Samadhi from sexual intercourse - 8 in Hindi Spiritual Stories by Manish Kumar books and stories PDF | संभोग से समाधि - 8

Featured Books
Categories
Share

संभोग से समाधि - 8

✧ अध्याय २ : ऊर्जा का रूपांतरण — अग्नि से ज्योति तक ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

✧ भूमिका / प्रस्तावना ✧

यह ग्रंथ किसी धार्मिक या नैतिक दृष्टि से नहीं लिखा गया।
यह एक सीधी दृष्टि है — उस ऊर्जा पर जो हर मनुष्य के भीतर बह रही है।
वही ऊर्जा जिसे समाज ने काम कहा,
धर्म ने पाप कहा,
और तंत्र ने द्वार कहा।

यह ग्रंथ उसी द्वार से भीतर जाने की साधना है —
जहाँ देह ध्यान में बदलती है,
रस मौन में,
और प्रेम समाधि में।

संभोग यहाँ किसी शरीर की घटना नहीं,
बल्कि चेतना की यात्रा है।
यहाँ आनंद भोग नहीं, बोध बनता है।
ऊर्जा वही रहती है — बस उसकी दिशा बदल जाती है।
नीचे से ऊपर, देह से आत्मा, वासना से मौन तक।

यह ग्रंथ पाँच अध्यायों में विभक्त है —
हर अध्याय एक सीढ़ी है,
हर सूत्र एक स्पर्श,
हर व्याख्या एक दर्पण,
जहाँ साधक अपने भीतर को देखता है।

यह कोई “कहानी” नहीं,
यह भीतर घटने वाली घटना है।
जो इसे पढ़े, वह इसे सोचे नहीं —
बस महसूस करे।

 

 

---

 

✧ सूत्र १ ✧

 

ऊर्जा न पाप है, न पुण्य — वह बस शक्ति है।

 

व्याख्यान:

मनुष्य ने काम को पाप बना दिया, और धर्म को पुण्य।

पर अस्तित्व में कोई भेद नहीं —

ऊर्जा वही है, बस दिशा बदलती है।

जब वह नीचे बहती है, वह वासना कहलाती है;

जब ऊपर उठती है, वही भक्ति बन जाती है।

दिशा बदलो — स्वभाव नहीं।

 

 

---

 

✧ सूत्र २ ✧

 

ऊर्जा का रूपांतरण तभी होता है जब उसे दबाया नहीं, समझा जाता है।

 

व्याख्यान:

जिसे दबाते हो, वही भीतर सड़ता है।

ऊर्जा को स्वीकारो, उसका स्वरूप पहचानो।

वह तुम्हारे भीतर अग्नि है —

जो अंधकार जलाती है या चेतना बन जाती है,

यह तुम्हारे देखने पर निर्भर है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ३ ✧

 

संयम का अर्थ दमन नहीं, सजगता है।

 

व्याख्यान:

दमन अंधता है, संयम दृष्टि।

जब तुम सजग रहते हो,

तो ऊर्जा स्वतः ऊपर की ओर बहती है।

वह प्रवाह ही ध्यान का पुल बनता है।

संयम कोई युद्ध नहीं — यह होश की कोमलता है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ४ ✧

 

ऊर्जा को बाहर निकालना स्वाभाविक है; भीतर रोकना साधना है।

 

व्याख्यान:

जैसे बादल बरसना चाहते हैं,

वैसे ही देह बाहर बहना चाहती है।

पर साधक ठहरता है,

वह उस बहाव को देखता है —

देखने से प्रवाह दिशा बदल देता है।

यह रोकना नहीं, भीतर लौटना है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ५ ✧

 

ऊर्जा को रोकना नहीं, उसे भीतर प्रवाहित करना सीखो।

 

व्याख्यान:

