हवलदार वरियाम सिंह, सी.एच.एम.
(उर्फ़ बांग्लदेश मुक्ति का एक अनजाना योद्धा)
-देवेन्द्र कुमार
आजकल बांग्ला देश में जबरदस्त राजनैतिक अस्थिरता की उठक बैठक चल रही है, बंगबंधु शैख़ मुजीबुर्रहमान की बेटी और वहां की प्रधानमंत्री शैख़ हसीना को इस्तीफ़ा देकर अपना देश छोड़ कर भारत में सिर छिपाना पड़ रहा है| वहां का मुहम्मद यूनुस का अंतरिम प्रशासन शेख हसीना की जान के पीछे पड़ा है, उसकी वापसी की मांग कर रहा है|
जनता की याददाश्त इतनी कमज़ोर क्यों हो जाती है? क्या वहां के लोग 1971 के मुक्ति युद्ध को बिल्कल भूल चुके है? भूल गए वहां के करोडो नागरिकों पर हुए नृशंस नरसंहार, अत्याचार, बलात्कार, लूटपाट को| भारत द्वारा उसे दिए प्राणदान को, भारत की हर प्रकार की सहायता को, करोड़ों को दी शरण को| वहां के अत्याचारी पाकिस्तानी सेना के निरंकुश अत्याचार को| अपने बंगबंधू शेख मुजीबुर्रहमान को|
भारतीय सेना ने पाक सेना को घुटने टिकवा कर जिस तरह आत्मसमर्पण करवाया था उसकी मिसाल दुनिया के इतिहास में नहीं मिलती है| उसके लिये तत्कालीन भारत की सेना के प्रमुख जनरल मानेकशॉ से लगा कर हवलदार वरियाम सिंह जैसे लाखों साधारण सैनिकों का समर्पित योगदान रहा था| आज कल जो वहां चल रहा जिस तरह से हिन्दू अल्प संख्यकों के साथ हो रहा है, तथा जिस तरह की उठक-पटक चल रही है, भारी आर्थिक संकट होता जा रहा है, कुछ पता नहीं वहां कब क्या हो जायेगा, क्या पता कब वहां की फौज तख्ता पलट दे? वहां का इतिहास भी कुछ ऐसा ही तख्ते पलटने का है| हमारी कहानी तो पुराने समय की है, और हवलदार वरियाम सिंह की और उसके जैसे अनेकों अनेक भारतीयों की है जिन्होंने भी इस देश को मुक्ति दिलवाई थी|
हमारा किस्सा कोता तो मुख्यतया वरियाम सिंह को केंद्र बना कर, उस समय की आँखों देखी, आप बीती, जग बीती को सब के सामने रखना मात्र है| वह तो मेरे लिये तो बड़ा हीरो है वर्ना कहानी लिखने वाले की कहानी तब वहीँ खत्म हो जाती|
वरियाम सिंह भले ही उनके गाँव में पडौस के लोगों के लिये एक मामूली या साधारण मानव जीव रहा हों| बासट साल पहले रिटायर वे अब तक सारी उम्र ‘अन संग-हीरो’ रह कर जिन्दगी की यात्रा कभी की पूरी कर दूसरे लोक में जा चुके होंगे| मैं उन्हें भुलाए भूल नहीं पाता हूँ| मेरे विचार से हीरो तो हमेशा हीरो ही होते हैं, बड़े हों या छोटे|
एक बिलकुल सा साधारण सा समझा जाने वाले, मात्र चार जमात पढे हवलदार हवo वरियाम सिंह, सीएचएम इ/25 बटाo सी.आर.पी.एफ. ने मेरे साथ कुल दो अढाई साल नौकरी की थी| वरियाम सिंह काफी गुणी था, गुणों के लिये ज्यादा पढाई या ऊँचा पद बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं होता| जो मैंने देखा हवo वरियाम सिंह बहुत चौकस, तेज सोच व तीव्र का बुद्धि का धनी था, काम में निष्ठा, फ़ोर्स के कार्य में महारत थी| लगभग अनपढ़ होने के कारण अपनी जिम्मेदारी के हिसाब किताब अपने नीचे के सिपाहियों से लिखवा लिया करता था|
जब अकबर अनपढ़ होते भी इतना बड़ा बादशाह हो सकता है तो वह कम लिखा पढ़ा हवलदार मेजर तो हो सकता था-अंग्रेजों के सार्जेंट मेजर के बराबर, अपने पिता के बराबर जिसे उस पड़ के लिये गाँव में सम्मान मिलता था| उसकी भी यह मनोकामना पूरी हो गयी थी| उस ने मेरे साथ केवल लगभग अढाई साल ही नौकरी की थी पर बहुत ख़ास समय| कहने को तो मैं उसका कंपनी कमांडर था, रैंक और पद में कई लेवल ऊपर, पर नौकरी के प्रैक्टिकल अनुभव तथा अन्य बहुत से गुण तथा जीवन के बहुत सारे पाठ अनायास मैंने उसी से सीखे थे जो लम्बी नौकरी में काम आये थे| फ़ोर्स में असली काम ग्राउंड का है लिखापढ़ी बाद की चीज़ है| उसने कई मौकों पर मेरी जान भी बचाई थी, नहीं तो आधी शताब्दी के बाद भी उसको मैं क्यों याद रखता?
उसके बारे में लिखते समय समझ मैं नहीं आ रहा है कि किस्सा कहाँ से शुरू करूं? चलिए सबसे पहले शुरुवात से थोडा बाद की घटनाओं से ही बताना आरम्भ करता हूँ, वही ठीक रहेगा|
सन 1971 की कहानी है, स्थान अपने देश के सुदूर उत्तर-पूर्व में स्थित शहर अगरतला-तत्कालीन केंद्र शासित त्रिपुरा की राजधानी क्षेत्र की है| यह तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान व अबके बांग्लादेश के बॉर्डर से लगा हुआ है | वहां का एअरपोर्ट भी मुख्य शहरसे काफी बाहर है| वहीँ 25 बटालियन की ई कम्पनी में हमारी तैनाती थी|
दरअसल 1947 में देश का बंटवारा दुर्भाग्यपूर्ण और बड़ी अजीब ढ़ंग से हुआ था, सीमा रेखायें नक़्शे पर खिंची गयी थी| केवल अगरतला ही नहीं पूरा का पूरा त्रिपुरा ही नक़्शे में देखें तो तब के पूर्वी पाकिस्तान और अब के बांग्ला देश में तीन तरफ से घुसा हुआ है| यह इधर भी हुआ था और पश्चिमी पकिस्तान की सीमा के लिये भी ऐसा ही है| देश का विभाज़न ही अप्राकृतिक ढ़ंग, और ज़ल्दबाज़ी में किया गया था| नक़्शे पर विभाजन की रेडक्लिफ रेखा खीचने वाला अंग्रेज़ रेडक्लिफ लगता है सचमुच में शायद पागल था-- काफी कार्टोग्राफिक लाइन एक्सरसाइज की गयी थी|
विभाजन ने भाषा. कल्चर, खानपान, रीति रिवाज़ के ऊपर धर्म को प्राथमिकता दी थी| उसका दुष्परिणाम सदियों तक पीढियां भुगतती जायेंगी| देश का विभाजन ऐसी ही भयंकर दुर्घटना नहीं तो और क्या है?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरे शहर मुज़फ्फरनगर के कस्बे कैराने के रहने वाले शायर मुज़फ्फर नज्मी साहेब का एक बेहद मशहूर शेर आपने सुना होगा| उससे बेहतर तरीके से विभाजन की विभीषिका, सरहद के बंटवारे, लोगों की मुसीबतों और दुष्परिणाम को थोड़े से शब्दों में ढालना असंभव है| शेर है -
ये ज़ब्र भी देखा है तारीख की नज़रों नें, लम्हों ने खता की है सदियों ने सजा पाई|
चलिए आगे बढ़ते है, मेरे जीवन रक्षक हीरो वरियाम सिंह और सन 1971 काल-खंड में फिर पहुँच जाते हैं| अगरतला एअरपोर्ट सिक्यूरिटी में तैनात थी, हम दोनों की सी.आर.पी.ऍफ़ की 25 वीं बटालियन की ई कंपनी, जिसमे टोटल नफरी लगभग सवा सौ, उसी कंपनी का सी.एच.एम.या कंपनी हवलदार मेजर था वरियाम सिंह, वल्द हवo बलकार सिंह पिंड कोट-ई-शेखां, तहसील जीरा, ज़िला फिरोजपुर, पंजाब| उम्र चव्वन वर्ष कद 5 फीट 7 इंच, शरीर, गठीला चुस्त व फुर्तीला, दाढ़ी चिट्टी, वाला जट्ट सिख वरियाम सिंह, उसके पिता भी ब्रिटिश आर्मी में थे और पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भाग ले चुके थे| वरियाम भी दूसरे विश्व युद्ध से सन 1971 तक की लड़ाईयों का अनुभवी था| मैं पढ़ा लिखा अनुभव हीन था, वह लगभग अनपढ़ मगर अनुभव में मास्टर की डिग्री वाला| अतः अंधे लंगड़े की हमारी जोड़ी थी जो एक दूसरे के पूरक हो गए थे| वह आर्मी से दो फीते वाले नायक से रिटायर हो कर सीआरपीएफ में रिएम्प्लोयेड हो गया था, पर यहाँ वह अगले पद हवलदार के लिये लिखित परीक्षा में पास नहीं हो पाता था| जिसकी वजह से उसके नीचे वाले बहुत लोग हवलदार बन गए थे| पढाई के अलावा उसका बाकी काम बहुत अच्छा था|
1970 की एक ऐसी लिखित परीक्षा का एक्जामिनर मुझे नियुक्त किया गया था| और उसकी योग्यता व् लगन जानते हुए उसे मैंने जानबूझ उतीर्ण कर दिया था| सीनियर तो था ही सो तुरंत ही पहली वेकेंसी आते ही हवलदार बन गया था| मैंने एडडजूटेंट से अनुरोध कर अपनी कंपनी में ही पोस्ट करवा लिया था| फिर उसे हवलदार से हवलदार मेजर नियुक्त कर दिया था जो प्रमोशन न हो कर केवल स्पेशल अपॉइंटमेंट होता है, जिसमें उस समय 10 रुपये प्रति माह ज्यादा मिलते थे| सो इस तरह रिटायर होने से पहले उसकी हार्दिक मनोकामना पूरी हो गयी और कंपनी को मिल गया था एक बहुत योग्य अनुभवी सीएचएम, जो कंपनी के एक एक सदस्य को जानता था| शायद इस कृपादृष्टी के कारण वह मेरा बहुत ही ध्यान रखता होगा| यद्यपि मैंने उसके अनुभव और प्रैक्टिकल योग्यता व उपयुक्तता के कारण किया था|
एअरपोर्ट में हमारी कंपनी की जिम्मेदारी का इलाका काफी फैला हुआ था, आसपास का वातावरण धीरे धीरे काफी ख़राब होता जा रहा था| कभी पूरा एरिया बहुत ही शांत हुआ करता था| आसपास कोई बसावट नहीं थी, एक दो टिन की छत के मकान थे एक छोटा सा मार्किट भी था जो सिंगारबेल नामक बाड़ी या बस्ती कहें में था नाम था उषा बाज़ार| जो अगरतला एअरपोर्ट से एक डेढ़ किलोमीटर होगी|
वहीँ लगभग 700 मीटर बाईं तरफ अन्दर जाकर हमारी 25 वी बटाo सी.आर.पी.एफ. का हेड क्वार्टर था| एअरपोर्ट से दूसरी दिशा में लगभग चार किoमीo पर भी एक बस्ती नरसिंहगढ़ थी जहाँ सी.आर.पी.एफ. की एक दूसरी 38 वीं बटालियन तैनात थी| इस प्रकार यह एरिया बहुत अच्छी तरह से सरंक्षित था|
