Ishq aur Ashq - 60 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 60

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इश्क और अश्क - 60



प्रणाली गहरी नींद में जा चुकी है।
वर्धांन उसके गालों को छूते हुए बोला –
"मैं तुम्हारे सोने का इंतज़ार कर रहा था..."

हवा से उसके बाल गालों को छूने लगते हैं।
वर्धांन उन बालों को हटाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाता है, पर कुछ सोच कर रुक गया...

"नहीं! ये गलत है... मैं खुद को तुमसे दूर क्यों नहीं रख पा रहा?"
(उसने अपने हाथ पीछे करते हुए कहा)

वर्धांन वहाँ से निकलकर अब महल के अंदर चला गया और न जाने किस तलाश में घूम रहा है...
कभी वो सैनिकों से बचता, तो कभी महल के हर दरवाज़े का मुआयना करता।

पर कुछ घंटों की मशक्कत के बाद...
आख़िरकार उसे एक जगह मिली, जहाँ पहुँचकर वह बोला – "मैंने ढूंढ लिया..."

वो उस कक्ष के अंदर गया – (यह पारस का कक्ष था)
वो पारस के पास पहुँचा।

"मुझे माफ़ करना दोस्त... गरुड़ लोक की एक वनस्पति से तुम्हारी ये हालत हुई।
और बहुत अफ़सोस के साथ मुझे ये कहना पड़ रहा है कि बिना किसी गरुड़ की मदद के, गरुड़ विष धरती पर नहीं आ सकता।"
(उसने सोते हुए पारस से कहा)

पारस नींद में है, वो उसकी कोई बात नहीं सुन सकता,
पर वर्धांन बोलना जारी रखता है...

"तुम्हें बचाना मेरी मर्ज़ी ही नहीं, मेरा फ़र्ज़ भी है।
मैं नहीं चाहता कि ये दुश्मनी और बढ़े।
और अगर ब्रह्मदेव को पता चल गया कि गरुड़ लोक से इतनी बड़ी गलती हुई है,
तो मेरे लोक को भी नुकसान हो सकता है..."

इतना कहकर उसने पारस के माथे पर हाथ रख दिया –
"उम्मीद करता हूँ कि हम एक खुशहाल राज्य की नींव रखेंगे।"

उसने मंत्रों का उच्चारण शुरू किया –
"ॐ ब्रह्म विषो: त्यागे नम:"
और इसी प्रकार मंत्रों का जाप चलता रहा...

एक अजीब सी रोशनी वर्धांन के शरीर से निकल रही थी
और पारस के शरीर में ऊर्जा का संचार होने लगा।

जैसे-जैसे मंत्रों की गति बढ़ती,
वर्धांन का शरीर धीरे-धीरे ज़मीन से लगने लगा...
(कमज़ोर होता गया)

पर उसने ये प्रक्रिया बंद नहीं की।

चाँद की रोशनी जो अब तक पूर्णिमा सी चमक रही थी,
अचानक अमावस की रात में बदल गई।

आसमान को बादलों ने घेर लिया... और एक बिजली कड़की –
⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡

बादलों की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि बालकनी में सोती प्रणाली काँप गई,
और झटके से उसकी आँख खुल गई।

"ये कैसा मौसम है? आज तो पूरा चाँद था...
फिर ये अमावस जैसा अंधेरा कैसे?"
(उसने अपने आसपास देखते हुए कहा)

"और वर्धांन भी नहीं आया...
न जाने क्यों उसने मुझसे खिड़की खुली रखने को कहा था..."
(वो दुखी होकर खिड़की और दरवाज़े को बंद कर देती है
और आँख बंद करके सोने की कोशिश करती है)


---

दूसरी तरफ...

वर्धांन का मंत्र जाप लगभग खत्म हो चुका है,
पर खत्म होने से पहले ही वो ज़मीन पर गिर पड़ा।
उसकी साँसे मंद होने लगीं,
हाथ-पैर अपने होश खोने लगे।

वर्धांन ने हिम्मत की और वापस जाकर अपने मंत्र पूरे किए।
पर अब वो पूरी तरह धारा शाही हो चुका था...