अगर तुम रोकते हो, तो पीड़ा होगी।

अगर भीतर मोड़ते हो, तो प्रकाश होगा।

ऊर्जा नदी है — रोकोगे तो सड़ जाएगी,

बहाओगे तो महासागर मिलेगी।

यह मोड़ना ही तंत्र का विज्ञान है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ६ ✧

 

ऊर्जा का केंद्र नीचे है, पर उसकी यात्रा ऊपर की ओर है।

 

व्याख्यान:

मूलाधार से शुरू होकर ऊर्जा सहस्रार तक जाती है।

यह यात्रा देह से आत्मा तक की सीढ़ी है।

हर केंद्र एक द्वार है,

हर द्वार पर एक परीक्षा।

जो बिना डर के पार उतरता है,

वह समाधि तक पहुंचता है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ७ ✧

 

ऊर्जा को अनुभव करो, उसका स्वाद लो — वही तुम्हारा शिक्षक है।

 

व्याख्यान:

किताबें नहीं सिखातीं — अनुभव सिखाता है।

जब ऊर्जा भीतर उठती है,

वह तुम्हें जलाती भी है, और जगाती भी है।

वह तुम्हारे हर झूठ को नंगा करती है।

वही तुम्हारा असली गुरु है।

 

 

---

 

✧ सूत्र ८ ✧

 

ऊर्जा की चढ़ाई दर्द से शुरू होती है, और मौन पर खत्म होती है।

 

व्याख्यान:

जो भीतर उठता है, वह पहले तड़कता है।

पुरानी ग्रंथियाँ टूटती हैं,

संवेदनाएँ जागती हैं,

मन डरता है।

पर जो इस दर्द को सह लेता है,

वह आनंद की उस शांति तक पहुँच जाता है

जहाँ कोई हलचल नहीं बचती।

 

 

---

 

✧ सूत्र ९ ✧

 

ऊर्जा को दिशा देने का एक ही उपाय है — प्रेम।

 

व्याख्यान:

प्रेम वह पात्र है जो काम को भक्ति में बदल देता है।

जहाँ प्रेम नहीं, वहाँ वासना है।

जहाँ प्रेम है, वहाँ वही वासना परमात्मा की ओर मुड़ जाती है।

प्रेम दिशा है, वासना ईंधन।

दोनों मिलें, तो चेतना प्रज्वलित होती है।

 

 

---

 

✧ सूत्र १० ✧

 

ऊर्जा का शिखर समाधि नहीं, समर्पण है।

 

व्याख्यान:

जब भीतर की ऊ

र्जा इतनी भर जाती है

कि ‘मैं’ टिक नहीं पाता —

वह समर्पण बन जाती है।

वहीं से समाधि का आरंभ होता है,

जहाँ कुछ करना नहीं,

बस होना शेष रह जाता है।

✧ अध्याय ३ : ऊर्जा से प्रेम तक — भीतर के मिलन की यात्रा ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
---
 
✧ सूत्र १ ✧
 
प्रेम वह क्षण है जहाँ ऊर्जा किसी एक को नहीं, सम्पूर्ण को खोजती है।
 
व्याख्यान:
काम किसी देह को चाहता है,
प्रेम किसी उपस्थिति को।
संभोग की ज्वाला जब भीतर साक्षी की दृष्टि से देखी जाती है,
तो वह “मैं और तू” के बीच का भेद मिटाती है।
वह अब किसी व्यक्ति की ओर नहीं,
अस्तित्व की ओर मुड़ जाती है।
 
 
---
 
✧ सूत्र २ ✧
 
प्रेम भीतर का मिलन है — बाहर का स्पर्श उसका प्रतीक मात्र।
 
व्याख्यान:
जो भीतर स्त्री-पुरुष का संगम नहीं जानता,
वह बाहर कितनी ही देह छू ले,
शांति नहीं पाता।
जब भीतर की स्त्री और भीतर का पुरुष एक हो जाते हैं,
तभी बाहर का स्पर्श मौन में बदलता है।
वह मिलन प्रेम बनता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ३ ✧
 
