शर्ट लैस अगस्त्य… उसकी मस्कुलर बॉडी, छह पैक एब्स इतने साफ कि किसी की भी नजर वहीं अटक जाए। और रात्रि की भी अटक गई। कुछ सेकंड के लिए जैसे सांस ही रुक गई हो उसकी।
अगस्त्य धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा था… रात्रि को जैसे होश ही नहीं रहा, उसकी आंखों में, उसके बदन की गर्माहट में खो गई थी।
जब होश आया तो देखा कि वो बहुत… बहुत करीब था।
इतने कि उसकी सांसें रात्रि के गालों को छू रही थीं।
रात्रि एकदम ठिठकी, आंखें ऊपर कर के उसे देखा — छः फुट का लंबा चौड़ा मर्द… और वो खुद, नाजुक सी पांच-पांच की लड़की, जो अब उसके सीने से बस कुछ इंच दूर थी।
अगस्त्य का इंटेंस टोन —
"हां तो… कोई काम पड़ा होगा तभी आई हो? वरना सिर्फ मेरे six pack abs देखने तो नहीं आई होगी, मिस मित्तल?"
रात्रि कुछ कह नहीं पाई… बस धीरे से बोली —
"तुम्हें थोड़ा पीछे खड़ा होना चाहिए..."
अगस्त्य मुस्कुराया।
उसने अपना हाथ उठाया, रात्रि के चेहरे पर उड़ते बालों को हटाने लगा। हाथ गालों से छूते हुए कानों तक जाने ही वाला था कि तभी —
फोन बजा।
स्क्रीन पर नाम चमका — एवी।
अगस्त्य की आंखों में आग सी उतर आई।
और उसी आग में उसने वो उठा हुआ हाथ —
धड़ाम से दीवार पर मारा।
इतनी ज़ोर से… कि खून निकल आया।
रात्रि घबरा गई —
"पागल हो क्या?! ये क्या कर रहे हो!"
उसने उसका हाथ पकड़ा, खून देख कर उसका चेहरा फीका पड़ गया।
अगस्त्य झटका देकर बोला —
"मेरा हाथ छोड़ो। जाकर अपने बॉयफ्रेंड की कॉल उठाओ!"
(पर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी… शायद इसलिए क्योंकि कॉल रात्रि ने काट दी थी।)
रात्रि: "तुम इसे कैसे बोल सकते हो?"
अगस्त्य: "क्यों? वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड नहीं है…?" (दिल से चाहता था कि रात्रि बोले — “नहीं है…”)
रात्रि: "तुम्हें एवी में इतनी दिलचस्पी क्यों है?"
अगस्त्य चुप। बस उसकी आंखें बोल रही थीं।
रात्रि ने देखा — हाथ से खून टपक रहा है। वो तुरंत पास आई, उसका हाथ पकड़ा और धीरे से बोली —
"अब तुम बिल्कुल चुप रहोगे… वरना!" (उसकी बड़ी-बड़ी आंखें सीधे अगस्त्य की आंखों में)
अगस्त्य चुप हो गया।
रात्रि: "फर्स्ट एड किट कहां है?"
अगस्त्य मुंह फुलाकर बोला —
"चुप रहने को किसने कहा था मुझे?"
रात्रि (इरिटेट होकर): "अब तो बोलो!"
अगस्त्य (धीरे से): "नीचे वाले ड्रॉवर में..."
रात्रि ने किट निकाली, इशारे से उसे बेड पर बैठने को कहा और फिर खुद भी बैठ गई।
अगस्त्य उसकी तरफ देखे जा रहा था।
रात्रि बेखबर होकर उसकी चोट पर मरहम लगा रही थी।
हवा में उड़ते उसके बाल… अगस्त्य को बेकाबू कर रहे थे।
वो कभी फूंक मारती… कभी बाल हटाती…
अगस्त्य से रहा नहीं गया।
उसने अपने दूसरे हाथ से उसके बाल कानों के पीछे कर दिए। गाल को छूता हुआ हाथ जब उसके कानों को छुआ — तो रात्रि को झटका सा लगा।
रात्रि ने अगस्त्य को देखा:
"दर्द हो रहा है न? तो क्यों मारा दीवार पर हाथ? क्या जरूरत थी? शब्दों से भी बात होती है…"
अगस्त्य बस उसे देखे जा रहा था… जैसे जन्मों बाद देखा हो…
हवा फिर से बाल उड़ा रही थी।
तब अगस्त्य उठा। झट से खिड़कियां बंद करने लगा — एक… दो… तीन… फिर फैन… फिर AC भी।
रात्रि हैरान: "ये कर क्या रहे हो?"
अगस्त्य: "बस… अब न उड़ेंगे तुम्हारे बाल… और न मेरा ध्यान जाएगा…"
थोड़ी देर बाद खुद से बड़बड़ाया —
"पर मैंने AC क्यों बंद किया?"
फिर बेड पर वापस आया, उसका हाथ रात्रि के हाथ में रखा —
"लो अब लगाओ दवाई…"
रात्रि को कुछ समझ नहीं आया — वो बस चुपचाप मरहम लगाने लगी।
अगस्त्य: "वैसे तुम आई क्यों हो?"
रात्रि: "मैं तुमसे पूछने आई थी कि…"
फोन फिर बजा — एवी।
रात्रि ने फौरन फोन काट दिया।
फिर बोली: "तुमने मीडिया को जो स्टेटमेंट दिया—"
फोन फिर बजा।
अगस्त्य ने बिना कुछ सोचे रात्रि का फोन उठाया और ज़ोर से ज़मीन पर फेंक दिया।
फोन चकनाचूर।
रात्रि: "अगस्त्य! तुम सच में पागल हो गए हो क्या?!"
