Samadhi from sexual intercourse - 7 in Hindi Spiritual Stories by Manish Kumar books and stories PDF | संभोग से समाधि - 7

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संभोग से समाधि - 7

ग्रंथ शीर्षक : संभोग से समाधि तक — ऊर्जा का धर्म ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
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✧ भूमिका / प्रस्तावना ✧
 
यह ग्रंथ किसी धार्मिक या नैतिक दृष्टि से नहीं लिखा गया।
यह एक सीधी दृष्टि है — उस ऊर्जा पर जो हर मनुष्य के भीतर बह रही है।
वही ऊर्जा जिसे समाज ने काम कहा,
धर्म ने पाप कहा,
और तंत्र ने द्वार कहा।
 
यह ग्रंथ उसी द्वार से भीतर जाने की साधना है —
जहाँ देह ध्यान में बदलती है,
रस मौन में,
और प्रेम समाधि में।
 
संभोग यहाँ किसी शरीर की घटना नहीं,
बल्कि चेतना की यात्रा है।
यहाँ आनंद भोग नहीं, बोध बनता है।
ऊर्जा वही रहती है — बस उसकी दिशा बदल जाती है।
नीचे से ऊपर, देह से आत्मा, वासना से मौन तक।
 
यह ग्रंथ पाँच अध्यायों में विभक्त है —
हर अध्याय एक सीढ़ी है,
हर सूत्र एक स्पर्श,
हर व्याख्या एक दर्पण,
जहाँ साधक अपने भीतर को देखता है।
 
यह कोई “कहानी” नहीं,
यह भीतर घटने वाली घटना है।
जो इसे पढ़े, वह इसे सोचे नहीं —
बस महसूस करे।
क्योंकि यह शास्त्र नहीं, अनुभव है।
 
 
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✧ अध्यायवार रूपरेखा ✧
 
✧ अध्याय १ : संभोग की ध्यान लीला ✧
 
केंद्र: देह के अनुभव को साक्षी में बदलना।
सार:
संभोग का अर्थ यहाँ भोग नहीं, ध्यान है।
यहाँ साधना यह है कि सुख को देखा जाए,
ना कि उसमें खोया जाए।
सुख को सहन करने की साधना ही संभोग समाधि की जड़ है।
 
मुख्य सूत्र:
 
संभोग तब ध्यान बनता है जब तुम देखते हो।
 
सुख को सहना ही तप है।
 
पुरुष गति है, स्त्री ठहराव — दोनों का मिलन ध्यान है।
 
 
 
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✧ अध्याय २ : ऊर्जा का रूपांतरण — अग्नि से ज्योति तक ✧
 
केंद्र: काम ऊर्जा का ध्यान ऊर्जा में रूपांतरण।
सार:
ऊर्जा न पाप है, न पुण्य — वह तटस्थ है।
जिसे दबाया जाए, वह वासना बनती है;
जिसे समझा जाए, वह चेतना बन जाती है।
तंत्र का विज्ञान यही है — ऊर्जा को ऊपर उठाना।
 
मुख्य सूत्र:
 
ऊर्जा वही रहती है, दिशा बदलती है।
 
संयम दमन नहीं, सजगता है।
 
प्रेम ऊर्जा की सबसे ऊँची दिशा है।
 
 
 
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✧ अध्याय ३ : ऊर्जा से प्रेम तक — भीतर के मिलन की यात्रा ✧
 
केंद्र: भीतर के स्त्री-पुरुष का मिलन।
सार:
प्रेम देह का संवाद नहीं, आत्मा का संगम है।
जब भीतर की गति और ठहराव एक हो जाते हैं,
तो प्रेम प्रकट होता है।
प्रेम वह है जहाँ “मैं” और “तू” दोनों मिट जाते हैं।
 
मुख्य सूत्र:
 
प्रेम भीतर का मिलन है।
 
काम प्रेम का कच्चा बीज है।
 
भीतर की स्त्री करुणा है, पुरुष जागरूकता — उनका मिलन प्रेम है।
 
 
 
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✧ अध्याय ४ : प्रेम से समाधि तक — मौन का उदय ✧
 
केंद्र: प्रेम से ध्यान और मौन की यात्रा।
सार:
जहाँ प्रेम पूर्ण होता है, वहाँ मौन जन्म लेता है।
प्रेम का चरम बिंदु समाधि है,
जहाँ कोई पाने की आकांक्षा नहीं रहती।
यहाँ प्रेम करुणा में घुल जाता है,
और अस्तित्व एकमात्र अनुभव बन जाता है।
 