एअरपोर्ट से इंडियन एयरलाइन्स की केवल दो फ्लाइट अगरतला-कलकत्ता के बीच आती-जाती थी-एक सवेरे आकर घंटे भर बाद चली जाती थी, दूसरी दिन के दो बजे आकर दोपहर तीन बजे चली जाती| उसके बाद अगले दिन 10 बजे तक एअरपोर्ट पर कोई आवा जायी नहीं होती थी| एयरलाइन और एअरपोर्ट का स्टाफ भी सब नदारद हो जाते थे| इस रूट पर केवल छोटे फोकर फ्रेंडशिप एयरक्राफ्ट चलते थे जिसमें केवल 50 सीटें हुआ करती थी, एयरक्राफ्ट भी मात्र आधे घंटे में अगरतला से कलकत्ता पूर्वी पाकिस्तान के ऊपर से उड़ कर पहुंचा देते थे| एअरपोर्ट पर दो रनवे थे, एक पुराना एक नया, दोनों के बीच एक मेट ऑफिस और एक रडार के ऑफिस पास-पास थे| किसी भी समय लगभग 4-5 लोगों स्टाफ रहता था, मैन बिल्डिंग में हुआ करता था| बाकी एयर लाइन्स का और एअरपोर्ट का स्टाफ तीन बजे की फ्लाइट जाते ही सब-कुछ बंद कर नदारद हो जाते थे|
पर 1971 आरम्भ में पूर्वी पकिस्तान से वहां के कुछ बंगाली लोगबाग भाग भाग कर एअरपोर्ट के पास ही सडक के दोनों तरफ टेंट, त्रिपाल, टिन या फूंस की छत बना कर रहने लगे थे| यह सब पाक आर्मी के जुर्मों के कारण होने लगा था|
पाकिस्तान आर्मी वहां चल रहे आन्दोलन को बड़ी सख्ती से दबाने के लिये हत्या, लूटपाट और बलात्कार को हथियार बना रही थी| यहाँ इन बेचारों के पास न पानी, न नहाने धोने या शौच की कोई व्यवस्था थी| हर दिन यह बस्त्तियाँ बढ़ती जा रही थी, इससे गंदगी तथा दुर्गन्ध बढ़ती जा रही थी |छोटे मोटे अपराध भी होने लगे थे|
हमारी ई /25 कंपनी की तीन प्लाटूनें थी एक शुरू सडक के किनारे बने एयर क्राफ्ट के हेंगर में रहती थी वहां बहुत खुले खुले में रहते थे| दूसरी मध्य में एक बेरक में वहीँ अलग से ऊपर एक अच्छा कमरा था, जिसमें मैं रहता था| उसी की छत पर उन दिनों एअरपोर्ट रोटेटिंग बीकन घूमा करता था| और नजदीक ही नीचे एक बेरक के साथ एक अलग कमरे में रहते थे कम्पनी के सेकंड इन कमांड सूबेदार भगत सिंह| तीसरी प्लाटून रनवे ख़त्म होने से लगभग डेढ़ सौ गज पहले अलग बने शेड में रहती जो एक सब-इस्पेक्टर की कमांड में थी| एअरपोर्ट की ड्यूटी उस समय ज्यादा मुश्किल नहीं थी| केवल दिन ब दिन पूर्वी पाकिस्तान में ख़राब हालत होने के कारण हमारे इलाके से घुसपैठ रोकना तथा पाकिस्तानी ईपीआर(ईस्ट पाकिस्तान राइफल) या फौज के लिये भी चौकस रहने या जबाबी कारवाई था| कोई सुरक्षा यह हम इलाके में पट्रोल कर अपने कण्ट्रोल में कर रहे थे| पाकिस्तान के तरफ से एअरपोर्ट पर हवाई कारवाही के मद्देनज़र अपना और एअरपोर्ट की सुरक्षा का इंतजाम भी काफी महत्वपूर्ण काम हो गया था| एअरपोर्ट की बाकी ड्यूटी रूटीन थी जब सब एअरपोर्ट में होती है|
उन दिनों 1971 की फरवरी में हमारी बटालियन में आर्मी से नए सीओ(कमांडेंट) डेपुटेशन पर आये थे| वे एक सर्विंग कर्नल थे, नाम था लेफ्टिनेंट कर्नल राज शेखरन| वे हमारी फ़ोर्स सी.आर.पी.एफ के काम से बिलकुल अनभिज्ञ थे| इसलिये उनके साथ काम करने में सभी को थोडी परेशानी आ रही थी| उन्हें भी आरही होगी, क्योकि सीआरपीएफ एक्ट और रूल्स तथा मैन्युअल हैं जो आर्मी से अलग हैं| हमारे सेकंड-इन-कमांड बहुत अनुभवी नियमों के जानकार थे| वे उन्हें काफी समझाते रहते थे रूल्स बताते रहते थे, जहां तक हो सकता था कोई नियम की बड़ी गलती नहीं होने देते थे| उन दिनों की दूसरी बात थी कि हमारे इलाके में भारतीय सेना की दो यूनिट्स बाहर से आई यी| एक दिन हमारे सीओ ने मुझे बटालियन हेड क्वार्टर में बुला कर उनके सीओ से मिलवाया| दोनों ही नई बटाo इंफंट्री या पैदल सेना से थे| बाद में उनके यंग अफसरों से भी मेरी मित्रता हो गयी थी| मेरे सीओ ने मुझे हिदायत थी कि आर्मी अफसरों की विशेष रूप से सब तरह से मदद करनी है| चाहे वे रेक्की (टोह)या किसी भी उद्देश्य से एअरपोर्ट आयें|| उन्हें अपने एरिया की,एअरपोर्ट की जो भी जानकारी या सुविधा चाहिए, उनको मुहिय्या कराना है| उन्होंने ही मुझे उस बताया था कि त्रिपुरा में भारतीय सेना का कुछ नया मोबिलाइज़ेशन चल रहा है, उनके अनुमान के अनुसार भारत और पकिस्तान के बीच संबंधों के और भी बिगड़ने की संभावना से लड़ाई भी हो सकती थी|
आर्मी के एक दो वहां आने वाले अफसरों से मुझे काफी कुछ नया सीखने को मिल रहा था| उनके विभिन्न आर्म्स व अफसरों, उनके फील्ड हथियारों, तौर तरीकों के बारे में भी जानकारी मिल रही थी|
मुझे बटालियन की किताबों में एक उपयोगी पुस्तक मिली थी| इस से पता लगा था कि देश के बटवारे के समय पूर्वी पाकिस्तान को धर्म के आधार पर बना तो दिया गया था पर पश्चिमी पकिस्तान ने उन्हें अपना भाई कब माना हमेशा सौतेला जाना था? धीरे धीरे वह और पिछड़ता गया था| दूसरी नई बातें एअरपोर्ट के अफसरों से बात करते हुए उन्होंने बताई, कुछ लोकल अख़बार से पता लगती रहती थी जैसे वहां पश्चिमी पाकिस्तान उर्दू लादने से लोग बहुत नाखुश हैं| वे बंगला भाषा से बेहद लगाव रखते थे, व किसी भी तरह अपने ऊपर उर्दू लदवाना नहीं चाहते थे|
एक लेख के अनुसार 1970 आने तक पूर्वी पाक वाले खार खा चुके थे, दिसम्बर में उनके नेशनल असेंबली के चुनाव हुए थे, उन्होंने युवा नेता शैख़ मुजीबुर्रहमान की नेशनल अवामी पार्टी को भारी मत से जीत दिलाई और पश्चिमी विंग की पी.पी.पी.से बहुत ज्यादा नेशनल असेंबली की सीटें| शैख़ साहेब को वहां के मिलिट्री डिक्टेटर राष्ट्रपति जनo याह्या खां ने उन्हें प्रधान मंत्री नहीं बनाया| पहले बातचीत शुरू की, पीपीपी के महत्वाकांक्षी अध्यक्ष ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो भी प्रधानमंत्री के पद से कम पर तैयार नहीं हुए थे| मार्च 1971 तक कुछ फैसला नहीं हो पाया था मामला अधर में लटका रहा| नेशनल अवामी पार्टी में काफी बेचैनी बढ़ती जा रही थी| कुछ बातें बीबीसी के प्रसारणों से भी पता लगता था जिसको हर शाम सुनाने का चस्का लगा हुआ था| ट्रांजिस्टर ही सबसे बड़ा मनोरंज़न व दुनिया की जानकारी का एक मात्र साधन हमें उपलब्ध था|
सात मार्च 1971 के दिन तीस वर्ष के युवा नेता शेख़मुज़ीबुर्रहमान ने ढाका रेसकोर्स मैदान में भारी जनसमूह के जयजयकार ध्वनि के साथ साथ मुक्ति आन्दोलन और स्वतंत्रता की ऐतहासिक घोषणा की थी| मुझे याद है उस दिन जब यह हो रहा था, मैंने देखा था कि हमारे निकट एअरपोर्ट के मेट और रडार केंद्र ऑफिस के सभी कर्मचारी अपने दफ्तर से बाहर निकल कर एक झुण्ड बना कर
ट्रांजिस्टर से बड़ा जोशीला भाषण सुन रहे थे, और सुनते सुनते उतेजित हो कर ज़ोरदार तालियां पीटते जाते थे| एक दूसरे से गरम जोशी से हाथ मिलाते फिर सुनने लग जाते थे| मैंने मेट ऑफिस के दत्ता बाबू के पास जाकर पूछा भी था “क्या माज़रा है? किसका भाषण आप लोग सुन रहे हो? कौन जोशीले वक्ता हैं|
यह तो साफ़ था कि भाषण बांग्ला भाषा में है कोई बहुत जोश और उतेजित हो कर भाषण दे रहा था| पीछे से तालियाँ की गडगडाहट हो रही थी और नारे बाज़ी भी हो रही थी| एक तरह से रेडियो पर जन सभा की रनिंग कमेन्ट्री चल रही थी|
दत्ता मोशाय बुजुर्ग थे, अपने ऑफिस में सबसे सीनियर थे, आयु में मुझसे दोगुने तो अवश्य होंगे, लगभग पचास के आस पास उनके कोई संतान नहीं थी, पास में एअरपोर्ट कॉलोनी में सरकारी क्वार्टर में रहते थे| एक बार उन्होंने रविवार के दिन चाय के लिये बुलाया भी था| उनकी पत्नी बड़ी ममतामयी लगी थी, केवल बंगला भाषा जानती थी| अपने घर का बना सन्देश और चमचम खिलाया था| मैं दत्ता साहेब का काफ़ी आदर करता था|
दत्ता साहेब मुझे थोडा एक तरफ ले गए थे और मुझे बताया था “ढाका से ऐलान हो रहा है कि पूर्वी पाकिस्तान अब पश्चिम से अलग हो रहा है, मुक्ति आन्दोलन शुरू हो गया है स्वतंत्रता घोषित हो गयी है| अवामी पार्टी के युवा नेता शेख मुज़ीबुर्रहमान अब नूतन देश के प्रधान हो गए हैं |” एक बात और दत्ता जी ने बताई थी जिस का अर्थ मैं उस समय नहीं समझा था वह था,
“टू नेशन थ्योरी हेज़ फेल्ड”| बाद में समझा था कि वे पाकिस्तान के बाबा-ए-कौम कायदे आज़म मुहम्मद अली जिन्ना की कथन की बात कर रहे थे जिसकी जिद ने यह बंटवारे का भारी पाप किया था|
दत्ता मोशाय बात तो ज़रूर मुझसे कर रहे थे, पर उनके कान उधर रेडियो की तरफ ही लगे थे| सो मैंने अपना जाना ठीक समझा| और वे जल्दी ही अपने झुण्ड में पहुँच गये थे| तब तक त्रिपुरा में शांति थी| बस थोड़े ईस्ट पाकिस्तानी बंगाली हिन्दू शरण लेने के लिये वहां घुसते जा रहे थे|| वहां जालिम लेo जनरल टिक्का खान मिलिट्री गवर्नर था जिसे ‘बुचर ऑफ़ बलूचिस्तान’ या ‘बलूचिस्तान का कसाई’ कहा जाता था, वही काम वह पूर्वी पाकिस्तान में भी लोगों के साथ यही कर रहा था|
