(आद्या अपने कमरे में खुश थी, लेकिन अचानक रूचिका—या उसका नाग रूप—उसे डराता है। आद्या का हथेली पर नागचिह्न चमक उठता है। पुराने बरगद के पास सभा में वृद्ध नाग बताते हैं कि रूचिका गलती से नागधरा लोक में गई और मृत्युदंड झेल रही है। आद्या समझती है कि रूचिका जीवित है, लेकिन नागधरा खतरों और रहस्यों से भरा है। निशा सपना देखती है जिसमें आद्या नागधरा के द्वार पर खड़ी होती है और एक नागमानव उसे खींच ले जाता है। चेतावनी मिलती है—अगर सावधानी नहीं रखी, तो आद्या खो जाएगी। नागधरा एक ऐसा लोक है जहाँ हर उत्तर नया रहस्य बनता है। अब आगे)
अधूरा लोक
रात का तीसरा पहर था। शांत, ठहरा हुआ… मगर आद्या के भीतर कुछ उथल-पुथल मची थी। उसे लग रहा था जैसे कोई नाम, कोई स्थान — "नागधरा" — उसकी स्मृति से फिसल रहा है। जैसे कुछ था, जो वो भूल रही थी…या भूलने के लिए मजबूर की जा रही थी।
उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह चुपचाप अपने बिस्तर से उठी — और सीधा पहुँच गई रूचिका के कमरे में।
कमरे में हल्का अंधेरा था। दो लड़कियाँ अलग-अलग बिस्तरों में गहरी नींद में थीं। तीसरा बिस्तर खाली था — रूचिका का।
आद्या दबे पाँव अलमारी की ओर बढ़ी, बिना आहट के उसने उसे खंगालना शुरू किया। पर वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था। कुछ नहीं था वहां रूचिका का।
अब वह रूचिका के बिस्तर की ओर बढ़ी —तभी उसका पैर टेबल से टकराया। धप्प! एक किताब ज़मीन पर गिर पड़ी।
एक लड़की करवट बदलते हुए बुदबुदाई — “आद्या…अरे! इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है यार?”
अनंता थी।
आद्या एक पल को सन्न रह गई। उसने बड़ी मुश्किल से सोचा और फिर तुरंत बहाना बनाया — “कल लाइब्रेरी का पीरियड है। रूचिका ने मेरी एक किताब ली थी पढ़ने के लिए…वही खोज रही हूं।”
अनंता वापस लेटते हुए बोली — “वो तो चली गई घर… वहीं पढ़ाई करेगी अब, अपने शहर।”
“कब?” आद्या चौंक गई जैसे उसकी आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गयी। “कल शाम। अब मेरी माँ, सोने दे। कल दिन, टाइम और गाड़ी का नंबर सब बता दूँगी…”…और वह फिर गहरी नींद में चली गई।
आद्या चुपचाप लौट आई। कमरे में सन्नाटा था —वह सन्नाटा, जिसमें अक्सर नागों की फुसफुसाहट सुनाई देती थी…पर आज कुछ नहीं। वह बाथरूम की ओर गई। मुंह धोने को झुकी —
तभी आइने में कुछ देखा। अपनी परछाई की जगह रूचिका! वो मुस्कुरा रही थी।
आद्या हड़बड़ाकर पीछे हटने लगी — लेकिन… यह क्या ?उसका शरीर जैसे जड़ हो गया था, हिल ही नहीं रह था।
आँखें…रूचिका की आँखें अब चमक रही थीं। उनमें कुछ सम्मोहन था।
और आद्या… वो भी मुस्कुराने लगी।
रूचिका का चेहरा हिला — जैसे कुछ मंत्र पढ़ रही हो। और फिर उसने अपनी मुट्ठी से कोई चमकदार पाउडर आद्या पर फेंका।
आद्या बेहोश होकर गिर गई।
आइने से एक परछाईं बाहर निकली —वो रूचिका नहीं थी। वो नाग रानी थी। उसने आद्या को उठाया, बड़ी कोमलता से बिस्तर पर लिटाया, उसके सिर पर हाथ फेरा… और फिर एक शांत नागिन बनकर वहां से लौट गई।
....
सुबह की कोमल किरणें आद्या के चेहरे पर फिसल रही थीं। खिड़की के झरोखे से आती रौशनी ने उसे नींद से जगाया। आँखें खुलीं तो सामने स्नेहा और सुरभि तैयार हो रही थीं। स्नेहा चौंकी। "अरे वाह! आज तो सूरज से भी पहले उठ गई तू?"
आद्या मुस्कुराई — एक अजीब, खाली सी मुस्कान। जैसे वो सब कुछ भूल चुकी हो… या फिर याद करना ही नहीं चाहती। वो चुपचाप बाथरूम की ओर बढ़ गई। भीतर जाते ही, दरवाज़ा बंद हुआ। कुछ क्षण शांति रही…
फिर—"साँप! साँप! होस्टल में साँप!" एक दिल दहला देने वाली चीख उभरी।
स्नेहा और सुरभि एकदम घबरा गईं। दरवाज़ा ठकठकाया गया। "आद्या! क्या हुआ? दरवाज़ा खोल!"