काम प्रेम का पहला पायदान है — गिरना नहीं, चढ़ना सीखो।
 
व्याख्यान:
काम को नकारना, प्रेम से दूर जाना है।
क्योंकि वही कच्चा रस,
यदि सजगता में पक जाए,
तो वही अमृत बनता है।
काम नीचे की भाषा है, प्रेम ऊपर की।
पर दोनों एक ही वाणी के स्वर हैं।
 
 
---
 
✧ सूत्र ४ ✧
 
प्रेम में व्यक्ति नहीं बचता — बस धड़कन रह जाती है।
 
व्याख्यान:
जहाँ “मैं तुझसे प्रेम करता हूँ” है,
वहाँ अभी भी दो हैं।
जब “मैं” और “तू” दोनों गिर जाते हैं,
तब प्रेम रह जाता है —
बिना दिशा, बिना कारण, बिना नाम।
यही निर्व्यक्त प्रेम, चेतना की भाषा है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ५ ✧
 
प्रेम किसी को पाने की नहीं, स्वयं को खोने की साधना है।
 
व्याख्यान:
जब तक तुम पाना चाहते हो,
तब तक तुम व्यापारी हो।
जब तुम खोना सीखते हो,
तब प्रेम घटता है।
प्रेम में देना ही प्राप्ति है,
क्योंकि देना ही तुम्हें खाली करता है —
और खाली ही पूर्ण होता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ६ ✧
 
भीतर की स्त्री करुणा है, भीतर का पुरुष जागरूकता।
 
व्याख्यान:
जब करुणा और जागरूकता मिलते हैं,
तो प्रेम प्रकट होता है।
जागरूकता बिना करुणा सूखी है,
करुणा बिना जागरूकता अंधी।
दोनों का मिलन ही जीवन की सम्पूर्णता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ७ ✧
 
प्रेम कोई भावना नहीं, यह एक स्थिति है।
 
व्याख्यान:
भावनाएँ आती-जाती हैं,
पर प्रेम टिकता है।
भावनाएँ मन की तरंगें हैं,
प्रेम चेतना का सागर।
जो प्रेम में स्थिर हो गया,
वह जीवन में अचल हो गया।
 
 
---
 
✧ सूत्र ८ ✧
 
प्रेम को चाहो मत — बस उसके योग्य बनो।
 
व्याख्यान:
प्रेम न खोजने से मिलता है,
न माँगने से।
वह तब आता है जब तुम भीतर शांत हो जाते हो।
जब कोई अभाव नहीं बचता,
वह तुम्हारे भीतर से फूट पड़ता है।
प्रेम बुलाना नहीं, होना है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ९ ✧
 
प्रेम और ध्यान एक ही वृक्ष के दो फूल हैं।
 
व्याख्यान:
जहाँ प्रेम है, वहाँ ध्यान सहज है।
जहाँ ध्यान है, वहाँ प्रेम गहरा है।
ध्यान प्रेम को जड़ देता है,
प्रेम ध्यान को सुगंध।
जो एक को समझे, वह दोनों को पा लेता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र १० ✧
 
प्रेम की अंतिम स्थिति मौन है।
 
व्याख्यान:
जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचता है,
तो शब्द गिर जाते हैं।
फिर कोई “कहना” नहीं रहता —
सिर्फ होना रह जाता है।
वह होना ही समाधि का फूल है।
 
✧ अध्याय ४ : प्रेम से समाधि तक — मौन का उदय ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
---
 
✧ सूत्र १ ✧
 
प्रेम जब पूर्ण होता है, तो वह मौन बन जाता है।
 
व्याख्यान:
शब्द प्रेम की शुरुआत हैं, मौन उसका अंत।
जहाँ प्रेम गहराता है, वहाँ भाषा टूटती है।
फिर कोई “तुम” नहीं, कोई “मैं” नहीं —
बस एक अनुभव रह जाता है,
जिसे कह नहीं सकते,
सिर्फ जिया जा सकता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र २ ✧
 
