थे और अच्छी ले ही लेते थे| शेखर सिंह और उनकी तरह के अन्य योग्य एग्जीक्यूटिव इंजिनियर किसी के आगे गिडगिडाना अपनी शान के खिलाफ समझते थे|

चोर की दाढ़ी में तिनका तो रहता ही है, पंचानन ने अपने हित में समझा कि काम सुनिश्चित करने के लिये गधे को भी बाप बनाने में क्या हर्जा है रस्तोगी के घर भी जाकर मिठाई और गिफ्ट देना ठीक समझा और उसे ध्यान रखने का अनुरोध किया| और रस्तोगी ने प्रसन्न हो कार उसे आश्वासन भी दे दिया| रस्तोगी तो एक साल के अन्दर रिटायर होने वाला था उसे इस तरह का सम्मान अच्छा लगा था| पंचानन यह इशारा भी कर गया की वह प्रमोशन आने पर उनकी सेवा भी करेगा|  

जिस दिन प्रमोशन की लिस्ट आई डिपार्टमेंट में हल्ला मच गया| यह एक अनोखी डीपीसी थी, शेखर सिंह सपने में भी सोच नहीं सकते थे की उन्हें सुपरसीड भी होना पड़ सकता है, वह भी कुछ ऐसे जूनियर से जो काम न मेहनत और ईमानदारी से करते थे और ना ही उनमें ऐसी कोई विशेष योग्यता थी| अब तक सर्विस के 24 वर्ष हो चुके थे उन्हें किसी के पास जाकर खुशामद करना बिलकुल भी गवारां नहीं था| उन्होंने अपने जैसे अन्य एग्जीक्यूटिव इंजीनीयरों की तरह एक शिकायत पत्र लिखा की उनके साथ अन्याय हुआ है तथा उसे ठीक किया जाए| क्योंकि विभाग को पता लग गया था कि गलती हो चुकी है और अब वे पुरानी डीपीसी को निरस्त नहीं करा सकते| अतः उन्होंने एक नई डीपीसी की जिसमें कुछ और लोगों को जो छुट चुके थे उन्हें भी प्रमोट कर दिया जिनमें शेखर सिंह भी थे| थोडी राहत ज़रूर मिली पर पूरा निराकरण नहीं हुआ| यह तो फर्स्टएड हुई तीन महीने पहले वाले सीनियर हो गए| सारे सीनियर मानते रहे गलत हुआ पर करा किसी ने कुछ नहीं किया सिर्फ सहानुभूति दिखाते रहे| हार कर झक मार कर अपनी जेब से कन्ट्रिब्यूशन कर केंन्द्रीय ट्रिब्यूनल में गए, उन्होंने ने भी डिपार्टमेंट से ही कमेन्ट मांगे| कुछ होना हुआना नही था, वैसे भी ट्रिब्यूनल की एक मेम्बर लाभान्वित अफसर की पत्नी थी| फिर उन्होंने हाई कोर्ट में रिट फाइल की वहां से भी कुछ नहीं हो पाया| एक गोलमोल सा जजमेंट दिया जिस के अनुसार पूरा केस महकमे को रिव्यु करना था| क्लियर कट या स्पीकिंग जजमेंट नहीं था| बस मामला ऐसे ही अधर में लटका रहा ना जीते ना हारे| कुछ मित्रों ने सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी जिसमें सीनियर अधिवक्ता की काफी मोटी फीस थी| शेखर सिंह को आशा नहीं थी कुछ नतीजा निकलेगा अब सर्विस भी अधिक नहीं बची थी पर साथ देने के लिये जो भी पैसा अंशदान करना था वह उन्होंने सहर्ष दे दिया| उनकी बेटी राधिका डॉक्टर बन गयी थी, और उसने अपने मेडिकल कॉलेज के सहपाठी से उसकी शादी के लिये अपनी माँ से बता कर इच्छा जताई| उस मित्र डॉक्टर से और उनके परिवार से मिल कर शेखर सिंह ने उनकी सगाई कर दी पर शादी उनके पीजी पूरी होने पर की जायेगी| 