इस सात मार्च की फ्रीडम स्पीच दिन के बाद तो पूर्वी पकिस्तान के दमन का काला इतिहास इसी लेo जनरल टिक्का खां मिलिट्री गवर्नर द्वारा चलाये सैन्य अभियान ‘आपरेशन सर्च लाइट’ से शुरू हुआ था| आपरेशन सर्च लाइट के मुख्य टारगेट बुद्धिजीवी वर्ग था जिनकी बाकायदा लिस्ट बनाई गयी थी और ढूंढ ढूंढ कर मारा गया था, इस लिस्ट में प्रोफेसर, अध्यापक, जर्नलिस्ट, डॉक्टर, अधिवक्ता या वकील, जज आदि आदि विशेष रूप से हिन्दू या राष्ट्रवादी होने पर| जातीय सफाई या एथेनिक क्लेंज़िंग पर सबसे ज्यादा जोर रहा था| क्या क्या हुआ वह अब सारी दुनिया अच्छी तरह से जानती है| यह कहानी तो एक प्रत्यक्षदर्शी या ;आई विटनेस’ की है, उसने क्या देखा क्या सुना और भुगता था? वर्ना आप सोच सकते है कि इस विषय पर किताबे, फ़िल्में बहुत आ चुकी है फिर मैं किस खेत की मूली हूँ?|चलें जैसा वहां उन दिनों जीवन में चल रहा था, उसी मुद्दे पर फिर लौट| आता हूँ और अपनी अविस्मर्णीय अपनी बटालियन की डिनर पार्टी से शुरू करता हूँ|
मार्च माह के अंतिम शनिवार की बात है, मुझे बटालियन हेड कवाo से आदेश आया कि सुबह पीटी के पीरियड के बाद तुरंत बाद बटालियन में रिपोर्ट करूं, मैं आदेशानुसार वहां पहुँचने पर देखा कि अफसर मेस के बाहर शामियाने लग रहे हैं, एक गेट बनाया हुआ है, सीओ भी वहीँ मौजूद हैं और हेड क्वार्टर से टू आई सी, मेडिकल ऑफिसर और एड्जूटेंट, सूबेदार मेजर, जमादार एड्जूटेंट, बीएचएम,मेस हवलदार आदि सभी वहीँ एक सेमी सर्किल में खड़े उनकी हिदायतें ध्यान से सुन रहें हैं तथा अपने नोट पेड में नोट भी करते जा रहें हैं| हमें बताया गया कि उस शाम को मेस में एक बड़ी तथा महत्वपूर्ण पार्टी है, जिसमें त्रिपुरा के लेफ्टिनेंट गवर्नर ए एल डिआज़, चीफ सेक्रेटरी, आई.जी. त्रिपुरा समेत अन्य बड़े सिविल और मिलिट्री अफसर आ रहे हैं, उसी के अरेंजमेंट के लिये ब्रीफिंग चल रही थी| हिदायतें देने के बाद सिर्फ अफसरों की अलग ब्रीफिंग के लिये मेस में अन्दर गए जहाँ मेस सेक्रेटरी मेडिकल ऑफिसर पहले से पहुँच कर मेस स्टाफ के साथ मौजूद थे| वहां डिनर के मेनू, ड्रिंक्स, चाय, कॉफ़ी, गेस्ट लिस्ट आदि के बारे में बताया गया था| सबकी डयूटी निर्धारित की गयी थी, मुझे ड्रिंक्स की ड्यूटी दी गयी, यह अच्छी तरह जानते हुए कि मैं ड्रिंक्स नहीं करता और इससे परहेज़ करता हूँ| मैं चुप रहा, एड्जूटेंट ने सी ओ कहा भी ड्रिंक्स वे स्वयं या मेस सेक्रेटरी यह ड्यूटी कर लेंगे पर उन्होंने मुझे ही इस ड्यूटी दी| उनके अनुसार ड्रिंक्स करना और कराना फ़ोर्स में एक ज़रूरी ‘ओएलक्यू’ है-अर्थात ‘ऑफिसर लाइक क्वालिटी’ है, और मुझे उसे तुरंत ही सीखना जरूरी है| उन्होंने स्वयं नमूना करके बताया था कि मेस हवलदार किस तरह से ट्रे में ड्रिंक्स, सोडा और वाटर लेकर चलेगा, ड्रिंक्स ऑफर के लिये मुझे कैसे पूछना है आदि और उसी के अनुसार मेस हवलदार देता चलेगा, बस फिर दूसरी,तीसरी और बाद की हेल्पिंग का ध्यान मुझे रखना है, किस का गिलास ख़त्म होने वाला है आदि| मेस हवलदार पुराना अनुभवी था और इस काम में निपुण था| ट्रेनिंग में भी यह सब कुछ सिखाया था| गया तो था| यह भी अलावा कि उस दिन स्वयं उनकी पत्नी, बेटी और कोई पुराने मित्र कर्नल शाबेगसिंह भी सुबह की पहली फ्लाइट से पहुँचने वाले थे| उनका भी पूरा ख्याल रखना भी मुझे सौंपा गया था|
मैंने वापिस जाने से पहले जितने भी ड्रिंक्स जो शाम को दिए जाने वाले थे देख लिये थे नाम नोट भी कर लिये थे गेस्ट लिस्ट को भी गेस्ट्स की जानकारी संभव थी उनके नाम,पद, सीनियरटी समझ लिये थे| जैसे मख्य अतिथि ऐ एल डियाज़,आईसीएस, महाराष्ट्र केडर के ऑफिसर रह चुके थे, गोवा के रहने वाले थे| जो अब त्रिपुरा के 1969 से लेफ्टिनेंट गवर्नर थे, आई.जी. वी.के. कालिया आईपीएस तथा बीएसएफ डीआईजी समेत दो पदों पर थे, मैं उनसे पहले मिल भी चुका था| ऐसे ही चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी को भी पहचानता था जो कम उम्र के आई.ए.ए.एस. अधिकारी थे| और भी बहुत से सीनियर लोग थे मेरे एअरपोर्ट में होने के कारण उनसे से कई को जानता पहचानता था|
शाम हुई पार्टी में लगभग सभी लोग टाइम से आये ड्रिंक्स खोल दिए गए थे, चीफ गेस्ट थोडा 10 मिनट बाद आये उनके आगमन बंद बजने के धुन से सबको पता लग गया और लगभग सभी गेस्टों को हार्ड ड्रिंक सर्व हो चुकी थी, सीओ की पत्नी भी सभी महिलाओं का ध्यान रख रही थी| चीफ गेस्ट के थोडा सेटल होने के बाद में ड्रिल के अनुसार उनसे अंग्रेजी में सोडा या पानी के लिये पूछा उन्होंने सोडा कहा जो दे दिया गया था| फिर महामहिम एल.जी. की पत्नी श्रीमती डीयाज़ से पूछा
पहले उन्होंने अनिच्छा सी प्रगट की फिर कुछ सोच कर कहा, “ओके देन रेड वाइन इफ यू हेव इट|”
मेस हवलदार ने ‘येस’ कहा, तुरंत उसने साथ के मेस सिपाही से जल्दी से लाने के लिये कहा और रेड वाइन ग्लास में देते मैंने उनसे भी वही पूछा जो सबसे पूछता रहा था,
“मेडम, विद सोडा और वाटर”
कुछ उत्तर न आने पर मुझे लगा कि शायद मेडम को शोर में ठीक से सुनाई नहीं दिया लगता, दोबारा फिर जोर से पूछा, “मैडम, विद सोडा और वाटर” इस बार उंची आवाज में बहुतों को सुनी होगी, सुन कर मेरे सीओ लपक कर मेरे पास आये मुझे हटाया और मैडम की कुछ चिरोरी करने लगे थे ‘सॉरी सॉरी वैरी सॉरी मैडम”| तब भी मेरी समझ में नहीं आया मैंने सोचा इस मैडम को शायद ‘नीट’ पीने की आदत है| मुझे तो बाद में मेस हवलदार ने बताया कि वाइन में कुछ नहीं मिलाया जाता| मेरे से सीओ तो मुझ से खूब खफा हुये|
लेफ्टिनेंट गवर्नर साहेब ने उल्टा अपने पास बैठा कर मुझ से खूब आराम से बात की, मेरे बारे में, ड्यूटी के बारे में, एअरपोर्ट की सिक्यूरिटी और थ्रेट के बारे में पूछा मैंने उन्हें खुल कर बात की वे खूब प्रसन्न हुए लग रहे थे| उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में चल रही उथलपुथल की भी चर्चा की और मुझे उनसे सुनना बहुत अच्छा लगा था| सही बात है वास्तव में जो बड़े आदमी होते हैं वे बहुत सरल होते तथा विनम्र रहते हैं, विद्या ददाति विनयम’ वाला कथन उन पर खूब लागु था|
इसी पार्टी में उसी दिन आये कर्नल शाबेग सिंह से भी पहली बार मिला, वे कस कर दारु पी रहे थे| काफी सोबर व चुप थे, कम ही लोगों से मिल रहे थे, उन्होंने मुझे बताया था कि वे हमारी बटालियन ऑफिसर मेस कुछ समय रहेंगे व पूर्वी पाकिस्तान बॉर्डर के बारे में कुछ विशेष अध्ययन करने के लिये उन्हें आर्मी अथॉरिटीज द्वारा भेजा गया था|
फिर मुझे कभी भी कम से कम ड्रिंक्स की ड्यूटी करने के लिये नहीं बताया गया था| बाद में मेरे सहयोगी एपिसोड मेरे फ्लॉप शो को सुन कर खुश हुए और मेरी खूब दिनों तक मजाक भी बनाई थी| पर सीओ मेरे फ्लॉप शो से बहुत नाखुश थे और उन्हें मेरी दारू अज्ञानता पर अफ़सोस था, उसे ठीक करने की मुंह के अलावा लिखित में सलाह दी थी|
शाम को मैं कई बार हेड क्वार्टर में मेडिकल ऑफिसर के साथ बैडमिंटन खेलने आ जाता था, डॉक्टर साहेब मेरे हमउम्र थे, बड़े योग्य डॉक्टर और नेक इंसान भी, पर उनका बैडमिंटन का खेल काफी कमज़ोर था, सीओ बहुत अच्छा खेलते थे और हमेशा जीतना चाहते थे| जिस दिन मैं कभी उन्हें गलती से हरा देता या कहूँ अपने को हरवा नहीं पाता था, उन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगता था और मूड ख़राब हो जाता था| वे किसी न किसी बात में मुझे टोकते या अपने रेकेट या शटल की खराबी बताते| डॉक्टर ने भी यह बात नोटिस की थी और मुझे सलाह दी थी कि सलाम के लिये क्यों मियां को रुठाते हो आखिर में जानबूझ कर एक दो पॉइंट से हार जाया करूं| सीओ मद्रासी थे, जब तक वहां के महानगर का नाम मद्रास था न कि चेन्नई काले और थोड़े कुरूप क्रिस्चियन थे, उनकी कमर में दर्द भी रहता था, विशेष रूप से जब वे बैठते उठते| वे खेलते समय कमर की बेल्ट बांधते थे| उनकी पत्नी इलाहाबाद नगर से थी काफी लम्बी कद-काठी, साफ रंग की सुन्दर, भव्य व मिलनसार महिला थी| काफी बेमेल शादी थी बहुत अच्छे स्वभाव की थी< उनकी पुत्री अपनी माँ पर गयी थी सौम्य, सुन्दर, सभ्य और सुशील| निश्चित रूप से मुझे उनकी बेटी अच्छी लगती थी तथा वह मुझसे थोडा ज्यादा ही हिलने मिलने लगी थी , एक दो बार ड्राईवर और अपनी माँ के साथ मेरी कंपनी में भी आई थी| उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि बटालियन में कुछ अफवाह हो गयी कि सीओ बेप्टाइज करके मुझे क्रिस्चियन बनाकर अपनी बेटी से शादी करना चाहते थे| बस अफवाह से मेरी बड़ी मुसीबत हुई थी| चूंकि ईसाई ओपन सोसाइटी होती हैं इसलिये खुले होते हैं| पर आम फ़ोर्स के मेम्बर तो नहीं होते| माँ बेटी तो कुछ दिनों बाद चले जाने वाले थे मेरी मुसीबत यह सब इंकार करने में रहती थी|
सीओ के दो संतान हैं, बड़ा बेटा और छोटी बेटी जो माँ के साथ रहती थी और साथ आई हुई थी| दो एक दिन के बाद बेटी ने भी उनके बैडमिंटन खेलने के लिये साथ आना शुरू कर दिया वह भी काफी अच्छा खेलती थी और पिता के विरुद्ध खेल कर उन्ही की तरह जीतना चाहती थी कम से अपने पिता से|
