भाग 4 – टूटा हुआ सवेरा
बस अब धीरे-धीरे वीरान रास्ते पर रुक गई। रात के दो ढाई बज रहे थे। ठंडी हवा चल रही थी। दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं।
ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर में देखा और बोला—
“अब बहुत हुआ… इन्हें फेंक दो।”
दरिंदों ने खून से लथपथ अभय और घायल अनाया को घसीटते हुए बस के बाहर ला पटका।
“धड़ाम!”
दोनों सड़क पर जा गिरे।
अभय कराह रहा था, उसका चेहरा खून से लथपथ था। अनाया मुश्किल से साँस ले पा रही थी। उसके कपड़े फटे हुए थे और शरीर काँप रहा था।
एक दरिंदे ने उन्हें लात मारते हुए कहा—
“अगर किसी को बताया… तो जान से मार देंगे।”
इसके बाद बस तेजी से अंधेरे में ग़ायब हो गई।
सड़क पर सिर्फ अंधेरा था। कोई गाड़ी नहीं, कोई आदमी नहीं।
अनाया ने दर्द से कराहते हुए अभय की तरफ देखा।
“अभय… उठो… हमें कोई चाहिए… कोई मदद करे…”
अभय ने टूटे शब्दों में कहा—
“मैं हूँ… तुम हारना मत… कोई न कोई आएगा…”
वो बार-बार बेहोश हो रहा था लेकिन फिर भी अनाया का हाथ कसकर पकड़े रहा।
करीब आधा घंटा बीत गया। ठंडी हवा उनके ज़ख्मों पर चुभ रही थी।
फिर दूर से एक ऑटो आता दिखाई दिया। ड्राइवर ने उन्हें देखकर ब्रेक मारा।
“हे भगवान! ये क्या हाल है?”
वो घबराकर उतर गया और तुरंत पुलिस को फोन किया।
करीब 15 मिनट बाद पुलिस जीप आई। हवलदार ने दोनों को देखा तो उसकी आँखें भी भर आईं।
“तुरंत अस्पताल ले चलो… देर हुई तो जान चली जाएगी।”
अभय और अनाया को उठाकर जीप में डाला गया। अनाया बीच-बीच में चीख उठती थी, फिर बेहोश हो जाती।
जीप सायरन बजाती हुई अस्पताल की तरफ दौड़ पड़ी।
सरकारी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में अफरा-तफरी मच गई।
डॉक्टरों ने तुरंत दोनों को स्ट्रेचर पर डाला।
“ब्लड प्रेशर गिर रहा है!”
“जल्दी से सलाइन लगाओ।”
“ओटी तैयार करो।”
डॉक्टरों और नर्सों की टीम भाग-दौड़ करने लगी।
अनाया की हालत बेहद नाज़ुक थी। उसका शरीर बार-बार काँप रहा था।
वो धीमी आवाज़ में बार-बार एक ही शब्द बोल रही थी—
“माँ… माँ… मुझे घर जाना है…”
उसकी आँखों से आँसू बहते रहे।
पुलिस ने किसी तरह अनाया और अभय के घरवालों को खबर दी।
सुबह होते-होते अस्पताल के बाहर भीड़ लग गई। मीडिया की गाड़ियाँ, कैमरे, माइक सब पहुँच गए।
अनाया की माँ चीखते हुए अस्पताल पहुँचीं।
“मेरी बच्ची कहाँ है? मुझे मेरी बेटी को देखने दो…”
डॉक्टर ने उन्हें समझाया—
“अभी हालत बहुत गंभीर है, आप अंदर नहीं जा सकतीं।”
लेकिन माँ की हालत भी खराब हो गई। वो ज़मीन पर गिर पड़ी और रोने लगी।
टीवी चैनलों पर लगातार ख़बरें चलने लगीं—
“राजनगर में बस में हुई दरिंदगी… लड़की और उसके दोस्त की हालत गंभीर।”
“सरकार से जवाब माँग रही है जनता।”
अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ बढ़ती गई। कोई मोमबत्तियाँ लेकर आया, कोई पोस्टर बनाकर।
सड़क पर नारे गूँजने लगे—
“हम इंसाफ चाहते हैं!”
“दरिंदों को फाँसी दो!”
पूरा शहर आक्रोश में जल उठा।
वार्ड में अनाया दर्द से तड़प रही थी।
डॉक्टर उसके शरीर पर दवाइयाँ लगा रहे थे।
लेकिन हर इंजेक्शन, हर पट्टी के साथ वो कराह उठती—
“प्लीज़… रुक जाओ… मुझे बहुत दर्द हो रहा है…”
डॉक्टरों ने उसकी माँ को बुलाया और कहा—
“हमें डर है… शायद हम इसे बचा न पाएँ। लेकिन जब तक साँसें हैं, हम कोशिश करेंगे।”
माँ ने आँसुओं से भीगी आँखों से कहा—
“डॉक्टर साहब… मेरी बेटी को बचा लीजिए… वो तो बस अभी पढ़ाई कर रही थी… उसके सपने अधूरे हैं…”
पुलिस ने तुरंत जाँच शुरू कर दी। बस का नंबर मिल चुका था।
कुछ ही घंटों में उन्होंने एक आरोपी को पकड़ लिया।
पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी।
सोशल मीडिया, अख़बार, हर जगह सिर्फ एक ही आवाज़—
“दरिंदों को फाँसी दो।”
सुबह की रोशनी अस्पताल की खिड़कियों से अंदर आ रही थी, लेकिन उस रोशनी में सुकून नहीं था, दर्द था।
अनाया धीरे-धीरे बेहोशी और होश के बीच झूल रही थी।
अभय ICU में पड़ा था, उसकी हालत भी गंभीर थी।
दोनों के चेहरे पर ज़ख्म और आँखों में अधूरी ज़िंदगी की कहानी लिखी हुई थी।
वो सवेरा इंसानियत के लिए सबसे काला सवेरा बन गया।