परन्तु शुरू में पढाई में अच्छा चलने के बाद पंचानन डे की दोनों बेटियां सुष्मिता और सुजाता, थोडा बिगड़ने लगी थी| फैशन,पार्टीज, डांस पार्टियां, पिकनिक तथा मोबाइल फ़ोन और इंस्ट्राग्राम और महेंगे से महंगे वस्त्र| पैसों की तो कभी कमी रहती ही नहीं थी| अतः पढाई में साधारण रहती जा रही थी हालाकि उनका दिमाग खूब तेज़ था| बस मन में लापरवाही रहती थी, पैसे की खुली छूट और और माता पिता की तरफ से कोई कंटोल का अभाव| जैसे ही वे वयस्क हुई एक एक महंगा फ्लैट उनके पिता पंचानन डे ने दिल्ली की डिफेन्स कॉलोनी में उनके नाम से खरीद लिया था| यह सब करते करते उसने अपने स्वास्थ्य को भी काफी बिगाड़ लिया था या बिगड़ गया था| उसे ब्लड प्रेशर तथा डायबिटीज़ की गोलियां रोजाना खानी पड़ती थी| उसके बाल काफी उड़ गए थे इसलिये उसने अंग्रेजों की तरह का हट पहनना शुरू कर दिया था| कई लोगबाग हँसते और कहते सुने गए, ‘साले अंग्रेज़ चले गए पर अपनी औलाद छोड़ गए’| बात सही थी आज कल कौन अंग्रेजों की तरह के हेट पहनता है| वैसे भी हेट पहन कर नमूना ही तो लगता था|

एक बात मानने की थी वह अपने सीनियर रहे और उम्र में बड़े अफसरों को पूरा आदर देता था विशेष रूप से शेखर सिंह की जिन्होंने पहली बार उसके दिल्ली आने पर बहुत सहायता की थी| मिलने पर कुछ ऐसे बातचीत होती थी

पंचानन डे, “गुड मोर्निंग सर, आप कैसे हो, फेमली कैसी है?”

शेखर सिंह ,” डे साहेब सब ठीक हैं, मैं भी ठीक हूं, मैं अब कब तुम्हारा सर हूँ, अब तुम ही सीनियर हो सर हो|”

पंचानन डे खींसे निपोरते हुए,“ हें हें सर, आप भी कैसी बातें कर रहे हो? आप सीनियर थे, सीनियर हो, सीनियर रहोगे| मुझे आपका आशीर्वाद, ब्लेसिंग्स मिलते रहना चाहिए|”   

केवल शेखर सिंह से ही नहीं बाकी जिन सब को सुपरसीड किया उनसे भी ऐसे ही बात करता कई बार अपना माथा छू कर कहता, “सब यहाँ लिखा रहता है सर, आदमी के हाथ में कुछ नहीं है|” 

बंगाली बहुत अच्छे कलाकार होते हैं पर हमारे बंगले बाबू पंचनान डे तो अपनी सरकारी नौकरी में ड्रामेबाज़ थे मुंह पर कुछ बाद में कुछ, बस थोड़े मीठे शब्द, अपने लिये अलग से ठेकेदारों से सांठगांठ बाहर से ईमानदारी का ढोंग अपने उपरवालों को उनका हिस्सा और नीचे वालों को थोडी मनमानी की छूट ऊपर वाले खुश, नीचे वाले खुश, ठेकेदार खुश बीबी खुश, बेटियों की मौज और खुली छूट| बस कुढ़ते थे शेखर सिंह और उसके जैसे थोड़े अन्य लोग|  

शेखर सिंह ने तसल्ली कर ली थी, उसके अनुसार सबसे अच्छा ‘इन्वेस्टमेंट’ कोई कर सकता है वह है अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और रिटायरमेंट से पहले एक घर| यह उसने कर लिया था| रिटायरमेंट से पहले बच्चे सेटल हो गए थे दोनों की शादी कर दी थी और एक पौते के दादा भी बन गए थे उनकी तसल्ली थी|

