Ishq aur Ashq - 13 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 13

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इश्क और अश्क - 13



फिर उसने सांस देने के लिए रात्रि के होठों पर अपने होठ रख दिए और सांस देने लगा...
ठंडी बारिश की बूँदें उनके चेहरों पर पड़ रही थीं और उस तालाब के किनारे एक अधूरी मोहब्बत की साँसें रुकती जा रही थीं...

आसमान में जैसे कोई शैतान जाग उठा हो…
घनघोर काले बादल उमड़ आए —
बिजली कड़कने लगी, हवाएं पागल हो चुकी थीं, जैसे सब कुछ उड़ा ले जाएंगी।

हर पल… हर सेकंड… लगता जैसे किसी श्राप की घड़ी शुरू हो चुकी है।

पर ये क्या……?!
रात्रि की सांसें सुधरने के बजाय और मंद हो गईं।
उसके होठों की नमी ठंडी होने लगी थी… जैसे प्रेम हार रहा था… मौत जीत रही थी।

अगस्त्य (टूटती हुई आवाज़ में):
"रात्रि… उठो… उठो न प्लीज़… देखो, मज़ाक नहीं कर रहा, इस बार तुम नहीं उठीं तो मैं भी सब छोड़ दूंगा…"

कोई जवाब नहीं आया…

बारिश और तेज़ हो गई — हर बूँद अब उसे घायल कर रही थी, कुदरत जैसे खुद सज़ा दे रही हो।

वो चीखते हुए उठता है —
रात्रि को गोद में लेता है, उसकी भीगी देह को अपने सीने से चिपकाए महल की ओर भागता है…
उसके कदम, उसके आंसुओं से भारी हो चुके थे।

"मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा रात्रि… कुछ भी नहीं…"


---

🎬 महल – शूटिंग स्टॉप, सबकी सांसें थमीं

महल के दरवाज़े पर जब वो पहुँचा, उसकी हालत देखकर पूरे यूनिट में सन्नाटा छा गया।

एवी (चिल्लाता है):
"रात्रि! क्या किया तुमने उससे? क्या हुआ उसे!?"

अगस्त्य (बिना देखे):
"मेरी कार की चाबी कहाँ है…?"

कोई जवाब नहीं…

अगस्त्य ग़ुस्से से दहाड़ता है:
"चाबी लाओ… अभी के अभी!"

एक स्टाफ लड़खड़ाता हुआ चाबी लाता है।
अगस्त्य रात्रि को कार में लिटा रहा होता है कि एवी उसका रास्ता रोक लेता है:

एवी:
"चाबी दो… मैं ले जाऊँगा उसे!"

अगस्त्य (आँखों में ज्वालामुखी):
"दूर रह… तू उससे दूर ही अच्छा है!"

एवी:
"दूर तो तुझे रहना चाहिए…"

दोनों आमने-सामने, जैसे दो आग एक ही मोमबत्ती को जलाना चाह रहे हों।

तभी अर्जुन बीच में कूदता है:
"पागल हो गए हो क्या दोनों? सामने देखो — मौत के मुहाने पर खड़ी है वो! तुम लोग बहस कर रहे हो…?"

नेहा:
"मैं चलती हूँ… शायद मेरी ज़रूरत हो।"

अगस्त्य (बिना कुछ कहे):
"बैठो।"


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🚗 कार में – बेचैनी का सफर

गाड़ी बिजली सी दौड़ रही है…
अंदर सिर्फ बारिश की आवाज़ और अगस्त्य का टूटता हुआ सब्र।

अगस्त्य:
"नेहा… होश आया उसे…?"

नेहा:
"नहीं…"

कुछ मिनट बाद…

अगस्त्य:
"अब आया…?"

नेहा (झुंझलाकर):
"अभी तो बताया ना — नहीं!"

फिर कुछ देर बाद…

नेहा को छींक आती है।
"आच्छू!"

अगस्त्य झटके से ब्रेक मारता है:
"आया क्या?"

नेहा (गुस्से में):
"अगर एक बार और पूछा ना… तो यहीं उतर जाऊंगी!"

अगस्त्य (धीमे टूटी सी आवाज़ में):
"बस पूछ ही तो रहा हूँ…"


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🏰 अगस्त्य का रहस्यमय घर – और उसका सच

नेहा:
"ये कहाँ ले आए? हॉस्पिटल तो ये नहीं है!"

अगस्त्य:
"ये मेरा घर है… और यहाँ उसका इलाज होगा।"

अंदर पहले से डॉक्टर्स की प्राइवेट टीम तैयार थी —
जैसे कोई राजा अपने रानी की रक्षा के लिए पूरा दरबार तैयार कर चुका हो।

डॉक्टर:
"हमें देखने दीजिए…"

जाँच, रिपोर्ट्स, ऑब्ज़र्वेशन… सब कुछ नॉर्मल… लेकिन रात्रि अब भी बेहोश।

डॉक्टर:
"इनकी फैमिली कौन है?"

अगस्त्य (हिचकते हुए):
"मैं…"

डॉक्टर:
"आप…?"

अगस्त्य (संयम से):
"अभी कोई नहीं… आप बताइए… क्या हुआ है?"

डॉक्टर:
"कुछ भी साफ़ नहीं है… ये अनकॉमन है। उन्हें हॉस्पिटल शिफ्ट करना होगा… और परिवार को सूचित करें…"


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🏥 हॉस्पिटल – दर्द का दूसरा नाम

मेघा और अनुज दौड़ते हुए आते हैं।

मेघा (डरी हुई):
"क्या हुआ मेरी बेटी को…?"

नेहा:
"उन्हें अगस्त्य सर ने बचाया…"

मेघा (अगस्त्य के पास):
"बेटा… तूने बचाया न… अब बता क्या हुआ?"

अगस्त्य:
"आंटी… मैं बस उसे ले आया… खुद कुछ नहीं जानता…"

डॉक्टर:
"देखिए… पेशेंट कोमा में जा चुकी हैं।"

पीछे से एवी:
"क्या!! रात्रि कोमा में…?"

अगस्त्य:
"ये मुमकिन नहीं… डॉक्टर… कुछ तो करिए…"

एवी (घुटते हुए):
"ये मेरी गलती है… सब मेरी प्लानिंग… मूवी… लोकेशन… याद दिलाने के लिए… पर अब कुछ नहीं चाहिए… बस वो वापस आए…"

और वो निकल जाता है…


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🖤 अंतिम क्षण – अगस्त्य और रात्रि

डॉक्टर:
"आप मिल सकते हैं… थोड़ी देर के लिए…"

अगस्त्य रात्रि के पास जाता है,
उसके माथे पर हाथ रखता है, उसकी आँखें भर आती हैं।

अगस्त्य (फुसफुसाता है):
"मैंने सब किया ताकि तुम्हें उस दर्द से बचा सकूं…
पर रात्रि… अब तो जाग जाओ न…"

तभी… अचानक…

रात्रि (नींद में बड़बड़ाती है):
"अव… वी… वी…… अविराज…"

अगस्त्य का चेहरा स्याह हो गया…
उसके हाथ से रात्रि का हाथ छूट गया…
वो जैसे कहीं बहुत दूर चला गया हो…

अगस्त्य (सन्न):
"…अविराज?"


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