अगस्त्य चिल्लाया: "हां… हूं! और इसलिए बोल रहा हूं… निकल जाओ यहां से!"
रात्रि का चेहरा उतर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अगस्त्य को कितना ज़ख्मी कर रही है — दिल से।
रात्रि (गुस्से में): "जब से तुम मेरी जिंदगी में आए हो… कुछ ना कुछ चल रहा है! तुम्हें पता है लोग मेरे बारे में क्या-क्या बोल रहे हैं तुम्हारी वजह से?"
अगस्त्य: "तुम्हें पता है मैंने उसे क्यों मारा था?"
रात्रि: "वजह कुछ भी हो, तुम किसी को मार नहीं सकते!"
अगस्त्य: "तुम्हारी ये पूरी मूवी, कहानी, लोकेशन — सब एवी की प्लानिंग है! है कोई जवाब?"
रात्रि अंदर से कांपी। पर वो बताती भी कैसे कि ये सब पुनर्जन्म से जुड़ा है। कौन मानेगा?
फिर बोली: "मैंने कहा था उसे ऐसा करने को। मेरे लिए किया उसने!"
अगस्त्य हक्का-बक्का: "क्या…?"
रात्रि: "हां! मुझे बचपन से अजीब-अजीब सपने आते हैं… वही कहानी… वही दृश्य जो मूवी में हैं!"
अगस्त्य (धीरे से): "तो… तुम्हें सब याद है?"
रात्रि: "बस… इससे ज़्यादा तुम कुछ नहीं जान सकते!"
अगस्त्य (कड़वा हो कर): "और एवी जान सकता है…? क्योंकि तुम उसे जानती हो?"
रात्रि: "हां!"
अगस्त्य की आंखें भर आईं —
"और मुझे नहीं जानती...? सच में?"
रात्रि: "अभी कितना वक्त हुआ है…"
अगस्त्य गुस्से में उठ खड़ा हुआ: "मैंने पूछा — तुम मुझे जानती हो या नहीं?"
रात्रि चुप।
फिर वो चिल्लाया —
"मैं तुम्हें याद हूं या नहीं… बताओ प्रणाली!"
रात्रि जैसे पत्थर हो गई। आंखें बंद कर के बोली: "नहीं…"
अगस्त्य ने फिर से चोट वाले हाथ से दीवार पर मारा। अबकी बार और गहरा घाव।
रात्रि की आंखें खुली — उसने सुना —
"प्रणाली…"
वो कांपी: "क्या… क्या कहा तुमने मुझे?"
अगस्त्य (तेज़ गुस्से में): "OUT!"
रात्रि उसके पास आई: "बताओ ना… क्या बोला तुमने?"
अगस्त्य: "मेरे पास मत आओ… वरना नहीं जानता क्या कर बैठूं!"
रात्रि रुक गई। और धीरे-धीरे चलती हुई बाहर जाने लगी।
अगस्त्य की आंखों से आंसू बह निकले…
"इस बार दुपट्टा नहीं दोगी… बांधने के लिए?"
रात्रि के कदम थम गए।
एक फ्लैश…
एक ब्लैक एंड व्हाइट याद…
किसी की आवाज़ गूंजी —
"मैंने तुम्हारी जान बचाई और तुम अपना दुपट्टा तक फाड़कर नहीं बांध सकती?"
उसका सिर भारी हो गया, आंखें बंद कीं और वो लड़खड़ा गई…
अगले ही पल…
नीचे से अर्जुन की आवाज़ आई —
"मिस मित्तल...? उठिए… क्या हो गया?"
अगस्त्य दौड़ा।
नीचे देखा — रात्रि बेहोश थी।
गोद में उठाकर उसे सोफे पर लिटाया।
"क्या हुआ इसे?"
अर्जुन: "पता नहीं… अचानक गिर गई!"
अगस्त्य खुद को कोसने लगा…
"तेरी एक बात… इसे तोड़ गई। पूरी सच्चाई तो इसे क्या बना देगी…!"
पानी उसके चेहरे पर डाला।
रात्रि को होश आया। आंखें खोलीं।
अगस्त्य बोला: "ठीक हो? क्या हुआ तुम्हें? जब पता था चक्कर आ रहे हैं तो रुक नहीं सकती थी? मैं खा जाता तुम्हें?"
अर्जुन सब कुछ सुन रहा था… फिर धीरे से बोला —
"भाई… बोलने तो दो उन्हें…"
और चुपचाप वहां से चला गया।
रात्रि ने आंखें खोलीं और बोली: "ऊपर तुमने मुझे क्या कहा था?"
अगस्त्य: "कुछ नहीं… कुछ भी नहीं!"
रात्रि: "झूठ! तुमने मुझे 'प्रणाली' कहा… क्यों?"
अगस्त्य: "अरे… यही तो तुम्हारी स्टोरी की हीरोइन है… सोचा तुम खुद को राजकुमारी समझती हो… इसलिए तुम्हें उसी नाम से बुला दिया…"
रात्रि (नज़रे गड़ाकर): "सच में…? बस यही बात थी?"
अगस्त्य: "अब प्लीज़ ये मत बोलना कि तुम सच में खुद को राजकुमारी समझने लगी हो…"
तभी…
दरवाज़े पर दस्तक…
नौकर ने दरवाज़ा खोला…
एवी… अंदर आ चुका था।