शेखर सिंह के रिटायरमेंट से थोड़े से पहले पंचानन डे का प्रमोशन चीफ इंजिनियर की पोजीशन के लिए आ गया था| शेखर सिंह के लिये यह कोई उत्साहजनक बात कैसे हो सकती थी उनके मन में घुमड़-घुमड़ कर आ रहा था ज़नाब अहमद असलम अजमद का कलाम -  

वो तेरे नसीब की बारिश किसी और छत पर बरस गई,

दिले बेखबर मेरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा,

जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा|

 

एक दो दिन शेखर सिंह असहज रहे फिर यह समझ कर उसे जो मिल गया है उस के लिये ऊपर वाले ईश्वर का ईनाम है, इतनी सारी कृपा है उनको याद करें| वैसे भी अगर प्रमोशन हो भी जाता तो डेढ़ दो महीने ही तो अब बचे हैं| मन में पीड़ा थी पर जो चीज़ बस में नहीं है उस का क्या किया जा सकता है? उस के साथ के पुराने अफसर भी दुखी थे, उस एक अनूठी डीपीसी और सेक्शन ऑफिसर रस्तोगी को कोस रहे थे| रस्तोगी भगवान को प्यारा हो चुका था, उसकी बिगाड़ी कोई ठीक नहीं कर पाया, सरकार में बाबू की ऐसी ही चलती है,सुना गया है कि उसने प्रमोशन दिलाने के लिये बहुत से अफसरों से मोटी रिश्वत ले ली थी पंचानन ने भी दी थी| और उसके बॉस ने बिना ज्यादा गौर किये जो कुछ उसने एसीआर से संकलित कर सामने फाइल में लिखा था उस पर लिखा दिया “उसने स्वयं पूरी जाँच कर ली है “डेटा पूर्ण रूप से सही है” दर्ज कर फाइल आगे बढ़ा दी| और उस से कहर हो गया शेखर सिंह और उसके जैसे पीछे रह गए और डे जैसे जूनियर रस्तोगी कृपा से आगे बढ़ गए| गलती महसूस होने तक बात उनके हाथों से निकल गयी थी| एक अदना सा सेक्शन ऑफिसर चीफ इंजिनियर, सचिव और यूपीएससी पर भारी पड़ा था| भारी मन से शेखर सिंह रिटायर हो गए और अपने घर संसार, बेटे पोता पोती और बेटी नाति आदि में प्रसन्न थे| अभी रिटायर हुए तीन महीने ही हुए थे पता लगा रस्तोगी अचानक कार्डियक अटैक से भगवान को प्यारे हो गए| दुःख की बात थी पर जाने बहुत से लोगों दुख नहीं हुआ और “किये की सजा मिली है” या “ईमानदार लोगों की बददुआयें लगी हैं|” जैसे उद्गारों को सुनने के लिये मिला|  