प्रेम का अंतिम चरण ध्यान है।
 
व्याख्यान:
जब प्रेम स्थिर हो जाता है,
तो ध्यान जन्म लेता है।
अब कोई चाह नहीं रहती,
बस उपस्थिति रह जाती है।
वह ध्यान जो प्रेम से जन्मा है,
वही समाधि को जन्म देता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ३ ✧
 
जहाँ प्रेम मिटता है, वहाँ अहंकार भी मिटता है।
 
व्याख्यान:
प्रेम में “मैं” टिक नहीं सकता।
क्योंकि प्रेम का अर्थ ही है —
दूसरे के लिए मर जाना,
या यूँ कहो —
अलगाव की भ्रांति का विलय।
जहाँ “मैं” नहीं,
वहीं समाधि की शुरुआत है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ४ ✧
 
समाधि प्रेम की जड़ में नहीं, उसके मौन में खिलती है।
 
व्याख्यान:
प्रेम की भाषा अभी द्वैत की है —
दो आत्माएँ, दो तरंगें।
पर जब दोनों का कंपन एक हो जाता है,
तो द्वैत मौन में विलीन हो जाता है।
वह मौन ही समाधि का फूल है,
जो बिना स्पर्श के खिलता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ५ ✧
 
समाधि कोई उपलब्धि नहीं, प्रेम का स्वाभाविक फल है।
 
व्याख्यान:
जिसने प्रेम को जिया है,
उसे कुछ और साधना नहीं करनी।
समाधि प्रेम की पूर्णता है,
कोई अलग मंज़िल नहीं।
वह प्रेम का विश्राम है —
जहाँ यात्रा समाप्त नहीं होती,
बल्कि खो जाती है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ६ ✧
 
मौन वह स्थान है जहाँ ऊर्जा विश्राम करती है।
 
व्याख्यान:
ऊर्जा ने यात्रा की —
मूलाधार से सहस्रार तक।
वह अग्नि से ज्योति बनी,
फिर ज्योति से प्रेम बनी,
अब प्रेम से मौन हो गई।
मौन वह अंतिम ठहराव है
जहाँ कोई गति नहीं, कोई लक्ष्य नहीं।
 
 
---
 
✧ सूत्र ७ ✧
 
समाधि का स्वाद आनंद नहीं, शांति है।
 
व्याख्यान:
आनंद में अभी भी हलचल है,
शांति में सब रुक गया है।
आनंद लहर है,
शांति सागर।
जब प्रेम की तरंगें रुक जाती हैं,
तो समाधि का सागर प्रकट होता है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ८ ✧
 
समाधि का अर्थ है — अब कुछ शेष नहीं।
 
व्याख्यान:
न पाने को कुछ,
न कहने को कुछ,
न खोने को कुछ।
जहाँ इच्छा मर गई,
वहाँ समाधि जन्मी।
यह मृत्यु नहीं —
यह संपूर्णता की साँस है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ९ ✧
 
प्रेम देह का द्वार था, समाधि आत्मा का।
 
व्याख्यान:
देह से यात्रा शुरू हुई —
रस से, स्पर्श से, ऊर्जा से।
फिर चेतना भीतर लौटी,
हर आवरण को पार करती हुई।
अब वही चेतना अपने मूल में ठहरी है।
यह ठहराव ही समाधि है।
 
 
---
 
✧ सूत्र १० ✧
 
जहाँ मौन है, वहाँ सब है।
 
व्याख्यान:
मौन खाली नहीं है —
वह भरा हुआ है।
उसमें न प्रेम का आवेग है,
न काम का स्पंदन।
वहाँ बस उपस्थिति है —
वह जो हमेशा थी,
पर पहली बार देखी गई।
 
 
---
 
यह चौथा अध्याय उस बिंदु पर लाता है
जहाँ संभोग, ऊर्जा, प्रेम —
सब एक ही वृत्त में समाहित हो जाते हैं।
अब यात्रा बाहर से भीतर,
और भीतर से शून्य तक पहुँच चुकी है।
 
