रात का अँधेरा और हवेली में गूँजती गोली की आवाज़ – सब कुछ एक पल में थम गया। धुआँ छँटते ही अनन्या ने देखा – उसके पिता राघव जमीन पर पड़े थे, लेकिन उनकी साँसें अब भी चल रही थीं।
पुलिस दौड़कर उनके पास पहुँची, हथकड़ी लगाई और उन्हें उठाने लगी। लेकिन अनन्या का ध्यान अब भी एक सवाल पर अटका था – पुलिस को यहाँ बुलाया किसने?
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रहस्यमयी मददगार
अनन्या ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। हवेली का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला और अंदर आया – विक्रम, अनन्या का मंगेतर।
"अनन्या, मैं समय पर पहुँच गया। मैंने ही पुलिस को खबर दी थी," विक्रम ने कहा।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
"लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?"
विक्रम ने धीरे से जवाब दिया –
"तुम्हारी माँ ने मुझे सच बताने के लिए बुलाया था… उनके खत से।"
अनन्या चौक गई –
"माँ तो… मर चुकी हैं!"
विक्रम ने कहा –
"हाँ, पर मौत से पहले उन्होंने मेरे पास एक चिट्ठी छोड़ी थी, जो मुझे कल रात मिली। उसमें लिखा था कि इस हवेली में छिपा सच सिर्फ तुम ही खोल सकती हो।"
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राघव का सच
इस बीच, राघव को पुलिस खींचकर बाहर ले जाने लगी। लेकिन जाने से पहले उसने अनन्या की ओर देखा और ठंडी हँसी हँसी –
"तुम्हें लगता है सच यहीं खत्म हो गया? असली खेल तो अब शुरू होगा… क्योंकि जिस राज़ को तुम्हारी माँ ने छिपाया था, वो अब भी इस हवेली में है!"
पुलिस उन्हें ले गई, लेकिन अनन्या के दिल में डर और सवाल और गहरे हो गए।
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हवेली का शाप
रात बीत गई। अगली सुबह, अनन्या और विक्रम ने तय किया कि वो हवेली के बाकी हिस्से की भी तलाशी लेंगे। तहखाने के दूसरे कोने में उन्हें एक पुराना लोहे का संदूक मिला – जिस पर सूखा हुआ खून लगा था।
अनन्या ने काँपते हाथों से संदूक खोला। अंदर से उन्हें एक पुरानी लाल चुनरी और कुछ कागज़ मिले। चुनरी पर वही खून का टीका लगा था, जो उसकी माँ की मौत वाली रात माथे पर लगा था।
कागज़ पर लिखा था –
"जिस दिन इस टीके का सच खुलेगा, उस दिन हवेली का सबसे बड़ा पाप भी उजागर होगा। और ये पाप सिर्फ एक इंसान का नहीं, पूरे खानदान का है।"
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अनन्या के हाथ काँपने लगे। उसने विक्रम से पूछा –
"क्या तुम्हें लगता है माँ का कत्ल सिर्फ पिता ने किया था? या इसमें और लोग भी शामिल हैं?"
विक्रम ने धीमी आवाज़ में कहा –
"अनन्या… मुझे लगता है तुम्हारी माँ को सिर्फ इसलिए नहीं मारा गया क्योंकि वो राज़ जानती थीं… बल्कि इसलिए क्योंकि वो उस राज़ की असली मालिक थीं।"
तभी अचानक हवेली के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। हवा में अजीब सी ठंडक फैल गई। सीढ़ियों पर किसी औरत के पायल की आवाज़ गूँजने लगी।
अनन्या और विक्रम ने ऊपर देखा – सीढ़ियों पर सरोज की परछाई खड़ी थी।
"माँ…?" अनन्या की आवाज़ काँप गई।
परछाई ने धीमी आवाज़ में कहा –
"अनन्या… मेरी मौत का सच अभी अधूरा है। जिसने मुझे मारा, वो अकेला नहीं था। असली कातिल अभी भी तुम्हारे आस-पास है… और वो तुम पर नज़र रख रहा है!"
इतना कहते ही परछाई गायब हो गई।
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कहानी का नया खतरा
अनन्या का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने विक्रम की तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी।
"विक्रम… तुम ठीक हो न?"
विक्रम ने बस हल्की सी मुस्कान दी और कहा –
"हाँ, मैं ठीक हूँ… लेकिन अब तुम्हें वो सब जानना होगा जो मैंने छुपा रखा था।"
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(अगले भाग में – क्या विक्रम सचमुच भरोसेमंद है या असली कातिल वही है? हवेली का असली पाप क्या है? खून के टीके का असली मतलब क्या है?)