यह सब तो ठीक था परन्तु शेखर सिंह ठीक था पर एक दिन एक पीला सरकारी लिफाफा उसे मिला जैसे पढ कर बड़े सोच में पड़ गए थे| पूरी 36 वर्ष की निष्कलुष सर्विस में किसी ने उनकी नेक सर्विस या ईमानदारी या नियम से न चलने पर एक भी आरोप क्या किसी ने शक नहीं किया था और उस पर आरोप था कि उसके कार्य काल में उसके एक डिवीज़न में कराई क्लास फ़ोर्स भर्ती में अनियमितताएं हुई हैं जिसकी उसने ठीक से पड़ताल लिये बिना रिजल्ट को नोटिस पर लगा दिया था| जहाँ तक उसका संबंध था उसका इसमें कुछ लेना देना नहीं था| यह एक शो कोज नोटिस था क्यों ना उस पर इस के करवाई की जाए| पढ़ कर शेखर सिंह को रात भर निंब नहीं आई| उसे मालूम था जिस एग्जीक्यूटिव इंजिनियर और मेम्बेर्स ने यह भर्ती की थी उन्होंने सारा काम बड़े ढ़ंग से किया था तथा वह अफसर अभी जिम्मेंदारी से काम करने वाला जाता है| बोर्ड ने यह काम किया था उसके ऑफिस ने तो नियमानुसार रिजल्ट भर्ती बोर्ड से लेकर ऊपर बटाया था| शायद उन्हें यह अखरा कि पारदर्शिता दिखाने को लिखा था पर लिख कर बोर्ड पर नहीं जबानी होना चाहिए था| शायद उनका सोचना था कि कुछ बड़े लोगों के सिफारिश वाले एडजस्ट कर दिए थे पर कुछ प्रभावित हुए उम्मीदवारों को निराशा हुई वे पहले खुद पेश हुए फिर महकमें को लिख कर दिया, जब बात नहीं बनी तो उन्होंने फोटो खींच कर बने हुए कागज़ की कॉपी के साथ हाई कोर्ट में पेश कर दी, हाई कोर्ट ने फाइल को समन भेज कर निरीक्षण के लिये मंगाया और भर्ती को निरस्त कर दिया और ज़िम्मेदार लोगों पर कारवाई करने को कहा| अब कुम्हार की कुम्हारी पर पर नहीं बसी गधे की पिटाई वाली कहावत चरितार्थ हो गयी उन्होंने बोर्ड के मेम्बरों को और साथ में उनके बॉस शेखर को भी लपेट लिया| और एक विभागीय जांच कर कुछ लोगों को थोडी बहुत सजा देकर कोर्ट आदेश का अनुपालन करने के लिये सारी बिसात बिछाई थी| इस के पीछे किस का हाथ था कि ठीक लोगों कोही उल्टा फंसा दिया जाए न और असली वाले बस बच जाएँ| यह पता किसी को नहीं था| उन्हें तो कोई बलि का बकरा चाहिए था |

शेखर सिंह को शो कॉज नोटिस का ज़बाब 15 दिन में देना था| वे उस पेपर को अपनी जेब में रखे दिन रात परेशानी में थे| कई बार अपना ज़बाब लिखा पर संतुष्टी नहीं हुई थी| उनकी पत्नी भांप ग यी कुछ गड़बड़ है, उसने बीपी नाप तो नार्मल से कोइ 20 अंक ज्यादा का निकला उसके ज्यादा जोर देने पर क्या परेशानी का कारण है उन्होंने जेब से निकाल कर दिखा दिया| उसने कहा, “क्यों डर रहे हो बस इतनी सी बात है, इसे फाड़ कर फेंक दो तुम अब रिटायर हो चुके हो| किसी के ज़बाब देह नहीं हो|”

उन्होंने समझाया “’यह शो कॉज विभागीय जांच की पहली स्टेज है इसे हल्के में नहीं ले सकते, रिटायर आदमियों को भी सजा हो सकती है, पेंशन भी प्रभावित् हो सकती है|” तो फिर यही समझ में आयाकी अपने पुराने मित्र आर.डी.शर्मा, जो पहले लीगल ब्रांच देखते थे, से बात की जाए, मिला जाये| मिलने पर उन्होंने ज़बाब बनवा दिया| उनकी सलाह थी कि कोई अच्छा सर्विस मैटर्स जानने वाला लीगल असिस्टेंस भी तैयार रखें क्योंकि यह आर्डर निकालने वालों कि नीयत ठीक नहीं लग रही है| बात से शेखर सिंह थोडा और गंभीर सोच में पड़ गए| अब इतनी इज्जत से लम्बी सर्विस के बाद यह तो बड़ी हिमाकत का काम होता जा रहा था| खैर इन्क्वारी होने की संभावना की बात लेकर उन्होंने अपने पुराने मित्र रामेश्वर दास शुक्ला से बात की और उनकी मदद से उत्तर लिख कर भेज दिया, साथ ही उन्होंने सम्बद्ध अधिकारी से मिले उन्होंने ने बताया कि उनका उत्तर अभी फाइल पर उन्हें नहीं पुट ‘अप’ हुआ है, देख लेंगे| इन्क्वारी शायद इसी स्टेज पर केस बंद हो जाए पर चली भी तो कुछ नहीं होना चाहिए| ये मामले तो सरकार में चलते रहते हैं| यह अधिकारी इंजिनियर न हो कर मंत्रालयिक सर्विस से था| उस के लिये साधारण बात हो सकती है पर शेखर सिंह के लिये तो नहीं थी|

