बहुत समय पहले, त्रेता युग में जब अयोध्या में भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ, तो पूरी धरती पर सुख-शांति का युग छा गया। प्रजा खुशहाल थी, ऋषि-मुनि अपने आश्रमों में साधना कर रहे थे और वन्य जीव भी सुरक्षित जीवन जी रहे थे।
लेकिन हिमालय की गोद में बसे कुछ आश्रमों में एक संकट उठ खड़ा हुआ। वहाँ राक्षसों का आतंक बढ़ने लगा था। वे ऋषियों की तपस्या भंग करते, यज्ञ नष्ट करते और यात्रियों को सताते।
🌿 ऋषियों की पुकार
हिमालय की गुफाओं में बैठे महान ऋषियों ने यह देखकर भगवान राम को याद किया। वे अयोध्या पहुँचे और बोले –
“राम! तुम तो धर्म के रक्षक हो। यदि हिमालय की गोद असुरों से अशांत हो गई, तो समस्त आर्यावर्त का संतुलन बिगड़ जाएगा। वहाँ की तपोभूमि हमारी शक्ति का केंद्र है। कृपा कर हमारी रक्षा करो।”
राम ने विनम्रता से कहा –
“ऋषिवर! हिमालय केवल पर्वत नहीं, बल्कि देवताओं का निवास है। वहाँ की रक्षा करना मेरा धर्म है। मैं स्वयं वहाँ जाऊँगा।”
🏔️ राम का हिमालय प्रवेश
राम, लक्ष्मण और वानरवीर हनुमान के साथ हिमालय की ओर बढ़े। जैसे-जैसे वे ऊपर चढ़ते गए, हिमालय अपनी विराटता से उन्हें विस्मित करता गया।
बर्फ से ढके शिखर सूर्य की किरणों में सोने की तरह चमकते।
नदियाँ गूंजती हुईं बहतीं, मानो स्वयं गंगा और यमुना उनका स्वागत कर रही हों।
हवा में एक दिव्यता थी, जो आत्मा को शांति देती थी।
राम ने हनुमान से कहा –
“हनुमान! देखो यह हिमालय, यह स्थिरता और धैर्य का प्रतीक है। यही धरती की रीढ़ है। जब तक यह अडिग खड़ा है, तब तक धर्म भी अडिग रहेगा।”
⚔️ असुरों से युद्ध
राक्षसों ने जब सुना कि राम हिमालय में पहुँचे हैं, तो वे क्रोधित हो उठे। रात के समय उन्होंने आश्रमों पर हमला किया। तभी राम ने धनुष खींचा और अग्निबाण चलाया।
आकाश गड़गड़ाहट से भर गया।
राक्षसों की सेनाएँ काँप उठीं।
हनुमान ने पर्वत तोड़कर उनका मार्ग रोक दिया।
लक्ष्मण ने अपने शर से अंधकार मिटा दिया।
युद्ध भीषण हुआ, लेकिन अंत में धर्म की जीत हुई। राक्षस परास्त हुए और हिमालय फिर से शांति का केंद्र बन गया।
🌸 हिमालय का आशीर्वाद
युद्ध के बाद स्वयं हिमालय पर्वत ने भगवान राम के सामने प्रकट होकर कहा –
“राम! तुमने मेरी गोद को पवित्र कर दिया। मैं सदा अडिग रहूँगा, जब तक तुम्हारा नाम इस धरती पर लिया जाएगा। मेरी नदियाँ सदा जीवन देंगी और मेरी गुफाएँ सदा तपस्वियों का घर होंगी।”
राम ने हाथ जोड़कर कहा –
“हे हिमालय! तुम्हारी स्थिरता हम सबके लिए प्रेरणा है। संसार को सिखाओ कि विपत्ति चाहे कितनी भी आए, धर्म की तरह अटल खड़े रहना ही जीवन का सत्य है।”
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🌺 कहानी की सीख
1. हिमालय की तरह जीवन में धैर्य और स्थिरता रखो।
2. जब धर्म संकट में हो, तो शक्ति का प्रयोग करना भी आवश्यक है।
3. सच्ची विजय वही है, जिसमें सबको शांति और सुरक्षा मिले।
4. प्रकृति – पर्वत, नदियाँ और वन – स्वयं देवस्वरूप हैं, उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
धैर्य और स्थिरता ही सच्ची शक्ति है – जैसे हिमालय हर परिस्थिति में अडिग खड़ा है, वैसे ही जीवन में भी हमें अडिग रहना चाहिए।
5. धर्म की रक्षा करना सबसे बड़ा कर्तव्य है – जब अन्याय या अधर्म बढ़े, तो राम की तरह आगे बढ़कर उसका नाश करना चाहिए।
6. शक्ति का उपयोग भलाई के लिए होना चाहिए – ताक़त का सही उपयोग तभी है जब वह निर्दोषों की रक्षा और शांति के लिए हो।
7. प्रकृति देवस्वरूप है – पर्वत, नदियाँ, जंगल केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन और संस्कृति का आधार हैं, इनकी रक्षा करना हम सबका धर्म है।