Khoon ki Tika - 1 in Hindi Crime Stories by Priyanka Singh books and stories PDF | खून का टीका - भाग 1

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खून का टीका - भाग 1

अध्याय 2 - ई खून का निशान

"…और जब अन्नया ने सीढ़ियों से नीचे कदम रखा, उसकी नज़र दरवाज़े पर जमे उस लाल धब्बे पर पड़ी। वह धब्बा ताज़े खून का था… और तभी पीछे से सरोज की दबे पांव आती परछाई दीवार पर उभरी।"

रात के सन्नाटे में सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। बाहर आकाश में बादल गरज रहे थे और हल्की-हल्की बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं। अन्नया की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे अपना सीना फटता हुआ महसूस हो रहा था।

"ये… खून यहाँ कैसे आया?" अन्नया की आवाज़ काँप रही थी, आँखें चौड़ी हो गईं। उसने सरोज की ओर देखा जो एकदम खामोश खड़ी थी।

सरोज ने गहरी सांस ली और धीमे स्वर में बोली,
"कुछ सच ऐसे होते हैं अन्नया, जिन्हें जानना आसान नहीं होता। ये खून का धब्बा… सिर्फ एक शुरुआत है।"

अन्नया के पैरों के नीचे ज़मीन खिसक गई। वह कुछ बोलना चाहती थी, मगर शब्द गले में ही अटक गए।

सरोज धीरे-धीरे आगे बढ़ी।
"तुम जानती हो तुम्हारी माँ कौन थी? और किससे बचाने के लिए उसने अपनी जान दी?"

अन्नया ने भौंहें सिकोड़ लीं। उसके दिल में एक अजीब डर और जिज्ञासा दोनों उमड़ने लगे।

सरोज ने सीढ़ियों के नीचे रखे पुराने लकड़ी के संदूक की तरफ इशारा किया।
"उस संदूक में तुम्हारे सभी सवालों के जवाब हैं… लेकिन याद रखना, सच को जानने के बाद तुम्हारी ज़िंदगी कभी पहले जैसी नहीं रहेगी।"

अन्नया काँपते हुए संदूक के पास गई। उसने धूल भरे ताले को धीरे से खोला। संदूक खुलते ही उसमें से एक पुरानी लाल चुनरी निकली जिस पर खून के दाग थे। उसके नीचे एक फोटो रखी थी — फोटो में उसकी माँ मुस्कुरा रही थी… और उसके साथ सरोज भी खड़ी थी।

"ये… ये कैसे हो सकता है?" अन्नया चीख पड़ी।
"तुम मेरी माँ को कैसे जानती हो?"

सरोज की आँखों में आँसू भर आए, पर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी थी।
"क्योंकि वो सिर्फ तुम्हारी माँ नहीं थी, अन्नया… वो मेरी भी थी।"

ये सुनते ही अन्नया का दिमाग घूम गया। उसका पूरा शरीर सुन्न पड़ गया।
"तुम… मेरी बहन हो?"

सरोज ने सिर झुका लिया।
"बहन नहीं… लेकिन सच्चाई इससे भी गहरी है। तुम्हारी माँ ने दो जिंदगियां बचाने के लिए अपनी जान दी थी… और उनमें से एक मैं हूँ।"

अन्नया के कानों में आवाज़ गूंजने लगी — “खून का टीका कभी मिटता नहीं…” उसकी माँ के कहे हुए पुराने शब्द याद आने लगे।

और तभी —

धड़ाम!
बाहर से ज़ोरदार आवाज़ आई। दरवाज़ा टूटकर खुल गया। काली वर्दी में तीन अजनबी आदमी घर में घुस आए। उनके हाथ में बंदूकें थीं और आँखों में अजीब-सी चमक।

"वो दोनों यहीं हैं… किसी को जिंदा मत छोड़ना!" उनमें से एक चिल्लाया।

अन्नया चीख पड़ी और सरोज ने उसका हाथ पकड़कर सीढ़ियों की तरफ दौड़ लगाई। गोलियों की आवाज़ पूरे घर में गूंजने लगी।



सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अचानक सरोज फिसल गई और उसके हाथ से एक पुराना लॉकेट गिरकर ज़मीन पर लुढ़क गया।
लॉकेट खुला… और उसमें अन्नया के पिता की तस्वीर थी — मगर साथ में एक और औरत की भी!

अन्नया ने कांपती आवाज़ में पूछा,
"ये औरत… कौन है, सरोज?"

सरोज ने काँपते होंठों से जवाब दिया —
"यही वो है… जिसने तुम्हारी माँ की हत्या की थी!"