भाग 2 – लौटती राह का सन्नाटाफिल्म
हॉल से निकलते ही रात गहराने लगी थी। ठंडी हवा चेहरे से टकरा रही थी और सागरपुर की सड़कें धीरे-धीरे वीरान होती जा रही थीं। दिन में जहाँ इन गलियों में चहल-पहल रहती थी, वहीं अब यह इलाका एकदम शांत और सुनसान हो गया था।अनाया ने अपने दुपट्टे को कसकर गले में लपेटा और अभय से बोली—“रात काफ़ी हो गई है… जल्दी घर चलना चाहिए। माँ-पापा भी फ़ोन कर चुके होंगे।”अभय ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा—“हाँ, चलो। मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ। लेकिन इस वक्त ऑटो मिलना मुश्किल होगा।”दोनों सड़क किनारे खड़े होकर इधर-उधर देखने लगे। कभी-कभार कोई बाइक सवार तेज़ी से निकल जाता, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट का नामोनिशान नहीं था।करीब दस मिनट इंतज़ार करने के बाद, दूर से आती बस की हेडलाइट्स दिखाई दीं। पुरानी सी बस, जिसके शीशे धुँधले थे और जिस पर शहर की लोकल ट्रैवल सर्विस का नाम लिखा था।अनाया ने हल्का सा संकोच जताते हुए कहा—“ये बस सुरक्षित होगी न? मुझे तो सही नहीं लग रही…”अभय ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा—“हम दोनों साथ हैं, डरो मत। चलो, इसी से घर तक पहुँच जाते हैं।”बस उनके सामने आकर रुकी। दरवाज़ा खुला तो अंदर चार-पाँच लोग पहले से बैठे थे। ड्राइवर की उम्र पचास के आसपास रही होगी, चेहरा थका-थका, पर आँखों में अजीब सी चमक थी। कंडक्टर ने बिना कुछ पूछे हाथ से इशारा किया—“आओ, बैठ जाओ।”अनाया का मन अब भी अजीब-सा हो रहा था, लेकिन उसने अभय का हाथ थाम लिया और दोनों पीछे की ओर जाकर सीट पर बैठ गए।शुरू में सब सामान्य लग रहा था। बस धीरे-धीरे आगे बढ़ी, रेडियो पर धीमी आवाज़ में पुराने गाने बज रहे थे। बाहर धुंध और अंधेरा, बस के भीतर हल्की-सी रोशनी।अनाया ने राहत की साँस ली और अभय से धीमे स्वर में बोली—“देखा, मैं बेकार ही डर रही थी।”अभय ने सिर हिलाकर मुस्कुरा दिया। लेकिन कुछ ही मिनटों बाद स्थिति बदलने लगी।सामने बैठे दो युवक आपस में फुसफुसाकर हँस रहे थे और बार-बार मुड़कर अनाया की ओर देख रहे थे। उनकी निगाहें साफ़ तौर पर असभ्य और असहज करने वाली थीं।अभय ने इसे नोटिस किया और सीधे उन दोनों की तरफ घूरकर देखने लगा। उसकी आँखों की गंभीरता देखकर वे थोड़ी देर चुप हो गए, मगर उनकी हँसी थमी नहीं।अनाया का मन फिर से घबराने लगा। उसने खिड़की से बाहर झाँकते हुए देखा—सड़कें अब और भी सुनसान हो चुकी थीं। इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही निकल रही थीं। आसपास कोई बाज़ार या भीड़भाड़ वाला इलाका नहीं दिख रहा था।कुछ देर बाद ड्राइवर ने अचानक एक सुनसान रास्ते की ओर मोड़ लिया।अनाया चौक गई—“ये कौन सा रास्ता है? मेरा घर तो दूसरी दिशा में है…”अभय ने आगे बढ़कर ड्राइवर से पूछा—“अरे भाई, ये किधर ले जा रहे हो? हमें तो मेन रोड पर जाना था।”ड्राइवर ने बिना उसकी तरफ देखे ठंडी आवाज़ में कहा—“मेन रोड पर काम चल रहा है, डाइवर्जन है। यहीं से जाना पड़ेगा।”अभय को शक तो हुआ, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।बस धीरे-धीरे अंधेरे रास्ते पर दौड़ रही थी। अनाया का दिल धड़कने लगा। उसने अभय का हाथ कसकर पकड़ लिया।अचानक उन युवकों में से एक ने तेज़ आवाज़ में गाना गाना शुरू कर दिया और दूसरा ज़ोर-ज़ोर से सीट पर पैर मारने लगा। पूरा माहौल बदल गया।अनाया ने घबराकर धीरे से कहा—“अभय… कुछ गड़बड़ लग रही है…”अभय ने उसकी आँखों में देखते हुए उसे शांत करने की कोशिश की—“डर मत, मैं हूँ न।”लेकिन उसका खुद का दिल भी अब तेज़ी से धड़क रहा था।करीब पाँच मिनट बाद ही, उन युवकों ने सीधे अनाया पर फब्तियाँ कसना शुरू कर दीं।“अरे भाई… ये लड़की तो बहुत स्मार्ट है।”“सुनो न… कहाँ जा रही हो इतनी रात को?”उनकी बातें सुनकर अनाया का चेहरा लाल पड़ गया। उसने नज़रें झुका लीं।अभय तुरंत खड़ा हुआ और सख़्त आवाज़ में बोला—“चुप रहो, नहीं तो ठीक नहीं होगा।”उसकी बात सुनकर बस में एक अजीब-सी ख़ामोशी छा गई। लेकिन यह ख़ामोशी आने वाले तूफ़ान से पहले की शांति थी।ड्राइवर ने रियर-व्यू मिरर से पीछे झाँकते हुए हल्की मुस्कान दी। कंडक्टर ने आँखों से इशारा किया और बाकी लोग समझकर हँस पड़े।अनाया को अब पूरा यक़ीन हो गया कि कुछ बहुत गलत होने वाला है।बस का इंजन गड़गड़ाहट के साथ और तेज़ हो गया। सड़कें और वीरान होती गईं। दूर-दूर तक कोई रोशनी, कोई इंसान नज़र नहीं आ रहा था।अनाया की हथेलियाँ पसीने से भीग चुकी थीं। वह बार-बार प्रार्थना कर रही थी—“हे भगवान… हमें सुरक्षित घर पहुँचा दो।”लेकिन उस रात किस्मत जैसे उनकी सुनने के लिए तैयार ही नहीं थी।