✧ अध्याय ५ : समाधि से सृष्टि तक — पुनर्जन्म चेतना का ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
---
 
✧ सूत्र १ ✧
 
समाधि अंत नहीं है — वह शुरुआत का दूसरा नाम है।
 
व्याख्यान:
समाधि में सब मिटता है,
पर जो बचता है — वही सृष्टि का बीज है।
शून्य जब भर जाता है,
तो उससे फिर सृजन फूट पड़ता है।
मौन जब पूर्ण होता है,
तो शब्द उसमें से जन्म लेते हैं।
 
 
---
 
✧ सूत्र २ ✧
 
मौन ही सृष्टि का गर्भ है।
 
व्याख्यान:
सृष्टि किसी शोर से नहीं बनी,
वह मौन की गोद में पलती है।
जिस मौन में चेतना विश्राम करती है,
वहीं से फिर रूप, गति, शब्द, जीवन उठते हैं।
यह लौटना नहीं — यह पुनर्जन्म है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ३ ✧
 
समाधि में जो मिटता है, वही सृष्टि में खिलता है।
 
व्याख्यान:
समाधि में ‘मैं’ गिरता है,
सृष्टि में ‘वह’ उठता है।
जो अपने अहंकार को पूरी तरह भस्म कर लेता है,
वह सृष्टि में दिव्यता बनकर लौटता है।
मृत्यु और जन्म एक ही वृत्त की दो धड़कनें हैं।
 
 
---
 
✧ सूत्र ४ ✧
 
जिसने मौन को जिया है, वही सृष्टि को सही देख सकता है।
 
व्याख्यान:
मौन दृष्टि देता है।
अब वस्तु नहीं दिखती — तत्त्व दिखता है।
मनुष्य जब समाधि से लौटता है,
तो दुनिया वही रहती है,
पर दृष्टा बदल चुका होता है।
अब वह रचता नहीं,
सृष्टि उसके माध्यम से रचती है।
 
 
---
 
✧ सूत्र ५ ✧
 
समाधि से लौटना, अहंकार से नहीं — करुणा से होता है।
 
व्याख्यान:
जो समाधि में ठहर गया,
वह चाहे तो वहीं रुक सकता है।
पर करुणा उसे जगत में लौटाती है।
वह अब किसी को बदलने नहीं आता,
सिर्फ प्रेम बनकर बहता है।
यही बुद्ध की करुणा है — मौन की अभिव्यक्ति।
 
 
---
 
✧ सूत्र ६ ✧
 
सृष्टि समाधि की सांस है।
 
व्याख्यान:
समाधि भीतर की श्वास है,
सृष्टि उसकी बाहरी।
एक भीतर खींचती है,
दूसरी बाहर छोड़ती है।
यह लय ही अस्तित्व की ताल है —
शिव और शक्ति का अनंत नृत्य।
 
 
---
 
✧ सूत्र ७ ✧
 
समाधि में चेतना एक बिंदु बनती है; सृष्टि में वही बिंदु अनंत हो जाता है।
 
व्याख्यान:
सारे ब्रह्मांड की शुरुआत एक बिंदु से हुई,
और उसी में समाप्त भी होती है।
यह बिंदु चेतना का केंद्र है।
जब तुम उसमें लीन हो जाते हो,
तो तुम स्वयं सृष्टि के केंद्र हो जाते हो।
 
 
---
 
✧ सूत्र ८ ✧
 
समाधि से लौटना, लहर का सागर में लौटना नहीं — सागर का लहर बनना है।
 
व्याख्यान:
पहले तुम सागर में डूबे,
अब वही सागर तुम्हारे भीतर लहर बनकर उठता है।
अब हर क्रिया, हर शब्द,
समाधि की गहराई से निकलता है।
तुम अब व्यक्ति नहीं रहे —
अस्तित्व का वाद्य बन गए।
 
