रिद्धान ने कबीर को कॉल किया और बोला:
"मेरी लोकेशन ट्रेस करो और रेस्क्यू टीम के साथ चॉपर भेजो..."
कुछ घंटों में वहाँ रेस्क्यू टीम चॉपर के साथ पहुँची और प्रकृति को लेकर रिद्धान अस्पताल पहुँचा। तेज़ भागते स्ट्रेचर के साथ डॉक्टर्स उसे इमरजेंसी रूम में ले गए।
कुछ समय बाद डॉक्टर बाहर आए और बोले:
"सब ठीक है, बस मामूली चोटें हैं और सदमे की वजह से बेहोश हैं..."
रिद्धान की जान में जान आई। उसकी आंखों में थकी हुई राहत थी।
वो मेडिकल काउंटर पर दवाइयां लेने गया। वहीं उसकी नज़र डॉक्टर मित्तल पर पड़ी – वही डॉक्टर जो रिद्धि का इलाज कर रहे थे।
डॉ. मित्तल (हैरानी से):
"Mr. रघुवंशी? आप यहाँ...? क्या आपको आपकी दादी ने सब कुछ बता दिया?"
रिद्धान (कन्फ्यूजन में):
"क्या...? बताना क्या था?"
मित्तल:
"उन्होंने मुझे बताने से मना किया था... पर आपको यहाँ देख के लगा कि शायद आपको पता होगा?"
रिद्धान:
"तो बताइए..."
इतने में रिद्धान का फ़ोन बजा। कबीर का कॉल था। उसने एक बार अनदेखा किया, लेकिन फ़ोन बार-बार आता रहा। आखिर उसने कॉल उठा लिया।
कबीर:
"प्रकृति को उस जगह भेजने वाले का पता चल गया है... वो हमारे प्रोजेक्ट मैनेजर हैं... कल उनसे ऑफिस में बात करते हैं।"
रिद्धान:
"ठीक है, कल बात करते हैं।"
कॉल कट होने तक डॉक्टर मित्तल जा चुके थे।
रिद्धान ने दवाइयाँ लीं और सीधा प्रकृति के पास पहुँचा। सारी दवाइयाँ नर्स को थमाईं। डॉक्टर ने कहा, "प्रकृति को कभी भी होश आ सकता है।"
रिद्धान का मन बेचैन था। उसने तुरंत डॉक्टर मित्तल को ढूंढना शुरू किया। उनका कैबिन पास में ही था, लेकिन वो वहाँ नहीं थे। वो उन्हें इधर-उधर ढूंढने लगा। काफ़ी देर बाद डॉक्टर मित्तल कॉरिडोर में मिल गए।
रिद्धान:
"डॉक्टर, आप क्या बताने वाले थे...? आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे?"
डॉक्टर कुछ कहे बिना आगे बढ़ते रहे। रिद्धान ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। वो भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
दोनों रिद्धि के वार्ड में पहुँचे — जो प्रकृति के वार्ड के बिल्कुल पास था। डॉक्टर मित्तल रिद्धि को चुपचाप एक्सामिन करने लगे। रिद्धान अब भी पूछ रहा था, "क्या बात है डॉक्टर...? आप बताइए..."
उधर, प्रकृति को होश आ गया था। उसने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं। चारों तरफ सब धुंधला दिख रहा था। वो सोचने लगी — "मैं यहाँ कैसे पहुँची...? मुझे यहाँ कौन लाया...?"
उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। वो वार्ड से बाहर निकली, और चारों ओर देखने लगी। तभी उसे सुनाई दी — रिद्धान की आवाज़ — गुस्से से चिल्लाता हुआ।
वो आवाज़ पहचान गई। वो इधर-उधर देखने लगी, तभी उसकी नज़र एक वार्ड पर पड़ी जहाँ एक पेशेंट के सामने डॉक्टर और रिद्धान बहस कर रहे थे।
डॉक्टर उसे समझा रहे थे:
"आपकी दादी ने बताने से मना किया था..."
रिद्धान गुस्से में ज़िद कर रहा था कि सब कुछ बताया जाए। आखिरकार डॉक्टर मित्तल ने हार मानते हुए एक फाइल उठाई और रिद्धान को पकड़ा दी — जिसमें उसकी दादी के साइन थे।
फाइल में लिखा था:
"रिद्धि का वेंटीलेटर हटाने की अनुमति दी जाती है..."
रिद्धान सन्न रह गया। वो हैरानी से फाइल को देखता रहा। उसके बाद अचानक उसने डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया:
"हाऊ डेयर यू...? तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई...?"
उसकी आंखों में आंसू नहीं, आग थी।
डॉ. मित्तल (धीरे से):
"रिद्धि के अंदर कोई सुधार नहीं है... और न ही उसमें जीने की कोई इच्छा बची है। इसलिए उसे अब तकलीफ़ नहीं देनी चाहिए। वो बहुत दर्द में है... और आपकी दादी ने इसे अप्रूव किया है।"
प्रकृति ये सब दूर से देख रही थी। उसके मन में सवाल थे — "ये लोग किसकी बात कर रहे हैं...? और ये लेटी हुई लड़की कौन है...?"
रिद्धान डॉक्टर का कॉलर छोड़ता है... और गुस्से में कैबिन से बाहर चला जाता है। दूसरी तरफ प्रकृति खड़ी थी, लेकिन रिद्धान ने उसे नहीं देखा। डॉक्टर भी उसके पीछे निकल जाते हैं।
प्रकृति धीरे से उस वार्ड में घुसती है। माहौल शांत था, बस मशीनों की बीप... नलियां... और हल्की रौशनी।
उसने देखा — एक
लड़की, पूरी तरह तारों में जकड़ी हुई, मशीनों से जुड़ी हुई थी।
वो कुछ पल ठहरकर उसे ध्यान से देखती है...
"इसे मैं जानती हूँ..."
थोड़ा ज़ोर डालने पर यादें लौटती हैं — कॉलेज के दिन, वो शर्मीली लड़की जो हमेशा उसकी तरह बनने की कोशिश करती थी।
एक नाम उसके होंठों पर थरथराया... :"रिद्धि....!??".... पर, यहां इस हालत में??? और MR. रघुवंशी का इससे क्या रिश्ता है.....? ये सब क्या है???
वो सोचने लगी: मेरी तस्वीर उनके घर में, और रिद्धी हॉस्पिटल में, इस हालत में.... ये सब....?
वो ये अब सोच ही रही थी कि उसके कंधे पर एक हाथ आया.....
प्रकृति की सांसे रुक गई ।।।।
वो पीछे पलटी....!