अब उसके मन में एक ही सवाल है — “रिद्धि कोमा में कैसे गई?”
वो कंप्यूटर पर झुकती है और ‘Riddhi Raghuvanshi’ का नाम गूगल पर सर्च करती है।
स्क्रीन पर कुछ पुराने आर्टिकल्स और कॉलेज का डेटा खुलता है।
> “Riddhi Raghuvanshi – सेंट फ़्रांस कॉलेज– Dropout Year: 2022”
“No updates in the past 3 years.”
प्रकृति सोच में पड़ जाती है — “तीन साल...? ये तो वही समय है जब रिद्धि मुझसे कैफ़े में मिली थी... और उसने कहा था कि कुछ लोग कॉलेज में उसे परेशान कर रहे हैं...”
फिर उसे याद आता है रिद्धि का चेहरा — वो थकी हुई सी मुस्कान, और वो बात:
“मैं आपकी तरह बनना चाहती हूँ।”
प्रकृति का दिल काँप उठता है।
वो धीरे-धीरे बुदबुदाती है —
"कहीं… मेरी वजह से तो कुछ नहीं हुआ...?"
उसके सामने कुछ नाम तैरते हैं —
अपर्णा, श्वेता, रितिका...
वो वही नाम हैं जो रिद्धि ने तब उसे बताये थे — "वो मुझे तंग करती हैं..."
वो अपनी डायरी खोलती है और कुछ नोट्स लिखने लगती है।
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सीन: रिधhaan का ऑफिस – रात का समय
रिधhaan अपने केबिन में अकेला बैठा है। खिड़की से बाहर अंधेरा है और उसके चेहरे पर तनाव।
पिछली रात की बात उसे याद है — उसने दादी से पूछा था:
"आपने रिद्धि का वेंटिलेटर हटाने की परमिशन क्यों दी?"
दादी का जवाब:
"वो तकलीफ़ में है, बेटा... और तू भी तो रुक गया है। तूने जीना छोड़ दिया है। बस उसी के बारे में सोचता है।"
रिधhaan चुपचाप अपने मोबाइल की स्क्रीन देखता है।
कुछ पल सोचने के बाद उसने फोन उठाया।
(कॉल लगती है – इन्वेस्टिगेटर को)
रिधhaan:
"क्या अपडेट है रिद्धि के केस पर?"
इन्वेस्टिगेटर:
"सर, जितना डेटा मिल सकता था, मैंने निकाला है। कॉलेज की कुछ लड़कियों ने बताया कि रिद्धि किसी की तरह बनने की कोशिश कर रही थी... और जब वो लड़की कॉलेज से चली गई, तो रिद्धि डिप्रेशन में चली गई... फिर... सुसाइड कर लिया।"
रिधhaan (गंभीर स्वर में):
"कौन थी वो लड़की?"
इन्वेस्टिगेटर:
"नाम है – प्रकृति। उसका पता भेज रहा हूँ। और सर... वही लड़की है जो रिद्धि के सुसाइड वाले दिन उसके साथ कैफ़े में देखी गई थी।"
रिधhaan का चेहरा एकदम सख्त हो गया। उसकी आँखों में सवाल भी थे और आंधी भी।
रिधहान का चेहरा गुस्से से तना हुआ था। उसने झटके से फोन उठाया और वकील का नंबर डायल किया।
रिंग जाती रही...
कोई जवाब नहीं।
उसने ज़ोर से फोन मेज़ पर पटका और बिना कुछ कहे ऑफिस से बाहर निकल गया।
उसकी नज़र सीधे प्रकृति के डेस्क पर पड़ी — खाली।
उसने वहां खड़े दो कर्मचारियों से पूछा, “प्रकृति कहाँ है?”
एक ने धीरे से कहा, “वॉशरूम गई हैं सर...”
रिधहान की आंखें और तीखी हो गईं। उसकी चाल अब भारी नहीं, तेज़ थी। जैसे हर कदम आग लिए हुए हो।
उधर वॉशरूम का दरवाज़ा खुला। प्रकृति बाहर निकली, तो सामने रिधहान को खड़ा देख उसके पैर जम गए।
उसकी सांस अटक गई। चेहरे पर डर था, लेकिन उससे भी ज़्यादा — एक अजीब सा खिंचाव।
रिधहान ने बिना कुछ कहे उसकी ओर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए।
प्रकृति पीछे हटते हुए बोली, “ये... ये लेडीज़ वॉशरूम है... ये तुम्हारी जगह नहीं है।”
उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
रिधहान ने आंखें गहराई से उसके चेहरे पर गड़ा दीं — “ये ऑफिस मेरा है।”
वो एक और कदम आगे बढ़ा। प्रकृति खुद को पीछे खींचती गई।
धीरे-धीरे, बिना कुछ कहे... रिधहान ने अपने क़दमों से उसे वापस अंदर की ओर धकेला।
हर कदम पर उसका चेहरा उसके और पास आता जा रहा था।
प्रकृति की पीठ दीवार से लग गई...