मेस में एक दिन चाय के समय यूनिट के सभी अफसर जो बाहर दूर भे तैनात थे बुलाये गए थे, तब सीओ ने बातों बातों में मेरे दारू अज्ञान के बारे में सबको बताया, उनकी पत्नी ने तुरंत मेरे पक्ष में बोल कर उन्हें चुप करा दिया था | पूरी यूनिट में उस समय वे और उनकी बेटी दो ही महिलाएं थी| वे सब का ध्यान करती व ज़रूरत पड़ने पर अपने तर्कों से सीओ को अक्सर निरुत्तर करती, स्पष्ट था कि घर में उनकी चलती होगी| कई बार वे सीओ का भी खूब उपहास कर देती थी जिससे मन हे मन मुझे प्रसन्नता होती थी| एक दिन उन्होंने सीओ का अच्छा उपहास उड़ाते हुए बताया था कि क्यों उनको उठते बैठते समय हाथ से कमर सहारा देना पड़ता है, और आएं आएं कर ही उठते हैं| उन्होंने मजेदार किस्सा बताया था |उनके पति जब कैप्टेन थे तथा जाट रेजिमेंटल सेंटर बरेली में पोस्टेड थे, उनकी शादी कुछ ही वर्ष पहले हुई थी और एक बड़ा बेटा हुआ था| फिर सीओ की तरफ देखते बताया कि, ‘इनकी आदतें शुरू से ख़राब हैं वहां की घटना है, सीओ ने उन्हें रोकने की कोशिश भी पर उन्होंने दोबारा जारी रखा -
“रेजिमेंटल सेंटर में होली का अवसर था, जिसमें हर रैंक के परिवार शामिल थे, बरेली रेजिमेंटल की होली जोरशोर से कुछ अलग ढ़ंग से मनाई जाती है, जिसमें फाग खेलते हुए महिलाएं कपडे का कौड़ा गीला कर पुरुषो को मारती है जब उन पर वे रंग या गुलाल लगाते है| काफी लट्ठ मार होली के तरीके की, खूब मस्ती का होली खेलने का माहौल होता है और खेली जा रही थी| रसिक किस्म के जनाब कैप्टेन साहेब ने एक जाटनी सूबेदारनी के साथ गलत ढ़ंग से छेड़ा-खानी कर दी और जबाब में मज़बूत सूबेदारनी ने उनके इतनी कस कर इतने जोर से कोड़े जमाये कि जिन्दगी भर याद रहेंगे कभी भूल नहीं सकते| कई दिन तक चल नहीं पाए थे| तभी से इनके कमर का दर्द है, इलाज, सिकाई, पैन-किलर के बाद भी आज तक आयें-आयें करते हैं|”
सुन कर सब जोर जोर से हंस रहे थे, सीओ भी खिसिया कर खुद भी हंस रहे थे| तभी अचानक एअरपोर्ट की तरफ से फायरिंग और बर्स्ट फायरिंग चलने की आवाज आई और मुझे बिना मेस में चाय नाश्ते खाए अपनी एअरपोर्ट की कंपनी के लिये दौड़ जाना पड़ा| मेरे वहां पहुँचने के समय तक ज्यादातर फायरिंग थम चुकी थी, केवल इक्का फायर आ रहा था और सब लोग अपने हथियारों के साथ अपने अपने बंकरों में थे| प्लाटून पोस्ट कमांडरों के साथ जा जा कर मैंने सब जगह की तसल्ली कर ली कि सब कुशल है तथा सब ठीक था, हवलदार वरियाम सिंह मेरे साए कि तरह मेरे साथ था|
कोई साढ़े ग्यारह बजे जाकर अपने कमरे में पंहुचा और ‘आल ओ के’ की रिपोर्ट बटालियन हेड क्वार्टर को भेज दी थी| पूरी देर वरियाम सिंह साये की तरह मेरे साथ होने से मुझे भी तसल्ली रहती थी| सारी स्थिति देख परख कर अनुमान लगाया गया कि उस समय शायद कुछ बंगाली परिवार शायद चुपचाप रात के समय अँधेरे का सहारा लेकर बॉर्डर क्रॉस कर त्रिपुरा में घुस रहे थे तभी पाकिस्तान की तरफ से फायर किये गए थे, न कि एअरपोर्ट की हमारी पोस्टों पर| अगले दिन इस बात की पुष्टि हो गयी क्योंकि एअरपोर्ट के पास अब तक बनी झुग्गी झोपड़ी बस्ती में लोगों की बढ़ोतरी हुई थी कई जत्थे पिछली रात वहां आये थे| रेडियो की लोकल ख़बरों में भी प्रसारित हुआ कि त्रिपुरा में इस तरह के रिफ्यूजी लोगों की बढती संख्या एक चिंता का विषय बनता जारहा है, यह भी था कि त्रिपुरा में अखौड़ा सेक्टर में सबसे ज्यादा घुसपैठ हो रही थी| एअरपोर्ट भी उसी सेक्टर में था|
अगले दिन हमारे सीओ अपने मित्र कर्नल शाबेग सिंह के साथ एअरपोर्ट आये और मुझे लेकर सभी पोस्टों और भारत पाक सीमा के पास जाकर बाईनाकुलर द्वारा काफी देखा भाला| बाद में सी ओ और कर्नल शाबेग सिंह साथ साथ कंपनी ऑफिस में आये वहां उन्हें चाय के साथ तली काजू व नमकीन बिस्कुट के दौरान अपने सर्वे पर उन्होंने बात की तथा शाबेग सिंह ने अपनी डायरी में नोट्स साथ लिये एरिया माप में भी कुछ निश्चय आदि लगाये | उनके बारे में पता लगा कि कर्नल शाबेग सिंह ने भारत के उत्तर पूर्व के क्षेत्र में लम्बे समय तक बहुत अच्छा काम किया हुआ है, इसलिए उन्हें यहाँ के गुप्त काम करने और जमीनी स्थिति के अध्ययन के लिये भेजा गया था | रहने के लिये उन्होंने हमारे अफसर मेस को चुना था क्योंकि बॉर्डर के पास होने के कारण यह उनके लिये बहुत उपयुक्त था और वे हमारे सीओ के पुराने निकट मित्र थे ही| वे हमारे सीओ से कहीं ज्यादा स्लिम फिट और स्मार्ट लगते थे| पिछले दिनों से वे दो सेक्टरों में रह कर आये थे- अखौडा और कुमिल्ला सेक्टर| उन्होंने काफी विस्तार से पाकिस्तान आर्मी के द्वारा किये जा रहे अत्याचार. हत्या, लूटपाट, बलात्कार और ईस्ट बंगाल की फौज और ईस्ट पकिस्तान राइफल में हुए भारी विद्रोह के बारे में भी चर्चा की अपने नक़्शे पर भी दिखा कर हमें बताया| यह भी बताया कि हिदू गाँव, हिन्दू महिलाओं के साथ तो बहुत ही बुरा किया जा रहा है| उसने यह सब सूचनाएं आर्मी की एजेंसी एम.आई की सूचनाओं और बीएसऍफ़ की बीओपी पर जाकर देखा और वहां से आये हुए भुक्तभोगियों से जाना और सुना है ऐसा हमें बताया था| वहां की जनता के आक्रोश और आन्दोलन को वहां के फौजी डिक्टेटर बूटों से कुचलने की कोशिश कर रहे थे | मैं बीबीसी लंदन की हिंदी सर्विस नियमित रूप से सुनता था तथा दत्ता मोशाय भी मुझे बहुत चीज़ें बताते रहते थे| अतः मैंने अपनी खासी रुचि जताई उन्होंने अगले दिन मुझे मेस में आकर मिलने के लिये बुलाया जिससे वे मुझे और जानकारी दे सकें जो मैं जानना चाहता था|
उनके जाने के बाद मैंने कंपनी का रूटीन काम देखा तथा तीनो प्लाटून कमांडरों, अपने सेकंड इन कमांड सूबेदार भगत सिंह और कंपनी हवलदार मेजर वरियाम सिंह से पूरी रिपोर्ट ली जिसमें पता लगा कि बाहर से आने वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है| बेचारे पेट भरने के किये अपनी औरतें के गहने बेच रहे हैं, दूसरे मजबूरी में जिस्म फरोशी का धंधा भी ऐसी बस्तियों में बढता जा रहा है| जिस से हमारे लोग भी प्रभावित हो सकते हैं इसलिये अपने फ़ोर्स मेम्बरों को अच्छी तरह से समझाने की आवश्यकता तथा चोकसी बढाने के बारे में बात हुई| तथा सुरक्षा संबंधी उपायों को और कडाई से पालन करने के उपाय लागू किये गए| चौकसी का काम, आरपी की तैनाती कि जिम्मेदारी सीएचएम को अपने अपने स्टाफ की प्लाटून कमांडरों को दी| सरप्राइज चेक और सरप्राइज रोल कॉल की जिम्मेदारी सूबेदार साहेब की थे जो स्वयं एक अनुभवी रिटायर्ड आर्मी सूबेदार थे| बस उन्होंने थोडी बुज़ुर्गी औढ ली थी और उनको दमे की शिकायत भी रहती थी| वैसे एक अच्छे इंसान और अनुभवी सहयोगी थे| मैंने भी शाम की रोल कॉल में पूरी कंपनी की अच्छी तरह से ब्रीफिंग की| मैं सुबह पीटी परेड में नियमित रूप से जाता था| कोशिश थी कि अपनी एग्जामपिल या नमूना किसी भी बोलने से बेहतर और कारगर होता है|
अगले दिन कर्नल शाबेग सिंह से जब मिलने गया उनके पास बीएसएफ के बीओपीके पोस्ट कमांडर मिश्रा मौजूद थे-जिनको मै पहचानता तथा दो अनजान सिविलियन थे जो बंगाली लोकल दिखाई दे रहे थे| पता चला कि उनमें से एक ईस्ट पाकिस्तान राइफल (ईपीआर) में पलाटून कमांडर थे पर चल रहे मुक्ति आन्दोलन व पाकिस्तानी मिलिट्री के बंगालियों के नरसंहार के विरूद्ध होकर अपने साथियों के साथ हथियार सहित उसकी सारी बटालियन बागी हो गयी थी और मुक्ति सेना में शामिल हो गयी थी और पाक फौज़ियीं का मुकाबला के लिये गुरिल्ल्ला युद्ध लडाई कर रहे थे| दूसरा सिविलियन बंगाली हिन्दू युवक था वह भी मुक्ति सेना का था और उसने अपने जैसे नवयुवक जुटाए हुए थे उसे हथियारों की और उन्हें चलानी की ट्रेनिंग के लिये सहायता चाहिए थी| इस मामले पर सबकी बात सुन कर तथा सहायता का आश्वासन देने के बाद कनेल शाबेग सिंह ने उन्हें विदा कर दिया| फिर मुझे कर्नल साहेब ने नक़्शे के ऊपर समझाया की कहां क्या चल रहा है, पाक आर्मी के टॉप कमांडरों के बारे में भी बताया है कि किस निर्दयता से उन्होंने दमन चक्र चला कर तथा हत्याकांड कर वहां के मुक्ति आन्दोलन को कुचलने का बीड़ा उठाया हुआ है| उन्होंने यह बात भी बताई कि अब वहां से आये थे विस्थापितों से भारत में बड़ी संख्या में प्रवेश के कारण भारत में बहुत बड़ी समस्या होती जा रही है, वेस्ट बंगाल में भी बड़ी संख्या में लोग आते जा रहे हैं, यह बहुत बड़ी मानवीय समस्या बनती जा रहा थी| थोडी देर बाद मेरे सीओ महोदय भी आ गए और उन्होंने मुझे कई हिदायेतें दी कि अपने इलाके के बॉर्डर का किस तरह और अधिक ध्यान करना है| इसके बाद मेरे सी ओ कर्नल शाबेग सिंह को लेकर अपनी लालबत्ती वाली जीप मे कहीं रवाना हो गए थे| मैं अपने एड्जुटेंट के पास जा कर तथा बुजर्ग व भले सेकंड-इन-कमांड साहेब से मिल कर वापिस एअरपोर्ट चला गया था|