"मैं वापस कैसे जाऊँगा...?
अगर सैनिकों ने मुझे देख लिया तो...?"
(उसने थके हुए हाथों को आगे बढ़ाते हुए कहा)

"हे ब्रह्म देव... रक्षा करें।
मैं इस दुश्मनी को और हवा नहीं देना चाहता..."

जैसे-तैसे वो उस कक्ष से बाहर निकला...
तो उसने पाया कि बाहर सारे सैनिक बेहोश हैं!

"शुक्रिया ब्रह्म देव..."
(और वहाँ से निकलकर प्रणाली के कक्ष में पहुँचा...)


---

वो अभी भी उसी जगह पर वर्धांन का इंतज़ार करती हुई सो रही है।
वो उसके पास पहुँचा।

"मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो...
ये हमारी आख़िरी मुलाक़ात होगी।
अब कोई प्रेम-जाल नहीं, और न ही कोई प्रेम!"

(इतना कहकर उसने अपनी आँखें बंद कीं
और अपने पंखों का आवाह्न किया)

उसकी दिल की धड़कनें तेज़ थीं...
और उसके पंख अब इतने कमज़ोर थे कि
वो उसे सही-सलामत कहीं नहीं पहुँचा सकते।

और वो गरुड़ लोक भी नहीं जा सकता...
वरना वहाँ सबको पता चल जाएगा।

उसने हिम्मत की...
और उस खिड़की से छलांग लगा दी!

"धड़्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र!"
(आवाज़ इतनी तेज़ आई कि प्रणाली की नींद फिर से खुल गई)

"वर्धांन...?!"
(आँख खुलते ही उसके मुँह से निकला)

वो तुरंत हड़बड़ाकर खड़ी हुई
और इधर-उधर देखने लगी...

"वर्धांन! कहाँ हो तुम???"
(उसने उम्मीद भरी आवाज़ में कहा)

पर कोई भी नहीं दिखा।
प्रणाली खिड़की की ओर देखने लगी, पर वहाँ भी कोई नहीं था...

"मुझे पता है... तुम यहीं थे!"
(उसने कहा)

तभी उसकी नज़र खिड़की की दीवार पर गई।
उसने पास जाकर देखा –
उसे वहाँ एक पंख मिला...

सुनेहरा, भूरा और चमकीला पंख...

"ऐसा ही पंख मैंने गरुड़ लोक में भी..."
(उसका दिल काँपने लगा)

"...इसका मतलब यहाँ कोई गरुड़ वंशज आया था...?!"
(उसने शॉक्ड होकर कहा)

"गरुड़ वंशज...!"
(वो तुरंत जाकर अपने मयान से तलवार निकालती है
और तान कर इधर-उधर देखने लगी)

"एक गरुड़ वंशज, इस महल में...?
कहीं उसने वर्धांन को नुकसान तो नहीं पहुँचाया...?
तभी तो वो यहाँ से चला गया?"
(वो घबरा कर बोली)


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सुबह होने ही वाली है
आज प्रणाली का राज्याभिषेक है...

महल में अजीब सा शोर हो रहा है...

"राजकुमार... राजकुमार...
राजकुमार को कुछ हो रहा है!
वैद्य को बुलाओ!"
(शोर की आवाज़)

प्रणाली सहित सब उस कक्ष में पहुँचे...
और देखा – पारस की साँसे तेज़ चल रही हैं!
उसके मुँह से नीला सा द्रव्य बाहर आ रहा है...

राजा उसे देखकर बहुत परेशान हो गए।
वैद्य को तुरंत बुलावा भेजा गया।

प्रणाली ने पारस के सिर पर हाथ रखकर उसे शांत करने की कोशिश की...
थोड़ी देर में उसका कंपन बंद हो गया।

...पर ये कुछ ठीक नहीं लग रहा...

वैद्य आए, उन्होंने पारस की नब्ज़ पकड़ी और बोले –
"माफ कीजिएगा महाराज,
पर राजकुमार अब इस दुनिया में नहीं रहे..."


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💔💫