अब वो दोनों वॉशरूम के अंदर थे।
बाहर से कुछ लोग देख रहे थे, पर रिधहान की आंखें सिर्फ एक इंसान पर टिकी थीं — प्रकृति।
उसके चेहरे से गुस्से की लहरें निकल रही थीं, लेकिन उस लहर में कहीं कुछ अधूरा, टूटा हुआ... और बहुत गहरा दबी हुई कसक भी थी।
उसकी सांसें प्रकृति के चेहरे के करीब महसूस होने लगीं।
“मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं…” वो फुसफुसाया, पर उसकी आवाज़ बिजली जैसी चुभी।
“तुम्हारी वजह से मेरी आज.........
उसका हाथ ऊपर उठा... धीरे... जैसे किसी घाव तक पहुंचना चाहता हो।
प्रकृति कांपती रही... उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे, पर वो कुछ बोल नहीं सकी।
उसका रोता चेहरा और आंसू देख के एक पल को लगा जैसे रिधहान का गुस्सा उसकी आंखों से पिघलने लगा हो... लेकिन तभी —
फोन बजा।
उस भारी खामोशी में वो रिंगटोन किसी तेज़ कटती तलवार सी लगी।
रिधहान की आंखें फोन स्क्रीन पर गईं —
“Lawyer – Incoming Call”
उसका हाथ वहीं रुक गया। आंखें अब भी प्रकृति पर जमी थीं। उसकी सांसें तेज़ थीं। और उसकी मुट्ठी — अधूरी बंद।
प्रकृति वहीं दीवार से लगी खड़ी थी, उसकी आंखों से आँसू लगातार बह रहे थे। उसकी सांसें बेतरतीब थीं, और चेहरा — अपराधबोध से झुका हुआ।
रिधहान अब भी फोन कान से लगाए खड़ा था, लेकिन उसकी नजरें अब भी प्रकृति पर टिकी थीं। वो देख रहा था — उसकी घबराहट, उसकी चुप्पी, और शायद उसका टूटा हुआ यकीन।
तभी किसी ने तेजी से वॉशरूम का दरवाज़ा खोला।
कबीर।
वो तेज़ी से अंदर आया और एक पल को रुक गया।
सामने का दृश्य देखकर उसकी आंखें चौंधिया गईं — रिधहान और प्रकृति एक-दूसरे के इतने करीब, प्रकृति की आंखों में डर, और रिधहान का चेहरा — ज्वालामुखी की तरह।
कबीर कुछ कहने ही वाला था, तभी...
"मुझे रिदम द लाउंज में मिलो
रिधहान फोन पर बोला
"मैं वहीं आ रहा हूँ। रिद्धि के बारे में है...।"
रिधहान ने कहा और फोन काट दिया।
कबीर सब समझ गया — ये सब तमाशा रिद्धि की वजह से हुआ है।
प्रकृति अब भी चुप थी, सिर झुकाए हुए... अपने आँसू पोंछते हुए... खुद में ही गुम।
जैसे अपने आप से पूछ रही हो — मैने किया क्या है।
कबीर ने उसकी तरफ देखा — उसे बहुत बुरा लगा।
उसने माहौल को संभालने की कोशिश की।
"प्रकृति..." उसकी आवाज़ नर्म थी।
“मैं जानता हूँ... तुम्हारे लिए ये सब आसान नहीं है।
पर मैं बस इतना ही कह सकता हूँ... कि वो खुद भी मजबूर है, उसे नहीं पता वो क्या कर रहा है ये सब रिद्धि.......!"
वो कुछ और कहने वाला था — लेकिन अचानक उसकी ज़ुबान रुक गई।
शब्द गले में अटक गए।
क्योंकि प्रकृति की आंखों में अब आँसू नहीं थे —
बल्कि एक अजीब सा खालीपन था।