शेखर सिंह वापिस आ गये, धीरे धीरे दो महीने होने को थे वे सोच रहे थे कि शायद मामला ड्राप हो जाए पर नहीं हुआ और उन्हें दो अलग अलग पत्र मिले, एक में इन्क्वारी का जिसमे “भर्ती में लापरवाही का चार्ज” बनाया था, साथ ही इन्क्वारी ऑफिसर के लिये नाम था ‘श्री पंचानन डे चीएफ़ इंजिनियर” पढ़ कर धक्का लगा और थोडी देर के लिये शेखर सिंह आँख बंद कर गुमसुम से बैठे रह गए| दूसरा लिफाफा पंचनान डे से था जिसमें उन्हें दो सप्ताह बाद इन्क्वारी के लिये आना था| उनके कई मित्रों ने उन्हें पंचानन डे को इन्क्वारी अफसर मंज़ूर न करने के लिये कहा कि डे विश्वसनीय नहीं है पर उन्हें आशा थी कि कम से कम ज़बरदस्ती तो चार्ज प्रूव नहीं करेगा| इन्क्वारी हुई उसमें लगा कि चार्ज बिलकुल बी प्रूव नहीं हो रहा है| पर उसके मित्र ठीक कह रहे थे पंचानन डे तो किसी का नहीं था| उसने तो अपने से ऊपर बैठे हुए जो उसका लाभ या नुक्सान कर सकते थे उनकी करनी थी चार्ज को प्रूव दिखाया| दिल्ली के बार बार धक्के खाते शेखर सिंह खूब परेशान हुए अपने गाड़ी से जाते उनका खून, पेट्रोल और पैसा ज़लते थे| बाद में उन्होंने मेट्रो और बस का प्रयोग कर दिया था जिसे वे ‘बी.एम.डब्लू’ कहा करते थे अर्थात ‘बस मेट्रो वाकिंग’ उसमें टाइम अधिक लगता था पर ट्रैफिक में गाडी चलाने से ज्यादा सुविधाजनक, पैसे भी कम लगते थे|