एक दिन मैं अपने दफ्तर में अपना नार्मल काम ही कर रहा था कि अचानक दत्ता मोशाय आए, बड़े परेशान और दुखी था नज़र आ रहे थे| अपने आंसुओं को प्रयास से रोकते हुए बताया कि उनके बहुत निकट सम्बधी ढाका यूनिवेर्सिटी में बहुत माने हुए अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे उनको पाकिस्तानी आर्मी ने उनके घर से निकाल कर सरे आम मार डाला था, उनकी पत्नी व बेटी भटकते भटकते,जान बचा कर यहां उनके पास उनके घर में शरण लिये हुए हैं| आगे बताया ढाका यूनिवर्सिटी में तो बड़े पैमाने में हत्यायें हो रही थी हिन्दू प्रोफेसर हिन्दू प्रोफेसरों की| सुन कर बहुत दुःख हुआ, दत्ता मोशाय को पानी व चाय पिलाई फिर थके थके से क़दमों से वे अपने ऑफिस की तरफ चले गये| बेचारे बहुत आहत, असहाय व निर्बल महसूस कर रहे थे जो ‘आमार सोनार बांग्ला’ कहलाता था, जहाँ के वासी रबीन्द्रनाथ टैगोर ने दुनिया को गीतांज़ली जैसी कालजयी रचनाएं दी, अपने नोबल पुरस्कार से शान्तिनिकेतन जैसी संस्था दी, उसको कैसी नज़र लग गयी थी? थोड़े महीने पहले सबको जो आशा शैख़ मुज़ीबुर्रहमान की फ्रीडम स्पीच जो नेताजी की
आमि सुभाष बोलची की तर्ज़ पर ‘आमि मुजीब बोलची’ ने बंधाई थी वो अब घोर निराशा में बदल चुकी थी| इतना रक्तपात, इतनी हिंसा, इतना अत्याचार सोचते सोचते दत्ता साहेब बहुत विह्यल और बेचैन हो गए थे| वहां के भुक्तभोगी उनके घर में शरण ले कर रह रहे थे ही|
दत्ता मोशाय ने ही बताया था कि 16 मार्च को शेख मुजीब को फौजी हुक्मरानों ने पकड़ कर पहले ढाका केंट में जेल में नज़रबंद किया और बाद में ले गए पश्चिमी पाक जहां उनको मियांवाली जेल में रखा हुआ था| वहां उन पर देशद्रोह, देश के विरुद्ध हथियार उठाने आदि के बहुत से गंभीर आरोप सैनिक अदालत ने लगाये हुए थे तथा उनको फांसी की सजा मिलना बिलकुल निश्चित था क्योंकि उनके ऊपर देश द्रोह और शासन को उखाड़ने जैसे गंभीरतम आरोप सैनिक कोर्ट में मौत की सजा वाले हैं अतः उनको एक मुकदमा फौजी अदालत में चला कर फांसी पर लटकाना निश्चित समझो|
ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे| जून महीने के एक दिन मैं अपने छोटे फील्ड ऑफिस में बैठा हुआ काम कर रहा था, एक आर्मी के काफी स्मार्ट लेफ्टिनेंट कर्नल यूनिफार्म में अचानक अन्दर आये, “गुड मोर्निंग कहा,| उन्हें देख कर मैंने जल्दी से अपनी टोपी पहिन कर सलूट किया| मेरे ऑफिस में एक गोदरेज की अकेली एक ठीक ठाक कुर्सी थी जिसमें मै बैठता था और दो फोल्डिंग पुरानी कुर्सी आने वालों के लिये थी | मैंने जैसे अपने सीओ को अपनी चेयर ऑफर करता था उनको भी किया| वे हंस कर अपना परिचय दिया, “माई सेल्फ कर्नल हिम्मत सिंह ऑफ़ ऑफ़ गार्ड्स रेजिमेंट और मुझे अपनी ही कुर्सी पर रहने के लिये इशारा किया| वे फोल्डिंग चेयर पर बैठ गए और हंस कर बोले “यंग मैन यू एंड ओनली यू आर बॉस इन योर ऑफिस, नेवर गिव अवे योर राईट एंड चेयर टू एनी अदर हू सो एवर ही मे बी|”
उनके साथ किसी हाई ब्रीड का बड़ा काला कुता था जो उनका इशारा देखते ही बैठ गया| मैंने इतना स्मार्ट फौजी और इतना सुन्दर और अनुशासित कुत्ता पहले नहीं देखा था| बड़े आराम से उन्होंने बात की, चाय और सीले हुए बिस्किट खाए और बताया कि अगले दिन वे अपने एक मेजर को भेजेंगें उन्हें अपनी एक खाकी ड्रेस और मदद दे देना ताकि वे बॉर्डर के पार आसपास का अध्ययन कर सकें| शांति के समय फौजी को बॉर्डर पर नहीं जा सकते|
अगले दिन एक मेजर खरबंदा 4 गार्ड्स से आये थे, खाकी ड्रेस पहिन कर बॉर्डर पर गए सीएचएम वरियाम सिंह और दो अन्य अच्छे सीआरपीएफ के सिपाहियों को सु उनके साथ भेज दिया था| वैसे भी उस एरिया की जानकारी वरियाम सिंह से ज्यादा हमारी कंपनी में तो किसी को थी नहीं| वापिस आने पर मेजर खरबंदा ने अपनी ड्रेस बदली और सबसे पहले अपनी रेक्की के अनुसार और वरियाम सिंह के साथ मिल कर अपने आर्मी माप को मार्क किया उस के बाद मुझ से खूब बातें की अपने बारे में बताया कि दिल्ली केन्ट के पास बन रही एक नई कॉलोनी जनकपुरी में उनका अपना घर है और उसके पिता भी आर्मी में कर्नल की रैंक से सेवा निवृत हुए थे और गार्ड पलटन में रहे थे, इसलिए ही उन्हें गार्ड्स में आने के लिये अवसर या वरीयता मिल पाई| अपने सीओ के बारे में बताया कि वे असाधारण बहादुर और बहुत ऊँचे दर्जे के ऑफिसर गिने जाते हैं,अपने को बेहद फिट रखते है|
मैंने भी अपनी मुलाकात तथा कुर्सी का किस्सा जब मेजर साहेब को बताया, तो उन्होंने बताया कि कर्नल हिम्मत सिंह एक माने हुए राजस्थान के राजपूत परिवार से हैं, और शायद एक दिन आर्मी के चीफ भी बन सकते हैं| सुन कर मैं काफी प्रभावित हुआ था, कहावत है न फलदार वृक्ष झुक कर रहते हैं| खैर मेजर खरबंदा से भी मैं तो प्रभावित हुआ था पहली बार मिलने पर ही कितनी आसानी से घुल मिल गए थे जैसे पुराने मित्र हों हंसमुख और जिंदादिल|
अपनी यूनिट 4 गार्ड्स के बारे में बताया कि यह ब्रिगेड ऑफ़ गार्ड्स का पार्ट है जिसको फील्ड मार्शल के.एम. करियप्पा ने भारत की सबसे पुरानी प्रतिष्ठित रेजिमेंट्स से हरएक की पहली बटालियन लेकर से बनाया था| 4 गार्ड्स राजपूत रेजिमेंट की पुरानी फर्स्ट बटालियन है और यह एक साधारण इंफंट्री न होकर मेकेनाईज्ड इंफंट्री यूनिट है| मेजर खरबंदा ने थोडी देर में गार्ड रेजिमेंट्स के बारे में बहुत कुछ बताया था कि स्वतंत्र से पहले सभी रेजिमेंट्स किसी प्रान्त, क्षेत्र. धर्म या जाति होती थी जैसे पंजाब रेजिमेंट, राजपुताना रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, गोरखा रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट पर उनकी गार्ड रेजिमेंट मिक्स्ड क्लास रेजिमेंट बनाई गयी थी, क्योंकि फील्ड मार्शल करियप्पा के अनुसार देश अन्य सभी क्लास से पहले आता है| ऐसी और भी अपनी रेजिमेंट की विशेष बातें बता कर गए थे जिस का सारांश यह था कि उनकी रेजिमेंट और बटालियन बहुत खास, बहुत विशिष्ट बहुत ही प्रतिष्ठित है और उसमें होना बहुत गर्व की बात है| मेजर खरबंदा फिर आते रहने का वायदा कर चले गए थे|
इसी तरह सितेम्बर माह के एक दिन तो गज़ब हो गया जब 4 कोर के कोर कमांडर लेo जजैसे नरल सगत सिंह साधारण डांगरी में बिना झंडा और स्टार लगाये आये और पूरे इलाके का चक्कर लगा कर गए उनके साथ कई ब्रिगेडियर और अफसर थे| उनके एअरपोर्ट के क्षेत्र में मैं उनके साथ रहा| कद काठी में बहुत लम्बे तगड़े,कद भी कोई छ फिट चार इंच| उनके चेहरे पर, बातचीत करने में बहुत आत्म विश्वास छलकता था| मुझ नए जूनियर अफसर से बड़ी सहजता से हंस बोल कर बात कर रहे थे, यह भी मेरा बड़ा सौभाग्य था| कई जगह रूक कर उन्होंने बाईनाकुलर से पूर्वी पाकिस्तान की सरहद के पार के इलाके को देखा| शायद वे ओपरेशन के दृष्टिकोण से शायद ज़मीनी जानकारी ले रहे होंगे|
इसके अलावा कई और आर्मी के अफसर लगभग हर रोज़ आ रहे थे जा रहे थे| मैं इन सारी विजिट्स का रिकॉर्ड भी रख रहा था और अपने बटालियन के एड्जूटेंट को ब्रीफ कर देता था| बटालियन बहुत पास होने से बहुत सी सुविधा तो रहती है पर साथ ही वहां की दखलंदाजी और फालतू परेशानी भी रहती हैं| हेड क्वार्टर से हमें आर्डर आया कि जब भी कोई ब्रिगेडियर या उस से ऊपर का आर्मी ऑफिसर आये एक रनर को फ़ौरन साइकिल पर भेज कर ऐसे विजिट की सूचना दी जाये|
एक बहुत मजेदार दिमाग में अभी तक चिपकी हुई ही सीनियर आर्मी ऑफिसर्स के विजिट के बारे में क्योंकि सब साधारण विजिट अब कहाँ याद हैं|
एक दिन एक कुछ अलग ही शौंक रखने वाले आर्मी सिग्नल के ब्रिगेडियर महोदय आये थे, उनके कंधे पर छोटी मुनिया सी बंदरिया, जिसे अच्छे कपडे पहिनाए हुई थे, बैठी हुई थी जिसके गले में चांदी की एक चैन बंधी थी चैन का दूसरा किनारा ब्रिगेडियर साहेब के पॉकेट में लेनयार्ड के साथ बंधा था| गले में एक घूँघरू वाली माला भी बंधी हुई थी जो हिलने पर बजती थी| बड़ी चंचल सी थी वह बंदरिया कभी कूद कर नीचे आ जाती कभी साहेब के गोद में कभी कंधे पर| थोडी सी बातें पूछ कर वे मुझे लेकर वे एअरपोर्ट का निरीक्षण करने गए जब हम वापिस पहुंचे तब तक मेरे सीओ महोदय एड्जूटेंट को साथ लेकर हमारी कंपनी ऑफिस में आ चुके थे उनके साथ कंपनी के सूबेदार भगत सिंह और सीएचएम हाजरी में खड़े हुए थे| ब्रिगेडियर को रिसीव करने सीओ आगे बढे और उनके जीप से उतरते ही जैसे ही सीओ सलूट कर रहे थे, बंदरिया नीचे से बहुत फुर्ती से उछली और कूद कर अपने साहेब के कंधे पर चढ़ हमारे सीओ की तरफ जोरदार बन्दर भभकी दी, अचकचा कर व डर से बेचारे सीओ तेज़ी से पीछे हटे और उनका बैलेंस बिगड़ गया गिरते गिरते बचे| एक तरह का तमाशा हो गया था, ब्रिगेडियर जोर जोर से हंस कर कह रहे थे, “वैरी नॉटी....वैरी नॉटी.. ” पर सीओ की हालत देखते ही बनती थी| हम सब अपनी हंसी को ज़बरदस्ती रोक रहे थे| थोडी देर सीओ से बतचीत कर ब्रिगेडियर चलते बने| सीओ का मूड ख़राब हो गया था, अतिथि के जाते ही उनके मुंह से निकला, “ब्लाईटर ब्रिगेडियर” !!!
