O Mere Humsafar - 11 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 11

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ओ मेरे हमसफर - 11

(रिया अपनी बहन प्रिया से झूठ बोलती है कि वह आदित्य को चाहती है और वह आदित्य की बनना चाहती है। ताकि प्रिया को उसका कुणाल मिल जाए। सगाई की शाम सबके चेहरों पर मुस्कान है, पर दिलों में उलझनें हैं। प्रिया, जो कुणाल से प्रेम करती है, उसके साथ सगाई करती है—कांपते हाथों और झुकी नज़रों के साथ। कुणाल इस बंधन को समझ नहीं पाता, पर ललिता का स्नेह उसे छू जाता है। विदाई के बाद कार में ललिता के शब्द “नींव ना हिलने पाए” कुणाल के मन को झकझोरते हैं। क्या वह इस परिवार की नींव बन पाएगा, या सब कुछ ढह जाएगा? )अब आगे

अधूरी चाह

हल्की बारिश की बूँदें खिड़की के काँच पर टूट रही थीं, जैसे कोई पुरानी याद बार-बार लौटकर दस्तक दे रही हो।

प्रिया खामोशी से बैठी थी, उसकी उंगलियाँ अनजाने में ही उसकी मंगनी की अंगूठी को छू रही थीं — वही अंगूठी, जो अब एक रिश्ते की मुहर थी… पर उसकी धड़कनों में गूँजता नाम अब भी वही था — कुणाल।

एक क्षण के लिए होंठों पर मुस्कान आई, मगर वह जल्द ही एक लंबी, बोझिल साँस में ढल गई।

मोबाइल बजा — "मृणालिनी कॉलिंग"।

चेहरा खिल गया — “अरे मृणी! तू कैसी है?”

लेकिन अगला ही पल —“तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बिना सगाई करने की!” मृणालिनी की गूंजती आवाज़ ने कानों को झनझना दिया।

प्रिया हँस पड़ी — “दीदी ने भी तो कर ली थी…”

“क्या?! मैं तुझे...!”

प्रिया ने शरारती मुस्कान के साथ स्पीकर ऑफ़ किया और फोन हवा में लहराते हुए रिया के कमरे की ओर बढ़ गई।

कमरा ख़ाली था। फोन पर चलते हुए वो बोलती रही — "दीदी यहाँ नहीं हैं, बाद में बात करवाती हूँ।"

फोन काटते ही, उसने एक थकी हुई साँस ली। मगर तभी उसकी नज़र टेबल पर अटक गई — सजी-संवरी किताबें, स्टिकी नोट्स, न्यूज़ क्लिपिंग्स, रिया की मेहनत का हर निशान अब भी वहीं था।

अलमारी पर चिपका प्लानर चुपचाप गवाही दे रहा था — "सपना: IAS 2026" उसकी नज़रें दरवाज़े से बाहर गईं — रिया कुमुद के साथ रसोई में मुस्कुरा रही थी। जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

प्रिया बुदबुदाई — “पर मैं क्यों इतना अधूरा महसूस कर रही हूँ…”

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राठौड़ मेंशन

कमरे में धुंधलाहट और उसके बीच भानु फर्श पर बैठी थी। उसकी सूजी आँखें कुणाल की तस्वीर पर टिकी थीं — “कैसे? सिर्फ एक दिन में सब कुछ खत्म हो गया…?”

तभी कुणाल की परछाई गुज़रती है — भानु झपट कर उठती है और उसके पीछे भागती है। "कुणाल!" वो उसे पीठ पीछे से जकड़ लेती है।

कुणाल चौंकता है, झटका देकर दूर कर देता है — “क्या कर रही हो भानु? पागल हो गई हो क्या?”

भानु कांपती आवाज़ में — “तुम जानते हो न… मैं तुमसे प्यार करती हूँ… तो फिर क्यों? कैसे तुम किसी और से...”

