Tere ishq mi ho jau fana - 51 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 51

The Author
Featured Books
Categories
Share

तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 51

उसकी निगाहें फोन पर टिकी थीं। आखिरकार, उसने हार मान ली।

"बस… अब और नहीं! मैं खुद उसे फोन करता हूँ!"

उसने झट से फोन उठाया, समीरा का नंबर मिलाने ही वाला था कि अचानक ठहर गया।

"नहीं, क्या ये सही होगा?"

वह फोन को घूरने लगा, जैसे उससे कोई जवाब मांग रहा हो। फिर उसने लंबी सांस ली और खुद से कहा—

"अगर उसे मेरा गुलदस्ता पसंद आया होगा, तो वह ज़रूर जवाब देगी। अगर नहीं दिया, तो शायद उसका जवाब पहले से ही साफ है..."

ये सोचकर उसने फोन वापस रख दिया। मगर दिल मानने को तैयार नहीं था।

वह फिर से कमरे में टहलने लगा।

"क्या हो अगर वह भी इसी उधेड़बुन में हो कि मुझे फोन करे या नहीं?"

इस ख्याल ने उसकी बेचैनी को और बढ़ा दिया।

"क्या वह मुसीबत में पड़ गई होगी?"

ये सोचते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने फिर से फोन उठाया, मगर इस बार कॉल करने के बजाय उसने सिर्फ उसकी चैट खोली।

कोई नया मैसेज नहीं था।

उसने टाइप करना शुरू किया—"कैसा लगा मेरा भेजा हुआ गुलदस्ता?"

मगर भेजने से पहले ही उसने बैकस्पेस दबा दिया।

"नहीं, यह बचकाना लगेगा।"

फिर उसने दूसरा मैसेज टाइप किया—"हाय! कैसी हो?"

मगर यह भी उसे सही नहीं लगा।

वह फोन हाथ में लिए काफी देर तक सोचता रहा, फिर अंततः उसने मोबाइल टेबल पर रख दिया और खुद को कुर्सी पर गिरा दिया।

आँखें बंद करके उसने गहरी सांस ली।

"अगर वह सच में मुझे पसंद करती है, तो वह ज़रूर कुछ कहेगी…"

उसने खुद को समझाया, मगर यह दिल… यह बेचैन दिल मानने को तैयार नहीं था।

फोन अब भी टेबल पर पड़ा था, और दानिश की निगाहें बार-बार उस स्क्रीन पर जातीं, इस उम्मीद में कि शायद कोई मैसेज आए।

मगर कुछ नहीं हुआ।

वह उठकर खिड़की के पास चला गया, बाहर देखते हुए एक हल्की मुस्कान आई—"शायद… उसे थोड़ा और वक्त देना चाहिए।"

चांदनी में नहाए बागान की ठंडी हवा अब उसे पहले से ज्यादा सुकून देने लगी थी।

इंतज़ार और एहसास

दानिश खिड़की के पास खड़ा, चांदनी में नहाए बागान को देख रहा था। ठंडी हवा अब पहले से ज्यादा सुकून देने लगी थी, मगर उसका बेचैन दिल अभी भी किसी जवाब की उम्मीद में था। उसके अंदर एक अजीब सा द्वंद्व चल रहा था—क्या उसे समीरा को फोन करना चाहिए या नहीं?

उसने फिर से फोन उठाया, स्क्रीन को देखा, मगर कोई मैसेज नहीं था। आखिरकार, उसने हार मान ली और नंबर मिलाने लगा।

फोन की घंटी बजी, और हर बीतते सेकंड के साथ उसका दिल और तेज़ धड़कने लगा।

"हैलो?"

दूसरी तरफ से समीरा की आवाज़ आई। उसकी आवाज़ में एक ठंडापन था, जिसे दानिश ने तुरंत महसूस कर लिया।

"हाय समीरा… कैसी हो?"

एक सेकंड की चुप्पी के बाद समीरा ने रूखे लहजे में जवाब दिया—

"मैं ठीक हूँ। कुछ ज़रूरी बात थी?"

दानिश को एक पल के लिए लगा जैसे किसी ने उसकी खुशी पर पानी फेर दिया हो। फिर भी, वह मुस्कान बनाकर बोला—

"अरे नहीं… बस ऐसे ही सोचा, तुमसे बात कर लूँ। वो… मेरा भेजा हुआ गुलदस्ता कैसा लगा?"

समीरा की उंगलियाँ फोन के किनारे पर ठहरीं। उसे अच्छी तरह याद था कि जब उसने वह गुलदस्ता देखा था, तो एक पल के लिए उसका दिल पिघल गया था। मगर फिर उसने खुद को याद दिलाया कि उसे दानिश से दूर रहना है। वह इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी, इसलिए उसने जान-बूझकर बेरुखी से कहा—

"गुलदस्ता? हाँ, ठीक था।"

दानिश को यकीन नहीं हुआ। "ठीक था?" उसने धीमी आवाज़ में दोहराया।

समीरा को अपनी ही आवाज़ में कठोरता महसूस हुई, मगर उसने उसे नज़रअंदाज़ किया।

"हाँ, ठीक था। वैसे तुमने सिर्फ गुलदस्ते के लिए कॉल किया?"