उस दिन चाय का इंतजाम था पर सीओ ने जानबूझ कर रोक दिया था ब्रिगेडियर से नाराजगी जो हो गयी थी|
उनकी बात गलत भी नहीं थी पता नहीं क्या मज़ा लेने के लिये बंदरिया पाली ही थी, सी ओ की कच्ची उनके स्टाफ के सामने कर के बिना सॉरी का एक् भी शब्द बोले यूं चले गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं|
नवम्बर आते आते हालात बहुत ही ज्यादा बिगड़ चुकी थी, लड़ाई लगभग तय थी बस यह पता नहीं था कब होगी? हमारी रनवे के लगभग अंत वाली प्लाटून पर पाक की तरफ से अब कभी भी रात बिरात को पाक पेट्रोल पार्टी फायर कर देती थी पर उस से कभी नुक्सान नहीं हुआ क्योंकि पाक सैनिक बॉर्डर सीमा से काफी
पीछे से फायर करते थे तथा जब तक स्टैंड टू में जाकर हम पेट्रोल निकालते थे वे नदारद हो जाते थे|
एक दिन हमारे सीओ ने मुझे आदेश दिया कि बिलकुल बॉर्डर के पास रात को अम्बुश लगाओ और मैं कंपनी कमांडर खुद भी उस में घात लगा कर बैठूं| शायद यह हमारा काम नहीं था, बीएसएफ का एरिया ऑफ़ ड्यूटी था, पर हुकम तो हुकम था| समय दिया था रात के बारह बजे से सुबह के चार बजे तक| यह अँधेरा पाख था अँधेरे में हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था शाम को बारिश भी होकर रूक गयी थी| जो स्थान हमें दिया गया था उस से बॉर्डर पिलर लगभग पचास मीटर पर थे|
मेरे साथ एक हेड कांस्टेबल और छ सिपाहियों को जाना था, जब रात को सब तैयारी कर ली थी पर जाने के समय सीएचएम वरियाम सिंह भी तैयार हो कर आ गए और कहा मैं आपके साथ रहूँगा मुझे इस का अनुभव है और आप नए हो| उसे मना करने पर वह नहीं माना| वहां अभी थोडी दूर हे चले थे, किसी के चलने बीएसफ ने उस डायरेक्शन में फायर करने के लिये पूछा इस से पहले मैं कुछ सोच कर ब वरियाम ने चुप बैठने को कहा, फिर जब कुछ नहीं हुआ फिर आगे बढे और बताया वापिस काफी तेज कुचल कर चलने की आवाज आई और अचानक जोर जोर से पटाकों के एक साथ फूटने की और चिंगारियों के चलने से हम सब हडबडा गए और चुपचाप दुबके रहे चिंगारियां ऊपर से गयी थी और उनकी गरम राख ऊपर से हमारे ऊपर पड़ रही थी, यह फायर भी नहीं था तथा ग्रेनेड भी नहीं थे फिर क्या था समझ में नहीं आ रहा था हम वहीँ आगे की घटना का इंतजार करते रहे सब कुछ शांत हो गया था, थोडी दूर स्थित बीएसएफ की बीओपी से सीटियाँ बज़ रही थी, वे चौकस होकर मोर्चों में पहुँच गए थे, हम फिर घंटा भर अम्बुश में बैठ कर वापिस आ गए थे| सुबह पीटी परेड के बाद वरियाम सिंह ने बताया कि वह रात के घटना स्थल पर जाकर आया है वह इलाका पाक के जरा अन्दर का है वहां बीएसएफ की पार्टी में पोस्ट कमांडर भी आये हुए थे, थोडा दूर से जाकर् देखा कि वहां एक गाय मरी पड़ी थी, उस स्थान पर पाक ने माइन लगाईं हुई थी| बीएसएफ को भारी एतराज़ था कि हम रात को बिना उन से बता कर अम्बुश में थे| बेचारी गाय ने अपना बलिदान देकर हमें संकट बचा लिया था वरना हमारी पार्टी इस माइन किये हुए इलाके में बस फंसने वाली थी, उससे पहले हवलदार वरियाम सिंह ने हमारी पार्टी को फायर करने से रोका वरना अनजाने में बीएसएफ के साथ फायर एक्सचेंज हो जाता दोनों ही स्थितियां जान लेवा थी|
मैंने तुरंत ही जाकर हेड क्वार्टर में एडजूटेंट को रिपोर्ट कर दिया, उनका भी मानना था हमें बिना सूचित किये बीएसएफ के एरिया ऑफ़ आपरेशन में इस तरह रात को नहीं जाना चाहिए था| ग़लतफ़हमी से आपस में ही गोलीबारी हो सकती थी और लेने से देना हो जाता|
उसी दिन दोपहर को आई.जी. त्रिपुरा जिनके पास डी.आई.जी. बी.एस.एफ. का चार्ज भी था उन्होंने हमारे सी.ओ. को बुला कर झाड़ लगाई और भविष्य में सावधान रहने के लिये हिदायत दी| मुझे भी हमारी गलती का एहसास हुआ था|
उन दिनों खूब महसूस हो रहा था जैसे इतिहास को पुस्तक में पढने के स्थान पर साक्षात घटित होते हुए दिखता जा रहा हो| जैसे संजय महाभारत युद्ध होते देख रहा था|
अख़बारों को पढ़ कर, जो सामने हो रहा था उसे देख कर, एअरपोर्ट से सिद्धार्थ शंकर जैसे बड़े लोगों को, आर्मी के हेलिकॉप्टरों से आते हुए फौज के बड़े अफसरों आदि देख कर, बड़े बड़े अखबार और टीवी स्टाफ लेकर विदेशी लोगों के आगमन, बाहर आये शरणार्थियों के पास से गुजरते हुए, तथा रात को बीबीसी लंदन के समाचार और उनकी हिंदी सर्विस सुन कर लग रहा था कि किसी भी दिन लड़ाई शुरू हो सकती है, उस की कल्पना से भी दहशत होती थी| क्योंकि त्रिपुरा की लाइफ लाइन एअरपोर्ट तो पकिस्तान का सबसे बड़ा टारगेट था ही|
उन दिनों अमेरिका में वहां की रिपब्लिकन पार्टी के रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति थे, उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे मशहूर कूटनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर| ये दोनों ही प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के प्रति दुर्भाव रखते थे और मिलिट्री डिक्टेटर पाक राष्ट्रपति याह्या खान उनके मित्र| उन्होंने इंदिरा जी के इस सुझाव को कि अमेरिका पूर्वी पाकिस्तान में हो रहे नरसंघार और हिंसा को रुकवाने के लिये तथा जनतंत्र की बहाली के लिये कदम उठाये| पर किसिंजर ने श्रीमती इंदिरा जी यह कह कर उनका सुझाव खारिज कर दिया था कि यह पाकिस्तान का आन्तरिक मामला है, उसमें अमेरिका हस्तेक्षेप नहीं करेंगा| ये बातें अखबारों में तो नहीं पढ़ी थी पर बी.बी.सी. के प्रसारण से सुनी थी, और इसी तरह की बात मुझे एक बी.बी.सी.के एक संवाददाता सैम गिल ने बताई थी जो वहां एअरपोर्ट पर आता जाता रहता था और ज्यादातर कलकत्ता में रहता था, पर अगरतला से भी यहाँ के घटना चक्र को कवर करता था, वह आधा अंग्रेज़ सिख(माँकभी अंग्रेज,पिता सिख) था, उसने केश कटाए हुए थे| ज्यादा इंग्लैंड में रहने के कारण वह अंग्रेजी भी अंग्रेजों के तरह के उच्चारण से बोलता था, जो मेरे कई बार पल्ले नहीं पड़ती थी| पर उसकी मेरी और बटालियन के मेडिकल ऑफिसर डॉ.मोहंति से कई बार मिलने के कारण अच्छी खासी मित्रता हो गयी थी| वो अपने भेजे हुए डिस्पैच हमें कभी कभी पढने को दे देता था| एक दो बार हमारे मेस में ठहर चूका था| उसी ने हम दोनों को एक बार बताया कि इस बार वह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति केनेडी के छोटे भाई सीनेटर टेड केनेडी के दौरे को भी कवर करेगा जो डेमोक्रेटिक पार्टी से हैं और पाकिस्तान में हो रहे इस खून खराबे महिलाओं पर बलात्कार और अत्याचार को दुनिया और विशेष रूप से अमेरिका को बताने और उसे रूकवाने के लिये बहुत काम कर रहे हैं| वे पीड़ित लोगों और सताई हुई महिलाओं से भी रेफयूज़ी कैम्पों और हॉस्पिटल केम्पों में मिलेंगे जैसा उन्होंने पश्चिमी बंगाल के कलकत्ता, जलपाईगुडी, दार्जिलिंग आदि स्थानों पर किया था| वे अगले दिन अगरतला आने वाले हैं यहाँ के जीo बीo हॉस्पिटल अन्य कैम्पों मेंकेने भी इसी उद्देश्य से जायेंगे| अगले दिन सीनेटर को लेने के लिये अगरतला के डी.एम. सहगल जी भी एअरपोर्ट पर आये हुए थे वे ही उन्हें यहाँ कंडक्ट करने वाले थे| मैंने और डाo मोहंति ने भी यह सब देखने के लिये अस्पताल जाने का प्रोग्राम बना लिया था वहां हमारे तीन चार लोग पहले से ही वहां अस्पताल में इलाज के लिये भर्ती थे ही| मुझे तो टेड केनेडी को पास से देखने में रूचि थी| हमारे साथ जीप में मेरे अंध-भक्त और रक्षक सीएचएम वरियाम सिंह एस्कॉर्ट बन कर साथ हो लिये थे| हॉस्पिटल में बलात्कार और हिंसा से पीड़ित पूर्वी पाक से आयी महिलांए भी इलाज कराने के लिये भर्ती थी जो इस अवसर में दिखाने के लिये कुछ कम लग रही होंगी बेड खाली पड़े थे| हॉस्पिटल के इंचार्ज डॉक्टर तथा आर्मी के उपस्थित सीनियर डॉक्टर ने डाo मोहंति से बात की उसने बताया कि हॉस्पिटल वाले चाहते थे कि यह संख्या कुछ ज्यादा दिखने के लिये उन्होंने आर्मी वाले भर्ती सरदारों को केश खुलवा कर, उनको ढकवा कर और उनके बालों को चादर से बाहर लटका कर उसी वार्ड रखा हुआ| और हमसे भी पूछा क्या अपने साथ वाले हवलदार से भी कुछ समय के लिये ऐसा करवा सकते हो? हम दोनों ने इस अच्छे उदेश्य के वरियाम सिंह को भी मना लिया, थोडी देर की हो तो बात थी – वे भी एक बेड पर मुंह ढक कर लेट गए थे|
