🖋️ एपिसोड 8: “अब जब हमसफ़र हैं…”
> “मोहब्बत जब मंज़िल बन जाती है…
तब भी राह आसान नहीं होती।”
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स्थान: दिल्ली — एक नया घर, एक नई सुबह
छोटा-सा 2BHK फ्लैट।
हल्की धूप खिड़की से पर्दों में उतर रही थी।
रेहाना रसोई में चाय बना रही थी।
आरव बालकनी में बैठा अख़बार पढ़ रहा था।
दोनों के बीच वो खामोशी थी, जो सुकून देती है —
वो खामोशी जो दो हमसफ़रों की पहचान बन जाती है।
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> “चाय में अदरक डाला?”
“हाँ, तुम्हारी पसंद अब मेरी आदत बन चुकी है…”
(दोनों मुस्कराए)
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☕ नयी ज़िंदगी के पहले दिन की शुरुआत
रेहाना ने धीरे से कहा —
> “आज से हमारी रोज़मर्रा की कहानी शुरू…”
“लेकिन हम इसे भी खास बनाएंगे।”
> “कैसे?”
“हर हफ्ते एक दिन — सिर्फ ‘हमारा दिन’।
बिना किसी गेस्ट, बिना किसी प्लान के… बस हम।”
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Scene Shift — 1 हफ्ता बाद, ऑफिस रूटीन शुरू
आरव एक एड एजेंसी में प्रोजेक्ट हेड बन चुका था।
सुबह 9 से शाम 7 — मीटिंग्स, क्लाइंट कॉल्स, प्रेजेंटेशन।
उधर रेहाना अब भी अपनी क्रिएटिव राइटिंग क्लासेज ले रही थी।
बच्चों को कहानी कहना, सिखाना — वही उसका सुकून था।
लेकिन जैसे-जैसे दिन बीते…
साथ बिताने का वक़्त कम होता गया।
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एक शाम — डिनर टेबल पर चुप्पी
> “आज क्लास में क्या पढ़ाया?” आरव ने पूछा।
“एक नई कहानी शुरू करवाई है —
एक लड़की, जो शादी के बाद खुद को फिर से खोजती है।”
आरव समझ गया…
ये सिर्फ एक कहानी नहीं थी।
> “मैंने तुम्हें वक़्त नहीं दिया, है न?”
“तुमने कोशिश की है… और मैं भी।
लेकिन शायद अब हमें अपनी कहानी फिर से लिखनी पड़े।”
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अगले दिन — सरप्राइज़
आरव ऑफिस नहीं गया।
वो सुबह-सुबह फूल, बर्फ़ी और पुराने कॉलेज की एक तस्वीर लेकर रेहाना के सामने खड़ा था।
> “आज हमारा दिन है — सिर्फ ‘हमारा’।
मैं भूल गया था… लेकिन अब नहीं भूलूँगा।”
रेहाना की आँखें भर आईं।
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☔ Scene — पुराने कॉलेज का गेट
दोनों वहीं पहुँचे, जहाँ पहली बार मिले थे।
कॉरिडोर, लाइब्रेरी, कैंटीन… सब बदला नहीं था —
या शायद अब वो खुद पुराने हो चुके थे।
रेहाना ने कहा —
> “याद है, यहीं तुमने पहली बार मुझसे कहा था —
‘मुझे बारिश से डर लगता है… लेकिन तुम्हारे साथ नहीं।’”
और जैसे किस्मत ने सुन लिया हो —
बारिश शुरू हो गई।
दोनों फिर से भीग गए —
इस बार डर के नहीं… यादों के साथ।
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Scene Change — घर लौटते समय
रेहाना ने धीरे से पूछा —
> “क्या हम ऐसे ही रह पाएंगे?”
“हर दिन नहीं… लेकिन हर मोड़ पर तुम्हारे साथ ज़रूर रहूंगा।”
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Reality Check — दो महीने बाद
शादी के बाद की रूमानी दुनिया में अब
बिल्स, डेडलाइन्स, रिश्तेदार, प्लानिंग और थकावट आने लगी थी।
एक रात, जब रेहाना कुछ कह रही थी, आरव फोन पर था।
> “सुन रहे हो न?”
“हाँ हाँ… कुछ क्लाइंट की बात थी बस।”
“आरव, मैं तुमसे बात कर रही थी — कहानी की, हमारी।”
> “अब इतनी भी बड़ी बात क्या है?”
“क्योंकि तुम अब सुनते नहीं हो…
और मैं अब चुप रहने लगी हूँ।”
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सन्नाटा… और उसके बाद दूरी।
रेहाना अगले दिन अपनी माँ के घर चली गई —
कुछ दिन खुद के साथ रहने।
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आरव अकेला रह गया।
घर खाली… चाय फीकी…
और वही डायरी — जिसमें अब कोई पन्ना नहीं जुड़ रहा था।
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✍️ आरव की डायरी — पन्ना लिखा गया
“रेहाना, तुम गई नहीं हो…
तुम तो बस वो आईना हो जो मैंने देखना छोड़ दिया था।
अब फिर से खुद को देखना चाहता हूँ —
तुम्हारी आँखों में।”
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Scene Change — दो दिन बाद
आरव रेहाना के घर पहुँचा।
हाथ में वही नोटबुक, और एक चिट्ठी।
> “मुझे फिर से पढ़ने दो — तुम्हें।
तुम्हारी खामोशियाँ, तुम्हारे शिकवे… सब।”
रेहाना चुप रही, फिर पूछा —
> “क्या अब भी यकीन है कि हम दोनों साथ चल सकते हैं?”
> “हाँ…
क्योंकि इस बार सिर्फ प्यार नहीं, समझदारी भी है हमारे पास।”
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❤️ और फिर… लौट आई ‘हमारी कहानी’।
अब दोनों ने कुछ नए नियम बनाए —
1. हर हफ्ते एक ‘no phone’ डे
2. एक साथ कहानी लिखना — एक लाइन वो, एक लाइन आरव
3. हर महीने एक छोटी-सी ट्रिप — दूर नहीं, लेकिन साथ
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एपिसोड की आख़िरी लाइन:
> "प्यार सिर्फ शादी नहीं होता…
वो रोज़-रोज़ साथ चलने की कोशिश का नाम है।
और जब दो लोग सच में साथ चलना चाहें…
तो रास्ते खुद बन जाते हैं।”
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🔔 Episode 9 Preview: “जब ज़िंदगी इम्तहान लेती है…”
> क्या उनका रिश्ता अब हर मोड़ पर मज़बूत रहेगा?
या फिर ज़िंदगी एक नया सवाल पूछेगी?
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