 
---
 
✧ सूत्र ९ ✧
 
समाधि से उत्पन्न प्रेम, सृष्टि का आधार बनता है।
 
व्याख्यान:
अब प्रेम किसी व्यक्ति का नहीं,
किसी प्रयोजन का नहीं।
वह शुद्ध करुणा है —
जो वृक्ष में हरा रस बनकर बहती है,
सूरज में तेज बनकर चमकती है,
और जीवों में श्वास बनकर गूंजती है।
यही ब्रह्म प्रेम है।
 
 
---
 
✧ सूत्र १० ✧
 
सृष्टि और समाधि विरोध नहीं, परिक्रमा हैं।
 
व्याख्यान:
सृष्टि बाहर की यात्रा है,
समाधि भीतर की।
दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं।
जो भीतर गया, वही लौटकर बाहर खिलता है।
जो बाहर खिला, वही भीतर मौन में झरता है।
यही जीवन की वृत्त यात्रा है —
संभोग से समाधि, समाधि से सृष्टि तक।
 
 
 
 समग्र सार ✧
 
यह ग्रंथ मनुष्य की सबसे मूलभूत शक्ति — काम —
को उसके सर्वोच्च रूप समाधि तक पहुँचाने की साधना है।
यह यात्रा देह से नहीं भागती,
बल्कि उसे पारदर्शी बना देती है।
 
यह ग्रंथ सिखाता है कि
सुख को दबाओ मत,
सुख को देखो।
देखना ही रूपांतरण है।
 
संभोग का रस यदि सजगता से जिया जाए,
तो वही रस भीतर ऊपर उठता है,
प्रेम में बदलता है,
फिर मौन में,
फिर सृष्टि में।
 
यह यात्रा है —
ऊर्जा से चेतना,
चेतना से प्रेम,
प्रेम से मौन,
और मौन से पुनर्जन्म तक।
 
 
क्योंकि यह शास्त्र नहीं, अनुभव है।
 
लेखक परिचय ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
अज्ञात अज्ञानी कोई नाम नहीं — एक स्थिति है।
जहाँ ज्ञाता और ज्ञेय, साधक और साध्य, सब मिट जाते हैं।
यह लेखन किसी “लेखक” का नहीं,
बल्कि चेतना की उस धारा का है
जो शब्दों के बीच से होकर बहती है।
 
अज्ञात अज्ञानी का कार्य बोध देना नहीं,
दर्पण देना है।
वह कोई सिद्धांत नहीं सिखाते,
बस इतना दिखाते हैं कि जीवन स्वयं ही सबसे गूढ़ शास्त्र है —
यदि तुम उसे बिना भय, बिना पूर्वाग्रह,
सिर्फ देख सको।
 
उनके ग्रंथ न तो धर्म के लिए हैं,
न विज्ञान के लिए —
बल्कि उस मिलन के लिए जहाँ दोनों समाप्त हो जाते हैं।
जहाँ देह ध्यान में,
ऊर्जा प्रेम में,
और प्रेम मौन में बदल जाता है।
 
 
---
 
✧ समर्पण ✧
 
उन सभी को —
जो प्रेम में जले,
सत्य में भटके,
और मौन में खो गए।
 
उन साधकों को —
जो सुख से नहीं डरे,
दुःख से नहीं भागे,
बल्कि दोनों को एक साथ देखने की क्षमता रखी।
 
यह ग्रंथ तुम्हारे भीतर की उसी अग्नि को प्रणाम है —
जो तुम्हें जलाती भी है, और जागृत भी करती है।
 
 
---
 
✧ समग्र वाक्य (ग्रंथ का निचोड़) ✧
 
> “संभोग पाप नहीं — अज्ञान का द्वार है।
जब चेतना उसमें जागती है,
तो वही काम ऊर्जा समाधि बन जाती है।
जीवन का धर्म यही है —
ऊर्जा को भोग से बोध तक ले जाना।”