रात का सन्नाटा अब और भी गहरा हो चुका था। हवाएँ तेज़ चल रही थीं, खिड़कियों से टकराकर अजीब सी सीटी जैसी आवाज़ निकाल रही थीं। नंदिनी अपने कमरे में बैठी बार-बार उस खून से सने टीके को याद कर रही थी जो उसने मंदिर में देखा था। उसका मन बार-बार यह सोचकर सिहर उठता कि आखिर ये सब कौन कर रहा है और क्यों?
उसकी आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य कौंध जाता – लाल खून, पवित्र जगह पर लगा टीका और उस पर लिखे रहस्यमयी शब्द। नंदिनी का मन डर और बेचैनी से भर गया। वह सोच रही थी कि इस घर की हर चीज़ जैसे किसी रहस्य को छुपाए बैठी है।
अचानक पीछे से लकड़ी के फर्श पर चरमराने की आवाज़ आई। नंदिनी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने तुरंत मुड़कर देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था। कमरे में सिर्फ परदे हिल रहे थे। उसने डरते हुए आवाज़ लगाई –
“क…कौन है वहाँ?”
लेकिन कोई जवाब नहीं आया। बस गहरी साँसों की हल्की-हल्की आहट सुनाई दी। नंदिनी के पाँव जैसे ज़मीन से चिपक गए। उसे महसूस हुआ जैसे कोई अदृश्य साया उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा हो।
वह खुद को सँभाल नहीं पाई और भागते-भागते कमरे से बाहर निकल गई। बाहर का लंबा अंधेरा गलियारा और भी भयानक लग रहा था। दीवारों पर टंगी पुरानी तस्वीरें थीं जिनकी आँखें अंधेरे में चमक रही थीं, जैसे सब उसे घूर रही हों।
तभी अचानक घर की बिजली चली गई। पूरा मकान गहरे अंधेरे में डूब गया। इस सन्नाटे में नंदिनी का डर और बढ़ गया। उसने हाथ से टटोलते हुए एक मोमबत्ती निकाली और जलाने की कोशिश की। तभी उसकी नज़र दरवाज़े की ओर गई और उसकी साँसें थम गईं।
दरवाज़े पर खून से लिखा हुआ नया संदेश था –
“सच सामने आएगा… चाहे तुम चाहो या नहीं।”
नंदिनी की आँखें फटी की फटी रह गईं। वह काँपते हुए पीछे हट गई। उसके मन में सवालों का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ –
“ये खून कौन लिख रहा है? और कौन सा सच सामने आने वाला है?”
इसी बीच अचानक नीचे के कमरे से किसी के चिल्लाने की आवाज़ गूंजी –
“बचाओ…! कोई है…!”
नंदिनी का दिल जोर से धड़कने लगा। वह एक पल के लिए ठिठकी, लेकिन फिर हिम्मत जुटाकर धीरे-धीरे सीढ़ियों की ओर बढ़ी। सीढ़ियों पर कदम रखते ही उसकी साँसें भारी हो गईं। हर कदम पर उसे लग रहा था जैसे कोई उसके पीछे-पीछे चल रहा है।
जैसे ही वह सीढ़ियों के बीच पहुँची, उसे अचानक अहसास हुआ कि किसी ने उसकी कलाई को ज़ोर से पकड़ लिया है। नंदिनी चीख पड़ी –
“आआआह्ह्ह!!!”
उसका पूरा शरीर डर से काँप उठा। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। अगले ही पल उसकी पकड़ अचानक ढीली हो गई और नंदिनी ज़ोर से सीढ़ियों पर बैठ गई।
काँपते हाथों से उसने नीचे झाँककर देखा और उसका खून जम गया। सीढ़ियों के नीचे फर्श पर लाल कपड़े में लिपटा हुआ एक अज्ञात शव पड़ा था।
उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। होंठ कांपने लगे।
“हे भगवान… ये… ये कौन है?”
शव का चेहरा ढका हुआ था, लेकिन उसके पास ही ज़मीन पर वही खून से सना टीका पड़ा था।
नंदिनी की साँसें थम गईं। उसे लगने लगा कि यह सब महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं है, बल्कि कोई बहुत गहरा राज़ छुपा है।
अब सवाल उसके सामने खड़े थे –
क्या यह शव उसी घर के किसी सदस्य का है?
या फिर कोई और है जो इस रहस्य में बली चढ़ा है?
और ये खून का टीका आखिर किस कहानी की गवाही दे रहा है?
नंदिनी के चारों ओर अंधेरा, रहस्य और खामोशी का जाल फैल चुका था… और उसका सामना अब उस सच्चाई से होना तय था, जिसे कोई छुपाना चाहता था।