मुख्य सूत्र:
 
प्रेम का अंत मौन है।
 
समाधि प्रेम का स्वाभाविक फल है।
 
मौन वह स्थान है जहाँ ऊर्जा विश्राम करती है।
 
 
 
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✧ अध्याय ५ : समाधि से सृष्टि तक — पुनर्जन्म चेतना का
 
केंद्र: मौन से सृष्टि में लौटने की करुणा।
सार:
समाधि अंत नहीं, एक पुनर्जन्म है।
मौन जब पूर्ण होता है, तो वह सृष्टि बनकर बहता है।
जो समाधि में स्थिर है, वही करुणा में लौटता है।
यह वही वृत्त है — संभोग से समाधि, समाधि से सृष्टि तक।
 
मुख्य सूत्र:
 
समाधि से सृष्टि जन्म लेती है।
 
मौन सृष्टि का गर्भ है।
 
सृष्टि और समाधि विरोध नहीं, परिक्रमा हैं।
 
 
 
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✧ समग्र सार ✧
 
यह ग्रंथ मनुष्य की सबसे मूलभूत शक्ति — काम —
को उसके सर्वोच्च रूप समाधि तक पहुँचाने की साधना है।
यह यात्रा देह से नहीं भागती,
बल्कि उसे पारदर्शी बना देती है।
 
यह ग्रंथ सिखाता है कि
सुख को दबाओ मत,
सुख को देखो।
देखना ही रूपांतरण है।
 
संभोग का रस यदि सजगता से जिया जाए,
तो वही रस भीतर ऊपर उठता है,
प्रेम में बदलता है,
फिर मौन में,
फिर सृष्टि में।
 
यह यात्रा है —
ऊर्जा से चेतना,
चेतना से प्रेम,
प्रेम से मौन,
और मौन से पुनर्जन्म तक।
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✧ अध्याय १ : संभोग की ध्यान लीला ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
संभोग — यानी काम, सेक्स, प्रेम का मिलन नहीं,
एक दृष्टि है जो उस पार देखने लगती है।
यहाँ देह बस माध्यम है,
रस बहाना है,
पर दृष्टा बनने की शुरुआत यही से होती है।
 
जब कोई प्रेम में, सेक्स में, पूर्ण होश के साथ प्रवेश करता है —
तो हर स्पर्श, हर सांस, एक ध्यान बन जाती है।
मीठा दर्द, गहरी सिहरन,
एक अद्भुत आनन्द जो भीतर उतरता जाता है —
उसे बस देखना है,
विरोध नहीं करना है।
 
जैसे भोजन का स्वाद लेते हैं —
मीठा, खट्टा, तीखा —
वैसे ही इस रस का स्वाद लेना है।
देह का संवाद, ऊर्जा का संवाद है।
यह ऊर्जा नीचे और बाहर बहती है,
पर जब तुम देखने लगते हो,
तो बहाव रुकने लगता है।
उसी ठहराव में आनंद समाधि बनता है।
 
ये सुख को देखने की साधना है।
जितना अधिक तुम उसमें सजग रहोगे,
उतनी भीतर की ग्रंथियाँ खुलेंगी।
यही भीतर उतरने का रास्ता है।
 
पुरुष स्वभाव गति है —
वह आक्रमक है, खोजी है।
पर तंत्र कहता है —
पहले पुरुष बनो, फिर स्त्री बनो।
पहले गति में जाओ,
फिर समर्पण में पिघल जाओ।
 
जब तुम स्त्री भाव में उतरते हो —
स्वीकृति, करुणा, सम्पूर्णता तुम्हारे भीतर जागती है।
फिर न तुम करते हो,
न तुम किए जाते हो —
बस ऊर्जा स्वयं खेलती है।
यही तंत्र है।
 
इस साधना में प्रेम है,
सहिष्णुता है,
ताप है।
क्योंकि यह सुख को सहने की साधना है —
सुख को साक्षी बनकर जीने की।
यही संभोग समाधि कहलाती है।
 
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✧ अध्याय १ : संभोग की ध्यान लीला ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
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✧ सूत्र १ ✧
 
संभोग तब ध्यान बनता है जब तुम उसमें खोते नहीं, उसे देखते हो।
 
व्याख्यान:
सामान्य व्यक्ति सेक्स में डूब जाता है — वह अनुभव में नहीं, अनुभूति में खो जाता है।
पर साधक वही करता है, पर देखने के साथ।
वह अपने शरीर, स्पर्श, सिहरन, आनंद — सबका साक्षी बनता है।
यहीं से संभोग का रूप बदल जाता है — भोग से ध्यान तक।
 
