पार्ट 6
पिछले भाग में:
आरव की रहस्यमयी मौत के बाद अवनि को उसके कमरे में कुछ अजीब घटनाएँ महसूस होने लगीं — अचानक दरवाज़ा अपने आप बंद होना, खिलौनों का हिलना, और दीवार पर खून से लिखी एक चेतावनी —
> "मैं गया नहीं हूँ…"
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अवनि ने उस खून से लिखे शब्दों को देखकर अपनी आँखें मसल डालीं।
"नहीं… ये मेरा वहम है…"
उसने खुद से कहा, लेकिन दिल की धड़कनें अब भी दौड़ रही थीं जैसे किसी ने सच में छू लिया हो।
वो तुरंत कमरे से बाहर निकली और दौड़कर माँ के पास पहुंची। माँ पूजा के सामने बैठी रो रही थी, हाथ में आरव की फोटो थी।
"माँ!" अवनि ने घबराते हुए आवाज़ लगाई।
"क्या हुआ बिटिया?" माँ ने आँसू पोंछे।
"माँ… उस कमरे में कोई है। मुझे लग रहा है आरव… अभी भी हमारे साथ है।"
माँ चुप रही, जैसे कुछ छुपा रही हो।
"माँ, क्या आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं?"
माँ ने नजरें झुका लीं।
"आरव की मौत… कैसे हुई माँ?"
"तूने तो देखा ही था न… वो सीढ़ियों से गिरा था।" माँ ने काँपती आवाज़ में कहा।
"लेकिन उसकी आंखें… मरते वक़्त कुछ बोलना चाह रही थीं। और वो दीवार पर खून से…"
माँ ने बीच में ही रोक दिया —
"बस कर अवनि! ये सब तेरा दिमाग़ खेल खेल रहा है। कुछ नहीं है वहाँ।"
"तो फिर कमरे से खिलौनों की आवाज़ क्यों आती है?"
"दीवार पर वो खून से लिखा संदेश कैसे आया?"
"मुझे क्यों लगता है कि कोई मुझे देख रहा है?"
माँ गहरी सांस लेकर उठी।
"ठीक है, आज रात मैं उस कमरे में तुम्हारे साथ रहूंगी। देखते हैं क्या है।"
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🌙 रात – आरव का कमरा
अवनि और माँ दोनों कमरे में थीं। एक कोने में मोमबत्ती जल रही थी, क्योंकि लाइट जाने का बहाना हमेशा तैयार था।
माँ ने हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू किया।
अवनि बिस्तर पर बैठी थी, हाथ में आरव का खिलौना — जो अब भी टुकुर-टुकुर उसे देख रहा था।
रात के 2 बजे…
एक ठंडी हवा कमरे में चली। मोमबत्ती की लौ काँपने लगी।
तभी एक धीमी सी आवाज़ गूंजी —
“दीदी…”
अवनि ने माँ की तरफ देखा, लेकिन माँ तो गहरी नींद में सो चुकी थी — या शायद बेहोश?
"आरव?" अवनि की आवाज़ काँप रही थी।
“दीदी, मैं डर रहा हूँ…”
"क…कहाँ हो तुम?"
"मैं यहीं हूँ… तुम्हारे पीछे…"
अवनि ने धीरे से गर्दन घुमाई — लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
तभी, बिस्तर के नीचे से एक ठंडा हाथ उसके पैरों को छू गया।
वो चिल्लाई — "माँ!!"
माँ उठी, लेकिन उसके चेहरे पर अब डर नहीं था… बल्कि हैरानी थी।
"अवनि… उस फोटो को देखो!"
अवनि ने नजर घुमाई — दीवार पर लगी आरव की फोटो अब बदल चुकी थी।
उसके चेहरे पर एक डरावनी मुस्कान थी… और उसकी आंखों से खून टपक रहा था।
फिर उसी फोटो से एक धुंधली परछाईं निकली और धीरे-धीरे अवनि के सामने आकार लेने लगी।
वो कोई और नहीं… खुद आरव था।
पर ये आरव पहले जैसा मासूम नहीं था — उसकी आँखों में गुस्सा था, चेहरा नीला पड़ चुका था, और उसकी आवाज़ बदल गई थी।
"जिसने मुझे मारा… वो अब भी इस घर में है…"
अवनि काँपते हुए बोली — "क्या? किसने मारा तुम्हें?"
"जो तुम सोच रही हो… वो सच नहीं है। माँ जानती है… लेकिन बोलती नहीं।"
"माँ?" अवनि माँ की तरफ मुड़ी, जो अब कांप रही थी।
"आरव, मैं डर गई थी बेटा… मैंने किसी को नहीं मारा…"
"तुमने नहीं… लेकिन तुमने उसे बचाया… जिसने मुझे मारा…"
"कौन है वो?" अवनि ने चीखकर पूछा।
"खून का टीका… उसे पहचानो… तभी मैं मुक्त हो पाऊंगा…"
आरव की आत्मा दीवार से होकर निकल गई।
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🔥 जारी रहेगा – Part 7 में:
आरव के इशारे का मतलब क्या है?
“खून का टीका” किसकी पहचान है?
क्या माँ सच छुपा रही है?