वैद्य: गरुड़ शोभित...! राजकुमार की नब्ज और दिल की धड़कनें अब अपनी रफ़्तार में आ गई हैं।
गरुड़ शोभित (आश्चर्य से): क्या सच में?
तभी वहां एक लड़की आती है—
लड़की (घबराई सी): क्या वर्धान को होश आ गया?
गरुड़ शोभित उसे देखते हैं और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ जाती है।
गरुड़ शोभित (स्नेह से): ओ... तुम आ गई सय्युरी...? आओ!
वो लड़की बड़े ही हक से अंदर आ गई। उसकी चाल में अधिकार था, और आंखों में चिंता।
सय्युरी (थोड़ी शिकायत भरे लहजे में): गरुड़ शोभित... अभी तक वर्धान को होश क्यों नहीं आया?
गरुड़ शोभित (हल्की सी झुंझलाहट के साथ): तुम्हें कितनी बार कहा है, मुझे बाबा बोला करो सय्युरी!
सय्युरी (शरारत से मुस्कुराते हुए): जब हक से इस कुल की पुत्रवधू बन जाऊंगी... तब बोलूंगी!
गरुड़ शोभित (गंभीरता से): तुम्हारा और वर्धान का रिश्ता तुम्हारे नाना जी, इस कुल के पूर्व राजा, तय कर गए हैं। ये विधि का विधान है... इसे कोई बदल नहीं सकता।
सय्युरी मुस्कुराई और हल्का सा शर्मा गई।
गरुड़ शोभित (थोड़ी नरमी से): और तुम्हारे होने वाले वर की तबीयत में सुधार है।
सय्युरी (धीमे स्वर में, नज़रें झुकाकर): जी गरुड़ शोभित...
वो धीरे से बाहर चली जाती है।
अब गरुड़ शोभित का चेहरा गंभीर हो जाता है—
गरुड़ शोभित (गुस्से में): अपने सारे सिपाही लगा दो... और पता करो यहां कौन आया था! जो भी था, वो बचकर नहीं जाना चाहिए।
सारे सिपाही भागते हुए महल की ओर रवाना हो गए।
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दूसरी ओर: प्रणाली, बाबा के बताए रास्ते से उपवन तक पहुंच गई थी।
लेकिन यहां भी चारों तरफ सैनिक थे, और शाम ढलने को थी।
अब प्रणाली सोच में थी — आखिर अंदर जाए तो कैसे?
तभी सैनिकों की आवाज़ आई—
सैनिक (चिल्लाते हुए): महल के अंदर कोई इंसान घुस आया है! सारे सिपाही यहीं आ जाओ!
प्रणाली फौरन एक पेड़ के पीछे छुप गई।
वो देख रही थी, सभी सिपाही महल की तरफ भाग गए।
प्रणाली (मन में राहत महसूस करते हुए): शायद भगवान भी मेरे साथ हैं!
वो उपवन के अंदर घुसी और गरुड़ पुष्प की तलाश करने लगी।
उसके मन में सवाल उठ रहे थे—
प्रणाली (सोचते हुए): इसने गरुड़ पुष्प कौन सा है?
बाबा ने कहा था — मुझे देखते ही समझ आ जाएगा...
काफी देर तक वो ढूंढती रही। समय बीतता गया, लेकिन कुछ खास नहीं मिला।
तभी एक झाड़ी के पीछे से हल्की सी रोशनी आती नजर आई।
वो आगे बढ़ी और झाड़ियों को हटाया, तो देखा—
एक बड़े से पेड़ पर लाल हीरे-सी चमक लिए हुए एक इकलौता फूल खिला हुआ था।
प्रणाली (मन में): यही है... गरुड़ पुष्प!
वो उसके पास गई। पेड़ के सामने जाकर हाथ जोड़ लिए—
प्रणाली (श्रद्धा से): हे वृक्ष देवता! मैं, एक ब्रह्म वर्धानी... आपसे इस पुष्प को अपने साथ ले जाने की आज्ञा चाहती हूं... कृपया मुझे अनुमति दें।
उसने आंखें बंद कर लीं।
कुछ पल बाद, वो पुष्प धीरे से उसके कदमों में गिर गया।
प्रणाली (हैरान होकर): आपने सुन लिया... धन्यवाद!
उसने पुष्प को उठाया और भागने ही वाली थी, तभी उसे याद आया—
प्रणाली (सोचते हुए): उस व्यक्ति को भी तो यही पुष्प चाहिए था...
अगर इसमें से एक पंखुड़ी उसे दे दूं, तो शायद वो भी ठीक हो जाए।
पर मन में डर था —
अगर पकड़ी गई तो?
सुबह होते ही सुरक्षा बढ़ जाएगी...
पर दिल की आवाज़ ने कहा— जाना चाहिए।
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वो अपने मुंह पर कपड़ा बांध कर चोरी से फिर महल पहुंची।
कक्ष में घुसी — वो शख्स अब भी गहरी नींद में था।
प्रणाली (धीमे से): आशा करती हूं तुम जल्दी ठीक हो जाओ...
उसने पुष्प की एक पंखुड़ी तोड़ कर सिरहाने रख दी।
वो निकल ही रही थी कि पर्दों में उसका पैर फंस गया।
वो और वो पंखुड़ी दोनों वर्धान पर गिर गए।
गरुड़ पुष्प की महक और प्रणाली की सांसों की खुशबू
धीरे-धीरे उसकी सांसों में घुलने लगी...
वर्धान के माथे पर लकीरें बनने लगीं।
उसकी आंखें भींचने लगीं।
प्रणाली पर्दे के पीछे गिरी थी —
पर दोनो के बीच सिर्फ एक हल्की दीवार थी।
वर्धान अब हल्की-हल्की आवाजें निकालने लगा।
प्रणाली डर गई।
प्रणाली (मन में घबराहट से): ये तो होश में आने लगा...
अगर देख लिया तो सब जान जाएंगे!
वो भागने लगी —
लेकिन तभी वर्धान ने उसकी कलाई पकड़ ली।
वर्धान (नींद में, कमजोर आवाज़ में): मत जाओ ना...
भागती प्रणाली एक पल के लिए रुक गई।
पीछे मुड़ी और उसकी तरफ देखा...
अब वर्धान के कानों में आवाज़ गूंजी—
सैनिक (बाहर से चिल्लाते हुए): चलो जल्दी! राजकुमार के कक्ष में फिर कोई घुस आया है!
इतनी आवाज़ सुनकर वर्धान की पकड़ ढीली हो गई।
प्रणाली फुर्ती से वहां से निकल गई।
वर्धान की आंख खुल गई।
वो उठ बैठा और चिल्लाया—
वर्धान (जैसे किसी पुराने एहसास में): फूल बेचने वाली...!
(क्योंकि वो अब तक उसका नाम नहीं जानता था)
उसी समय हवाएं तेज़ चलने लगीं।
चांदनी और चमक उठी।
वो खुद को महल में पाकर खिड़की की ओर दौड़ा,
जहां प्रणाली का उड़ता हुआ कपड़ा दिखा।
उसने उठ कर बाहर देखने की कोशिश की,
लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया।
वो तलवार उठाकर निकलने ही वाला था
कि रास्ते में ही बेहोश होकर गिर पड़ा।
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दूसरी ओर:
प्रणाली तालाब के पास पहुंचने ही वाली थी,
तभी सैनिकों ने उसे घेर लिया।
सैनिक: तो ये है वो बहुरूपिया...? चल अब हमारे साथ... गरुड़ के पास।
उन्होंने उसका नकाब हटाया—
और चौंक गए...
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