 
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✧ सूत्र २ ✧
 
देह आनंद का माध्यम नहीं, ऊर्जा की भाषा है।
 
व्याख्यान:
सेक्स कोई शारीरिक घटना नहीं — यह ऊर्जा का संवाद है।
दो शरीर बस दो द्वार हैं, जिनसे ऊर्जा मिलती, बहती,
और फिर भीतर कोई गहराई खुलती है।
जो इसे देह की सीमा में देखता है,
वह मूल रस से चूक जाता है।
 
 
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✧ सूत्र ३ ✧
 
विरोध मत करो — देखो, और देखने में ठहरो।
 
व्याख्यान:
काम में आनंद आता है, फिर डर, फिर अपराध।
यह विरोध तुम्हें सतह पर रखता है।
तंत्र कहता है: जो घट रहा है उसे पूरा घटने दो —
सिर्फ साक्षी बने रहो।
विरोध टूटते ही वही आनंद ध्यान में बदलता है।
 
 
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✧ सूत्र ४ ✧
 
संभोग का रस, भोजन के रस जैसा है — स्वाद लेना सीखो, डूबना नहीं।
 
व्याख्यान:
जब हम स्वाद में सजग रहते हैं,
तो हर कौर ध्यान का क्षण बनता है।
वैसे ही संभोग में —
हर स्पर्श एक स्वाद है,
हर श्वास एक नाद है।
जो सजग है, वही स्वाद का रस जानता है।
 
 
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✧ सूत्र ५ ✧
 
सुख को सहना — यह तंत्र का सबसे गूढ़ तप है।
 
व्याख्यान:
दुःख को तो मनुष्य झेल लेता है,
पर सुख उसे बहा देता है।
सुख में टिके रहना,
और उसमें होश बनाए रखना — यही साधना है।
यही से सुख समाधि बनता है।
 
 
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✧ सूत्र ६ ✧
 
पुरुष गति है, स्त्री ठहराव। मिलन में दोनों का संतुलन ही ध्यान है।
 
व्याख्यान:
संभोग का रहस्य यही है —
पहले पुरुष अपने भीतर की गति जगाता है,
फिर उसी को स्त्री भाव में ढाल देता है।
जब गति और ठहराव एक हो जाते हैं,
ऊर्जा ऊपर उठने लगती है।
यह चढ़ाव ही ध्यान का प्रवेश-द्वार है।
 
 
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✧ सूत्र ७ ✧
 
ऊर्जा बहती है जब तक तुम उसे बाहर फेंकते हो; उठती है जब तुम उसे देखते हो।
 
व्याख्यान:
काम ऊर्जा बहार बहना चाहती है।
पर जब साक्षी उसे देखता है,
वह नीचे नहीं जाती, ऊपर उठती है।
यही कुंडलिनी की शुरुआत है।
देखना ही उसे दिशा देता है।
 
 
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✧ सूत्र ८ ✧
 
पहले पुरुष बनो, फिर स्त्री बनो — यही तंत्र की साधना है।
 
व्याख्यान:
पुरुष बनना मतलब सक्रिय होना —
ऊर्जा को जगाना।
फिर स्त्री बनना मतलब समर्पण —
ऊर्जा को शांति देना।
इन दोनों का मिलन भीतर होता है।
यहीं सच्चा संभोग घटता है।
 
 
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✧ सूत्र ९ ✧
 
संभोग शरीर का नहीं, चेतना का संवाद है।
 
व्याख्यान:
जब तुम स्पर्श करते हो सजगता से,
तो चेतना चेतना को छूती है।
वह मिलन किसी देह का नहीं,
बल्कि दो आत्माओं का अनुभव बनता है।
यह वहीं क्षण है जहाँ देह मिटती है और आत्मा झलकती है।
 
 
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✧ सूत्र १० ✧
 
संभोग समाधि तब है जब तुम कुछ करते नहीं, बस होने देते हो।
 
व्याख्यान:
जब नियंत्रण टूट जाता है,
जब “मैं कर रहा हूँ” मिट जाता है —
तब केवल होना बचता है।
वह होना ही समाधि का रूप है।
वहाँ आनंद, प्रेम, मौन — सब एक हो जाते हैं।
 
 
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 अध्याय २ भाग 8में ...........