पता चला कि हज़रत पंचानन डे ने तो हद की नालायकी की है, फाइंडिंग के अनुसार कोई अपराध ही नहीं था पर शायद अपनी नौकरी बनाने के चक्कर में यह किया| यह सूचना उसके एक पुराने साथी ने उन्हें गुप्त रूप से दी| यह सब जान कर शेखर बहुत अपसेट हो गए कि कहीं उनकी पेंशन ही ना रोक दी जाए| इतना अधिक सोचते रहे कि उनको डिप्रेशन हो गया, उनकी पत्नी परेशान, उनकी डॉक्टर बेटी जान कर आई तथा अपने एक साथी डॉक्टर जो इस क्षेत्र के स्पेशलिस्ट से मिलवाया जिसने उन्हें कुछ अवसाद की गोलियां भी थी तथा बताया कि कोई भी चिंता प्रॉब्लम को ठीक नहीं करती बढ़ाती है| जब वे बाहर निकल रहे थे उन्हें सीपीडब्लूडी के पुराने उनके बॉस गुरबचन सिंह अचानक मिले, वे अभी एक बड़ा प्रोजेक्ट संभाल रहे थे, और केंद्रीय सरकार ने उन्हें एक्सटेंशन देकर रखा हुआ था| उन्हे केस के बारे में पूरी तो नहीं कुछ जानकारी थी| उन्होंने आश्वासन दिया कि वे इस केस को देख लेंगे और अन्याय नहीं होने देंगे| उन्हें केंद्रीय निर्माण मंत्री के सलाहकार के पद पर नियुक्त किया गया था पर वे अपने प्रोजेक्ट का चार्ज देकर एक सप्ताह में वापिस आयेंगें| सलाह दी कि शेखर सिंह अपने सारे पेपर लाकर उनको दिखाये| कई बार ईश्वर मुसीबत से पार निकलने के लिये मदद करने के लिये अपने नुमाएंदे को मिला देता है| वही हुआ था शेखर सिंह के साथ, आते ही उन्होंने पहले शेखर सिंह के पेपर देखे| एक सप्ताह के बाद ही शेखर सिंह को एक पीला लिफाफ आया| आशंकित मन से उसे खोला पर पीले सरकारी लिफ़ाफ़े हमेशा ख़राब खबर नहीं लाते| तीन लाइन में लिखा था “विभागीय जांच में सभी बिन्दूओं को ध्यान में रखते हुए कम्पीटेंट ऑथोरिटी इस निष्कर्ष पर पहुँची की श्री शेखर सिंह दोष मुक्त हैं अतः उन पर लगाया चार्ज निरस्त किया जाता है|” शेखर सिंह को कभी भी पढ़ी हुई इबारत इतनी सुन्दर कभी नहीं लगी थी|        

एक मित्र का मामला तो अंत में सुलझा था वह बात तो पुरानी हो गयी थी| पर दूसरे का नहीं मसला जो अखबार में पढ़ा था वह अजीब मोड़ खा गया था| डे मोशाय का सी.बी.आई. ने पकड़ने के बाद जेल में तो अच्छा सबक सिखाया, जिससे आरामपसंद पंचानन को जेल कस्टडी का एक एक दिन काटना बड़ा मुश्किल हुआ| उनकी सेहत बहुत ख़राब हो गयी थी उन्हें शुगर और हार्ट की प्रॉब्लम तो थी ही गाल-ब्लैडर में स्टोन भी बहुत कर रहा था, मानसिक तौर पर भी टूट चुके थे| आय से ज्यादा आमदनी का मामला तो ठीक था पर उनके खिलाफ कोई सबूत सीबीआई पेश नहीं कर पाई न भी एक भी ऐसा गवाह जो यह कहता कि उसने कोई रिश्वत दी हो| इसलिये पकड़ा कैश आदि तो ज़ब्त हो गया पर सजा मामूली ही हो पाई थी| पर यह कहानी लम्बी चलती पर एक झटके में अचानक ख़त्म हो गयी| डे मोशाय ने मानसिक अवसाद, और शरीर के दर्दों व् पीड़ा से तंग आकर अपने कमरे को बंद कर अपने पंखे से लटक कर जान दे दी| डे की बड़ी बेटी सुष्मिता ने ही अपने पिता को अग्नि दी| छोटी बेटी ने तो अलग काण्ड किया हुआ था जो किसी को पता उसी दिन लगा| वह एक मुस्लिम लड़के के साथ ओमान भाग गयी थी और यह भी शयद पंचानन डे के जान लेने के एक कारण में से हो| पंचानन डे ने कहाँ से गरीबी में से निकल कर कितनी ऊँचाई कितनी अमीरी हासिल की और अंत में सब धरा का धरा रह गया|   

शेखर सिंह को आत्मिक दुःख हो रहा था जब वे अंत्येष्टि के बाद श्मशान घाट से धीरे धीरे अपनी गाडी और ड्राईवर की तरफ लपके जा रहे थे अन्दर से बहुत दुखी आंसू को कोहनी से पूंछते हुए|