त्रिशा के पिता और मामा भी अक्सर एक आधे अवसर पर थोड़ी बहुत ड्रिंक कर लेते थे इसलिए उसे यह कोई अजीब बात ना लगी। उसे लगा कि वह यह आदत बर्दाश्त कर लेगी। और उसने राहत की सास ली।
लेकिन तभी राजन ने बोला,
" देखो त्रिशा, मैं और मेरा परिवार थोड़ा पुराने ही ख्यालों वाला है और आज इस उम्र तक भी मेरी मां अपनी सास यानी मेरी दादी की मर्जी के बिना कोई काम नहीं करती है। मेरे पिताजी जिनका दो साल पहले देहांत हो गया, लेकिन जब तक वह थे मां ने उनकी मर्जी के हिसाब से ही सबकुछ किया है और मैं अपने लिए वैसी ही पत्नी चाहता हूं।"
त्रिशा ने राजन की बात सुन कर उस पर मन ही मन विचार किया कि उसकी मम्मी, मामी, और यहां तक की उसकी भाभी भी तो यही करती हैं। और अगर राजन यह बात ना भी कहता तो क्या उसे यह सब नहीं करना पड़ता????
सच तो यह है कि चाहे वो राजन से शादी करे या किसी और से लेकिन यह शर्त तो हर जगह ही होगी और उसकी खुद की मां भी उसे यही सलाह और सीख देकर भेजेगी। लेकिन राजन का इस तरह उससे यह बात उसे कह देना त्रिशा को बहुत अच्छा लगा।
"क्या हुआ??? तुमने कुछ कहा नहीं??? क्या कुछ गलत कहा मैनें???" अपनी कही बात पर कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर राजन ने उससे पूछा।
राजन की आवाज से त्रिशा अपने ख्यालों से हकीकत में वापस लौटी और बोली, " नहीं नहीं आपने कुछ गलत नहीं बोला।"
"तो तुमने जवाब नहीं दिया???? क्या तुम वैसे ही पत्नी बनकर रह पाओगी जैसा मैं चाहता हूं????" राजन ने उसे गंभीरता से देखते हुए पूछा। उसकी आंखे भले ही गंभीर हो पर चेहरे पर थोड़ी कोमलता भी है और साथ ही साथ मन में कुछ अजीब ही गुदगुदी सी भी है क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी उससे हां सुनना चाहता है।
त्रिशा ने कुछ पल सोचा और फिर जवाब में अपनी पलकें नीचे की ओर झपका कर हां में जवाब दिया। वह इस समय राजन की ओर देखने में शर्म महसूस कर रही थी।
उसका जवाब सुनकर राजन खुश हुआ लेकिन अपने कारण उसे यूं शर्माता देख उसे बहुत ही ज्यादा अच्छा लगा। वह फिर खड़ा और दरवाजे कि ओर बड़ा पर बाहर निकलने से पहले वह त्रिशा कि ओर मुड़ा और उसकी ओर एक छोटा सा बाॅक्स और एक चाॅकलेट बढ़ाते हुए धीमे से बोला," हैप्पी बर्थ डे।।"
त्रिशा ने राजन के हाथों से वह बाॅक्स और चाॅकलेट लेते हुए मुस्कुराहट के साथ कहा," जी धन्यवाद।।।"
त्रिशा को गिफ्ट देने के बाद राजन बिना पीछे मुड़े चुपचाप नीचे की ओर चला गया। हालांकि वह मुड़ा नहीं और कुछ बोला भी नहीं पर ना जाने त्रिशा को ऐसा क्यों लगा कि राजन भी शरमा रहा था और इसीलिए ही वह यहां से चला गया।
उसके जाने के बाद त्रिशा उस कमरे में अकेली रह गई थी और अपने जन्मदिन पर मिले इस पहले उपहार को देखकर मन ही मन उसे बहुत खुशी भी हो रही थी। वह भी उठी और नीचे जाने के लिए चली लेकिन उस गिफ्ट को नीचे ले जाना उसे ठीक ना लगा तो पहले वह जल्दी से अपने कमरे तक गई और अपने कबर्ड के ड्राअर को खोलकर दोनों चीजें उसमें रख दी और फिर फटाफट नीचे आने लगी।
जब वह सीढ़ियों पर ही थी तब उसे नीचे से आती महक मिली। महक उसकी ओर बड़ी और उसे वहीं रोक कर कहने लगी," आंटी ने बोला है कि तुम अपने कमरे में रहो।"
"ठीक है।" त्रिशा को कुछ समझ तो नहीं आया कि आखिर क्यों उसे रोका गया लेकिन वह अपने मां के कहे अनुसार अपने कमरे की ओर जाने लगी।
"तुम नहीं आ रही???" त्रिशा ने महक की ओर देखकर कहा।
"नहीं मुझे आंटी ने बुलाया है। तो तुम जाओ मैं आती हूं। " महक ने जवाब दिया और आंधी की तरह जल्दी से नीचे उतर गई।
त्रिशा अपनी मां के कहे अनुसार अपने कमरे में आकर बैठ गई। जबसे यह सब शुरु हुआ था तबसे वह बहुत ही नर्वस थी और अब अपने कमरे में एकांत में पहुंचकर उसे शांती मिली वह बहुत ही सहज महसूस कर रही थी।
वह आराम से कुर्सी पर बैठ गई, उसने एक लंबी राहत भरी सास ली और फिर आंख बंद करके थोड़ी देर के लिए बैठ गई।
वह आंख बंद करके अभी थोड़ी देर पहले हुई राजन से उस पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी, जिसके आधार पर उसे यह चुनना था कि क्या वो उस शख्स को अपना जीवनसाथी चुनती है या नहीं।
हालांकि वह यह जानती थी कि उनके घर में उसके पिता की चलती है और अंतिम निर्णय भी उसके पिता ही लेगे। लेकिन फिर भी औपचारिकता में ही सही पर उससे उसकी मर्जी पूछी तो जाएगी ही।
वैसे इस बात से वह निशचिंत भी है क्योंकि आजतक उसने कभी किसी को इस तरह नहीं जाना है और वह जानती है कि लोगो को परखने की समझ उसमें इतनी नही है। जबकि उसके पिता को तो इसका अच्छा खासा तर्जुबा है। यदि वो राजन को चुनते है तो इसका मतलब यह होगा कि उन्होनें जांच परख कर ही हां कहा होगा।