Overthinking vs hope in Hindi Love Stories by Muvi Ki Kalam books and stories PDF | Overthinking vs उम्मीद

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Overthinking vs उम्मीद

"पहले मैंने आपको 2 पार्ट दिए थे – एक प्यार पर और दूसरा वो प्यार जो जताया नहीं जा पाया उस पर।
आज हम बात करेंगे – Overthinker vs उम्मीद की।
और आने वाले पार्ट्स में हम जानेंगे कि एक Overthinker के प्यार की गहराई कैसी होती है।

अगर

ये लिखावट आपके दिल को छू जाए तो इसे शेयर कीजिएगा और अपनी सोच कमेंट में ज़रूर बताइएगा। 💙

 

## 🌿 Part 3

आज सिर्फ़ दिल की सुनानी है कुछ समय के लिए —

कभी-कभी दिल इतना परेशान होता है, सही ग़लत कुछ समझ नहीं पाता, सिर्फ़ अपने आप को तकलीफ़ देते रहते हैं।
सब चीज़ें ठीक लगती हैं, फिर भी ख़ुद, ख़ुद में ही कमियाँ निकालते रहते हैं और दिल की इस स्थिति को कोई नहीं समझ पाता।
क्योंकि इसे बस वही जानते हैं जो इससे निकलते हैं।

दूसरों को अगर इसके बारे में बताएँ तो कहेंगे "ओवरथिंकिंग कर रहा है, ज़्यादा ही सोच रहा है।"
सबकी लाइफ़ में होती हैं प्रॉब्लम्स।
एक्ज़ाम्पल देंगे— देख उसने ये फेस किया, उसने वो किया, तू कुछ भी नहीं कर रहा, देख ऐसे चला, सब उसके साथ ऐसा हुआ।

ये कोई नहीं समझने को तैयार होता कि जिसे वो समझा रहे हैं वो क्या फेस कर रहा है।
सबके एक्ज़ाम्पल तो ऐसे देते हैं मानो ख़ुद भी उस प्रॉब्लम को फेस किया हो।

समझना बहुत आसान लगता है।
हम किसी को एक्ज़ाम्पल देंगे, समझाएँगे— "तेरी तकलीफ़ तो उससे कम है।"
लेकिन जो उस सिचुएशन से गुज़र रहा है, तकलीफ़ का तो बस उसे ही पता।

जब इंसान ख़ुद उस दर्द से गुज़रता है तब वो अपने आप से कहता है,
"यार वो सच ही कहता था।"
कहना और समझना आसान है, लेकिन जब ख़ुद पर गुज़रे तो पता चलता है।

हमारी पूरी लाइफ़ निकल जाती है प्रॉब्लम्स के साथ,
लेकिन न प्रॉब्लम्स का एंड होता है न खुशियाँ मिल पाती हैं।
क्योंकि हम सोचते जाते हैं।
तो जब तक सोच नहीं रोकेंगे, न प्रॉब्लम खत्म होगी न खुशियाँ पाने की उम्मीद।

अब ये तो माना होगा कि किसी से कहने से कुछ नहीं होता।
ये ज़िंदगी का सच है— जब तक सोचेंगे, ज़िएंगे, तकलीफ़ आती रहेगी।
लेकिन फिर भी हम बस एक पल की खुशियों की उम्मीद सब से लगाए रहते हैं,
कि काश कोई आ गया जो हमें भी समझ गया।

मेरी भी ये विश एक दिन पूरी हो।
ये मैं ज़रूर करूँगा— ऐसा होगा।
ये "उम्मीद" ही तो है जो इंसान को ज़िंदा रखती है हर तकलीफ़ के बाद।

लेकिन अब ये सोच के देखो— कोई उम्मीद न हो।
तो ये एक ऐसा सच है जिसे कोई मानने को तैयार नहीं है।
लेकिन इसे कोई बदल भी नहीं सकता।

हर इंसान ज़िंदा रह सकता है, सब ठीक हो सकता है,
लेकिन अगर इंसान उम्मीद रखना छोड़ दे,
तो उसे दुनिया की कोई ताक़त नहीं बचा सकती।

और ये सबसे बड़ी सच्चाई है दुनिया की,
जिसे कोई मानने को तैयार नहीं है।
लेकिन हमारे मानने या न मानने से कुछ नहीं बदलता।
सच, सच होता है।

और जो लोग उम्मीद छोड़ देते हैं,
ना भगवान भी उन्हें नहीं बचा सकते।
इस बात को हर कोई नहीं समझ सकता,
बस जो "फील" करते हैं वही लोग समझते हैं।

---

## 🌿 Part 4

अच्छा, अब मैं एक चीज़ और बताऊँ—
उम्मीद का मरना भी कई तरह से होता है।

जैसे इंसान की मौत भी सिर्फ़ मरने को मौत नहीं कहते।
ये तो सबने सुना होगा, एक मौत होती है जिसमें इंसान का शरीर साँस लेना छोड़ देता है, उसकी साँसें रुक जाती हैं।

