जन्म और बचपन
1622 ई. में असम की धरती पर एक वीर बालक का जन्म हुआ – उसका नाम रखा गया लाचित। पिता ममोई तमुली बरबरुआ आहोम साम्राज्य में उच्च पद पर थे और माता धर्मपरायण महिला थीं। बचपन से ही लाचित अनुशासनप्रिय, पराक्रमी और चतुर बुद्धि के थे। वे तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और तीरंदाज़ी में माहिर हो गए।
गुरुकुल में पढ़ाई के समय ही उनमें देशभक्ति और निडरता झलकती थी।
🏹 मुग़लों की नज़र असम पर
उस समय दिल्ली में औरंगज़ेब का शासन था। उसकी महत्वाकांक्षा थी कि भारत की हर धरती मुग़ल साम्राज्य के अधीन हो। असम की उपजाऊ ज़मीन, चाय, रेशम और ब्रह्मपुत्र की घाटी उसके लिए खज़ाना थी।
औरंगज़ेब ने अपने सेनापति राजा रामसिंह (जयपुर के राजपूत राजा) को आदेश दिया –
“असम को जीत लो और आहोम साम्राज्य को हमारे अधीन कर दो।”
रामसिंह एक विशाल सेना लेकर असम पहुँचे। उनके पास लाखों सैनिक, भारी तोपखाना और नौसेना थी।
👑 आहोम साम्राज्य और लाचित की नियुक्ति
उस समय असम का शासन स्वर्गदेव चक्रध्वज सिंह के हाथों में था। जब संकट आया तो उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद सेनापति लाचित बोरफुकन को सेना का प्रधान नियुक्त किया।
लाचित ने प्रतिज्ञा ली –
“मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करूँगा, चाहे इसके लिए अपने प्राण ही क्यों न देने पड़ें।”
⚔️ रणनीति की तैयारी
लाचित जानते थे कि संख्या और हथियारों में उनकी सेना मुग़लों से बहुत कमज़ोर है।
इसलिए उन्होंने रणनीति और गोरिल्ला युद्ध को हथियार बनाया।
ब्रह्मपुत्र नदी की धारा और मोड़ों का लाभ उठाया।
नौकाओं को छुपा-छुपाकर रखा गया।
रात में छोटे-छोटे छापामार हमले किए।
दुश्मन की रसद काट दी गई।
🏞️ सरायघाट का युद्ध (1671)
युद्ध का निर्णायक मैदान चुना गया – सरायघाट, जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित था।
मुग़लों की नौसेना बड़ी और भारी जहाज़ों वाली थी।
असम की नौसेना छोटी-छोटी नावों पर आधारित थी, लेकिन वे तेज और चपल थीं।
जब युद्ध शुरू हुआ तो मुग़ल सेना ने अपने तोपों से आकाश गड़गा दिया। असम की सेना कुछ पीछे हटने लगी।
तभी बीमार अवस्था में भी लाचित ने नाव पर खड़े होकर गर्जना की –
“जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण नहीं दे सकता, वह जन्म लेने के योग्य नहीं!
आगे बढ़ो, मैं भी बीमार शरीर से तुम्हारे साथ हूँ!”
यह सुनते ही असम की सेना में नया जोश भर गया।
हनुमान जैसी ताक़त से नाविकों ने नावें चलाईं।
तीरंदाज़ों ने दुश्मनों पर बाणों की वर्षा कर दी।
छोटी नावों ने बड़ी मुग़ल नौकाओं को घेरकर आग लगा दी।
मुग़ल सेना, जिसकी संख्या कहीं अधिक थी, हताश होकर पीछे हटने लगी।
🏆 असम की विजय
आख़िरकार, लाचित बोरफुकन के नेतृत्व में असम ने मुग़ल सेना को भारी पराजय दी। रामसिंह अपनी विशाल सेना के बावजूद कुछ न कर सके और पीछे हट गए।
यह विजय इतिहास में अमर हो गई –
“सरायघाट का युद्ध” भारतीय इतिहास की सबसे महान समुद्री/नदीय लड़ाइयों में से एक माना गया।
🌸 लाचित का बलिदान
युद्ध के कुछ दिनों बाद ही लाचित बोरफुकन गंभीर बीमारी के कारण वीरगति को प्राप्त हो गए।
उनकी अंतिम वाणी थी –
“मेरा शरीर भले ही न रहे, लेकिन मेरा साहस और यह विजय सदैव असम और भारत को प्रेरणा देता रहेगा।”
🌺 गाथा की सीख
1. देशभक्ति सबसे बड़ी शक्ति है – जो अपने देश के लिए लड़ता है, वह अमर हो जाता है।
2. रणनीति और साहस से ही विजय होती है – संख्या नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता और आत्मबल असली ताक़त है।
3. सच्चा नेता वही है जो कठिन परिस्थिति में भी अपनी सेना का हौसला बढ़ाए।
4. बलिदान अमरत्व देता है – लाचित बोरफुकन भले ही शरीर से न रहे, लेकिन उनकी गाथा आज भी जीवित है।