कुछ समय बाद सेनेटर केनेडी आये उनके साथ प्रेस और टी वी के लोग भी थे| दुभाषियों की मदद से चार पांच पीड़ित महिलाओं के ऊपर बीते अत्याचार के विवरण को सुना रिकॉर्ड किया, डॉक्टरों से विवरण पूछे कितनी संख्या में ऐसे लोग आते हैं आदि पूरी जानकारी ली फोटो भी लिए, बातचीत भे रिकॉर्ड की तथा लगभग 15-20 मिनट रहे फिर अगले वार्ड की तरफ चले गए जहाँ और पीड़ित भर्ती थे|
यह मनोरंजक घटना याद आने पर अभी वर्षों बाद हंसी आती है, कई बार ऐसे मौकों पर दिखावा भी काम आता है| बाद में आर्मी के सीनियर मेडिकल ऑफिसर के समय पर यह जुगाड़ का भी कोई सानी भी आजतक कोई देखने सुनने को नहीं मिला है|
इन्ही दिनों बीबीसी से सुन कर जाना कि स्थिति इतनी नाजुक हो रही है कि न चाहते हुये भी भारत के सामने इस समस्या से निबटने के लिये लडाई के अलावा कोई चारा नही रह गया था करोड़ों शरणार्थियों का भी खर्चा इतना बढ़ गया है कि भारत लम्बे तक नहीं उठा सकता| उधर अब अमेरिका भी आँखे दिखा रहा था कि रिफयूज़ी को लेकर भारत लड़ाई पर न जाये, जब कि वहां से आये शरणार्थियों ज्यादा था लड़ाई का अनुमानित खर्चा उस से कहीं कम था| और यह निरंतर बढ़ता जा रहा था, साथ में मानवीय बड़ी समस्या तो था ही|
मुझे पता चल चूका था कि कर्नल शाबेग सिंह मुक्ति वाहिनी ट्रेनिंग, प्लानिंग हथियार सप्लाई और दूसरे मामलों पर पूरी तरह से जुटे हुए थे| कई कई दिन अन्दर रह कर काफी अच्छा बड़े काम करवा रहें थे| उनकी प्लानिंग से मुक्ति बाहिनी ने इन सेक्टरों में पाक आर्मी को कई जगह भारी नुक्सान पहुँचाया था पीछे धकेल दिया था और अनेकों पीड़ितों को उनसे मुक्त कराया था| भारतीय सहायता से मुक्ति बाहिनी काफी अच्छा काम कर रही थी| इस सब के कारण पाकिस्तानी सैनिक अब शहरी इलाकों में सक्रिय हो रहे थे और ग्रामीण क्षेत्र शहरों के मुकाबले पाकिस्तानी आर्मी से कम त्रस्त थे| पर उनके देश से निर्वसन लगातार जारी था भारत की सीमा में जाने के लिये हर कोई भाग रहा था|
इन्ही दिनों जब एक दिन मैं अपने हेड क्वार्टर में गया तो वहां एक व्यक्ति को कटहल के पेड़ पर उल्टा टांगा हुआ था| कर्नल शाबेग सिंह और हमारे सीओ दोनों कुर्सी पर बैठे हुए थे एक बंगाली स्टाफ का कर्मचारी मदद से ले रहे है| वह टंगे आदमी व सीओ दोनों को उनकी उनकी भाषा बता कर समझा देता था| मुझे देख कर उन दोनों ने मुझे बुलवाया और थोड़े एक दो सवाल का जब वह आदमी कुछ ठीक जबाब वह नही दे पाया तो उन्होंने पतले बेंत की छड़ी मुझे देकर जोर से उसे पीटने के लिये कहा| मैंने उस बेहद कमजोर,असहाय निरीह को देखा मुझ से उस पर छड़ी नहीं उठी| मैंने क्षमा मांगते उनसे इंग्लिश में निवेदन किया कि इन्टेरोगेशन में थोडा कम सख्ती से भी पूछताछ हो सकती है| अगर कस्टडी में यह मर गया तो वह एक संगीन अपराध होगा| जाहिर था मेरे सीओ को नाराज होना था गुस्से में मुझे ‘चिकेनहार्टेड’ कहा और कहा कि ‘कोल्ड फीट’ हूँ, और भी बहुत कुछ कहा अंत में कहा अभी और ट्रेनिंग की मुझे और बहुत आवश्यकता थी | और मुझे वहां से रुखसत कर दिया| मुझे बहुत ख़राब लगा पर मुझे अपनी बेइज्जती उस गरीब को मारने से ठीक लगी| पता नहीं उस गरीब के पास से क्या खबर चाहिए थी उसे ऐसा क्या रहस्य पता था? पर एक तरह से अपने से खुश था कि जो मैं ठीक समझता था वह कर पाया|
फिर एक दिन मेरे सीओ और कर्नल मुझे “ट्रेनिंग” देने और टफ बनाने के लिये एक नए बनाये हुए इंटेरोगेशन सेंटर में लेकर गये थे| वहां जिस कमरे में हम गए वहां एक बेचारी पाक सीमा पार से आई 18-20 वर्ष की दुबली पतली सांवली सी लड़की के हाथ पीछे बांधे हुए थे, एक महिला सिपाही भी पास मौजूद थी| उस से बंगला भाषा में गहन पूछ ताछ चल रही थी, वह अपना मुंह नहीं खोल रही थी चुपचाप थी| उसके लिये एक बिल्ली का बच्चा लाया गया और नीचे से पाजामे की मोहरी से अन्दर कर नीचे से एक डोरी से सिरा बंद कर दिया| अब फिर उससे एक अगला सवाल पूछा वह फिर भी चुप रही, पूछताछ करने वाले अफसर के इशारे पर महिला सिपाही ने एक छड़ी से बिल्ली के बच्चे को धीरे से मारा वह ऊपर उछला और उसके पंजे ने लड़की को अन्दर से नोचते हुए बिल्ली ऊपर से नीचे आई| उस लड़की के खरोंचों से खून रिस रिस कर पाजामे पर बाहर दिखाई दिया| लड़की दर्द से चिल्ला रही थी –
“किछु जानी ना रे बाबा, सत्य बोलची|”
रोते हुए कहती जा रही थी| देख कर मुझे दुःख हो रहा था और ये दोनों कर्नल विद्रूप हंसी हंस रहे थे| सोच रहा था क्या दोनों को दूसरे को सताया हुए देख कर परपीड़क आनंद आ रहा था यानि क्या वे सचमुच सैडिस्ट थे? फिर और कई कमरों में ले कर गए जहाँ आदमियों से पूछ ताछ चल रही थी, वहां भी पिटाई छिताई द्वारा पूछ ताछ चल रही थी| यह एक सिविल तथा आर्मी का जॉइंट इंटेरोगेशन सेंटर बनाया गया था| मेरे लिये यह बिलकुल नया अनुभव था| मुझे पता नहीं की आगे उस लड़की और अन्य लोगों को क्या करते होंगें|
यही सब चल रहा था शायद सेना के लोग भी अपनी अपनी तैयारी में लगे थे| शरणार्थियों की संख्या बिना रुके बढ़ती ही जा रही थी| चारों और भीड़ ही भीड़| कभी भी लड़ाई की सम्भावना| और ऐसी ही एक शाम को रोल कॉल के बाद इस बात को सुनिश्चित किया के सब अपने बनाये मेक शिफ्ट बंकरों में ही रात को रहेंगें अपने बंकर में जा रहा था कि मैंने देखा सूबेदार भगत सिंह अपने कमरे में हैं, मैंने उनसे सख्ती से कहा कि आप वहां क्यों हैं उन्होंने बताया कि दमें की दवाई और इनहेलर लेने आये थे वापिस जा रहें है| खैर जाते जाते मैंने सख्ती से कहा कि उनको भी सबकी तरह रात को बंकर में रहना पड़ेगा|
उस इलाके में शाम बहुत जल्दी आती है अँधेरा हो गया था, मैं अभी बंकर में लेटा लालटेन की रौशनी में किताब पलट रहा था और ट्रांजिस्टर सुन रहा था कि अचानक हमारे चारों तरफ धमाके दाहिने बाएं तथा फाइटर जहाज़ों की भीषण गर्जना होनी शुरू हो गयी और दोनों रनवे पर पाक फाइटर स्ट्रेफिंग कर रहे थे| इस तरह तीन वेव आई थी| साथ ही एरोप्लन प्लेन मोड पर लगी तीनों प्लाटूनों की एलएमजीओं ने भी अपनी ट्रेसर और गोलियां प्लेनों की दिशा में चला कर अपनी मेग्ज़ीनें खाली कर दी| बहुत डर लग रहा था कि शायद आज विनाश की और मौत कि घडी आ गयी है| जहाजों के एक बार जाने के बाद एक बार शांति हो गयी थी| थोडा बाहर निकल कर झाँका दोनों रनवे बुरी तरह से गड्ढ़ों से प्रभावित हुए थे| सूबेदार के कमरे की छत गिर चुकी थी पर आज वे बंकर में थे| वे भी बाहर आये| सब का अंदाज़ा था कि फाइटर दोबारा मुड कर आयेंगे और वैसा ही हुआ, इस बार की बम वर्षा ज्यादा थी एक बम की बहुत जोर के धमाके के साथ मेरे बंकर की पूरी मिटटी मेरे ऊपर थी, जिसमें मैं कई दब गया था| धमाका बेहद जोर का था और उससे सब कुछ सुन्न हो गया था दिमाग, चेतना आंखे कान| मुझे कुछ क्षण ऐसा लगा कि शायद मौत आ गयी है ऐसी ही होती होगी| फिर हाथ पैर हिलाए मिटटी से अपने को निकालने की कोशिश करने लगा ही था कि वरियाम सिंह, दो अन्य सिपाहियों ने मलवे से खीच कर और मिटटी हटा हटा कर मुझे निकाला| मेरे सभी हाथ पैर ठीक थे, बम बंकर को हिट नहीं किया था जैसा मैं सोच रहा था| पर बेहद ही करीब दो गज पर गिरा था| ‘जान बची लाखों पाए’ मौत दो गज पर ही थी अगर वह कहीं डायरेक्ट हिट कर जाता तो हमारा बंकर इसे सह नहीं पा सकता| सब जगह शांति थी| पानी पीने के बाद मैं थी क हो गया था| सबसे ज्यादा नुक्सान सूबेदार भगत सिंह के कमरे वाली जगह हुआ था जहाँ उनका कुता मरा हुआ पड़ा था| रनवे पर चेहरे के चेचक के निशानों की तरह जगह गड्ढे पड़ गए थे| ट्रांजिस्टर खोलते ही पर प्रधान मंत्री का देश के नागरिकों को सन्देश चल रहा था जिसमें श्रीमती इंदिरा गांधी ने बता रही थी कि पाकिस्तानी एयर फ़ोर्स के विमानों ने अमृतसर,अम्बाला,अवंतिपुर,श्रीनगर,आगरा,जोधपुर,हलवारा,अगरतला, पठानकोट, जैसलमेर फॉरवर्ड एयर फील्डस और रडार स्टेशनों और दूसरी इमारतों पर समय पहले हवाई हमले किये हैं| देश में आपत्काल घोषित किया जाता है तथा पाकिस्तान को इसका मुंह तोड़ जबाब दिया जा रहा है| सन्देश संक्षिप्त, सीधा और साफ़ था| पकिस्तान ने युद्ध की पहल की थी, एक तरह से प्री-एम्पटीव किये थे| क्योंकि अनुमान तो था ही, सो तुरंत ही इस पर कारवाई शुरू हो गयी थी