लेकिन एक मौत और होती है,
उससे भी कई लोग ज़रूर रिलेट करेंगे—

कैसे?
जब इंसान ज़िंदा है लेकिन अंदर से मर चुका है।
उस इंसान को अगर तुम असल में जान लो—
उसके अंदर छुपे ज़ख्म, तकलीफ़, रूह कमज़ोर हो चुकी है।

कैसे वो इंसान रोज़ ज़िंदा रहके मरता है,
ये बस वही जानता है।

और कई बार तो बाहर से ऐसा लगेगा कि ये तो सबसे खुश है,
इसे कोई टेंशन नहीं होती।

लेकिन असल में वो इंसान रोज़ अंदर से खुद को तोलता है।
वो बाहर हँसता है, लेकिन अंदर दर्द को कैसे संभालता है—
मेरे शब्द भी कम पड़ जाएँ।

रोज़ खुद को गिल्ट में रखना,
हर गलती के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानना,
अपने आप को सबसे नीचा देखना—
सोचना "मैं किसी के लायक नहीं, मैं कुछ नहीं कर सकता।"

वो फिर भी अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करता है।
वो इंसान ज़िंदा लाश होता है, ये कोई नहीं जानता।

इस तरह के इंसान डरते हैं किसी के सामने अपने बताने से।
क्योंकि उन्हें डर होता है कि ये तो मेरी कभी बात समझेगा नहीं,
बल्कि मुझे "पागल" या "मेंटली बीमार" समझेगा।

जबकि वो खुद को ऐसा समझ रहा होता है।

लेकिन अगर उसे बाहर से देखो—
जैसे उसे उसकी फैमिली देखती है,
उनके लिए वो बहुत ज़िम्मेदार, समझदार, मैच्योर इंसान होता है।

लेकिन सोचो अगर अंदर से वो खुद को इतना खा रहा है
तो कैसे जीता होगा?
क्या हुआ होगा उसकी लाइफ़ में?

जो दुनिया के लिए सबसे चालाक, तेज, समझदार इंसान है,
वो खुद के लिए क्या है— ये वो जानता है।

ऐसे इंसान का दर्द समझ पाओगे कोई नहीं।
क्योंकि ये समझने के लिए तो हर दर्द उसका खुद "फील" करना होगा।

उसे बस प्यार और साथ की ज़रूरत है और कुछ नहीं।
उस इंसान को कोई डॉक्टर, दवाई कुछ ठीक नहीं कर सकती।
बस किसी का प्यार और साथ ही उसे दुबारा अपने आप से मिलवा सकता है।

ऊपर "मौत" और "उम्मीद का टूटना" काफ़ी हद तक समझ आया होगा—
कैसे इंसान और तकलीफ़ क्यों?

सबकी तकलीफ़ अपने आप में उनके लिए सबसे ज़्यादा दर्दनाक होती है।
क्योंकि दूसरों की तकलीफ़ देखकर हम उसे समझा सकते हैं, एक्ज़ाम्पल दे सकते हैं,
लेकिन उसे फील नहीं कर सकते।

हर किसी की तकलीफ़ अलग और अपना दर्द है।

इसलिए याद रखिए— हम ये नहीं बोल सकते "उसने तो इतना कुछ सहा, तुझसे बस ये नहीं सहा जाता।"
क्योंकि हर किसी की तकलीफ़ अपने आप में भयानक होती है।

कोशिश करिए अगर कोई आपसे कुछ कहे—
क्योंकि हर किसी से कहा भी जाता है दर्द।
बस किसी अपने से कहा जाता है।

तो उसे समझने की बजाय लेक्चर देने की जगह पहले संभालिए।
पहले सिर्फ़ सुनिए।
और उसे रोने दीजिए, खोने दीजिए, हर ज़ख्म।

फिर धीरे-धीरे उससे बातें कीजिए।
फिर धीरे-धीरे थोड़ा समझाइए।

ऐसा होना चाहिए।
हमें ऐसा करना चाहिए।

कई लोग संभालते हैं खुद को,
लेकिन अचानक से आप उसे किसी का एक्ज़ाम्पल देने मत बैठ जाना।
वो चुप ही हो जाएगा।
फिर कुछ शेयर ही नहीं करेगा कभी आपसे।

इसलिए समझिए—
सुनिए, साथ दीजिए, हर चीज़ कीजिए।

फिर एक्ज़ाम्पल भी दे सकते हो,
लेकिन टाइम देखकर।
कब किस सिचुएशन में वो एक्ज़ाम्पल सुनने के लिए तैयार है।

उसे काफ़ी टाइम बस आपका साथ चाहिए होता है, बिना बोले।

आज के लिए यही एक छोटी सी कोशिश बस

✍️ Written by – Muvi Writer"