Sambhog se Samadhi - 3 in Hindi Spiritual Stories by Agyat Agyani books and stories PDF | संभोग से समाधि - 3

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संभोग से समाधि - 3



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✦ प्रस्तावना ✦

"जिसने ऊर्जा को नकारा — वह वासनाओं का गुलाम बना।
जिसने ऊर्जा को स्वीकारा — वह समाधि की राह पर चला।
और जिसने ऊर्जा को रूपांतरित किया — वही योगी हुआ।"

यह ग्रंथ 'संभोग' पर नहीं, बल्कि 'ऊर्जा' पर है।
यह ग्रंथ भोग के विरोध में नहीं है — और न ही त्याग की वकालत करता है।
यह उस तीसरे मार्ग की खोज है —
जिसे तंत्र "स्वीकृति और साक्षी" का पथ कहता है।

संभोग, केवल शरीर की क्रिया नहीं —
वह अस्तित्व की गहराई में प्रवाहित एक शक्तिशाली ऊर्जा है।
उसका मूल उद्देश्य सृष्टि है — और उसकी चरम संभावना समाधि।

तंत्र कहता है:
"ऊर्जा को नकारो मत।
उसे जानो, जीयो, और फिर उस पर सवारी करो — जैसे कोई नदी पर नाव चलाता है।"
तंत्र कभी विरोध नहीं करता।
वह किसी वृत्ति को "पाप" नहीं कहता —
बल्कि उसकी जड़ों तक जाता है, और वहीं से रूपांतरण का विज्ञान जन्म लेता है।


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✦ तंत्र दृष्टिकोण का मूल भाव ✦

सेक्स को दबाने से वह छाया बनता है — विकृति बनता है।

सेक्स को भोगने से वह रस बनता है — बंधन बनता है।

लेकिन सेक्स को जागरूकता से देखने से — वही ऊर्जा "ध्यान" में बदल जाती है।


यह तंत्र की दृष्टि है — न पाप, न पुण्य।
केवल ऊर्जा और चेतना का विज्ञान।

तंत्र कहता है —

> "काम से डरना नहीं, उसे समझो।
जो डरता है, वह विकृत होता है।
जो लड़ता है, वह हारता है।
लेकिन जो देखता है — वह पार चला जाता है।"




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✦ यह ग्रंथ क्यों आवश्यक है? ✦

आज की दुनिया में सेक्स या तो भोग बन चुका है — या वर्जना।
एक ओर बाज़ार है, जो इसे बेचता है।
दूसरी ओर धर्म है, जो इसे छुपाता है।
लेकिन दोनों ही इसे समझते नहीं।

यह ग्रंथ किसी धार्मिक मत, मनोवैज्ञानिक उपचार, या काम-शास्त्र का हिस्सा नहीं है।
यह एक तंत्र–योग दृष्टि है —
जहाँ सेक्स को ऊर्जा का प्रारंभिक रूप माना गया है,
और समाधि को उस ऊर्जा की चरम परिणति।



✦ तंत्र-योग की धारा में यह यात्रा कैसी है? ✦

1. ऊर्जा का जागरण:
जब सेक्स केवल इंद्रियसुख नहीं रहता —
बल्कि उसमें एक चेतन संवाद होता है — तब यह जागरण का प्रारंभ है।


2. ऊर्जा का साक्षीभाव:
जब उस रस को पूर्ण सजगता से अनुभव किया जाता है,
तब शरीर में काम, मन में प्रेम, और आत्मा में मौन की त्रिवेणी बहती है।


3. ऊर्जा का रूपांतरण:
जब तुम संभोग को साधना की तरह जीते हो —
न कोई लक्ष्य, न कोई डर — तब सेक्स संभोग नहीं रहता — वह ध्यान बन जाता है।


4. ऊर्जा की मुक्ति:
जब वही ऊर्जा ऊपर उठती है — मूलाधार से सहस्रार तक —
तब वही रस, रसातीत हो जाता है।
वही सुख — आनंद हो जाता है।
वही 'मैं' — शून्य में विलीन हो जाता है।



✦ क्या यह सभी के लिए है? ✦

नहीं। यह ग्रंथ उनके लिए नहीं —
जो सेक्स से घृणा करते हैं,
या उसे केवल भोग का साधन मानते हैं।

यह ग्रंथ उनके लिए है —
जो जीवन को सम्पूर्णता से जीना चाहते हैं।
जो संसार से भागने नहीं,
बल्कि उसे गहराई से समझकर पार करने की शक्ति रखते हैं।


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✦ यह ग्रंथ क्या कहता है? ✦

सेक्स एक ऊर्जा है — शरीर में प्रवाहित होती हुई नदी।

समाधि उसी ऊर्जा का महासागर है — जो भीतर उतर गई।

सेक्स का द्वार बाहर की ओर है — संसार की ओर।

समाधि का द्वार भीतर की ओर है — स्वयं की ओर।

सेक्स में मिलन है — लेकिन भ्रमपूर्ण।

समाधि में वियोग है — लेकिन पूर्ण।

सेक्स में सुख है — जो छिन जाता है।

समाधि में मौन है — जो कभी नहीं जाता।


✦ तंत्र और योग का संगम ✦

योग कहता है — संयम से ऊपर उठो।
तंत्र कहता है — स्वीकृति से पार हो जाओ।
यह ग्रंथ तंत्र–योग का संगम है —
जहाँ स्वीकृति, सजगता में रूपांतरित होती है।

यहाँ काम वासना नहीं है — ऊर्जा है।
यहाँ समाधि त्याग नहीं है — रूपांतरण है।
यहाँ कोई संघर्ष नहीं है — केवल जागरण है।


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✦ अंतिम निमंत्रण ✦

यदि तुम्हारे भीतर एक अग्नि है —
जो इस ऊर्जा को समझना चाहती है,
और एक मौन है — जो उसकी परछाइयों से पार जाना चाहता है,
तो यह ग्रंथ तुम्हारे लिए एक द्वार बन सकता है।

यह कोई पथ नहीं दिखाता —
यह तुम्हारी भीतर की यात्रा को दिशा देता है।

> "न भागो — न रोको —
बस देखो — पूरे होश से।
वही देखना — ध्यान है।
वही सजगता — समाधि है।"



✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
(तंत्र–योग दृष्टा)