हमारे सामने से थोडी देर में ही सबसे पहले गार्ड रेजिमेंट की की 4- गार्ड्स मेकेनाइज्ड पैदल सेना के कॉलम तेज़ी से निकल कर बॉर्डर पार करने शुरू हो गए थे, जब मैंने मेजर खरबंदा भी अपने कॉलम को लीड करते देख, मैंने दौड़ कर उनसे हाथ मिलाया, शुभ कामनाएं दी, वे खूब खुश और उत्साह में थे| उन्होंने जाते जाते हाथ वेव करते कहा, “विल सी यू सून”
मुझे उनका ज़ज्बा देख कर बहुत ख़ुशी और गर्व हो रहा था| इस के बाद एक एक कर रात भर भारतीय सेना ईस्ट पाकिस्तान के दाखिल होती चली गयी| काफी देर बाद राजपूत रेजिमेंट भी जब अन्दर गयी उसके मेजर प्रीतम सिंह भी मुझ से हाथ मिला कर गए वे एक पूरी कंपनी को लीड कर रहे थे| सब कुछ देख कर रोमांच हो रहा था| हमें पता था कि अब पाकिस्तानी सेना की खैर नहीं है|
यह तो एअरपोर्ट में था| हमारी बटालियन में भी अलग तरह की हलचल हो गयी थी| हमारे महानिदेशक (डी.जी.), महा निरीक्षक(डीआईजी) दो दिसम्बर को हमारी और सीआरपीएफ की दो अन्य बटालियन के विजिट पर गृह मंत्रालय के वायुयान द्वारा दो दिन के विजिट पर से आये हुए थे, उन्हें 4 दिसम्बर को वापिस जाना था| वे हमारे बटालियन के मेस में ठहरे हुए थे| 3 दिसम्बर की रात में उनके सम्मान में बड़ा ऑफिशियल डिनर था (जिसके लिये केवल मुझे कोई ड्यूटी नहीं दी थी, छुट दे दी गयी थी| मेस में बहुत जोरशोर से तैयारी की गयी थी| तीन दिसम्बर को जब यह पाकिस्तानी हमला हुआ वे सब पार्टी के लिये तैयार हो रहे थे| बटालियन भी तो एअरपोर्ट के बहुत करीब थी, वे सब भी इसकी लपेट में आ गए थे| हमला होने के कारण सब अपने आप कैंसिल हो और उनकी सेफ्टी का ध्यान कर उन्हें शहर में सर्किट हाउस में भेजना पड़ा था| उसके बाद सब हवाई रास्ते बंद हो चुके थे| और अगले आठ नौ दिन वे यहीं अटके रहे थे| वे एक एक कर एअरपोर्ट पर आकर हमें शाबाशी देकर जाते रहे थे|
चार दिसम्बर को ही सुबह तडके कई इंडियन एयर फ़ोर्स हेलीकाप्टरों से भारतीय वायु सेना के अधिकारी लैंड किये और बहुत सा इक्विपमेंट आता गया| उन्होंने बहुत शीघ्रता से दो में से एक, पुराने वाले रनवे को फाइटर प्लेन के लिये ठीक कर डाला और रात होने से पहले ही मिग-21 जेट फाइटरों की एक स्क्वाड्रन एअरपोर्ट पर आगई थी और उसी रात उन्होंने पकिस्तान में घुस कर सोर्टी भरी| फिर अगले सुबह से कई बार पाकिस्तान के खूब अन्दर तक जाकर एयर स्पेस पर अपना पूरा आधिपत्य स्थापित कर लिया था|
आर्मी के अफसरों अख़बारों और सैम गिल से बात कर पता चल रहा था कि भारतीय सेना खूब तेज़ी से अन्दर बढ़ती जा रही थी| वे पाकिस्तान के शहरों और केंटो को बाई पास करते ढाका की तरफ बढ़ते जा रहे थे| भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी का आपस का आपसी समन्वय बहुत अच्छा था, आम नागरिक सेना की मदद में आगे बढ़ रहे थे| पाकिस्तानी एयर फ़ोर्स को तो बिलकुल ही साफ़ कर दिया, जान कर बहुत रोमांच और प्रसन्नता होती थी चारों और लोग खुश ही खुश
दिखाई दे रहे थे| पीछे से सपोर्ट कर रहे थे कि लेफ्टी जनरल सगत सिंह की फोर कोर तो अपने सेक्टर में सबसे ज्यादा स्मार्ट मूव दिखाया और मेघना नदी को एयर-बोर्न तरीके से क्रॉस करवा दिया जिससे पाक सेना के पाँव उखड गए| वे अंदाज़ नहीं लगा पाए कि भारतीय सेना मेघना जैसी बड़ी नदी को इतना जल्दी क्रॉस कर पायेंगे| सुन कर गर्व होता था, और खूब याद आ रहे थे कर्नल हिम्मत सिंह,मेजर खरबंदा, और मेजर प्रीतम सिंह जिनसे थोड़े समय मैं इतना अच्छा परिचय और लगाव सा हो गया था|
नौ दिन के बाद हमारे डी.जी. का दल भी एक एयर फ़ोर्स के हेलीकाप्टर से गौहाटी भेज दिया था, उन्ही के हाथों मैंने अपने घर अपने कुशल होने की चिठ्ठी भिजवाई थी| अगरतला एअरपोर्ट के ऊपर बम्बारी के समाचार जानने के बाद उन्हें मेरी कोई खबर नहीं थी मेरे परिवार को मेरी कुशलता की भारी चिंता हो रही थी| यह मुझे बाद में पता चला था|
उस के बाद जो वहां हुआ वह इतिहास की बहुत बड़ी घटना है, अभूतपूर्व है, भारत की बहुत बड़ी विजय हुई, पाकिस्तान की बहुत बड़ी पराजय, उनके लेफ्ट जनरल एएके नियाजी द्वारा 93000 सैनिको समेत लेफ्टी. जनरल जगजीत सिंह को आत्मसमर्पण, एक नए राष्ट्र बांग्लादेश दुनिया के नक़्शे में उभरना, शेख मुजीबुर्रहमान की जेल से मुक्ति, पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याह्याखां का पतन, और करोड़ों बंगाली लोगों को राहत की सांस|
अखौडा बॉर्डर पर घर वापिसी के लिये लोगों का निरंतर तांता| बहुत से सताए हुए परिवार वहां अभी जाना ही नहीं चाह रहे थे भारत में रुके| एअरपोर्ट के बाहर सडक के किनारे पडी झुग्गियां सिकुड़ कर बहुत छोटी हो गई थी|
पाकिस्तान के पाक सेना के आत्म समर्पण के अगले ही दिन वहां ढाका से एक विमान लड़ाई में आहत केजुअलटियों के लेकर अगरतला आया था, जिनको मेडिकल आवश्यकताओं के अनुसार इलाज़ के लिये आर्मी या दूसरे हॉस्पिटल ले जाया जाना था| उनसे मिलकर वरियाम सिंह अपनी साइकिल दौडाते आया और बताया कुछ जख्मी उतार लिये गए कुछ आगे जाने वाले थे} एक जानने वाले मेजर साहेब मुझे जल्दी बुला रहे थ |
वहां जाकर देखा तो मेजर खरबंदा व्हील चेयर पर थे, मुस्कुरा रहे थे उनके दोनों पांव ढके थे| मैं उन्हें जख्मी देख कर दुखी था| छुटते की बोले “मैं ठीक हूँ रेजिमेंट ने बहुत शानदार काम किया हमारी 4-गार्ड ढाका पहुँचने वाले सबसे पहली पलटन थी| सो फील प्राउड ऑफ़ माई रेजिमेंट” फिर कुछ रूक कर बताया “एक माइन फील्ड में पैर गया था, क्या जल्दी फ़ोन कर मेरी वाइफ को बता सकते हो कि सब ठीक हो जाएगा ‘बॉल्स’ बिलकुल ठीक हैं|”
मुझे आश्चर्य हो रहा था और उस पर अभिमान भी कि कितना बहादुर है इस हालत में हंस सकता है| मैंने उससे बताया कि मेरे में इतनी हिम्मत नहीं यह सब कह पाऊं| प्लेन के पायलट और मेडिकल स्टाफ से इज़ाज़त लेकर मैं और वरियाम सिंह उन्हें एअरपोर्ट के ऑफिस व्हील चेयर पर फ़ोन करा लाये थे|
यह घटना मेरे लिये बहुत अविस्मरणीय है| बाद में पता चला था कि उनकी एक टांग घुटने के नीचे से काटनी पड़ी थी|
पहले नंबर पर हमेशा हवलदार वरियाम सिंह की याद है, जो मुझ नए और अनुभव ही का इतना ख्याल रखा| जिन्होंने तीन वाल चार बार जीवन दान तक दिलाया और जीवन के कई अमूल्य पाठ सिखाये| पहले अम्बुश में जाते हुए माइन फील्ड से बाल बाल बचाना, बीएसएफ की बीओपी के साथ भ्रम के कारण मुठभेड़ होने की नौबत से बचाना, आर्टिलरी के गोलों के हमले में मुझे ‘थल्ले लिटाकर बचाना, मेरे बंकर को बहुत मज़बूत बनवा कर, और सूबेदार भगत सिंह को कमरे से हटवा कर बंकर भिजवा कर दोनों की जिन्दगी बचाना| यह कोई साधारण बात नहीं है|
उसके बाद अख़बारों में पढ़ा था जनरल सगत सिंह के युद्ध कौशल के कारनामों और कर्नल हिम्मत सिंह की रेजिमेंट के सबसे पहले ढाका पहुँचने और उनकी बटालियन को स्वतंत्र बांग्ला देश के प्रथम राष्ट्रपति शेख मुज़ीबुर्रहमान द्वारा समानित कर अंतिम भारतीय टुकड़ी को अपने देश से विदा करने के बारे में| यहाँ कर्नल शाबेग सिंह के बारे में भी बताना ठीक रहेगा जिन्होंने मुक्ति बाहिनी को बनाने में ट्रेनिंग देने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी मेजर जनरल की रैंक तक पहुंचे थे, वे कोई और नहीं थे बल्कि वही थे जिन्होंने रिटायर होने के बाद जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथी बन कर गोल्डन टेम्पल की जबरदस्त किलाबंदी की थी और ऑपरेशन ब्लू स्टार में उसी के साथ मारे गए थे|
आज इतने वर्षों के बाद बांग्ला देश के लोग कैसे भूल गए है यह सब कुछ अपने स्वतंत्रता सेनानी मुज़ीबुर्रहमान को, मुक्ति वाहिनी को, जनरल टिक्का खान और नियाजी के उत्पीडन को, और भारत के इतने बड़े एहसानों को, यह सोचने का विषय है| क्या पब्लिक मेमोरी इतनी कमज़ोर होनी चाहिए? जैसा अब लग रहा है| जिस पश्चिमी पकिस्तान ने उन्हें उनको लुटा पीटा हत्या काण्ड किये, लाखों की मौत की, करोड़ों को विस्थापित किया उसके साथ हाथ मिला रहे हैं| कई बार तख्ते पलटे, जैसी बुरी स्थिति में पहुचं गया है फिर सत्ता पलट सकती है फौजी फिर सत्ता हाथ में ले सकते है| उन्हें कौन समझाए? विनाशकाले विपरीत बुद्धि है वहां बांग्ला देश में अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हैं| देखिये कब फिर तख्ता पलटेगा वहां? राष्ट्रीय कवि दिनकर भी रश्मिरथ में कह गए हें -
जब विनाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है|