अब दानिश को समझ आने लगा कि समीरा जान-बूझकर दूरी बना रही थी। फिर भी, उसने खुद को शांत रखा।

"नहीं, बस… तुम्हारी आवाज़ सुनने का मन कर रहा था।"

समीरा ने गहरी सांस ली। उसे एहसास हुआ कि वह दानिश से इस तरह बात नहीं करना चाहती थी। मगर उसके अंदर का डर उसे रोक रहा था।

समीरा ने कुछ जवाब नहीं दिया। वह खुद भी अंदर से टूटी हुई थी, मगर उसने अपनी भावनाओं को काबू में रखा।

दानिश ने एक लंबी सांस ली और धीरे से कहा—

"ठीक है, फिर… अपना ख्याल रखना।"

समीरा के होंठ हिले, जैसे वह कुछ कहना चाहती थी, मगर उसने खुद को रोक लिया।

"तुम भी।"

इसके साथ ही फोन कट गया।

दानिश ने फोन को देखा, फिर धीरे से उसे टेबल पर रख दिया।  मगर उसने खुद को संभाला।

"शायद… सच में उसे वक्त देना चाहिए।" उसने खुद से कहा।

उस रात वह सो नहीं पाया। बार-बार उसका दिल यही सवाल पूछता रहा—

"क्या समीरा को भी मेरी कमी महसूस होगी?"

दूसरी ओर, समीरा भी बिस्तर पर लेटी हुई छत को घूर रही थी। उसने दानिश के साथ बिताए पलों को याद किया, मगर फिर अपनी आँखें बंद कर लीं।

"मुझे यह करना ही होगा… वरना बाद में और मुश्किल होगा…" उसने खुद को समझाया।

मगर उसकी धड़कनें कुछ और ही कह रही थीं।

अगला दिन , 

समीरा ने अलार्म की आवाज़ पर आंखें खोलीं। रात भर वह सो नहीं पाई थी। खिड़की से आती हल्की धूप उसके चेहरे पर पड़ी, मगर उसके अंदर अंधेरे का एहसास अभी भी बना हुआ था।

"मुझे आगे बढ़ना होगा…" उसने खुद को समझाया।

जल्दी से तैयार होकर वह कॉलेज के लिए निकल पड़ी। मगर मन में अब भी वही बेचैनी थी—क्या दानिश ने उसकी बेरुखी को समझ लिया होगा? क्या वह अब दोबारा उसे कभी फोन नहीं करेगा?

रास्ते में वह अपनी पसंदीदा बुकशॉप पर रुक गई। किताबों के बीच उसे हमेशा सुकून मिलता था। वह धीरे-धीरे किताबें देख रही थी, जब अचानक उसे एक जानी-पहचानी मौजूदगी का एहसास हुआ।

समीरा ने सिर उठाया, और उसकी आंखें दानिश की आंखों से टकराईं।

वह वहीं, सामने खड़ा था—गहरी निगाहों से उसे देखते हुए।

एक पल के लिए दोनों जैसे समय में खो गए। चारों ओर हलचल थी, मगर उनके लिए सब कुछ ठहर गया था। समीरा ने महसूस किया कि उसका दिल तेजी से धड़कने लगा था।

दानिश की आँखों में न कोई शिकायत थी, न कोई गुस्सा—बस एक सवाल था।

"क्या अब भी तुम मुझे नजरअंदाज करोगी?"

समीरा को नहीं पता था कि वह क्या कहे।

"तुम यहाँ?" उसने आखिरकार हकलाते हुए पूछा।

दानिश हल्के से मुस्कुराया। "हाँ… किताबें पसंद हैं मुझे भी।"

समीरा सोचने लगी कि वाकई क्या दानिश इसी वजह से वहां है या ये सिर्फ बहाना है |

"कैसी हो?"

उसके इस सीधे सवाल से समीरा के अंदर कुछ टूटा।

"ठीक हूँ," उसने धीरे से कहा।

"सच में?"

उसकी आवाज़ में जो नर्मी थी, वह समीरा को और कमजोर कर रही थी।

"हाँ," उसने नज़रें चुराते हुए जवाब दिया।

दानिश ने गहरी सांस ली। "अगर तुम कहो तो चला जाऊँ?"

समीरा ने तुरंत उसकी तरफ देखा। उसे जवाब नहीं सूझा।

"नहीं…" यह शब्द उसके होंठों तक आकर भी बाहर नहीं आ सके।

मगर उसकी आँखें कुछ और कह रही थीं।

दानिश ने हल्के से सिर झुकाया। "ठीक है, फिर मैं चलता हूँ।"

उसने मुड़ने का इशारा किया, मगर उसकी चाल धीमी थी, जैसे वह इंतज़ार कर रहा हो कि समीरा उसे रोक ले।

समीरा के अंदर एक तूफान चल रहा था।

"अगर मैंने उसे अभी नहीं रोका, तो शायद फिर कभी नहीं देख पाऊँगी।"

उसने हिम्मत जुटाई और धीरे से कहा—

"दानिश…"

वह रुक गया।

समीरा ने गहरी सांस ली और कहा, "मैं… मैं बस यह कहना चाहती थी कि…"

दानिश ने उम्मीद से उसकी तरफ देखा।

"गुलदस्ता बहुत सुंदर था," उसने धीरे से कहा।

दानिश के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

"मुझे पता था," उसने हल्की हँसी के साथ जवाब दिया।

समीरा ने झेंपकर सिर झुका लिया।

"