Andhere se Insaan tak - 3 in Hindi Thriller by mood Writer books and stories PDF | अंधेरे से इंसाफ तक - 3

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अंधेरे से इंसाफ तक - 3

भाग 3 – भयावह तूफ़ान 

बस अब पूरी तरह सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी। खिड़कियों के बाहर अंधेरा पसरा हुआ था, कहीं-कहीं पर बिखरी रोशनी दिख जाती थी लेकिन वो भी इतनी फीकी कि मानो अंधेरे में गुम हो जाती हो। पेड़ों की परछाइयाँ बस की खिड़कियों से लहराती हुई गुजर रही थीं। अंदर का माहौल अब बेहद डरावना हो चुका था।

अनाया के दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे खुद अपनी साँसें सुनाई दे रही थीं। उसने अभय का हाथ कसकर पकड़ लिया। उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।
“अभय… ये लोग ठीक नहीं लग रहे… मुझे बहुत डर लग रहा है…” उसने धीमी आवाज़ में कहा।

अभय भी बेचैन था लेकिन उसने खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश की।
“तुम चिंता मत करो, मैं हूँ न तुम्हारे साथ।”

लेकिन अंदर ही अंदर उसे भी लग रहा था कि हालात हाथ से निकल रहे हैं।

ड्राइवर ने अचानक म्यूज़िक सिस्टम तेज़ कर दिया। किसी पुराने गाने की धुन बस के भीतर गूँजने लगी। उसकी आँखें रियर मिरर में बार-बार अनाया और अभय की तरफ उठ रही थीं।

तभी पीछे बैठे एक लड़के ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा—
“भाई, आज तो मज़ा आएगा… लड़की खुद चलकर फँस गई।”

बाकी सब ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़े।

अनाया का गला सूखने लगा। उसने घबराकर कहा—
“ड्राइवर जी, प्लीज़ बस रोक दीजिए… हमें अभी उतरना है।”

ड्राइवर ने बिना पीछे देखे कहा—
“बस अब यहीं रुकेगी… जहाँ हम चाहेंगे।”

ये सुनते ही अनाया काँप गई। उसने अभय का हाथ और कसकर पकड़ लिया।

अभय ने ज़ोर से आवाज़ लगाई—
“अरे! ये कैसा व्यवहार है? बस रोक नहीं सकते क्या?”

ड्राइवर ने इस बार ठंडी हँसी के साथ जवाब दिया—
“अब बस वहाँ रुकेगी जहाँ हम कहेंगे। और तुम दोनों… अब कहीं नहीं जाओगे।”

अगले ही पल पीछे बैठे चारों लड़के अपनी सीटों से उठकर उनकी तरफ बढ़े।

एक ने अभय की कॉलर पकड़कर उसे सीट से खींचा और बोला—
“बहुत बात कर रहा है? पहले तेरा हिसाब करते हैं।”

अभय ने पूरी ताक़त लगाकर उसका हाथ झटका और जोर से धक्का दिया। वह लड़का पास की सीट से टकराकर गिर पड़ा।

अनाया ने तुरंत खड़े होकर अभय का हाथ पकड़ लिया और बोली—
“भागते हैं… जल्दी दरवाज़ा खोलो!”

दोनों बस के दरवाज़े की तरफ दौड़े, लेकिन तभी कंडक्टर ने लोहे की छड़ उठाकर अभय के सिर पर जोर से मारी।

“धड़ाम!”

अभय वहीं लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उसके माथे से खून बहने लगा।

अनाया घबरा गई। उसने रोते हुए अभय को गोद में उठाया—
“अभय… आँखें खोलो… प्लीज़… उठो…”

लेकिन अभय की आँखें आधी बंद हो चुकी थीं। वह दर्द से कराह रहा था।

अब चारों लड़के अनाया की तरफ बढ़े। उनकी आँखों में दरिंदगी झलक रही थी।

अनाया ने काँपते हुए कहा—
“प्लीज़… मुझे छोड़ दो… भगवान के लिए मुझे मत छुओ।”

लेकिन उनमें से एक ने हँसते हुए कहा—
“भगवान अब यहाँ नहीं आएगा… यहाँ सिर्फ हम हैं और तुम हो।”

उसने झपटकर अनाया का दुपट्टा पकड़ लिया।

अनाया ने पूरी ताक़त से उसका हाथ झटका और सीट के पास रखी पानी की बोतल उठाकर उसके चेहरे पर दे मारी। बोतल टूट गई और उसके गाल से खून निकलने लगा।

वो लड़का गुस्से से चिल्लाया—
“साली! अब तो और मज़ा आएगा…”

बाकी लड़कों ने अनाया को पकड़ लिया। उसने पूरी ताक़त से हाथ-पाँव मारे, दाँतों से काटा, नाखूनों से चेहरा नोचा, लेकिन चार-चार दरिंदों के सामने उसकी एक न चली।

बस के भीतर उसकी चीखें गूँज रही थीं।
“बचाओ… कोई तो बचाओ…”

अभय ने बेहोशी की हालत में आँखें खोलीं और उसे देखकर तड़प उठा। उसने कमजोर आवाज़ में चिल्लाया—
“रुको… जानवरों… उसे छोड़ दो…”

लेकिन उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि बस की गूँज में खो गई।

उन दरिंदों ने उसे दबोच लिया। उसकी चीखें, उसकी कराहें, उसकी सिसकियाँ उस रात बस के हर कोने में गूँज रही थीं।

अनाया रोते हुए बार-बार कहती रही—
“तुम इंसान नहीं हो… जानवर हो… भगवान तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा…”

लेकिन उनकी हवस ने सबकुछ दबा दिया।

उस रात बस की खिड़कियों से सिर्फ अंधेरे में गूँजती अनाया की चीखें और रुलाई सुनाई देती रही।

वह रात इंसानियत पर सबसे बड़ा धब्बा बन गई।