भीतर से लगातार चीखने की आवाज़ आ रही थी। "मुझे बचाओ! वो मुझे देख रहा है! आँखें मत मिलाना!"
कमरे के बाहर भी छात्राएँ जमा हो गईं। वार्डन को बुलाया गया।
दरवाज़ा खोला गया तो—आद्या बेसुध ज़मीन पर पड़ी थी।उसकी आँखें खुली थीं, मगर वो किसी शून्य में ताक रही थी।बाथरूम में कोई साँप नहीं था। सिर्फ़ पानी की कुछ बूँदें और टूटा हुआ आइना…
उस आइने पर कुछ उकेरा गया था — नाग लिपि में।
वार्डन और सुरक्षाकर्मी तुरंत पहुंचे।
आद्या अब भी बाथरूम की फर्श पर बेसुध पड़ी थी, उसकी आंखें खुली थीं — पर उनमें कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।
"एम्बुलेंस बुलाओ!" वार्डन चिल्लाईं।
कुछ ही देर में सायरन की आवाज गूंजने लगी। छात्राओं को होस्टल के कॉमन एरिया में भेज दिया गया। स्नेहा और सुरभि की आंखों में आँसू थे। "उसे क्या हो गया?"
"कहीं कुछ बुरा तो नहीं हुआ?"
एम्बुलेंस में दो स्टाफ ने आद्या को स्ट्रेचर पर डाला, पर तभी एक स्टाफ थोड़ा अटका — "सर... इसकी नाड़ी तो ठीक है, मगर आँखें बहुत अजीब हैं।"
आद्या धीरे से बड़बड़ाई —"आ... आ... आईना..."
सब चौंक गए। सिर्फ यही शब्द उसके होंठों से फिसला।
फिर वो चुप हो गई।
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अस्पताल। रात 1:47 AM। डॉक्टरों ने जांच की। रिपोर्ट्स सामान्य थीं। कोई नर्वस ब्रेकडाउन, कोई हार्ट रेट समस्या नहीं।फिर भी वह बेसुध थी।
डॉक्टर ने कहा— "मानसिक आघात लगता है... किसी गहरे डर का असर।"
उधर, उसके कमरे की लाइट कभी-कभी खुद-ब-खुद बुझ जाती। दरवाज़ा थोड़ा-थोड़ा खड़कता। एक नर्स ने कहा—"मेम, लगता है कोई खिड़की खुली रह गई है।"
पर डॉक्टर ने देखा —खिड़की बंद थी।
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रात के तीसरे पहर...आद्या की आंखें धीरे-धीरे खुलीं।
कमरे में नर्स नहीं थी। लाइट मंद थी। परछाइयाँ दीवारों पर लहराने लगीं।
फिर… आइने में वही परछाई… वही मुस्कान…
रूचिका! पर इस बार उसका चेहरा अधूरा था।
आधी नागिन... आधी मानव।"तू भूल गई सब कुछ, आद्या…""अब तुम नागधरा कभी नहीं जाओगी…"
इस सबसे अनजान आद्या नींद के आगोश में थी।
.....
नागलोक
नागरानी का कक्ष
नाग सेवक भागता हुआ घुसा। "अनर्थ, अनर्थ" "अनर्थ हो गया। "
नाग रानी अपनी माला को गले में शीशे में देखकर निहार रही थी। "क्या हुआ? विषधर"
विषधर घबराया हुआ बोला "नाग रक्षिका सब भूल गयी।"
नाग रानी ने इतराते हुए कहा " पता है, मुझे। मैं ही तो मंत्र किया था कि वह नाग धरा को ..."
नहीं नहीं, वह केवल नाग धरा को नहीं , बल्कि वनधरा लोक को भी भूल गयी है जिसकी वह नाग रक्षिका है। इतने सालों से नागों के साथ उसकी घनिष्ठता, नाग शक्तियां और नाग रक्षिका होनै की बात भी भूल चुकी है। वह नाग गंध पहचानने की क्षमता, सम्मोहित न होने की कला सब कुछ खो चुकी है। "
"क्या? ऐसा नहीं हो सकता।" नाग रानी के हाथ से कंघी गिर गयी जिससे वह अपने बालों को संवारे रही थी।
...
१. क्या आद्या सबकुछ भूल गयी? बिना यादों और शक्तियों के वह नाग रक्षिका कैसे बन पाएंगी?
२. क्या वह उस नाग धरा लोक को भूल गयी जिससे उसे रूचिका का बदला लेना था?
३.क्या अब साधारण मानव जीवन जीएगी ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "विषैला इश्क"।