कुणाल की आँखों में ग़ुस्सा भर आता है — “कितनी बार कहा है — मेरे लिए तुम कुछ नहीं हो! समझी? कभी भी नहीं!”

भानु के होंठ काँपते हैं, लेकिन शब्द नहीं निकलते।

“GET OUT!” कुणाल दहाड़ता है।

भानु बाहर निकल जाती है — हारी हुई, टूटी हुई।

कुणाल ज़ोर से दरवाज़ा बंद करता है — उस धमाके में जैसे उसके दिल का एक दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद हो गया हो।वह फाइल निकालता है, और एक तस्वीर नीचे गिरती है।

प्रिया की तस्वीर।वह उसे उठाता है… देर तक देखता है…"मैं तुम्हारा बनने की पूरी कोशिश करूंगा… पर अगर न बन सका, तो प्लीज़... मुझे माफ़ कर देना।"

वह तस्वीर को अपने बैग में रखकर जैसे ही निकलने को होता है — भानु फिर सामने होती है। उसकी आँखें उम्मीद से भरी होती हैं।

कुणाल सख़्ती से देखता है —“Don’t. You. Dare.”

भानु वहीं थम जाती है — जैसे ज़िंदगी की आखिरी उम्मीद भी दम तोड़ गई हो।

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ललिता राठौड़ का कक्ष

भानु सिसकती हुई आती है।

ललिता (ठंडी आवाज़ में): "कुणाल से क्या बात कर रही थी?"

भानु: “वो… मैं… बस…”

“चुप!” "जब मैंने कह दिया कि कुणाल की शादी प्रिया से होगी… तो तुम्हारी कहानी वहीं ख़त्म हो जाती है।"

भानु (काँपते हुए): “लेकिन आपने तो कभी कहा था…”

ललिता मुस्कुराई — एक ठंडी, तुच्छ हँसी के साथ —

“कब कहा? और मान भी लो कहा… तो क्या फर्क पड़ता है? तुम होती कौन हो याद रखने वाली?"

भानु पत्थर हो गई।

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डोगरा हाउस - शाम

सूरज की आखिरी किरणें खिड़की के काँच पर नाच रही थीं। वैभव पुराने एल्बम के पन्ने पलट रहे थे।

दरवाज़ा खटकता है —

प्रिया: “पापा… एक सरप्राइज़ है आपके लिए।”

वैभव: “अरे प्रि! आओ… देखो ये तस्वीर — तुम और रिया। तू कहती थी — बड़ी होकर बहू बनेगी, नाम रोशन करेगी। देखो, वो दिन आ गया।”

प्रिया: “हाँ पापा… शादी हो रही है… उसी से जिसे चाहा।”

[वह गले लगती है, फिर अचानक अलग होकर गंभीर हो जाती है…]

प्रिया: “पर दीदी का क्या?”

[कुमुद रसोई से आती हैं]

कुमुद: “उसकी भी तो बात पक्की हो गई आदित्य से। दोनों बहनों की विदाई एक साथ होगी!”

प्रिया (धीरे से): “माँ… दीदी को अभी विदा मत करो।”

कुमुद (चकित): “पर क्यों बेटा?”

प्रिया: “"हां मां! पर दीदी आई ए एस अफसर बनकर देश की सेवा करना चाहती है। प्यार करने वाले देश सेवा नहीं कर सकते, ऐसा कहां लिखा है।"

[एक पल की चुप्पी। वैभव सिर झुका लेते हैं। कुमुद की आँखें भर आती हैं।]

...

1. क्या रिया अपने सपनों के लिए प्यार को पीछे छोड़ पाएगी… या समाज के दबाव में झुक जाएगी?

2. भानु को राठौड़ मेंशन में अब भी क्यों बरकरार रखा गया है — क्या ललिता राठौड़ के पास कोई गुप्त योजना है?

3. क्या प्रिया की यह पहल रिया की किस्मत बदल पाएगी… या वो खुद अपने रिश्ते को दांव पर लगा बैठेगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र"